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पर्यावरण का नुकसान।

Kmsraj51 की कलम से…..

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    • Paryavaran Ka Nuksan | पर्यावरण का नुकसान।
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Paryavaran Ka Nuksan | पर्यावरण का नुकसान।

मेरी रूह रोती है कांप – कांप कर,
देखा के पर्यावरण का नुकसान।
चिन्ता लगी है मन में इक भरी कि,
हो न जाए कहीं यह धरती शमशान।

दया आती है तेरी करणी पर,
तू कर क्या रहा है ओ इंसान?
सृष्टि रचाने वाले से डर जरा,
तू क्यों बना है खुद भगवान?

नदियां नाल हो रही है ,
पर्वत हो रहे हैं मैदान ।
जंगल हो रहे हैं वन विहीन सारे ,
बंजर हो रहे हैं हर खेत – खलियान।

दया आती है तेरी करनी पर ,
तू कर क्या रहा है ओ इंसान?
सृष्टि रचाने वाले से डर जरा,
तू क्यों बना है खुद भगवान?

चारों ओर है शोर ही शोर बस ,
शांति के लिए ना है कोई स्थान ।
कंक्रीट के जंगल को देख बोले वन प्राणी,
बात हम कहां जाए ओ पागल इंसान?

दया आती है तेरी करनी पर,
तू कर क्या रहा है ओ इन्सान?
सृष्टि रचाने वाले से डर जरा,
तू क्यों बना है खुद भगवान?

मौसम के भी मिजाज है बिगड़े,
कहीं सूखा तो कहीं आंधी -तूफान ।
प्रदूषण के कहर से कुदरत है रोती,
क्यों बढ़ रहा है धरती का तापमान?

दया आती है तेरी करनी पर,
तू कर क्या रहा है ओ इंसान?
सृष्टि रचाने वाले से डर जरा,
तू क्यों बना है खुद भगवान?

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इस कविता में कवि ने पर्यावरण के लगातार हो रहे विनाश पर गहरा दुःख और चिंता व्यक्त की है। कवि बार-बार इंसान से कहता है कि इंसान की स्वार्थपूर्ण और विनाशकारी गतिविधियों के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। नदियाँ गंदे नालों में बदल रही हैं, जंगल खत्म हो रहे हैं, पर्वत समतल होते जा रहे हैं और खेत बंजर हो गए हैं। कवि इंसान को चेतावनी देता है कि वह खुद को भगवान समझने की भूल कर रहा है और सृष्टि को नष्ट कर रहा है। हर ओर शांति के स्थान पर शोर है, और वन्य प्राणी भी बेघर हो गए हैं। मौसम अस्थिर हो गए हैं — कहीं सूखा तो कहीं तूफान — और प्रदूषण के कारण धरती का तापमान बढ़ता जा रहा है। कवि बार-बार इंसान से कहता है कि वह अपने कर्मों पर विचार करे और सृष्टि के रचयिता से डरे, क्योंकि जिस रास्ते पर वह चल रहा है, वह धरती को विनाश की ओर ले जा रहा है। कविता एक गहरी चेतावनी है — कि अगर इंसान नहीं सुधरा, तो यह धरती एक दिन शमशान बन जाएगी।

—————

यह कविता (पर्यावरण का नुकसान।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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