Kmsraj51 की कलम से…..
♦ पीड़ा अंतः मन की। ♦
अर्दित की स्मृति करे लहूलुहान मुझे,
पल-पल की यादें करती छलनी मुझे।
उर-वेदना की पीड़ा दृश्य पुराना दिखलाती,
छटपटाती काया जिसमें मृत तुल्य बतलाती।
हृदि-माला के घट में विजन सहन तक ले जाती,
खालीपन का बोध करा तन-निभृत कर ले आती।
द्रवित मन मेरा कसक हिय का ही बतलाये,
निशदिन खुद का दमन करूं अंतस् ये समझाये।
तेरा कुछ नहीं जग में विकल हो क्यूं तू फिरता,
अतिशय का रख बोध तन-मठ ही तेरा ही रहता।
इक दिन भस्मीभूत हो चिरयुवा तू हो जायेगा,
दारुण रुदन करता पुंगल तेरा चिरशान्त हो जायेगा।
आवेश न कर जग से तू तुझे जितना निसर्ग ने दिया,
अपने स्वप्न को अन्तर्घट में रख भव ने भार ले लिया।
सब सम्भाला हिय में अपने अधर तक न आने देना,
क्षण-क्षण जो बीते तुझपर होंठों को तुम सिल लेना।
पल-पल की पीड़ा से नम कारक दारुण हो ले,
शैल-शिखा की गति अपने खचित-उर तू कर ले।
अंतः मन की अर्दित सुध को प्रेत-पट समझ ओढ़ ले,
इक दिन उदधिमेखला के तन पर अर्घट बन उड़ ले।
♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦
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- “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — जब अंतः मन में पीड़ा होती है उस समय मन में चलने वाले विचारों और भावनावों को बताया है। जब भी अंतः मन में पीड़ा होती है मन के अंदर किस-किस तरह से संकल्पो का उथल पुथल चलता है इसे समझाने की कोशिश की है। अतीत के पीड़ादाई दृश्य को मन का दर्पण बार-बार दिखलाता है, जिसमें तन व मन को बहुत ही ज्यादा पीड़ा दिखलाती, जैसे की मृत तुल्य हो ये काया। अंतः मन में पीड़ा को हृदय की अंतः गहराई तक ले जाती व खालीपन का बोध करा तन-निभृत कर ले आती वापस। मेरा द्रवित मन बार-बार मुझें ये बतलाये, निशदिन मैं खुद का दमन कर रहा हूँ आंतरिक मन यही समझाए। अंतः मन सदैव ही यही समझाए इस संसार में कुछ भी नही है तेरा फिर इस मोह पास में क्यों फस कर रोता है तू। एक दिन ये तन आग के हवाले होकर भस्मीभूत हो जायेगा। ये रोता हुआ तेरा मन चिरशान्त होकर सो जायेगा। आवेश में आकर दुनिया से तू बैर न कर, तुझें जितना ये प्रकृति ने दिया उसे सही से उपयोग कर। अपने स्वप्न को अंतः मन में रख कर अंतः आत्मा ने भार ले लिया।
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यह कविता (पीड़ा अंतः मन की।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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