Kmsraj51 की कलम से…..
♦ दीपावली सुहावन। ♦
झुर – झुर बहत पुरवइया दीपावली सुहावन,
दीप सजी अंगनैया है औ मिष्ठान लुभावन।
धरती का हर कोना सजा आसमान सुहावन,
झिलमिल झिलमिल दीप टिमटिमाते मनभावन।
कुंजों – उपवनों से शांति, सुख धाम दिखावन,
गुरुजन परिजन संग – संग दिखत ज्ञान लुटावत।
मंदिर – द्वार से हो रहा लक्ष्मी ध्यान मनावन,
काशी, मथुरा, अयोध्या, प्रयाग धाम सुहावन।
धनवंतरी पहले आए मोरा गांव – गांव बतावन,
माटी के दिए घी – तेल – बाती जलते दिखावन।
सखी संग भीतर बाहर साजन शोभा पाता पावन,
स्वार्थ सब भूल गए सुख दायक सुख शांति आंगन।
‘मंगल’ छवि मनमोहक कुंज कुनबा पर पावन,
गोरी छोरी मिलि दीप जलाए हरि मन को भावन।
गृह – गृह गगन मंडल जस गाते गीत सुहावत,
ताल तलैया तट समुद्र नदियां मोहक मनभावन।
♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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— Conclusion —
- “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — मंदिर द्वार से हो रहा लक्ष्मी ध्यान मनावन, हो काशी, मथुरा, अयोध्या, या प्रयाग धाम सुहावन। दीपावली महापर्व पर धरती का हर कोना सजा आसमान सुहावन, झिलमिल झिलमिल दीप टिमटिमाते मनभावन। शुभ दीपावली आत्मिक साधना के लिए सबसे सर्वोत्तम दिन होता है, इस दिन हम सभी को अपने आत्मिक उत्थान के लिए सच्चे मन से साधना करना चाहिए।
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यह कविता (दीपावली सुहावन।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।
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