Kmsraj51 की कलम से…..
♦ स्वप्न कुसुम। ♦
काव्य : ज्योतित कर दे माँ।
अस्तमनबेला में मुस्कुराता हुआ,
मद्धिम सुंदर चाल विस्मित ईरण।
नंदिनी माँ उतरी मेरे अँगना,
इंदु की चुलबुल धवल चरण।
चल आई कितना अचम्भा – अध्व,
श्वेतरथ समीरण-सी निःशब्द परी।
तरंगों वाली आकाशगंगा की,
सुधा झागित सिंधुजात की लहरी।
शर्मायी अचंभित-सी निहार रही थी,
मेरा दिनांत-आलोक अरुनार।
लुकाछिपी का दृश्यकाव्य,
क्या कस रही है प्रणयी जानदार।
तरंगित चंद्रिका के मनोभाव की,
केश उद्भावना-सी सुकुमार।
हर्षित हो भव में बिखर पड़ी ले,
नई तारिकाओं से मनोवेग अपार।
अलस की नूतन स्याह-किनारे में,
वृजिन-वेली-सी शशि छविमान।
भर लाई माँ किस मधुवन से,
लख-लख स्वप्न-कुसुम अजान।
मंजु-रैन के अधरों की वह,
सुधा-कुसुमित मुग्धित तान।
मेरे निभृत सपन-निकेतन में,
माया जाल सी मोहित अनजान।
घिर आवे! ज्योतित कर दे माँ,
मेरा निद्रित नयनपट संसार।
विलक्षणा-बेली की चंद्र-कुमुद-केश,
ही मेरी चंद्रकांता बने साकार।
अर्थ: विलक्षणा-बेली = स्वप्न की घाटी,
वृजिन = आकाश, उद्भावना = कल्पना
♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦
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यह कविता (स्वप्न कुसुम।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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