Kmsraj51 की कलम से…..
♦ पृथ्वी करे पुकार। ♦
मैंने तो तुम्हें सब कुछ परोपकार में दिया।
स्वार्थवश कभी भी तुमसे नही कुछ लिया॥
फिर तुमने मुझें इतना क्यों है बिसराया?
अपने कर्मों से जहर मेरी नस-नस में फैलाया॥
स्वच्छ पानी, हवा, मिट्टी सब मुझसे ही तो आया।
खुदगर्जी में आकर तुमने इन सबका कैसा रूप बनाया॥
तुम इंसानों की खातिर सर्वस्व मैंने लुटाया।
पर तुमने खून के आंसू मुझें रुलाया॥
मैं भी आखिर ये कब तक सह पाऊँगी।
कब तक मैं भी यूँ चुप रह पाऊँगी॥
ज्यादा पैदावार के लालच में जहर से भर दिया सीना।
प्रदूषण से मुश्किल हुआ, मेरी ही प्रकृति का जीना॥
होंठ अब तो मेरे भी सूखने लगे प्यास से।
स्वच्छ पानी के ताल, तलैया कब भरेंगे बैठी इसी आस में॥
कुल्हाड़ी मार-मार कर कर दिया छलनी सीना।
प्यारे पौधों के बगैर दुशवार हुआ जीना॥
हे इंसान! न जाने तुम कब मुझें मानोगे अपनी माता।
मेरा दिल तो सदैव अपनी संतान पर प्यार लुटाता॥
जागो हे मेरी संतान, मेरे भी सुख – दुख का ख्याल करो।
स्वच्छ हवा, जल, मिट्टी रखकर अपनी झोली खुशियों से भरो॥
♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦
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- “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आओं हम सब मिलकर ये संकल्प ले की प्रत्येक वर्ष एक पेड़ जरूर लगाएंगे और उसका अच्छे से देखभाल भी करेंगे तब तक जब तक की वह पेड़ अपना खुराख़ पृथ्वी से खुद न लेने लगे। पृथ्वी को हम सब मिलकर हरा भरा और स्वच्छ बनाएंगे फिर से। दुनियाभर के देशों द्वारा पृथ्वी दिवस हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाता है। इसका मकसद पृथ्वी पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे मुद्दों जैसे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग आदि के बारे में जागरूकता फैलाना और इसके लिए सकारात्मक कदमों को बढ़ावा देना है। साल 1970 से इसे हर साल इसी तारीख को मनाया जाता है।
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यह कविता (पृथ्वी करे पुकार।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।
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