Kmsraj51 की कलम से…..
♦ होलिका दहन। ♦
होलिका दहन (छोटी होली)
हवाएं जब भी बहना,
देश की संस्कृत में रहना।
पर्वत आये अथवा घाटी,
गांव शहर वा नव परिपाटी।
वैदिक सिद्धांतों में चलना,
सबका तुम कल्याण करना।
रंगीन रास्ते भी आएंगे,
फुसलाकर वहां ले जाएंगे।
माया को उल्लंघन कर जाते,
संसार सागर से भी तर जाते।
साधक के साधना गर पल्लवित,
पापों से मुक्ति और त्रिगुणातीत।
पक्षपात रहित वह हो जाता,
जब भक्ति मार्ग में रम जाता।
जो घृणा – द्वेष करता रहता,
परमात्मा को प्राप्त नहीं होता।
भक्त प्रहलाद विष्णु में रमता,
असुराधिपति मात्र हाथ मलता।
हिरण्यकश्यप विष्णु से जलता,
भगवान से घोर शत्रुता करता।
प्रह्लाद पिता पर नहीं चलता,
विष्णु भक्ति में तत्पर रहता।
दानव पुत्र मात्र दानव न होता,
धर्मात्मा पुत्र धर्म परायण ही!
विष्णु कृपा से प्रहलाद हुआ महान,
उसकी हत्या का पिता किया प्लान!
दानव निज बहन को दिया यह काम,
शाल होलिका ने मिली एक वरदान।
भक्त प्रहलाद की कयाधु है माता,
विष्णु जी थे उसकी भाग्य विधाता।
जब माता ने मन से प्रभु को पुकारा,
तब प्रहलाद बचे होलिका हुई स्वाहा।
आग से बचाने में साल दिखाती करामात,
जिसे ब्रह्मा ने होलिका को दिया वर के साथ।
छल छद्म में उसने प्रहलाद को लिया गोद में,
भली-भांति बर्बरता के थी वह आगोश में।
लोक दिखाओ कार्य से ईश्वर होता रूस्ट,
ध्रुव प्रहलाद सूर तुलसी मीरा में दी प्रभु भक्ति।
जब विशाल अलाव में होलिका संग प्रहलाद को देखा,
हवा को तत्काल बुलावा विष्णु जी ने भेजा।
हवा के संग – संग शीतलता भी वहां तभी आईं,
देवलोक की अप्सराओं ने भी मधुरिम गीत सुनाई!
होलिका के ऊपर से शाल प्रहलाद के ऊपर ऊढ़ाई,
वही होलिका को जलाकर प्रहलाद की जान बचाई।
हिरण्यकश्यप शिव का करता था बड़ा तप,
भगवान शिव की प्रसन्नता से मिला उसको एक वर।
नाय आकाश नहीं पाताल में मारा जाएगा!
उसे ना ही जानवर ना ही मानव मार पाएगा।
आशूरा अधिपति हिरण्यकश्यप को मारने,
नरसिंह रूप में भगवान विष्णु प्रकट होकर आए।
प्राप्त वर को ध्यान में रखकर संहारक बन ढाये,
नरसिंह रूपी नाखून प्रहार कर नव जीवन में पहुंचाएं।
♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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— Conclusion —
- “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — भक्त प्रह्लाद की विष्णु भक्ति व हिरण्यकश्यप के अहंकार को कविता के रूप में बताया हैं। होली रंगों का ही नहीं सामाजिक भेदभाव मिटाने एवं सामूहिकता का पर्व भी है। होली बुराई पर अच्छाई के प्रतीक का पर्व भी है। इस बार हम होलिका दहन के साथ कोरोना वायरस का भी दहन करें तो फिर पहले की तरह सौहार्द्र पूर्ण वातावरण में एक-दूसरे से गले मिलते हुए होली मना सकेंगे। होली रंगों का त्योहार है और जीवन में रंग तभी तक हैं, जब तक परिवार-समाज सुरक्षित है।
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यह कविता (होलिका दहन।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।
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