Kmsraj51 की कलम से…..
♦ जिंदगी। ♦
जिंदगी जीने की कला है।
कर्ज चुकाने की अदा है।
देश को इससे आशा है।
मां की यही अभिलाषा है।
जिंदगी केवल खेल नहीं।
यह देवों की परिभाषा है।
कितना कहूं जीवन को,
मानवता की यह रक्षक है।
सफर जिंदगी का गुजर जाता।
कोई पल – पल याद आता है।
लोग आते-जाते रहते जिंदगी में,
पल-पल बिछड़ता जाता है।
जीवन शैली मानवता की रक्षक,
संतों सा लगत संरक्षक है।
♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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- “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – बहुत सारे उदाहरण के माध्यम से बताया है, ज़िंदगी क्या है, “कितना कहूं जीवन को, मानवता की यह रक्षक है।” मानव जीवन मिला है लोगो का और स्वयं का कल्याण करने के लिए। यूँ ही जीवन को नष्ट ना करें, समय फालतू न गवाए, अपने इस जीवन को अच्छे कार्यों में लगाए।
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यह कविता (जिंदगी।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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