Kmsraj51 की कलम से…..
♦ एक दूजे के संग। ♦
तेरे बिना हम नहीं रह पाएंगे।
तेरे न रहने का दर्द किसे सुनाएंगे॥
तेरे बिना ये जिंदगी है मुहाल।
तेरी जुदाई से होता बुरा हाल॥
साँसों की मध्यम हुई रफ्तार।
तेरे बिन जीवन हुआ बेकार॥
तुम तो जान हो जहान हमारा।
हमारे लिए तू स्वयं से प्यारा॥
अब नींद नहीं आती चैन की।
शांति खो गयी दिन-रैन की॥
जो जीव-जगत को खुशहाल बनाती।
बिन इनके सूनी ये जीवन-बाती॥
ये पेड़ ही तो हमारे जीवन-दाता।
जिनके बिन कुछ नही भाता॥
चाहना है इसको जान से ज्यादा।
नहीं तो जीवन हो जाएगा आधा॥
हमारी जिंदगी की बनती ढाल।
वृक्ष संग प्रकृति की बजती ताल॥
जहाँ जगह मिले वही पेड़ है उगाने।
हरे-भरे पौधों के जीवन भी बचाने॥
वृक्ष ही बनते जीवन का सूत्रधार।
जश्न जीत की होती जीवन में भरमार॥
बिना तुम्हारे ये जीवन जीना दुश्वार।
मानव-जीवन को इनसे करना प्यार॥
हर वर्ष इन वृक्षों की तादाद बढ़ाएंगे।
प्रकृति संग अति सुंदर जीवन पाएंगे॥
♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦
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- “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — जैसे हम खाने के बिना नहीं रह सकते। वैसे ही पेड़-पौधे के बिना भी हमारा जीवन अधूरा है। जैसे हमें जीवित रहने के लिए भोजन-पानी की आवश्यकता है वैसे ही प्रकृति को जिंदा रखने के लिए पेड़-पौधे, साफ-सफाई, प्रदूषण रहित धरा बनाने की आवश्यकता है। जलवायु प्रदूषण को रोकना होगा और वृक्षों की कटाई रोकनी होगी। कटाई की जगह वृक्षों को लगाना होगा जिससे कि प्राकृतिक आपदा से हम बच सकें। पर्यावरण को बचाना, प्रकृति को बचाना हमारे हाथ में है। कब तक अपने ऐशो आराम के लिए यूँ ही पेड़ काटते रहोगे इंसान। अगर अब भी न सुधरे तुम तो पृथ्वी का वातावरण बिलकुल ही गर्म हो जाएगा, तुम्हारे जीने के लाले पड़ जायेंगे; फिर रोते रहना। प्रत्येक वर्ष बहुत सारे पेड़ आग लगने से जल जाते है, और इंसान कम थोड़े ही है ये भी अपने ऐशो आराम के लिए यूँ ही पेड़ काटते रहते है। अभी जब गर्मी पड़ रही है तो इन्हें पेड़ की कमी खल रही हैं। जब हरे भरे पेड़ और पौधे होते है तो कितना खूबसूरत मौसम व वातावरण होता है, सभी ऋतुएँ अपने चक्र के अनुसार चलती है, और सभी फसल समय पर होते हैं। अब भी समय हैं सुधर जा तू इंसान। आओ हमसब मिलकर ये संकल्प ले की प्रत्येक वर्ष दो पेड़ जरूर लगाएंगे, और उनका अच्छे से देख रेख करेंगे तब तक; जब तक वो पेड़ अपना खुराक खुद न लेने लगे पृथ्वी से।
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यह कविता (एक दूजे के संग।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।
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Raj Pal Sharma says
Very nice
Kusum Gaur says
100%सच तभी तो प्रकृति को परमेश्वर समान माना है।🙏🙏🙏⚘⚘⚘