Kmsraj51 की कलम से…..
♦ पृथु का प्रादुर्भाव। ♦
कवि हूं मैं सरयू – तट का।
समय चक्र के उलट पलट का।
मानव मर्यादा की खातिर,
मेरी अयोध्या खड़ी हुई।
कालचक्र के चक्कर से ही,
विश्व की आंखें गड़ी हुई।
हाल ये जाने है घट घट का।
कवि मैं सरयू – तट का।
प्रादुर्भाव हुआ पृथु – अर्ती का,
अंग – वंश वेन- भुजा मंथन से।
विदुर – मैत्रेय का हुआ संवाद,
गंधर्व ने सुमधुर गान किया मन से।
मन भर गया हर – पनघट का।
भाग्यशाली घूंघट का।
मनमोहक हरियाली छाई।
सकल अवध खुशियाली आई।
राजा पृथु का आना सुनकर।
ऋषियों की वाणी हरसाई।
मगन हुआ मन घट – पनघट का।
कवि हूं मैं सरयू तट का।
पृथु के पृथ्वी पर प्रादुर्भाव से,
दोस्तों को लगा बड़ा झटका।
माया – मोह को उसी ने पटका,
काबिल हूं मैं सारी घूंघट का।
विवेकी पुरुष कहीं ना भटका।
कवि हूं मैं सरयू – तट का।
♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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- “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – इस कविता में कवि ने राजा पृथु के प्रादुर्भाव का, अवध के मनोरम सुन्दर दृश्य का वर्णन किया है। ऋषियों के वाणी हरसाई, सकल अवध खुशियाली आई।
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यह कविता (पृथु का प्रादुर्भाव।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।
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