Kmsraj51 की कलम से…..
♦ पुकार। ♦
उठो बहादुर उठो।
बढ़ो बहादुर बढो।
समर सुनसान पड़ा है।
लूटते देख मां की लाज।
निज जंगी बेड़ा पास पड़ा।
बलिदान, बलिदान खड़ा है।
उठो बहादुर उठो।
बढ़ो बहादुर बढ़ो।
कुर्बानी की जंग है लड़नी।
दुश्मन त ललकार रहा है।
फौलादी जंगी बेटा को,
तुम भी तो तैयार करो।
दुश्मन सीमा पर तैनात खड़ा है।
सीमा पर तैनात वह अड़ा है।
उठो बहादुर उठो।
बढ़ो बहादुर बढ़ो।
खड़ा शहीदी जत्था भी,
तुझको आज पुकार रहा है।
सुनसान समर निहार रहा।
बलवीर पुंज बनकर उभरों री।
उठो बहादुर उठो।
बढ़ो बहादुर बढ़ो।
त्याग तपस्या बलिदान का,
यही रहा है केंद्र बिंदु।
मंगल आज पुकार रहा है।
उठो बहादुर उठो।
बढ़ो बहादुर बढ़ो।
चारों तरफ बिछी देख,
लाशों की जब ढेर।
झुकने देना कभी नहीं,
भारत मां का शीश।
होगा तो ढूंढो, पढ़ो बहादुर बढ़ो।
चढ़ो बहादुर बढ़ो, चलो वीर बढ़ो।
तपोभूमि हर ग्राम हमारे,
कवि की वाणी गाती है।
लोरी गाती शाम को,
माता गाय हमारी प्यारी है।
कहां सिंह बन गए खिलौने,
वाली रानी बलिदान खड़ा है।
पढ़ो बहादुर पढ़ो,
लड़ो बहादुर लड़ो।
उठो बहादुर उठो।
बढ़ो बहादुर बढ़ो।
♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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- “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – सैनिकों का उमंग – उत्साह बढ़ाते हुए कवि कहते है, चाहे कुछ भी हो जाये कभी भी झुकने ना देना भारत माँ का शीश। त्याग तपस्या बलिदान का, यही रहा है केंद्र बिंदु। उठो बहादुर उठो। बढ़ो बहादुर बढ़ो।
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यह कविता (पुकार।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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