Kmsraj51 की कलम से…..
♦ रक्षा सूत्रों का। ♦
काव्य : हिंदुत्व की राखी।
संसर्ग उर हिय कुसुमित सुमन-सुमन,
तत्वज्ञ आलोक विवुध अंतस् रहे।
बस इक साध्य इष्ट हमारा भरतखंड रहे,
जयध्वनि से निनादित शून्य महालय रहे।
स्कन्ध अनुगत नव्य आलय में,
स्तुत्य-प्रशस्त सम्पूर्ण समस्त जगत रहे।
इसके निमित्त ढलते चलते हम,
स्वस्ति अभिप्रणयन अंत:करण रहे।
ममतामयी दुर्लभ प्रवाहमयी इस माटी की,
वेदित्व मधु पा सब लीन रहे।
बस इक साध्य इष्ट हमारा भरतखंड रहे,
जयध्वनि से निनादित शून्य महालय रहे।
सुगमता के लिये ऐसा करें साधन,
विपत्ति में भी सदैव तत्पर बने।
लक्षित अंतस् साधना बने अनुष्ठान हमारी,
उपासक सेवक बन चले गिरि शेखर बने।
आत्म-अभिमान में भ्रमण करे,
डोले उसे देखे सदा ये संसार।
बस इक साध्य इष्ट हमारा भरतखंड रहे,
जयध्वनि से निनादित शून्य महालय रहे।
नव्य-नूतन मंगल कल्याण बदलाव को,
अंत:पुर से हो सबको स्वीकार।
कैसी भी हो कठिन चुनौती या ललकार,
आर्यधर्म रहे विश्वजनीय नेत्री अपना संस्कार।
वह सुसुप्त है जिनके मन में राष्ट्रधर्म प्यार नहीं,
जो रहे क्रियाशील वो सब करे वैभव-वंदन।
बस इक साध्य इष्ट हमारा भरतखंड रहे,
जयध्वनि से निनादित शून्य महालय रहे।
अटल निश्चय है हमारा,
उद्देश्य निमित्त पथ हम न छोड़ेगें।
इस नूतन युग के हम महीपाल,
आशुतोष उमेश भी साथ निभाऐगें।
आओ मिलकर बाँधें सूत्र राखी का हम,
प्रकृति के इस कर कमलों में।
शुभ मंगलमय हो राष्ट्र हमारा,
दिन-रात इसी में लगे रहें।
संसर्ग उर हिय कुसुमित सुमन-सुमन,
तत्वज्ञ आलोक विवुध अंतस् रहे।
बस इक साध्य इष्ट हमारा भरतखंड रहे,
जयध्वनि से निनादित शून्य महालय रहे।
♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦
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- “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — वह सुसुप्त है जिनके मन में राष्ट्रधर्म प्यार नहीं, जो रहे क्रियाशील वो सब करे वैभव-वंदन। बस इक साध्य इष्ट हमारा भरतखंड रहे, जयध्वनि से निनादित शून्य महालय रहे। रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहन के पवित्र प्यार का प्रतिक है, जिसे राखी का त्योहार भी कहा जाता है। रक्षा बंधन पर बहन, भाई की कलाई पर राखी बांधती है और उसके दीर्घायु व सुखी जीवन की प्रार्थना करती है। इसके साथ ही बहन अपने भाई से अपनी सुरक्षा का वचन लेती है, की जीवन में जब भी उस पर कोई मुसीबत आएगा उसका भाई उसकी मदद के लिए आ जायेगा। कृष्ण ने फर्ज निभाया भाई का, द्रोपदी बहन की लाज बचाने को। राखी की शक्ति देखो, कृष्ण दौड़े, दुष्टों को मजा चखाने को। रक्षाबंधन हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है, जिसे पूरे भारत समेत अन्य देशों में भी मनाया जाता है।
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यह कविता (रक्षा सूत्रों का।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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