Kmsraj51 की कलम से…..
Ruckus on Sanatan media and Dhirendra Shastri | सनातन, मीडिया और धीरेंद्र शास्त्री पर बवाल।
यह कितनी विडम्बना है कि आज हर क्षेत्र में घपलाबाजी हो रही है। हद हो गई। नेता और अधिकारी मिलकर देश लूट रहे हैं। छोटे सरकारी कर्मचारी काम न कर के मात्र बैठ कर तनख्वाह ले कर देश लूट रहे हैं। या फिर घूंस ले कर लूट रहे हैं। देश के न्यायालयों में न्याय बिक रहा है। पत्रकार पैसों की लालच में सच को झूठ और झूठ को सच कहने पर तुले हैं। बड़ी विडम्बना है कि एक मात्र धर्म परेशान लोगों का सहारा बन कर रह गया था। वहां भी अब ढोंग पाखंड और नाटक होना शुरू हो चुका है। यही धर्म नेता यदि चमत्कार करता है तो सन्देह के घेरे में और यदि वह कुछ नहीं करता तो फिर वह निक्कमा है।
जनता को यदि सभी मामलों में परेशान कोई करता है तो वह है देश का जागरूक पत्रकार और प्रिंट, इलेक्ट्रानिक और सोशल मीडिया। बेचारी जनता जाए तो जाए पर कहां जाए।
- दिक्कत हमे हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि धर्मों और इन धर्मों के लोगों से नहीं है। यदि इन धर्मों के लोग सच में अपने धर्म को ईमानदारी से मानते हैं और उसका दिल से पालन करते हैं तो वे किसी दूसरे धर्म को भी परेशान नहीं करते हैं।
- पर यह जो धर्म के नाम पर धर्म परिवर्तन, लव जेहाद या अन्य कई प्रकार की घटनाएं घट रही है। बहु – बेटियों को अर्धनग्न फिल्मे दिखा कर अंग प्रदर्शन की सीख दी जा रही है। बच्चों को, युवा पीढ़ी को नशे की लत लगाई जा रही है। क्या ये सारी बातें ठीक है?
- यूं हम कहने को तो सब खुद को सनातनी कहते हैं पर हम अपनी सनातनी सभ्यता और संस्कृति के प्रति कितने समर्पित है? क्या कदम उठाते हैं उनके संरक्षण के लिए हम?
- कुछ नहीं न। बस अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं हम। ये जो लीव इन रिलेशनशिप की बीमारी हमारे देश में आ रही है, क्या यह सनातन धर्म के अनुसार सही है?
- क्या समलैंगिक विवाह ठीक है? पशु बनाने पर तुले है मानव को आज। क्यों और किस लिए और कौन?
यह चर्चा भी की किसी पत्रकार ने ईमानदारी से? बस लोक आस्थाओं और विश्वासों पर विज्ञान का सहारा लेकर तर्क देना ही मीडिया का काम रह गया है। हम आज समाज को मानव समाज नहीं बल्कि पढ़ा लिखा आदि मानव समाज बनाने पर तुले हैं।
फर्क ये हैं कि आदिमानव कच्चा मांस खाता था और हम पक्का। वे पेड़ – पौधे की छाल से निज गुप्तांगों को ढकते थे और हम बिकनी और ब्रा से ढक रहे हैं। वे अपने लिए जंगलों में पूर्ण स्वतंत्र हो कर मनमाफिक तरीके से अपनी – अपनी शक्ति के बल पर जीते थे और हम आज मानव समाज में कुछ इन्ही गुणों के सहारे जीना चाह रहे हैं। रोक – टोक, नियम – धर्म कुछ चाहते ही नहीं है बस। पूर्ण स्वतंत्रता चाहते हैं।
- क्या ऐसे मुद्दों पर और शालीनता, सदाचार, मानवता तथा सभ्य व्यवहार पर भी किसी पत्रकार ने बनाया कभी वीडियो? नहीं न? फिर काहे कि सच्ची पत्रकारिता?
- सब अपने – अपने नम्बर बनाने वाली बात है। राजनैतिक पार्टियां तो वोट के लिए नौटंकी करती ही थी पर अब देश के नामी गिरामी पत्रकार भी यूं ही खेमों में बांट कर रह गए हैं।
- एक खेमा भाजपा का गुण गाता है तो दूसरा भाजपा विरोधी दलों का। मैं यह नहीं कहूंगा कि मीडिया के संचालक या पत्रकार इनके हाथों बिक गए हैं। बल्कि मैं यह कहूंगा कि यह बदलते दौर की विडम्बना है जो हर इन्सान खुद को और अपनी बात को ही ठीक समझने लगे हैं।
समाज के पुराने नीति – नियमों को कोरा पाखण्ड और कोरी कल्पना सिद्ध करने पर उतारू है। मैं धीरेंद्र शास्त्री का न पक्षधर हूं और न ही किसी और धर्म नेता के पक्ष में और खिलाफ में हूं।
- आज हिन्दी की क्या दुर्दशा है आजाद भारत में? क्या हिन्दी भारत की राष्ट्र भाषा नहीं होनी चाहिए? कौन पत्रकार इस मुद्दे को उठाता है? कौन इस बात पर वीडियो बनाता है?
- समाचार की भारत में अधिकतर भाषा हिन्दी। नेताओं की वोट मांगने की भारत में सर्वाधिक नहीं बल्कि 100 प्रतिशत भाषा हिन्दी या उसकी उप भाषाएं (जब चुनाव जीत लिए तो फिर तो लग गए अंग्रेजी बोलने)।
- फिल्मों की अधिकतर भाषा हिन्दी या हिन्दी की उप भाषाएं। फिर हिन्दी हिंदुस्तान की राष्ट्र भाषा क्यों नहीं?
- क्यों अंग्रेजी को सर्वाधिक महत्व हर कार्यालय, न्यायालय या सरकारी संप्रेषण और उच्च शिक्षा भाषा माध्यम में दिया जा रहा है? क्यों हम अंग्रेजी को भारत की अघोषित राष्ट्र भाषा बनाने पर तुले हैं?
- हमारी मत मारी गई है शायद। अंग्रेज भारत से कब के चले गए हैं पर हम आज भी बोलचाल, खान पान और रहन सहन की दृष्टि से उनकी गुलामी मानसिक रूप से कर रहे हैं।
- मानना पड़ेगा कि मैकाले की बुद्धि सच में ही चालाक और तेज थी। यूं तो सभी राजनैतिक दल कहते हैं कि हमने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। पर किस लिए?
- उन्ही के पदचिन्हों पर तो तुम सभी दल दशकों से राज कर रहे हैं। कौन सा परिवर्तन लाया है तुमने? वही जाति धर्म के नाम पर फूट डालो और शासन करो की भ्रष्ट राजनीति।
- असली पत्रकार वही है जो अपने राष्ट्र, संस्कृति और सभ्यता को सुरक्षित रखने के लिए समाज को और युवा पीढ़ी को सचेत करेगा।
जनता के सामने सरकारों, अधिकारियों, व्यापारियों, भ्रष्टाचारियों और धर्म नेताओं तथा संस्कृति और सभ्यता के साथ छेड़खानी करने वालों का सच लाने का काम करने वाला पत्रकार सही मायने में सच्चा पत्रकार है। खैर छोड़िए। शायद मैं गलत हूं। क्योंकि मैंने कहा कि आज सभी को यह लगता है कि मैं जो कह रहा हूं या जो सोच रहा हूं, वही ठीक है। यह सिद्धांत मुझ पर भी तो लागू होता है।
पर यह सार्भौमिक सत्य है कि किसी भी राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति की सुरक्षा करना उस राष्ट्र के शासकों – प्रशासकों से कहीं ज्यादा उस राष्ट्र के बुद्धिजीवियों का काम होता है। क्योंकि बड़े यानी बुद्धिजीवी और जन आदर्श लोग जो व्यवहार करते हैं राष्ट्र के सामान्य जन उसी का आचरण करते हैं। इस बात की पुष्टि श्री कृष्ण जी भी गीता में कर चुके है।
♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦
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- “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — हम आज समाज को मानव समाज नहीं बल्कि पढ़ा लिखा आदि मानव समाज बनाने पर तुले हैं। फर्क ये हैं कि आदिमानव कच्चा मांस खाता था और हम पक्का। वे पेड़ – पौधे की छाल से निज गुप्तांगों को ढकते थे और हम बिकनी और ब्रा से ढक रहे हैं। वे अपने लिए जंगलों में पूर्ण स्वतंत्र हो कर मनमाफिक तरीके से अपनी – अपनी शक्ति के बल पर जीते थे और हम आज मानव समाज में कुछ इन्ही गुणों के सहारे जीना चाह रहे हैं। रोक – टोक, नियम – धर्म कुछ चाहते ही नहीं है बस। पूर्ण स्वतंत्रता चाहते हैं।
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यह लेख (सनातन, मीडिया और धीरेंद्र शास्त्री पर बवाल।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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