Kmsraj51 की कलम से…..
♦ साथी चलता चल। ♦
हृदय में ठंडी – ठंडी आहें,
सर पर खुली धूप सुलगती।
नुकीले शूलों से बिंधते पग और,
सीने में तीक्ष्ण कंटक चुभती।
भीग चुका उद्यम फुहारों से,
बिंध-बिंध शूलों के आँचल।
अनन्त अभिशापित पगडंडी है,
कहाँ होगा नया सवेरा।
अंतस् भयाकुल सन्नाटा चिघाड़े,
चेतना काट रही गहन अँधेरा।
कौन बँधाये धीरज उर को,
कौन देगा कदमों को संबल।
रूक्ष कंठों से तपे अधर तक,
श्वांस – श्वांस में जलती ज्वाला।
मिली नहीं मरु में स्रोतस्विनी,
जो कंठों को दे इक बूँद का प्याला।
दिखा नहीं कहीं आशाओं को,
मधुर तृप्ति की बूँद मधुल।
बस बची थोड़ी अँजुल भर राख,
जले सपनों की मेरे पास।
डसती है झूठी कसमें,
अंतस् को अपनों की पल-पल आस।
बह रहा खाली आँखों से,
कतरा-कतरा जल निश्चल।
दूर-दूर तक फैल दुर्गम राहों पर,
शूल – कंटक भरे जंगल।
हर पाँव यहाँ है घायल,
पथ कहे साथी चलता चल।
रुके नहीं बढ़ते चलता चल,
साथी गम की राहों पर अकेला चल।
♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦
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यह कविता (साथी चलता चल।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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