Kmsraj51 की कलम से…..
♦ देववाणी – संस्कृत भाषा की विशेषताएँ। ♦
- संस्कृत, विश्व की सबसे पुरानी पुस्तक (वेद) की भाषा है। इसलिये इसे विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं किसी संशय की संभावना नहीं है।
- इसकी सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है।
- सर्वाधिक महत्वपूर्ण साहित्य की धनी होने से इसकी महत्ता भी निर्विवाद है।
- इसे देवभाषा माना जाता है।
- संस्कृत केवल स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि संस्कारित भाषा भी है अतः इसका नाम संस्कृत है।
- केवल संस्कृत ही एकमात्र भाषा है जिसका नामकरण उसके बोलने वालों के नाम पर नहीं किया गया है।
- संस्कृत को संस्कारित करने वाले भी कोई साधारण भाषाविद् नहीं बल्कि महर्षि पाणिनि, महर्षि कात्यायन और योग शास्त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि हैं। इन तीनों महर्षियों ने बड़ी ही कुशलता से योग की क्रियाओं को भाषा में समाविष्ट किया है। यही इस भाषा का रहस्य है।
- शब्द-रूप – विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक या कुछ ही रूप होते हैं, जबकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के 25 रूप होते हैं।
- द्विवचन – सभी भाषाओं में एक वचन और बहु वचन होते हैं जबकि संस्कृत में द्विवचन अतिरिक्त होता है।
- सन्धि – संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है सन्धि। संस्कृत में जब दो शब्द निकट आते हैं तो वहाँ सन्धि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जाता है।
- इसे कम्प्यूटर और कृत्रिम बुद्धि के लिये सबसे उपयुक्त भाषा माना जाता है।
- शोध से ऐसा पाया गया है कि संस्कृत पढ़ने से स्मरण शक्ति बढ़ती है। क्योंकि एकमात्र संस्कृत भाषा सोचते, लिखते, पढ़ते, व बोलते समय दिमाग की सारी नसें कार्य करती है।
- संस्कृत विश्व की सर्वाधिक ‘पूर्ण’ (Perfect) एवं तर्क सम्मत भाषा है।
- संस्कृत वाक्यों में शब्दों को किसी भी क्रम में रखा जा सकता है। इससे अर्थ का अनर्थ होने की बहुत कम या कोई भी सम्भावना नहीं होती। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि सभी शब्द विभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं और क्रम बदलने पर भी सही अर्थ सुरक्षित रहता है। जैसे – अहं गृहं गच्छामि या गच्छामि गृहं अहम् दोनो ही ठीक हैं।
- देवनागरी एवं संस्कृत ही दो मात्र साधन हैं जो क्रमश: अंगुलियों एवं जीभ को लचीला बनाते हैं। इसके अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है।
- एकमात्र संस्कृत भाषा ही – ब्रह्मांड की सबसे प्राचीन भाषा है।
- संस्कृत भाषा में साहित्य की रचना कम से कम छह हजार वर्षों से या उससे भी बहुत पहले से निरन्तर होती आ रही है। इसके कई लाख ग्रन्थों के पठन-पाठन और चिन्तन में भारतवर्ष के हजारों पुश्तक के करोड़ों सर्वोत्तम मस्तिष्क दिन-रात लगे रहे हैं और आज भी लगे हुए हैं। पता नहीं कि संसार के किसी देश में इतने काल तक, इतनी दूरी तक व्याप्त, इतने उत्तम मस्तिष्क में विचरण करने वाली कोई भाषा है या नहीं। शायद नहीं है।
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Krishna Mohan Singh(KMS)
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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)
सुंदर रचना…
आप की ये रचना आने वाले शुकरवार यानी 20 सितंबर 2013 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है… ताकि आप की ये रचना अधिक से अधिक लोग पढ़ें…
आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है… आप इस हलचल में शामिल अन्य रचनाओं पर भी अपनी दृष्टि डालें…इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है…
उजाले उनकी यादों के पर आना… इस ब्लौग पर आप हर रोज 2 रचनाएं पढेंगे… आप भी इस ब्लौग का अनुसरण करना।
आप सब की कविताएं कविता मंच पर आमंत्रित है।
हम आज भूल रहे हैं अपनी संस्कृति सभ्यता व अपना गौरवमयी इतिहास आप ही लिखिये हमारा अतीत के माध्यम से। ध्यान रहे रचना में किसी धर्म पर कटाक्ष नही होना चाहिये।
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मन का मंथन [मेरे विचारों का दर्पण]