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ईश्वर की कृपा पर कविता

संसार सागर में परमात्मा।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ संसार सागर में परमात्मा। ♦

ईश्वर कहते है कि मुझे जानकर बहुत लोग भजन करके तर जाते हैं। ईश्वर के विषय का यथार्थ ज्ञान ही तप है। जाे ईश्वर को भजता है उसे ईश्वर भक्त कहते हैं। संसार के लोगों ने जिसे मूल्यवान समझा वाे उसे ही याद करते हैं। क्या पता कौन किस समय काम आ जाए इसका ध्यान नहीं रखते हैं।

“कहा जाता है कि अंगद ने हनुमान जी से कहा की हनुमान समय-समय पर मेरी याद भगवान को दिलाते रहना जिसे भगवान याद करते हैं उसका बड़ा भारी भाग्य होता है।“

भरत जी से भारद्वाज मुनि ने कहा सारी दुनिया भगवान को भजती है और तुम्हें भगवान भजते हैं। मानव का जन्म दिव्य है। लेकिन भगवान की तरह पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं है कुछ अंतर है भगवान जैसी पूर्ण शक्ति नहीं है। भगवान का संसार में आना हित हेतु हितकारी होता है। लेकिन मनुष्य भगवान की आज्ञा से ही आता है।

• भगवान में हर समय मन को रमाएं रहना कल्याणकारी •

ज्ञानी पुरुषों का कर्म मनुष्य की अपेक्षा दिव्य होता है। भगवान के भजन के प्रभाव से कल्याण होता है उसी प्रकार भगवान के हाथों से मरने पर उस जीव की मुक्ति हो जाती है। भगवान का नाम जप करें अथवा भजन करें या सत्संग करें ऐसे जीव का कल्याण होता है।

महापुरुषों का भी दर्शन मुक्ति देने वाला होता है। भगवान में हर समय मन को रमाएं रहना कल्याणकारी होता है। भगवान से प्रेम हो जाने पर शेष गौण हो जाता है। शरीर क्रिया करें अथवा न करें परंतु निश्चित रूप से संसार में रहकर ईश्वर का भजन मनन करना कल्याणकारी कदम है।

‘भगवान ने कहा है कि तू केवल मेरा भजन कर’। जिस प्रकार हिम्मत करने वाला व्यक्ति उद्देश्य तक जल्दी पहुंच जाता है कम हिम्मत करने वाला पछताता रहता है; रोता रहता है उसी प्रकार मन की चंचलता जब छूट जाती है तो ईश्वर अर्थात भगवान को पाने में देरी नहीं होती धीरे-धीरे ही सही वह ईश्वर तक पहुंच जाता है।

• मन से धनवान धरा पर बहुत थोड़े •

कहां जाता है कि परमात्मा की प्राप्ति बहुत ही सहज है। परोपकार में किया गया खर्च खुले हाथ से करना होगा। उदारता का भाव अपने पास रखना उत्तम होता है। आपके पास यदि ऐसा लगे कि कुछ भी नहीं है तो भी लोगों के समक्ष मीठी वाणी बोली बोलना ज्यादा लाभप्रद होता है। हमारा लक्ष्य होना चाहिए और मन से धनवान धरा पर बहुत थोड़े ही मिलते हैं।

जीवन में काम करना चाहिए बड़ाई की चाहत नहीं रखनी चाहिए। अच्छे कार्यों के संपन्न होने के बाद भी उसे प्रकाशित करने से क्या लाभ यदि प्रकाशित करते हैं तो वह बड़ा नहीं कही जाएगी। मनुष्य अपनी बुरे काम को छुपाता है, छुपाने की चेष्टा करता है। वही आप उत्तम काम करके प्रकट किए बिना रह नहीं सकते हैं। यदि आप उत्तम कार्य करते हैं तो आप का उद्धार होने में विलंब नहीं होता है। परमात्मा की प्राप्ति की इच्छा वाले मनुष्य को दंभ – पाखंडी, मान – बड़ाई की इच्छा को छोड़ देना उत्तम होता है।

• भगवान खेवनहार है। •

दिखावा करना, गलती को छुपाना, आलस्य का आना, पापों को छिपाने जैसा कृत्य है। कल्याण व्याकुलता से होता है व्याकुलता भगवान के लिए करनी पड़ती है। संसार समुद्र तट की भांति ही है साधन की कमी का रोना नहीं रोना चाहिए। भगवान खेवनहार है। जिस प्रकार समुद्र में डूबते हुए व्यक्ति के हाथ में यदि कोई रस्सी लग जाती है तो उसे नहीं छोड़ता उसी प्रकार संसार सागर में ईश्वर की भक्ति को नहीं छोड़ना चाहिए।

हमेशा चिंतन करनी चाहिए साधन तेज, मनुष्य को चिंता नहीं चिंतन करना चाहिए। चिंता दुख का कारण होता है और चिंतन से ही ईश्वर की प्राप्ति होती है। प्रेम और भय से होता है। धार्मिक देश में जन्म बहुत कठिन तपस्या के बाद होता है और उत्तम कुल में जन्म या उत्तम सत्संग मिलना बहुत कठिन कार्य है। यदि मिल जाए तो मनुष्य को उस समय को नहीं गंवाना चाहिए। परमात्मा के तत्व को जानने वाला जीव संसार के सारे कार्यों को मिट्टी के समान समझने लगता है।

• मृत्यु के उपरांत •

संसार सागर में जो कुछ हो रहा है परमात्मा तत्व जानने के बाद चिंता नहीं होना चाहिए। आपने इस संसार में जो कुछ बनवाया है जिसे आप कहते हैं कि हमने अमुक कार्य किया है वह मृत्यु के उपरांत किस काम का। आपको यह भी नहीं पता है कि आपका आगे का जन्म कहां और किस तरह में होगा।

न जाने कितनी बार मनुष्य का जन्म हुआ होगा; अगर मनुष्य उस जन्म काल में परमात्मा को जान लिया होता तो फिर अगला जन्म ही क्यों होता। परमात्मा की प्राप्ति 33 करोड़ मनुष्यों में किसी एक को होती है। धरा पर जीव करोड़ों के करोड़ों गुना हैं। परंतु उसमें से सबको मुक्ति नहीं मिलती है। इसलिए सर्वस्व निछावर कर देना चाहिए; सब कुछ चले जाने के बाद भी ईश्वर से प्रेम करना चाहिए।

• ईश्वर की शरण में… •

सांसारिक उन्नति देखकर मनुष्य प्रसन्न हो जाता है किंतु साधन के अभाव में घर जल जाता है। मनुष्य परमेश्वर से प्रार्थना करें कि ईश्वर उसे सद्बुद्धि दे; ज्ञान दे। भगवान की शरण में जो जाता है उसका प्रभु त्याग नहीं करता। ईश्वर की शरण में जाने के बाद; उससे जो लोग कुछ मांग नहीं करते, उसकी सुनवाई भगवान जल्दी करता है।

समय बहुत मूल्यवान होता है एक-एक पल वृथा नहीं खोना चाहिए। करोड़ों जन्मों के उपरांत मनुष्य का एक बार जन्म मिलता है। मोह से राग द्वेश रूपी द्वंद उत्पन्न होता है। द्वंद की स्थिति में मनुष्य मोहित हो जाता है। मोह हो जाने पर बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। मोह ईश्वर से करना होगा। बासुदेव में निरंतर भ्रमण करते रहना चाहिए जो प्राणी भजन कीर्तन और भगवान की भक्ति की चर्चा करते हैं भगवान के गुण और प्रभाव सहित कथन करके संतुष्ट होते हैं वह ईश्वर के करीब होते हैं।

“प्रभु कार्य किए बिना मोहि कहां विश्राम”

समर्पित भाव से समस्त कार्यों को ईश्वर को समर्पित करना सर्वथा उचित है।

‘येषा म् न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।

ऐसे लोग पृथ्वी पर भार स्वरूप हैं जिनके अंदर विद्या, तप, दान, ज्ञान अच्छे आचरण, सद्गुण नहीं है। मनुष्य का शरीर पाकर जो कर्तव्य पालन करते हैं उन्हीं को धन्यवाद है।

किसी बात की परवाह करना ही मुक्ति में बाधक होता है। भेजें बेटे – बेटी, नाती – पोता कमाने के लायक हो जाए तो भी ठीक है वह आपको कुछ दे रहे हैं अथवा नहीं दे रहे हैं इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए। सहनशीलता उत्तम होती है कायरता उत्तम नहीं है, उद्दंडता खराब है वीरता प्राप्त करने के उपरांत उद्दंडता नहीं किया जाना चाहिए।

अच्छे व्यक्तियों को ढिंढोरा पीटकर पढ़ाई नहीं करनी चाहिए। अधिकांश लोग ढोंग करते हैं। शास्त्र के अनुकूल कार्य में बेपरवाह नहीं रहना चाहिए। बेपरवाह होने को गफलत कहते हैं। गफलत बिल्कुल ही नहीं करनी चाहिए। मनुष्य का जन्म अनन्य भक्ति करने के लिए मिलता है।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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— Conclusion —

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख में समझाने की कोशिश की है — यह मनुष्य जन्म मिला हैं भगवन भजन करने के लिए न की भोग विलाष के लिए। भगवान केवल उन भक्तों का उद्धार करते हैं जो सच्चे मन से सम्पूर्ण समर्पण के साथ प्रेम से याद करते है उन्हें, सच्चे मन से पूर्ण प्रेम से भजन करते है जो भगवान का उनका सदैव ही ख्याल रखते हैं भगवान भी। हम मनुष्यों को भगवान का मनन और चिंतन करना है, चिंता बिलकुल भी नहीं करना है। ऐसे लोग पृथ्वी पर भार स्वरूप हैं जिनके अंदर विद्या, तप, दान, ज्ञान अच्छे आचरण, सद्गुण नहीं है। मनुष्य का शरीर पाकर जो कर्तव्य पालन करते हैं उन्हीं को धन्यवाद है।

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यह लेख (संसार सागर में परमात्मा।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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