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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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उन्मुक्त जिंदगी

पहले और अब – गणतंत्र दिवस।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ पहले और अब – गणतंत्र दिवस। ♦

चलो कुछ नया सवेरा लाए, सत्य की राहों पर चले, देश में नया उजियारा फैलाएं।

वो जमीन न रही, वो आसमां न रहा,
गणतंत्र दिवस मना रहें हैं हम।
वो गण न रहे वो तंत्र न रहा,
वो जमीन न रही वो आसमां न रहा॥

संविधान हम सब पूजते हैं,
हर जन के मन में विधान न रहा।
न्याय है किताबों में हकीकत में न रहा,
वो जमीन न रही वो आसमां न रहा॥

बात जब आती है अधिकारों पर,
तरिका-ए-कार न रहा।
वो मानव अधिकार न रहा,
वो जमीन न रही वो आसमां न रहा॥

प्रस्तावना को उद्देशिका कहा जाता रहा,
संविधान निर्माता राष्ट्र निर्माण सजाता रहा।
संपूर्ण प्रभुता के साथ संपन्नता दिखाता रहा,
वो जमीन न रही वो आसमां न रहा॥

समाजवाद, पंथ निरपेक्षता को 42वें,
संशोधन से जोड़ा गया॥
लोक तंत्रात्मक जनता का शासन बताते रहे,
वो जमीन न रही वो आसमां न रहा॥

गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को हम मनाते रहे,
सामाजिक, आर्थिक न्याय की गुहार लगाते रहे।
न्यूनतम और अधिकतम आयु हमें दर्शात रहा,
वो जमीन न रही वो आसमां न रहा॥

राजनीति, विचार अभिव्यक्ति बताते रहे,
अध्याय 19(1) जनमत निर्माण हमें बताते रहे।
विश्वास, धर्म उपासना का अधिकार भी बताता रहा,
वो जमीन न रही वो आसमां न रहा॥

प्रतिष्ठा और अवसर की समानता भी बताता रहा,
व्यक्ति की गरिमा न रही फिर भी गिनवाता रहा।
राष्ट्र की एकता अखंडता सलामत रही।
भाई से भाई को मरवाता रहा,
वो जमीन न रही वो आसमां न रहा॥

आओ हम सब सच्चाई का रूख अपनाएं,
26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाए।
हर जन में मानव व मानवीयता बनी रहे।
वो जमीन भी उजागर हो आसमां भी उजागर रहे॥
जय हिन्द जय भारत॥

♦ विजयलक्ष्मी जी – झज्जर, हरियाणा ♦

—————

  • “विजयलक्ष्मी जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए समझाने की कोशिश की हैं — कड़वा है मगर सत्य है… जिन सूरमाओं ने अपने रक्तिम रंग से खेली क्रांति की होली थी। भारत की स्वतंत्रता खातिर, खाई वक्ष स्थल में गोली थी। सदैव ही इंकलाब की जिनके मुंह में, रहती सदा एक ही बोली थी। वह नर के वेश में नारायण की, अवतरी भारत में टोली थी। इतिहास छुपाया सच न बताया, इज्ज़त, माटी में रोली थी? यह राष्ट्रीय पर्व हमें देश की एकता और गौरव को बनाये रखने की प्रेरणा देता है। हम सभी को संविधान के सभी नियमों का पालन करना चाहिए। 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान पूर्ण रूप से लागू हो गया था। भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। 26 जनवरी के दिन ही भारत को गणराज्य का सर्वोत्तम दर्जा प्राप्त हुआ। 26 जनवरी के दिन दिल्ली में इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक परेड निकाली जाती है। जिस वतन ने हमें प्यार, मां का आंचल, समरसता, रंग रूप भेष भाषा सभी को मिलता मान दिया उस वतन पे हमें नाज है। जिस वतन का सबसे बड़ा संविधान लोकतंत्र जिसकी शान वो भारत देश महान वो भारत देश महान। वतन हमारी आन हमारा सम्मान है उस मां को हमारा सलाम वंदे मातरम् वंदे मातरम् वंदे मातरम्॥

—————

यह कविता (पहले और अब – गणतंत्र दिवस।) “विजयलक्ष्मी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम विजयलक्ष्मी है। मैं राजकीय प्राथमिक कन्या विद्यालय, छारा – 2, ब्लॉक – बहादुरगढ़, जिला – झज्जर, हरियाणा में मुख्य शिक्षिका पद पर कार्यरत हूँ। मैं पढ़ाने के साथ-साथ समाज सेवा, व समय-समय पर “बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ” और भ्रूण हत्या पर Parents मीटिंग लेकर उनको समझाती हूँ। स्कूल शिक्षा में सुधार करते हुए बच्चों में मानसिक मजबूती को बढ़ावा देना। कोविड – 19 महामारी में भी बच्चों को व्हाट्सएप ग्रुप से पढ़ाना, वीडियो और वर्क शीट बनाकर भेजना, प्रश्नोत्तरी कराना, बच्चों को साप्ताहिक प्रतियोगिता कराकर सर्टिफिकेट देना। Dance Classes प्रतियोगिता का Online आयोजन कराना। स्वच्छ भारत अभियान के तहत विद्यालय स्तर पर कार्य करना। इन सभी कार्यों के लिए शिक्षा विभाग और प्रशासनिक अधिकारी द्वारा और कई Society द्वारा बार-बार सम्मानित किया गया।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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उन्मुक्त जिंदगी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ उन्मुक्त जिंदगी। ♦

याद इन्हें भी कर लें आज।

दे दी हमें उन्मुक्त सी जिन्दगी।
आज़ादी में साँस लेने के लिये।
रो रही थी माँ भारती।
बेड़ियों में पड़ी गुलामी में,
हुंकार उठी नव खूनों में।

दासता की बेड़ियां तोड़ने के,
सन् सत्तावन में लगी आग बरसने।
अंग्रेजों के सीनों पर,
नाना तात्या मंगल बहादुर,
रानी लक्ष्मी कुंवर के हाथों से।

ह्यूज कार्नेल और डलहौजी जैसे,
कितने भागे अपने सिवरों में।

मेरठ कानपुर सतारा झांसी,
दिल्ली बिठूर लेते जाते वीरों ने।
फड़नवीश के तलवारों से,
क्रांतिवीर के हुंकारों से।

बेड़ियां लगी टूटने जब,
हाय! कैसी बिडंबना आई।
रानी गई काल-कवलित हो,
दे अगली पीढ़ी को,
हम न सके पूरे तोड़ने बेड़ी को,
माँ रो रही है बेड़ी में।

भुवन के नन्हें कामों से,
फिर जोश-उल्लास भर गया।
नौजवानों में।
हुंकार उठे कूका-बिरसा,
ले आदिवासी वीरों ने।

नीलांबर-पीताम्बर बंधुओं ने,
बरसा तीर-कमानों से।
छुड़ा दिये पसीने अंग्रेजों के,
लेकिन ये भी लड़े भिड़े,
तोड़ न पाये जंजोरों को।

पुनः नई आवाज उठी,
बेटों-बेटियों के हुंकारों से।
किशोर युवा चले मिटाने।
गुलामी की जंजीरों को।

कूद पड़े लाला लाजपत राय,
तिलक चापेकर बंधु पटेल खान।
ये सब बातों से,
कहां सुनने वाले थे।

बहरे थे कानों के,
इन्हें धमाके सुनने थे।
असफाक विस्मित दीनबन्धु,
खुदीराम बोस के गानों के।
पंजाब से उठे शोले फैले।

उत्तर प्रदेश बंगाल गुजरात,
मध्यभारत ओड़ीसा कर्नाटक,
आन्द्रा के हुंकारों से,
डोल गया एलिजाबेथ का,
सिंहासन लंदन के गलियारों में।
थर-थर कांपने लगे कागज के वीर,
जो उन्मुक्त हो करते,
अत्याचार भारत के गलियों में।

सुभाष बोस की सेना जब रंगून गई,
भागे अंग्रेज अपने घरों में।
लक्ष्मी सहगल बनी लेफ्टीनेंट,
मुजिबुर्रहमान बने कमाण्डर।
कर दिये बेड़ागर्क अंग्रेजों के,
उपनिवेश की आँधी ले चलते थे,
उड़ गए फिर तूफानों में।

भगत सिंह राजगुरू सुखदेव,
भाभी दुर्गा के चण्डों से।
फणीश्वर जैसे बच्चे गरजे,
भरी अदालत में बंदूकों से।
रक्त जब गिरने लगा अंग्रेजों के,
नाच उठी मौत की छाया।
जब इनके सीनों में।

भाग पड़े अंग्रेज अपने बिलों में,
दिल कांपा मन बिचलित हो भागा।
फिर लंदन की गलियों में।
मिली स्वतंत्रता जब भारत को,
माउण्टबेटन ने तभी चली चाल।

माँ भारती के सीने में,
कर दिये दो टुकड़े।
हिन्दुओं के वृहद को खंडित कर,
यवन को पाकिस्तान दे।
भारत को खंडों में विभक्त कर दिया।

आजाद भगतसिंह खुदीराम सुभाष,
असफाक विस्मिल राजगुरू जैसे,
कितने वीरों के सपनों को तोड़,
कर दिया टुकड़े में अंग्रेजों ने।

जतिन दास के भूखों में भी,
देखे थे सपने उन्मुक्त वृहद भारत के।
आज़ादी के सपने,
सब शहीदों ने मिलकर दें दिया हमको,
आज़ादी से उन्मुक्त जीने को।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — कड़वा है मगर सत्य है — जिन सूरमाओं ने अपने रक्तिम रंग से खेली क्रांति की होली थी। भारत की स्वतंत्रता खातिर, खाई वक्ष स्थल में गोली थी। सदैव ही इंकलाब की जिनके मुंह में, रहती सदा एक ही बोली थी। वह नर के वेश में नारायण की, अवतरी भारत में टोली थी। इतिहास छुपाया सच न बताया, इज्ज़त, माटी में रोली थी? यह राष्ट्रीय पर्व हमें देश की एकता और गौरव को बनाये रखने की प्रेरणा देता है। हम सभी को संविधान के सभी नियमों का पालन करना चाहिए। 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान पूर्ण रूप से लागू हो गया था। भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। 26 जनवरी के दिन ही भारत को गणराज्य का सर्वोत्तम दर्जा प्राप्त हुआ। 26 जनवरी के दिन दिल्ली में इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक परेड निकाली जाती है। जिस वतन ने हमें प्यार, मां का आंचल, समरसता, रंग रूप भेष भाषा सभी को मिलता मान दिया उस वतन पे हमें नाज है। जिस वतन का सबसे बड़ा संविधान लोकतंत्र जिसकी शान वो भारत देश महान वो भारत देश महान। वतन हमारी आन हमारा सम्मान है उस मां को हमारा सलाम वंदे मातरम् वंदे मातरम् वंदे मातरम्॥

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यह कविता (उन्मुक्त जिंदगी।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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