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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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उपन्यास

चरित्रहीन।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-KMS

ϒ चरित्रहीन। ϒ

प्रिय मित्रों,

यह कहानी गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़ी एक सच्ची घटना पर आधारित हैं।

स्त्री तब तक “चरित्रहीन” नहीं हो सकती ….. जब तक पुरुष चरित्रहीन न हो।
~ गौतम बुद्ध।

gautam buddha-kmsraj51

संन्यास लेने के बाद गौतम बुद्ध ने अनेक क्षेत्रों की यात्रा की। एक बार वह एक गांव में गए। वहां एक स्त्री उनके पास आई और बोली – आप तो कोई “राजकुमार” लगते हैं। क्या मैं जान सकती हूँ … कि इस युवावस्था में गेरुआ वस्त्र पहनने का क्या कारण है?

बुद्ध ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया कि – … “तीन प्रश्नों” के हल ढूंढने के लिए उन्होंने संन्यास लिया।

बुद्ध ने कहा – … हमारा यह शरीर जो युवा व आकर्षक है, पर जल्दी ही यह “वृद्ध” होगा … फिर “बीमार” और … अंत में “मृत्यु” के मुंह में चला जाएगा। मुझे “वृद्धावस्था” – “बीमारी” व “मृत्यु” के कारण का ज्ञान प्राप्त करना है।

बुद्ध के विचारो से प्रभावित होकर उस स्त्री ने उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया – शीघ्र ही यह बात पूरे गांव में फैल गई। गांव वासी बुद्ध के पास आए व आग्रह किया कि वे इस स्त्री के घर भोजन करने न जाएं।

क्योंकि वह “चरित्रहीन” है!! बुद्ध ने गांव के मुखिया से पूछा? क्या आप भी यह मानते हैं कि वह स्त्री “चरित्रहीन” है?

मुखिया ने कहा कि मैं शपथ लेकर कहता हूं कि वह बुरे चरित्र वाली स्त्री है। आप उसके घर न जाएं। बुद्ध ने मुखिया का दायां हाथ पकड़ा … और उसे ताली बजाने को कहा … मुखिया ने कहा – … “मैं एक हाथ से ताली नहीं बजा सकता” – क्योंकि मेरा दूसरा हाथ आपने पकड़ा हुआ है।

बुद्ध बोले – … इसी प्रकार यह स्वयं चरित्रहीन कैसे हो सकती है?

जब तक इस गांव के “पुरुष चरित्रहीन” न हों। अगर गांव के सभी पुरुष अच्छे होते तो यह औरत ऐसी न होती इसलिए इसके चरित्र के लिए यहां के पुरुष जिम्मेदार हैं।

यह सुनकर सभी “लज्जित” हो गए।

लेकिन आजकल हमारे समाज के पुरूष “लज्जित” नही “गौर्वान्वित” महसूस करते है। क्योकि यही हमारे “पुरूष प्रधान” समाज की रीति एवं नीति है।

सदैव सकारात्मक सोचो – सकारात्मक सोचने से ही अपना व अपने घर समाज और देश का विकास होगा। सदैव ही नारी का सम्मान करें।

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© आप सभी का प्रिय दोस्त ®

Krishna Mohan Singh(KMS)
Head Editor, Founder & CEO
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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान रुपी भोजन जरूरी हैं। ~ कृष्ण मोहन सिंह(KMS)

 ~Kmsraj51

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Note::-

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– कुछ उपयोगी पोस्ट सफल जीवन से संबंधित –

* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

∗ निश्चित सफलता के २१ सूत्र।

∗ जीवन परिवर्तक 51 सकारात्मक Quotes of KMSRAJ51

* KMSRAJ51 के महान विचार हिंदी में।

* खुश रहने के तरीके हिन्दी में।

* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

kmsraj51- C Y M T

“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaensolar radiation, and encourage good solar radiation to becomethemselves.

 ~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”

~KMSRAJ51

 

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शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-KMS

ϒ शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार। ϒ

प्रिय मित्रों,

यह Story महाकवि कालिदास जी के जीवन से संबधित हैं।

Kalidas-kmsraj51
महाकवि कालिदास जी।

महाकवि कालिदास जी के कंठ में साक्षात सरस्वती जी का वास था। शास्त्रार्थ में उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता था। अपार यश, प्रतिष्ठा और मान सम्मान पाकर एक बार कालिदास जी को अपनी विद्वत्ता का बहुत घमंड हो गया।

उन्हें लगा कि उन्होंने विश्व का सारा ज्ञान प्राप्त कर लिया है और अब सीखने को कुछ भी बाकी नहीं बचा। उनसे बड़ा ज्ञानी संसार में कोई दूसरा नहीं। एक बार पड़ोसी राज्य से शास्त्रार्थ का निमंत्रण पाकर कालिदास जी विक्रमादित्य से अनुमति लेकर अपने घोड़े पर रवाना हुए।

गर्मी का मौसम था, धूप काफी तेज़ और लगातार यात्रा से कालिदास जी को प्यास लग आई। थोङी तलाश करने पर उन्हें एक टूटी-फूटी झोपड़ी दिखाई दी। पानी की आशा में वह उस ओर बढ चले। झोपड़ी के सामने एक कुआं भी था।

कालिदास जी ने सोचा कि अगर कोई झोपड़ी में हो तो उससे पानी देने का अनुरोध किया जाए। उसी समय झोपड़ी से एक छोटी बच्ची मटका लेकर निकली। बच्ची ने कुएं से पानी भरा और वहां से जाने लगी।

तभी कालिदास जी उसके पास जाकर बोले – बालिके बहुत प्यास लगी है ज़रा पानी पिला दे ….. बच्ची ने पूछा – आप कौन हैं? मैं आपको जानती भी नहीं, पहले अपना परिचय दीजिए। कालिदास जी को लगा कि मुझे कौन नहीं जानता भला, मुझे परिचय देने की क्या आवश्यकता?

फिर भी प्यास से बेहाल थे तो बोले – बालिके अभी तुम छोटी हो, इसलिए मुझे नहीं जानती। घर में कोई बड़ा हो तो उसको भेजो। वह मुझे देखते ही पहचान लेगा। मेरा बहुत नाम और सम्मान है दूर – दूर तक। मैं बहुत विद्वान व्यक्ति हूँ।

कालिदास जी के बड़बोलेपन और घमंड भरे वचनों से अप्रभावित बालिका बोली – आप असत्य कह रहे हैं। संसार में सिर्फ दो ही बलवान हैं और उन दोनों को मैं जानती हूं। अपनी प्यास बुझाना चाहते हैं तो उन दोनों का नाम बाताएं?

थोङा सोचकर कालिदास जी बोले – मुझे नहीं पता, तुम ही बता दो मगर मुझे पानी पिला दो। मेरा गला सूख रहा है। बालिका बोली – दो बलवान हैं ‘अन्न’ और ‘जल’। भूख और प्यास में इतनी शक्ति है कि बड़े से बड़े बलवान को भी झुका दें। देखिए प्यास ने आपकी क्या हालत बना दी है।

कलिदास जी चकित रह गए। लड़की का तर्क अकाट्य था। बड़े – बड़े विद्वानों को पराजित कर चुके कालिदास जी एक बच्ची के सामने निरुत्तर खङे थे। बालिका ने पुन: पूछा – सत्य बताएं, कौन हैं आप? वह चलने की तैयारी में थी।

कालिदास जी थोड़ा नम्र होकर बोले – बालिके, मैं बटोही हूँ….. मुस्कुराते हुए बच्ची बोली – आप अभी भी झूठ बोल रहे हैं। संसार में दो ही बटोही हैं। उन दोनों को मैं जानती हूं, बताइए वे दोनों कौन हैं? तेज़ प्यास ने पहले ही कालिदास जी की बुद्धि क्षीण कर दी थी पर लाचार होकर उन्होंने फिर से अनभिज्ञता व्यक्त कर दी।

बच्ची बोली – आप स्वयं को बङा विद्वान बता रहे हैं जी और ये भी नहीं जानते? एक स्थान से दूसरे स्थान तक बिना थके जाने वाला बटोही कहलाता है। बटोही दो ही हैं, एक चंद्रमा और दूसरा सूर्य जो बिना थके चलते रहते हैं। आप तो थक गए हैं। भूख प्यास से बेदम हैं। आप कैसे बटोही हो सकते हैं?

इतना कहकर बालिका ने पानी से भरा मटका उठाया और झोपड़ी के भीतर चली गई। अब तो कालिदास जी और भी दुखी हो गए। इतने अपमानित वे जीवन में कभी नहीं हुए। प्यास से शरीर की शक्ति घट रही थी। दिमाग़ चकरा रहा था। उन्होंने आशा से झोपड़ी की तरफ़ देखा…. तभी अंदर से एक वृद्ध स्त्री निकली…..

उसके हाथ में खाली मटका था। वह कुएं से पानी भरने लगी। अब तक काफी विनम्र हो चुके कालिदास जी बोले – माते पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा।

वृद्ध स्त्री बोली – बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं। अपना परिचय दो। मैं अवश्य पानी पिला दूंगी। कालिदास जी ने कहा – मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें माते। स्त्री बोली – तुम मेहमान कैसे हो सकते हो? संसार में दो ही मेहमान हैं। पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम?

अब तक के सारे तर्क से पराजित और हताश कालिदास जी बोले – मैं सहनशील हूँ। अब आप पानी पिला दें। स्त्री ने कहा – नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी – पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है।

दूसरे, पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी ओ मीठे फल ही देते हैं। तुम सहनशील नहीं हाे, सच बताओ तुम कौन हो? कालिदास जी लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क – वितर्क से झल्लाकर बोले – मैं हठी हूँ।

वृद्ध स्त्री बोली – फिर असत्य, हठी तो दो ही हैं – पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार – बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप? पूरी तरह से अपमानित और पराजित हो चुके कालिदास जी ने कहा ….. फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ।

नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो, मूर्ख दो ही हैं। पहला अयोग्य राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।

कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास जी ….. वृद्ध स्त्री के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे। वृद्ध स्त्री ने कहा – उठो वत्स… आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती जी वहां खड़ी थी। कालिदास जी पुन: नतमस्तक हो गए।

माता ने कहा – शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार। तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग(लीळा) करना पड़ा।

कालिदास जी को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।

दोस्तों,

ज़िन्दगी में कभी भी किसी भी बात का अहंकार न करें। सदैव विनम्रता व धैर्य के साथ हर कार्य करें।

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बच्चों में अच्छे संस्कार का बीज रोपण।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-KMS

ϒ बच्चों में अच्छे संस्कार का बीज रोपण। ϒ

shantivan-KMSRAJ51

बच्चो में अच्छे संस्कार 16 वर्ष की आयु तक ही डाले जा सकते है। बचपन से ही बच्चो में जो संस्कार माता पिता के द्वारा दिये जाते है, वे ही आगे जाकर उनके भावी जीवन की उन्नती अथवा अवनीति के कारण बनते है।

हमारे बड़े-बुजुर्ग, संत-महात्मा कहते है की जैसा बीज होगा, वैसा ही वृक्ष होगा, तथा वैसा ही उसका फल होगा।

बचपन से ही अच्छे संस्कारो से संस्कारीत बालक युवावस्था में शुभ कार्यो मेें प्रवृत होकर माता-पिता की प्रतिष्ठा एवं स्वयं के सुख का कारण बनता है।

परंतु यदि बचपन से कुसंगत में रहकर कुसंस्कारो का बीजारोपण यदि बालक के जीवन में हो गया तो अपने माता-पिता के साथ ही वह स्वयं अपमानित जीवन जीकर अपने को पतन एवं दुःख की आग में झोक देगा।

श्रीमद्भागवत कथा में गौकर्ण और धुंनकारी की कथा आती है जिसके अनुसार गौकर्ण बचपन से अच्छे संस्कारो में पला था जिसके फलस्वरूप उसमें अपने उद्धार के साथ ही दूसरो की मुक्ती का मार्ग प्रशस्त किया जबकि धुंधुकारी बचपन से ही कुसंगत के कारण अधोगति को प्राप्त हुआ जिसका उद्धार भी गौकर्ण ने किया।

हमारी प्राचीन शिक्षा अधिक मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर निर्भर थी। बच्चों को गुरु, माता-पिता, बड़े व्यक्तियों, धर्म, धार्मिक कार्यों में रुचि उत्पन्न की जाती थी। उनके प्रति पूजनीय भाव प्रारम्भ से ही जोड़ दिये जाते थे, धार्मिक अंत:वृत्ति होने से बड़ा होने पर भी भारतीय भोगवाद की ओर प्रवृत्त न होते थे।

ब्रह्मचर्य का संयम सदैव उन्हें संयमित किया करते थे, पवित्र भाेजन, पवित्र भजन, पूजा, यज्ञ, चिंतन, अध्ययन, मनन आदि से जो गुप्त मन निर्मित होता था, वह ….. पवित्रतम भावनाओं का प्रतीक होता था।

घर का वातावरण भी उच्च नैतिकता से परिपूर्ण होता था, जिससे एक पीढ़ी के पश्चात् दूसरी पीढ़ी उन्हीं संस्कारों को निरन्तर विकसित करती चली आती थी।

जब हमारी भावनाओं में नैतिकता, श्रेष्ठता, पवित्रता का बीज नहीं डाला जायगा, तो किस प्रकार उत्तम चरित्र वाले मानव तथा समाज की या देश की सृष्टि हो सकती है?

आवश्यकता इस बात की है कि पहले माता-पिता स्वयं भावनाओं की शिक्षा की उपयोगिता समझें; स्वयं आदर की भावनाओं को संस्कार रूप में शिशु मन पर स्थापित करें।

वातावरण का भारी महत्व है, वातावरण का अर्थ व्यापक है। घर, तथा संगति तो यह महत्वपूर्ण है हीं, घर की पुस्तकें, दीवारों के चित्र, हमारे गाने, भजन, इत्यादि भी बड़े महत्व के हैं। यदि इन्हीं से उन्नति तथा सुधार की भावना में चलाई जायँ, तो आचार व्यवहार के क्षेत्र में क्रान्ति हो सकती है।

अच्छे-अच्छे भजन, पवित्र कर्त्तव्य की शिक्षा देने वाली कहानियाँ, उत्तमोत्तम व्यवहार द्वारा नये राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण हो सकता है।

बचपन से ही शिशु के मन पर बड़ों के प्रति आदर प्रतिष्ठा सम्मान, छोटों के प्रति स्नेह, दया, सहानुभूति, सहकारिता, बराबर वालों से मैत्री, प्रेम, संगठन सहयोग की भावनाएं बच्चों के गुप्त मन में उत्पन्न करनी चाहिये।

आचरण, आदर्श, तथा उचित निर्देशन से यह कार्य माता-पिता, अध्यापक सभी कर सकते हैं।

मान लीजिये, एक बच्चा सिनेमा का एक भद्दा गाना अनजाने ही कुसंगति से सुनकर याद कर लेता है। वह उसका अर्थ नहीं समझता, किन्तु उसे पुन: पुन: दोहराता है, बड़ा होकर वह उसका अर्थ समझने लगता है और जीवन भर उससे प्रभावित हुये बिना नहीं रहता।

यही बच्चा यदि कोई राष्ट्रप्रेम का गीत, उत्तम भजन, पवित्र विचार वाली उक्ति अनजाने में सीख ले, (जो माता-पिता सतत् अभ्यास, पुनरावृत्ति से सिखा सकते हैं,) तो वह बड़ा होकर निरन्तर उच्च मार्ग की ओर ही अग्रसर होगा।

Note : Post inspired by – Pujya Jaya Kishori Ji.

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‘शून्य’ – (Shunya) सस्पेंस थ्रिलर उपन्यास – हिन्दी में !!

kmsraj51 की कलम से …..

‘शून्य’
Real Art

प्रिय मित्रों,,

आज मैं आप सब के लिए हिंदी उपन्यास ‘शून्य’ – (Shunya) सस्पेंस थ्रिलर उपन्यास …..
लेकर आया हूँ,,,,,

“‘शून्य’ – (Shunya) Suspense Thriller Complete Novel in Hindi”

भाग-1 => हैप्पी गो अनलकी (शून्य-उपन्यास)-

हिमालय की वह उंचे पर्वतोंकी श्रुंखला और पर्वतोंपर लहराते हूए, आसमानमें बादलोंसे बातें करते हूए उंचे पेढ. आगे बर्फ से ढंकी हूई पर्वतोंकी ढलान चमक रही थी. उस चमकती ढलानसे लगकर कहीं दूरसे किसी सांप की तरह बल खाती हूई एक नदी गुजर रही थी. शुभ्र और अमृत की तरह निर्मल उस नदीका पाणी बहते हूए आसमंतमें जैसे एक मधूर धुन बिखेरता हूवा जा रहा था.

उंचे उंचे पेढ की सरसराहट , पंछींयोंकी चहचहाट, बहते नदी की मधूर धुन. इन कुदरती बातोंसे कौनसा युग चल रहा होगा यह बताना लगभग नामुमकीन. हजारो, लाखो सालोंसे चल रहे इन कुदरती करिश्मों में अगर मानवी उत्थान का प्रतीक समझे जाने वाली बातोंकी उपस्थीती ना हो तो पुराना युग क्या? और आधुनिक युग क्या? … दोनो एक समान. ऐसी इस जगह पर्वत की गोदमें नदीके किनारे एक पुरानी गुंफा थी. उस गुंफा के आस पास उंची हरी हरी घास हवा के साथ लहरा रही थी. गुंफामे एक ऋषी ध्यानस्थ बैठा हूवा था. सरपर बढी हूई जटायें, दाढी मुंछ बढ बढकर थकी हूई. न जाने कितने सालसे तप कर रहे ऋषी के चेहरेपर एक तेज, एक गांभीर्य झलक रहा था. आसपासके वातावरण से अनजान , या यूं कहीए वक्त, जगह और अपने शरीर से अनजान उनकी सुक्ष्म अस्तीत्वका विचर युगो युगोतक चल रहा होगा. अनादि, अनंत, सनातन कालसे विचर करते हूए उस ऋषीकी सुक्ष्म अहसास ने इस आधुनिक युग में प्रवेश किया …

अमेरिकाके एक शहरमें एक रस्ते के फुटपाथपर शामके समय लोग अपनी आधूनिकता की शानमें अपने ही धुनमें चले जा रहे थे. रस्तेपर आलिशान गाडीयाँ दौड रही थी. लोग अपने आपमे ही इतने व्यस्त और मशगुल थे की उन्हे दुसरों की तरफ ध्यान देने की बिलकुल फुरसत नही थी. सब कैसे अनुशाशीत ढंग से एक स्वयंचलित यंत्र की तरह चल रहा था. चलते हूए सबकी नजर कैसी अपनी नाक की दिशा में सिधी थी. हो सकता है उन्हे इधर उधर देखते हूए चलना भी अपने शिष्टाचार के खिलाफ लगता होगा. ऐसेही लोगोंकी भिडमें चलती हूई एक बाईस तेईस साल की सुंदरी अँजेनी अपने हाथमें शॉपींग बॅग लिये एक दुकान मे जानेके लिये मुडी. चलते हूए एक हाथसे बडी खुबसुरतीसे वह बिच बिचमें अपने चेहरे पर आती लटोंको पिछे की ओर हटा रही थी. उसकी लबालब भरे शॉपिंग बॅगसे लग रहा था की उसकी खरीदारी लगभग पुरी हो गयी होगी, बस कुछ दो-एक चिजें रह गई होगी. अचानक एक पुलिस व्हन सायरन बजाती हूई रास्ते से गुजरने लगी. लोगोंका अनुशाशन जैसे भंग हो गया. अँजेनी दुकानमें जाते हूए रुक गई और मुडकर क्या हूवा यह देखने लगी. कोई चलते चलते रुककर, तो कोई चलते चलते मुडकर क्या हूवा यह देखने लगे. न जाने कितने दिनोंके बाद कुछ लोगोंके भावहिन चेहरे पर डर के भाव उमटने लगे थे. कुछ लोग तो चेहरे पर बिना कुछ भाव लाए उस व्हन की तरफ देखने लगे. शायद चेहरेपर कुछ भाव जताना भी उनको नागवार लगता होगा. पुलिस व्हन आई उसी गतीमें गुजर गई. रस्ता थोडी देर तक जैसे पाणी में पत्थर गिरने से निकलने वाले तरंग की तरह विचलित हूवा और फिर थोडी देरमें पुर्ववत हुवा. जैसे कुछ हूवा ही ना हो. अँजेनी फिरसे मुडकर दुकानमें जाने लगी. उसे क्या मालूम था? की अभी अभी जो व्हॅन रस्ते से गुजर गई उसका उसके जिंदगी से भी कुछ सरोकार होगा.

पुलिस व्हॅन एक साफ सुधरी कोलोनीमें एक अपार्टमेंट के निचे रुक गई. बस्तीमें एक अजीब सन्नाटा छाया हूवा था. पुलिस व्हॅनसे तप्तरताके साथ पुलिस ऑफीसर जॉन और उसकी टीम उतर गई. जो लोग अपार्टमेंटके बाल्कनीमें बैठकर सुस्ता रहे थे वह अचंभेसे निचे पुलिस व्हॅनकी तरफ देखने लगे. उतरते ही जॉन और उसकी टीम अपार्टमेंट की लिफ्ट की तरफ दौड गई. ड्रायव्हरने व्हॅन अंदर ले जाकर पार्किंग लॉटमें पार्क की. जॉन और उसके सहकारीयोंने लिफ्टके पास आकर देखा तो लिफ्ट जगह पर नही थी. जॉनने लिफ्टका बटन दबाया. बहुत देर से राह देखकरभी लिफ्ट निचे नही आ रही थी.
” शिट” चिढे हूए जॉनके मुंह से निकल गया.
अधिरतासे जॉन बार बार लिफ्टका बटन दबाने लगा. थोडी देरमें लिफ्ट निचे आ गई. जॉनने लिफ्टका बटन फिरसे दबाया. लिफ्टका दरवाजा खुल गया. अंदर काला टी शर्ट पहना हूवा एकही आदमी था. उस हालातमें भी उसके टी शर्टपर लिखे अक्षरोंने जॉन का ध्यान आकर्षित किया. उस काले टी शर्टपर सफेद अक्षरोंसे लिखा हुवा था –
‘ झीरो’.
वह आदमी बाहर आतेही जॉन और उसके साथीदार लिफ्टमें घुस गए. लिफ्टमें जातेही जॉनने 10 नं. फ्लोअरका बटन दबाया. लिफ्ट बंद होकर उपरकी तरफ दौडने लगी.

10 नं. फ्लोअरपर लिफ्ट रुक गई. जॉनके साथ सब लोग बाहर आ गए. उन्होने देखा की उनके सामने ही एक फ्लॅटका दरवाजा पुरा खुला हूवा था. सब लोग उस खुले फ्लॅटकी तरफ दौड पडे. वे सब लोग एक दुसरे को कव्हर करते हूए धीरे धीरे फ्लॅटके अंदर जाने लगे. हॉलमें कोई नही था. जॉन और उसके और दो साथीदार बेडरुमकी तरफ जाने लगे. बचे हूए कुछ किचनमें, स्टडी रुममें और बाकी कमरे देखने लगे. किचन और स्टडी रुम खालीही थी. जॉनको बेडरूममें जाते वक्त ही अंदर सब सामान बिखरा हूवा दीख गया. उसने अपने साथीदारको इशारा किया. जॉन और उसके दो साथीदार सतर्तकासे धीरे धीरे बेडरुममें जाने लगे. वे एक दुसरेको कव्हर करते हूए अंदर जातेही उनको सामने बेडरुममे एक भयानक दृष्य दिखाई दिया. एक खुन से लथपथ आदमी बेडपर लिटा हूवा था. उसके शरीर में कुछ हरकत नही दिख रही थी. या तो वह मर गया था या फिर बेहोश हो गया होगा. जॉनने सामने जाकर उसकी नब्ज टटोली. वह तो कबका मर चुका था.
” इधर है … इधर”
जॉनके साथ आया एक साथीदार चिल्लाया.
अब जॉनके पिछे उसके बाकी साथीदार भी अंदर आगए. जॉनने आजुबाजू अपनी मुआयना करती हूई नजर दौडाई. अचानक उसका ध्यान जिस दिवार को बेड सटकर लगा हूवा था उस दिवार ने आकर्षीत किया. दिवार पर खुन की छींटे उड गई थी या खुन से कुछ लिखा हूवा था. जॉनने गौर करकर देखा तो वह खुनसे कुछ लिखा हूवाही प्रतित हो रहा था क्योकी दिवारपर खुनसे एक गोल निकाला हूवा था.
गोल… गोल का क्या मतलब होगा…
जॉन सोचने लगा.
और वह खुन उस मरे हूए आदमी का है या और किसीका?…
वह गोल खुनी ने निकाला होगा या फिर जो मर गया उसने मरनेसे पहले वह निकाला होगा?
” यू पिपल कॅरी ऑन ”
जॉनने अपने टीमको उनकी इन्वेस्टीगेशन प्रोसीजर शुरु करने को कहा.
उसके साथीदार अपने अपने काममें व्यस्त हो गए. जॉनने अपनी पैनी नजर एकबार फिरसे बेडरुमकी सब चिजे निहारते हूए दौडाई. बेडरुममें कोनेमें एक टेबल रखा हूवा था. टेबलपर एक तस्वीर थी. तस्वीरके बाजुमें कुछ खत और लिफाफ़े पडे हूए थे. जॉन ने एक लिफाफ़ा उठाया. उसपर लिखा हूवा था-
”प्रति – सानी कार्टर’.
इसका मतलब जो मर गया था उसका नाम सानी कार्टर था और वह सब खत उसे पोस्टसे आये हूए थे. जॉन बाकी लिफाफ़े और खत उठाकर देखने लगा. वे खत छानते हूए जॉन खिडकीके पास गया. उसने खिडकीसे बाहर झांककर देखा. बाहर बडा खुबसुरत दृष्य था – एक गोल नयनरम्य तालाब का. उस तालाब को हरी हरी हरीयालीने घेर रखा था. वह दृष्य देखकर जॉन कुछ पलोंके लिये अपने आसपासके मौहोल को भूल सा गया. तालाब की तरफ देखते देखते तालाब के आकारने उसे अपने आसपासके मौहोलसे फिरसे जोड दिया. क्योंकी तालाब का आकार लगभग गोलही था. जॉन फिरसे सोचने लगा-
” दिवारपर… गोलसा क्या निकाला होगा?”
अचानक जॉनके दिमाग मे एक विचार चौंध गया..
” गोल यानी ‘झीरो’ तो नही होगा… हां गोल यानी जरुर ‘झीरो’ ही होगा”
जॉन ने आवाज दिया ” सॅम और तू डॅन “‘
” यस सर” सॅम और डॅन तत्परतासे आगे आते हूए बोले.
” हम जब निचे लिफ्टमें चढे… तब हमें एक काले टी शर्टवाला आदमी दिखाई दिया…और उसके टी शर्टपर ”झीरो” ऐसा लिखा हूवा था… तुमने देखाना?” जॉनने पुछा.
” हां सर…मुझे उसका चेहरा भी याद है” सॅमने कहा.
” हां सर…मुझेभी याद है” डॅन ने कहा.
” गुड … अब तेजीसे निचे जावो और देखो वह निचे मिलता है क्या? … जल्दी जावो … वह अबभी जादा दुरतक नही गया होगा.”
जॉनके साथीदार सॅम और डॅन लगभग दौडते हूए ही निकल गए.

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भाग-2 => आसमान गिर पड़ा (शून्य-उपन्यास)-

जब अँजेनीने अपनी कार अपार्टमेंटमें पार्किंगके लिए घुमाई उसे वहाँ वह शापींग करते वक्त रस्ते में दिखी पुलिस व्हॅन दिखाई दी. उसका दिल जोर जोर से धडकने लगा. क्या हूवा होगा? वह कार से उतरकर अपना शॉपींग किया हूवा सामान लेकर जल्दी जल्दी लिफ्ट की तरफ चल पडी. जब वह वहाँ पहूँची, लिफ्टका दरवाजा खुला और अंदरसे दो पुलिसके लोग बाहर आ गए. पुलीसको देखकर उसका दिल औरही बैठसा गया. उसने झटसे लिफ्टमें जाकर लिफ्टका बटन दबाया जिसपर 10 यह नंबर लिखा हूवा था.
लिफ्टसे बाहर आतेही जब अँजेनीने अपने खुले फ्लॅटके सामने लोगोंकी भीड देखी उसकेतो हाथ पांव कापने लगे. उसके हाथसे शॉपींगका सारा सामान निचे गीर पडा. वैसेही वह उस भीडकी तरफ दौड पडी.
” क्या हूवा?” उसने अंदर जाते हूवे वहाँ जमा हूई भीडको पुंछा. सब लोग गंभीर मुद्रामें सिर्फ उसकी तरफ देखने लगे. किसीकी उसको कुछ बताने की हिम्मत नही बनी. वह फ्लॅटके अंदर चली गई. सब पुलीसवालोंका बेडरुमकी तरफ रुख देखकर वह बेडरुमकी तरफ चली गई.
जाते जाते फीरसे उसने एक पुलीसवालेको पुछा, ” क्या हूवा?”
वह उससे आँखे ना मिलाते हूवे गंभीरतासे सिर्फ बेडरुमकी तरफ देखने लगा.
वह जल्दीसे बेडरुमके अंदर चली गई. सामनेका दृष्य देखकर जैसे अब उसकी बचीकुची जान निकल गई थी. उसके सामने उसके पती का खुनसे लथपथ शव पडा हूवा था. उसे अब सारा कमरा घुमता हूवा नजर आने लगा और वह अपना होशोहवास खोकर निचे गीर पडी. गिरते वक्त उसके मुंहसे निकल गया-
” सानी…”
उसकी वह हालत देखकर बगलमें खडा जॉन झटसे उसे सहारा देने के लिए सामने आया. उसने उसे हिलाकर उसे जगाने की कोशीश की. वह बेहोश हो गई थी. लेकिन जब जॉनने गौर किया की उसकी सांसभी शायद रुक चूकी थी, उसने बगलमें खडे अलेक्स को आदेश दिया ” कॉल द डॉक्टर इमीडीएटली … आय थींक शी हॅज गॉट अ ट्रिमेंडस शॉक”.
अलेक्स तत्परतासे बगलमें रखे फोनके पास जाकर फोन डायल करने लगा.
डॉक्टर के आने तक कुछ करना जरुरी था लेकिन जॉन को क्या करे कुछ सुझाई नही दे रहा था.
“सर शी नीड्स आर्टिफिशीअल ब्रीदिंग” किसीने सुझाव दिया.
फिर जॉन अपने मुंहसे उसके मुंहमे सांस भरने लगा और बिच बिचमे उसकी रुकी हूई धडकन शुरु होनेके लिए उसके सिनेपर जोर जोरसे दबाव देने लगा. दबाव देते हूए 101,102,103 गिनकर उसने फिरसे उसके मुंहमें हवा भरी और फिरसे 102,102,103 गिनकर उसके सिनेपर दबाव देने लगा. ऐसा दो-तीन बार करनेके बाद जॉनने अँजेनीकी सांस टटोली. लेकिन एक बार गई हूई उसकी सांस मानो लौटनेको तैयार नही थी. उसके सारे साथीदार उसके इर्द-गिर्द जमा हुए थे. उनको भी क्या करे कुछ समझ नही आ रहा था. डॉक्टरके आनेतक एक आखरी प्रयास सोचकर जॉनने फिरसे एकबार अँजेनीके मुंहमे हवा भरी और 101,102,103 गिनकर उसके सिनेपर दबाव देने लगा.
हॉस्पीटलमें अँजेनीको इंटेसीव केअर युनिट में रखा गया था. बाहर दरवाजे के पास जॉन और उसका एक साथीदार खडे थे. इतनेंमे आय.सी.यू का दरवाजा खुला और डॉक्टर बाहर आगए. जॉन वह क्या कहते है यह सुननेके लिए बेताब उनके सामने जाकर खडा होगया. डॉक्टरने अपने चेहरेसे हरा कपडा हटाते हूए कहा-
” शी इज आऊट ऑफ डेंजर …. नथींग टू वरी”
जॉनके जानमें जान आगई. इतनेमें जॉनके मोबाईलकी घंटी बजी. जॉनने मोबाईलके तरफ देखते हूए बटन दबाते हूए कहा-
” यस सॅम”
उधरसे आवाज आई ” सर , हमने उसे सब तरफ ढुंढा लेकिन वह हमें नही मिला.”
”नही मिला.?.. उसके जानेमें और हमारे ढुंढनेमें ऐसा कितना फासला था? ….वह वही कही आसपास होना चाहिए था. ” जॉनने कहा.
”सर… शायद उसने बादमें अपने कपडे बदले होगे.. क्योंकी हमने आसपासके सभी पुलीस स्टेशनमें उसका हूलिया और पहनावेके बारेंमे खबर कर दी थी…” उधरसे आवाज आई.
”अच्छा, अब एक काम करो…उसका स्केच बनानेके काममें जुड जावो… हमें उसे किसीभी हालमें पकडनाही होगा…” जॉनने अपना दृढ निश्चय जताते हूए आदेश दिया.
” यस सर …” उधर से आवाज आई.
जॉनने मोबाईल बंद किया और डॉक्टरसे कहा,” अच्छा अब हम निकलते है… टेक केअर ऑफ हर … और कोई मुसीबत या परेशानी हो तो हमें फोन करना ना भूलीएगा…”
”ओ.के…” डॉक्टरने कहां.
जानेसे पहले जॉनने अपने साथीदारसे कहा,” उसके रिश्तेदारके बारेमे मालूम करो…और उन्हे इन्फॉर्म करो…”
” यस सर” जॉनके साथीदारने कहा.
….क्रमश:…

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भाग-3 => वर्ल्ड अंडर अंडरवर्ल्ड (शून्य-उपन्यास)-

एक कोलनीमें एक छोटासा आकर्षक बंगला. बंगलेके बाहर एक कार आकर खडी हूई. कारसे उतरकर एक आदमी झटसे घरके कंपाऊंडमे घूस गया. कोई पच्चीसके आसपास उसकी उम्र होगी. उसने काला गॉगल पहन रखा था. अंदर जाते हूए आसपासके गार्डनपर अपनी नजरे दौडाते हूए वह दरवाजेके पास पहूंच गया. अपनी कारकी तरफ देखते हूए उसने दरवाजेकी बेल बजाई. दरवाजा खुलनेकी राह देखते हूए वह कोलनीके दुसरे घरोंकी तरफ देखने लगा. दरवाजा खुलने को बहुत समय लग रहा था इसलिए बंद दरवाजे के सामने वह चहलकदमी करने लगा. अंदरसे आहट सुनते ही वह दरवाजेके सामने अंदर जानेके लिए खडा होगया. दरवाजा खुला. सामने दरवाजेमें उसकाही हमउम्र एक आदमी खडा था. अंदरका आदमी दरवाजेसे हट गया और बाहरका आदमी बिना कुछ बोले अंदर चला गया. ना कुछ बातचीत ना भावोंका आदान प्रदान.

बाहरका आदमी अंदर जानेके बाद दरवाजा अंदरसे बंद हूवा. दोनोंकी रहन सहन, कद काठी, रंग इससे तो वे दोनो अमेरीकी मुलके नही लग रहे थे. दोनोही बिना कुछ बोले घर के तहखानेकी तरफ जाने लगे. घरके ढाचेसे ऐसा कतई प्रतित नही होता था की इस घरको कोई तहखाना होगा.

जो बाहरसे आया था उसने पुछा, ” बॉसका कोई मेसेज आया?”

” नही अभीतक तो नही … कब क्या करना है , बॉस सब महूरत देखकर करता है” दुसरेने कहा.

पहला मन ही मन मुस्कुराया और बोला,” कौन किस पागलपनमें उलझेगा कुछ बोल नही सकते ”

दूसरेने गंभिरतासे कहा ” कमांड2 तुझे अगर हमारे साथ काम करना है तो यह सब समझकर अपने आपमें ढालना जरुरी है… यहां सब बातें तोलमोलकर प्रिकॅलक्यूलेटेड ढंगसे की जाती है.””

कमांड2 कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करे ये ना समझते हूए सिर्फ कमांड1 की तरफ देखने लगा.

”कोईभी बात करनेसे पहले बॉसको उसके नतिजे की जानकारी पहलेसेही होती है.” कमांड1ने कहा.

अब वे चलते चलते अंधेरे तहखानेमें आ पहूचें. वहां तहखानेमें बिचोबिच टेबलपर एक कॉम्प्यूटर रखा हूवा था. दोनो काम्प्यूटरके सामने जाकर खडे हूए. कमांड1ने कॉम्प्यूटरके सामने कुर्सीपर बैठते हूए कॉम्प्यूटर शुरू किया. कमांड2 उसकेही बगलमें एक स्टूलपर बैठ गया. कॉम्प्यूटरपर लिनक्स ऑपरेटींग सिस्टीम शुरू होने लगी.

” तूझे पता है हम लिनक्स क्यों युज करते है?” कमांड1ने पुछा.

अपना अज्ञान जताते हूए कमांड2 ने सिर्फ अपना सर हिलाया.

‘”कॉम्प्यूटरके लगभग सभी सॉफ्टवेअर जिसका सोर्स कोड युजर (उपभोक्ता) को नही दिया जाता कहां बनायें जातें है?” कमांड1ने जवाब देने के बजाय दुसरा सवाल पुछा.

” कंपनीमें…” कमांड2ने भोले भावसे कहा.

” मेरा मतलब कौनसे देशमें?”

” अमेरिकामें” कमांड2ने जवाब दिया.

” तुझे पता होगाही की जिस सॉफ्टवेअरका सोर्स कोड कस्टमरको दिया जाता है उसे ‘ओपन सोर्स’ सॉफ्टवेअर कहते है… मतलब उस सॉफ्टवेअरमें क्या होता है यह कस्टमर जान सकता है… … और जिस सॉफ्टवेअरका कोड कस्टमरको नही दिया जाता उस सॉफ्टवेअरमें ऐसा बहुत कुछ हो सकता है… जो की होना नही चाहिए.” कमांड1 कह रहा था.

‘”मतलब?'” कमांड2 ने बिचमेंही टोका.

‘”मतलब तुझे पताही होगा की मायक्रोसॉफ्ट कंपनीने एक बार ऐलान किया था की वे उनके प्रतिस्पर्धीयोंको काबूमें रखनेके लिए उनके सॉफ्टवेअर विंन्डोज ऑपरेटींग सीस्टीममें कुछ ‘टॅग्ज’ इस्तेमाल करने वाले है…” कमांड1 कह रहा था.

” हां … तो ?” कमांड2 कमांड1 आगे क्या कहता है यह सुनने लगा.

”और उन ‘टॅग्ज’ की वजहसे कंपनीको जो चाहिए वही प्रोग्रॅम ठीक ढंगसे काम करेंगे… और दुसरे यातो बहुत धीमी गतीसे चलेंगे, बराबर नही चलेंगे या चलेंगेही नही.” कमांड1ने कहा.

” लेकिन उसका अपने लिनक्स इस्तेमाल करनेसे क्या वास्ता?” कमांड2ने पुछा.

” वास्ता है… बल्की बहुत नजदीकी वास्ता है… सुनो … अगर वे अपने प्रतिस्पर्धीयोंको काबुमें करनेके लिए ऐसे ‘टॅग्ज’ इस्तेमाल कर सकते है की जिसकी वजहसे उनके प्रतिस्पर्धीयोंका पुरा खातमा हो जाए … तो ऐसाभी मुमकीन है की वे उनके सॉफ्टवेअर और हार्डवेअरमें ऐसे कुछ ‘टॅग्ज’ इस्तेमाल करेंगे की जिसकी वजह से पुरी दुनिया की महत्वपुर्ण जानकारी इंटरनेटके द्वारा उनके पास पहूंच जाए … उसमें हमारे जैसे लोगोंकी गतिविधीयाँ भी आगई… खासकर 9-11 के बाद यह सब उनके लिए बहुत महत्वपुर्ण होगया है…” कमांड1 ने कमांड2की तरफ देखते हूए उसकी प्रतिक्रिया लेते हूए कहा.

” हां तुम सही कहते हो… ऐसा हो सकता है” कमांड2 ने अपनी राय बताते हूए कहा.

” इसलिए मैने क्या किया पता है? … लिनक्स का सोर्स कोड लेकर उसे कंपाईल किया… और फिर उसे अपने कॉम्प्यूटरमें इन्स्टॉल किया… अपनेसे जो हो सकता है वह सभी तरह की एतीहात बरतना जरुरी है…” कमांड1 बोल रहा था.

उसके बोलनेमे गर्व और खुदका बडप्पन झलक रहा था.

” अरे यह अमेरिका क्या चीज है तुझे पताही नही … सारी दुनियापर राज करनेका उनका सपना है… और उसके लिए वह किसीभी हदतक गिर सकते है…” कमांड1 आगे बोल रहा था.

कमांड2ने कमांड1 की तरफ प्रश्नार्थक मुद्रामें देखा.

” चांदपर सबसे पहले आदमी कब पहूँचा? … तुमने स्कुलमें पढाही होगा ना?..” कमांड1 ने सवाल किया.

” अमेरिकाने भेजे यान द्वारा 1969 को नील आर्मस्ट्राँग सबसे पहले चांदपर पहूंचा.” कमांड2 ने झटसे स्कुली बच्चे की तरह जवाब दिया.

”सभी स्कुली बच्चोंके दिमाग मे यही कुटकुटकर भरा हूवा है … और अभीभी भरा जा रहा है… लेकिन सच क्या है इसके बारेमे लोगोंने कभी सोचा है?… जो व्हीडीओ अमेरिकाने टी व्ही पर सारी दुनिया को दिखाया उसमें अमेरिकाका झंडा मस्त लहराता हूवा दिख रहा था… चांदपर अगर हवाही नही है … तो वह झंडा कैसा लहरेगा … जो लोग चांद पर उतरे उनके साये… यान की बदली हूई जगह… ऐसे न जाने कितने सबुत है जो दर्शाते है की अमेरीकाका यान चांदपर गयाही नही था…” कमांड1 आवेशमें आकर बोल रहा था.

” क्या बात करता है तू … फिर यह सब क्या झूट है? …” कमांड2 ने आश्चर्यसे पुछा.

” झूठ ही नही … सफेद झूठ… इतनाही नही उस वक्त सॅटेलाईटसे जमीन की ली हूई तस्वीरोंमे जो सेट उन लोगोंने बनाया था उसकी तस्वीर भी मिली है…”

” ठिक है मान लेते है की यह सब झूठ … लेकिन अमेरिका यह सब किसलिए करेगा?”

” हां यह अच्छा सवाल है … की उन्होने वह सब क्यों किया? … इतना सारा झंझट करने की उन्हे क्या जरुरत थी? … जिस वक्त अमेरिकाने उनका यान चांदपर उतरनेका दावा किया तब रशीया अमेरिकाका सबसे बडा प्रतिस्पर्धी था… हम रशीयासे दो कदम आगे है यह दिखानेके लिये उन्होने यह सब किया … और उसमें वे कामयाबभी रहे…” हर एक शब्दके साथ कमांड1का आवेश बढता दिखाई दे रहा था.

” माय गॉड… मतलब इतना बडा धोखा और वह भी सारी दुनियाको…” कमांड2के मुंहसे निकल गया.

” अमेरिका अब अंग्रेज पहले जिस रास्तेसे जा रहे थे उस रस्ते से चल रहा है… दुसरे वर्ल्ड वार के पहले ब्रिटीश लोगोंने सारी दुनियापर राज किया… उस वक्त कहते थे की उनकी जमिनपर सुरज कभी डूबता नही था… अब अमेरिकाभी वही करनेका प्रयास कर रही है…. फर्क सिर्फ इतना है की ब्रिटीश लोगोंने आमनेसामने राज किया और ये अब छुपे रहकर राज करना चाहते है… मतलब ‘प्रॉक्सी रूलींग’. अफगाणिस्थान, इराक, कुवेत, साऊथ कोरिया यहाँ पर वे क्या कर रहे है … प्रॉक्सी रूलींग … और क्या?”

” हां तुम बिलकुल सही कहते हो…” कमांड2ने सहमती दर्शाई.

” और यही अमेरिकाका अधिपत्य, प्रभुत्व खतम करना अपना परम हेतू है ..” कमांड1ने जोशमें कहा.

कमांड2के चेहरेसे ऐसा लग रहा था की वह उसकी बातोंसे बहुत प्रभावित हुवा है. और कमांड1के चेहरेपर कमांड2को ब्रेन वॉश करनेमें उसे जो सफलता मिली थी उसका आनंद झलक रहा था.

इतनेमें शुरु हुए कॉम्प्यूटरका बझर बजा. कमांड1को ईमेल आई थी. कमांड1ने मेलबॉक्स खोला. उसमें बॉसकी मेल थी.

” एक बात मेरे समझमें नही आती की यह बॉस है कौन?” कमांड2ने उत्सुकतापुर्वक पुछा.

” यह किसीकोभी पता नही … सिवाय खुद बॉसके… और इस बातसे हमें कोई सरोकार नही की बॉस कौन है?… क्योंकी हम सब लोगोंको एक सुत्रमें जिस बातने जोडा है वह कोई एक व्यक्ती ना होकर … एक विचारधारा है… वह विचारधाराही सबसे महत्वपुर्ण है… आज बास है कल नही होगा… लेकिन उसकी विचारधारा हमेशा जिंदा रहना चाहिए…” कमांड1 मेल खोलते वक्त बोल रहा था.

मेलमें सिर्फ ‘हाय’ ऐसा लिखा हूवा था और मेलको कोई फाईल अटॅच की हूई थी. कमांड1 ने अटॅचमेंट ओपन की. वह मॅडोनाकी एक ‘बोल्ड’ तस्वीर थी.

” यह क्या भेजा बॉसने?” कमांड2 ने आश्चर्यसे पुछा.

” तुम अभी बच्चे हो… धीरे धीरे सब समझ जावोगे… बस इतनाही जान लो की दिखाने के दात और खाने के दात हमेशा अलग रहते है… ” कमांड1 तस्वीर की तरफ देखकर मुस्कुराते हूए बोला.

कमांड1 ने बडी चपलतासे कॉम्प्यूटरके कीबोर्डके चार पाच बटन दबाए. सामने मॉनिटरपर एक सॉफ्टवेअर खुल गया. कमांड1ने मॅडोनाके उस तस्वीरको डबल क्लीक किया. एक निले रंग का प्रोग्रेस बार धीरे धीरे आगे बढने लगा. कमांड1 ने कमांड2की तरफ रहस्यतापुर्ण ढंग से देखा.

” लेकिन यह क्या कर रहे हो … स…” कमांड2ने कहा.

कमांड1ने झटसे कमांड2के मुंहपर हाथ रखकर उसकी बोलती बंद की.

” गलतीसेभी तुम्हारे मुंहमें मेरा नाम नही आना चाहिए… तुझे पता है… दिवार के भी कान होते है…”

”सॉरी” कमांड2 अपने गलती का अहसास होते हूए बोला.

” यहां गलतियोंको माफ नही किया जाता…” कमांड1ने दृढतापुर्वक कहा.

तबतक प्रोग्रेस बार आगे बढते हूए पुरीतरह निला हो चूका था.

” इसे स्टेग्नोग्राफी कहते है … मतलब तस्वीरोंमे संदेश छुपाना… देखनेवालोंको सिर्फ तस्वीर दिखाई देगी … लेकिन इस तस्वीरमेंभी बहोत सारी महत्वपुर्ण जानकारी छिपाई जा सकती है…” कमांड1 उसे समझा रहा था.

” लेकिन अगर यह तस्वीर यहां पहूचनेसे पहले किसी और के हाथ लगी तो?” कमांड2 अपनी शंका उपस्थीत की.

” यह सब जानकारी सिर्फ इस सॉफ्टवेअरके द्वारा ही बाहर निकाली जा सकती है… और उसे पासवर्ड लगता है…. यह सॉफ्टवेअर बॉसने खुद बनाया हूवा है…. इसलिये यह किसी दुसरे के पास रहने का तो सवाल ही पैदा नही होता” कमांड1ने उसके सवाल का यथोचीत उत्तर दिया था.

” कौनसी जानकारी छिपाई गई है इस तस्वीर में … जरा देखु तो” कमांड2 उत्सुकतावश देखने लगा.

इतनेमें मॉनिटरपर एक मेसेज दिखने लगा. ” अगले काम की तैयारी शुरु करो … उसका वक्त बादमें बताया जाएगा.”

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भाग-4 => वह कहाँ गई? (शून्य-उपन्यास)-

हॉस्पिटल के सामने एक सफेद कार आकर खडी हूई, उसमेंसे जॉन उतर गया. आज वह उसके हमेशाके पुलीस युनीफार्ममें नही था. और उसका मुडभी हमेशा का नही लग रहा था. उसके हाथमें सफेद फुलोंका एक गुलदस्ता था. सिधे लिफ्टके पास जाकर उसने लिफ्ट का बटन दबाया. लिफ्टमें प्रवेश कर उसने फ्लोअर नं. 12 का बटन दबाया. लिफ्ट बंद होकर उपरकी तरफ दौडने लगी. लिफ्टके रफ्तारके साथ उसके दिमाग में चल रहे विचारोंनेभी रफ्तार पकड ली….

दिवारपर खुनसे गोल क्यों निकाला गया होगा?….

फोरेन्सीक जांचमें खुन सानीकाही पाया गया था…..

जरुर जिसने भी वह गोल निकाला वह कुछ कहने का प्रयास कर रहा होगा…

खुन किसने किया इसका अंदाजा शायद अँजेनीको होगा…

लिफ्ट रुक गई और लिफ्टकी बेल बजी. बेलने जॉनके विचारोंके श्रुंखलाको तोडा. सामने इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्लेमें 12 यह नंबर आया था. लिफ्टका दरवाजा खुला और जॉन लिफ्टसे बाहर निकल गया. अपने लंबे- लंबे कदम से चलते हूए जॉन सिधा ‘बी’ वार्डमें घुस गया.

जॉनने एकबार अपने हाथमें पकडे फुलोंके गुलदस्तेकी तरफ देखा और उसने ‘बी2’ रूमका दरवाजा धीरेसे खटखटाया. थोडी देर तक राह देखी, लेकिन अंदर कोईभी आहट नही थी. उसने दरवाजा फिरसे खटखटाया – इस बार जोरसे. लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नही थी. यह देखकर उसने अपनी उलझन भरी नजर इधर उधर दौडाई. उसे अब चिंता होने लगी थी. वह दरवाजा जोर जोरसे ठोकने लगा.

क्या हूवा होगा?…

यही तो थी अँजेनी …

आज उसे डिस्चार्ज तो नही करने वाले थे…

फिर .. वह कहाँ गई?

कुछ अनहोनी तो नही हूई होगी?…

उसका दिल धडकने लगा. उसने फिरसे आजूबाजू देखा. वार्डके एक सिरेको एक काऊंटर था. काऊंटरपर जानकारी मील सकती है… ऐसा सोचकर वह तेजीसे काऊंटरकी तरफ जाने लगा.

“एक्सक्यूज मी” उसने काऊंटरपर नर्सका ध्यान अपनी तरफ आकर्षीत करनेका प्रयास किया.

नर्सके लिए यह रोजका ही होगा, क्योंकी जॉनकी तरफ ध्यान न देते हूए वह अपने काममें व्यस्त रही.

” ‘बी2’ को एक पेशंट थी… अँजेनी कार्टर … कहा गई वह? … उसे डिस्चार्ज तो नही दिया गया? … लेकिन उसका डिस्चार्ज तो आज नही था … फिर वह कहाँ गई? … वहाँ तो कोई नही…” जॉन सवालों पे सवाल पुछे जा रहा था.

” एक मिनट … एक मिनट … कौनसी रूम कहां आपने?'” नर्सने उसे रोकते हुए कहा.

“बी2” जॉनने एक गहरी सास लेकर कहां.

नर्सने एक फाईल निकाली. फाईल खोलकर ‘बी2′ … बी2’ ऐसा बोलते हूए उसने फाईलके इंडेक्सके उपर अपनी लचीली उंगली फेरी. फिर इंडेक्समें लिखा हूवा पेज नंबर निकालने के लिए उसने फाईलके कुछ पन्ने अपने एक खास अंदाजमें पलटे.

“‘बी2’ … मिसेस अँजेनी कार्टर…” नर्स तसल्ली करने के लिए बोली.

” हां …अँजेनी कार्टर” जॉनने कंन्फर्म किया.

जॉन उत्सुकतासे उसकी तरफ देखने लगा. लेकिन वह एकदम शांत थी. जैसे वह जॉनके सब्रका इंतहान ले रही हो. जॉनको उसका गुस्सा भी आ रहा था.

” सॉरी … मिस्टर ..?” नर्सने जॉनका नाम जानने के लिए उपर देखा.

जॉन का दिल और जोर जोरसे धडकने लगा.

“जॉन” जॉनने खुदको संभालते हूए अपना नाम बताया.

” सॉरी … मिस्टर जॉन … सॉरी फॉर इनकन्व्हीनियंस … उसे दुसरी रूममें … बी23 में शीफ्ट किया गया है….” नर्स बोल रही थी.

जॉनके जान मे जान आई थी.

“ऍक्यूअली … बी2 बहुत कंजेस्टेड हो रहा था … इसलिए उनकेही कहने पर….” नर्स अपनी सफाई दे रही थी.

लेकिन जॉनको कहा उसका सुनने की फुरसत थी? नर्स अपना बोलना पुरा करनेके पहलेही जॉन वहांसे तेजीसे निकल गया … बी23 की तरफ.

….. उपन्यास ….. जारी रखा ……….. है ,,,,,

================kmsraj51================

भाग-5 => दिल-विल… (शून्य-उपन्यास)-

बी23 की तरफ जाते हूए जॉनको खुदका ही आश्चर्य लगने लगा था.

यह कैसी बेचैनी?…

ऐसा तो पहले कभी नही हूवा था…

अबतक न जाने कितनी केसेस उसके हाथके निचेसे गई थी… लेकिन एक स्त्री के बारेमें ऐसी बेचैनी…

और कुछ अनहोनी तो नही हूई होगी? ऐसी चिंता और इतनी चिंता उसे पहले कभी नही हूई थी…

उसने बी23 का दरवाजा खटखटाया. दरवाजा खुलाही था. दरवाजा धकेलकर वह अंदर जाने लगा. अंदर बेडपर अँजेनी लेटी हूई थी. वह सोचमें डूबी खिडकीसे बाहर जैसे शुन्य भावसे देख रही थी. जॉन की आहट आतेही उसने दरवाजे की तरफ देखा. जॉनको देखतेही वह मुस्कुरा दी. लेकिन उसके चेहरेसे दुख का साया अभीभी हटा नही दिख रहा था. शायद अभीभी वह गहरे सदमेसे उभरी नही थी. वह उसके पास जाकर खडा हूवा. उसने उसे बगलमे रखे स्टूलपर बैठने का इशारा किया. स्टूलपर बैठनेके बाद फुलोंका गुलदस्ता उसके बाजूमे रखते हूवे जॉनने पुछा – ” कैसी हो?”

वह फिरसे उसकी तरफ देखकर मुस्कुराई. ऐसे लग रहा था जैसे मुस्कुरानेके लिए उसे बडा कष्ट हो रहा हो.

” मुसिबतोंका पहाड जिसपर गिर पडता है वही उसकी मार समझ सकता है… आप किस पिडादायक मनस्थीतीसे गुजर रही होगी मै समझ सकता हू…” जॉन बोल रहा था.

अँजेनीके आँखोसे आसु बहने लगे. जॉन बोलते बोलते रुक गया. उसने उसे धिरज देता हूवा अपना हाथ उसके कंधेपर रख दिया. अब तो उसने जो आँसूओंका बांध रोकने की कोशीश की थी वह टूट गया और वह जॉनसे लिपटकर फुट फुटकर रोने लगी. जॉन उसे सहलाते हूए ढाढस बंधाने का प्रयास कर रहा था. उसे कैसे समझाया जाए कुछ समझ नही आ रहा था.

अब वह थोडी नॉर्मल हो गई थी. जॉनने अब जान लिया की अँजेनीको खुनके बारेमें पुछनेका यही सही वक्त है.

” किसने खुन किया होगा? … आपको कोई संदेह? … या अंदाजा? ‘” जॉनने धीरेसे पुछा.

अँजेनीने इन्कारमें अपना सर हिलाया और फिर खिडकीके बाहर देखते हूए फिरसे सोचमें डूब गई.

जॉनने उसकी जेबसे एक फोटो निकाला.

” यह देखो… यहाँ दिवारपर … खुनसे गोल निकाला गया है … यह क्या हो सकता है? …कुछ अंदाजा? … या फिर किसने निकाला होगा… इसके बारे मे कुछ बता सकती हो?” जॉनने पुछा.

अँजेनीने फोटो गौरसे देखा. दिवारपर लिखे हूए गोल के निचे बेडपर पडे हूए उसके पतीके मृत शरीरको देखकर फिरसे उसका गला भर आया… जॉनने फोटो फिरसे जेबमें रखा.

‘” नही मतलब इस गोलका कुछ अर्थ समझमें आता है क्या? … वह एबीसीडीका ‘ओ’ भी हो सकता है … या फिर शून्यभी हो सकता है …” जॉनने कहा.

” मै समझ सकता हूँ की यह आपके पती के खुन के बारे में पुछने का उचीत वक्त नही … लेकिन जानकारी जितनी जादा और जितने जल्दी मिल सकती है उतने जल्दी हम खुनीको पकड सकते है…” जॉन ने कहा.

अँजेनी अब अपने इरादे पक्के कर संभलकर सिधे बैठ गई ” पुछो आपको जो पुछना है ..”‘

जॉननेभी जान लिया की पुरी जानकारी निकालनेका यही उचीत समय है.

“‘ सानी क्या करता था? … मतलब बाय प्रोफेशन” जॉनने पहला सवाल पुछा.

” वह इंपोर्ट एक्सपोर्टका बिझीनेस करता था … मेनली गारमेंटस् … इंडीयन कॉन्टीनेंटमें उसका बिझीनेस फैला हूवा था ” अँजेनी बोल रही थी.

” कोई प्रोफेशनल रायव्हल?” जॉनने पुछा.

” नही… उसका डोमेन एकदम अलग होनेसे उसे कोई प्रोफेशनल रायव्हल्स होनेका सवालही पैदा नही होता. ‘” अँजेनी बोल रही थी.

“‘ अच्छा आप क्या करती है ?” जॉनने अगला सवाल पुछा.

” मै एक फॅशन डिझायनर हूँ” अँजेनीने कहा.

बहुत देरतक उनके सवाल जवाब चलते रहे. आखीर स्टूलसे उठते हूए जॉनने कहा ” ठीक है … अबके लिए इतनी जानकारी काफी है… अब आप थकी भी होगी… मतलब दिमागसे… आराम करो … फिरसे कुछ लगा तो हम आपसे पुछेंगेही …”

जॉन जाने लगा.

अँजेनी उसे दरवाजे तक छोडनेके लिए उठने लगी तो जॉन ने कहा ” आप पडे रहिए .. आपको आराम की सख्त जरुरत है'”

फिरभी वह उसे दरवाजेतक छोडनेके लिए उठ गई. जॉन दरवाजे तक पहूचता नही की उसे पिछेसे उसकी आवाज आई –

” थँक यू …”

जॉन एकदमसे रुक गया और उसने मुडकर पुछा ” किसलिए?”

” मेरी जान बचानेके लिए … डॉक्टरने मुझे सब बताया है… अगर आप समयपर मुझे कृत्रिम सांसे नही देते तो शायद मै अब जिवीत नही होती …” अँजेनी उसकी तरफ कृतज्ञता भरी निगाहोंसे देखते हूए बोली.

” उसमें क्या है… मैने मेरा कर्तव्य किया बस ‘” जॉनने कहा.

” वह आपका बडप्पन है” अँजेनी दरवाजेतक पहूचते हूए बोली.

जॉन अब वहा से निकल गया था. लंबे लंबे कदम डालते हूवे जल्दी जल्दी वह चलने लगा. शायद अपनी भावनाएँ छिपाने के लिए. थोडे ही समयमे वह कॉरीडोर के सिरेतक जा पहूंचा. दाई तरफ मुडनेसे पहले उसने एक बार पिछे मुडकर देखा. वह अभीभी उसके तरफही देख रही थी.

जॉन पॅसेजमेंसे लिफ्टकी तरफ जा रहा था. अँजेनीको छोडकर जाते हूए उसे अपना दिल भारी भारी लग रहा था. अचानक जॉनका ध्यान लिफ्टकी तरफ गया. लिफ्ट अभीभी वहासे दूरही थी. लिफ्टके उस तरफवाले हिस्सेसे एक युवक आया. उसने काला टी शर्ट पहना हूवा था और उस टी शर्टपर ‘झीरो’ निकाला हुवा था, जैसा उसने पहलेभी सानीके खुनके दिन देखा था. जॉन एकदम हरकतमें आया और लिफ्टकी तरफ दौडने लगा.

उसने आवाज दिया, “ए… हॅलो ”

लेकिन उसका आवाज पहूचनेसे पहलेही वह युवक लिफ्टमें घुस गया था. जॉन औरभी जोरसे दौडने लगा. लिफ्ट बंद होगई थी… लेकिन अभीभी निचे या उपर नही गई थी. जॉन दौडते हूए लिफ्टके पास गया. उसने लिफ्टका बटन दबाया. लेकिन व्यर्थ. लिफ्ट निचे जाने लगी थी. जॉनको क्या करे कुछ सुझ नही रहा था. वह युवक उस दिन देखे युवकके हूलिए जैसा नही था. लेकिन पता नही क्यों जॉनको लग रहा था की जरुर सानीके खुनका रहस्य उस ‘झीरो’ में छिपा हूवा है. जॉन बगलकी सिढीयोंसे तेजीसे निचे उतरने लगा. बिच बिचेमें उसका लिफ्टकी तरफभी ध्यान था. लेकिन मानो लिफ्ट बिचमें कही भी रुकनेके लिए तैयार नही थी. शायद वह एकदम ग्राऊंड फ्लोअरकोही रुकनेवाली थी. जब जॉनने देखा की लिफ्ट उससे दो माले आगे निकल गई तो वह और जोरसे सिढीयाँ उतरने लगा.

आखिर सासें फुली हूई हालतमे वह ग्राऊंड फ्लोअरको पहूँच गया. उसने लिफ्टकी तरफ देखा. लिफ्टमेंके लोग कबके बाहर आ चूके थे और लिफ्टका डिस्प्ले लिफ्ट उपरकी दिशामें जा रही है ऐसा दर्शा रहा था. जॉन दौडते हूए हॉस्पीटलके बाहर लपका. उसने सब तरफ अपनी पैनी नजरें दौडाई. पार्कीगमेभी जाकर देखा. हॉस्पीटलके बाहर रोडपर जाकर देखा. लेकिन वह काले रंगके टी शर्टवाला युवक कही भी दिखाई नही दे रहा था.

…..क्रमश::………..

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