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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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कवयित्री सुशीला देवी जी की कविताये

हाय — वो मंजर।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ हाय — वो मंजर। ♦

पक्की सड़क के दोनों तरफ वो लहलहाते हरे-भरे खेत।
बीच-बीच में कहीं ईंटे बिछी तो कहीं उड़ती रेत॥

आँखें आनंद से देख रही थी प्रकृति का सुंदर नजारा।
वो लहलहाती फसल वो खुशी से झूमता पेड़ प्यारा॥

खेतों की मेड़ के छोटे-बड़े पेड़ सभी मदमस्त हो मस्ता रहे।
पर वो दो पेड़ कुछ विचित्र ही कहानी दर्शा रहें थे॥

पर एक जगह का दृश्य देख आँखों में आँसू आए।
दिल को झकझोर देने वाला क्यूँ मानवता खो जाए॥

दिखाते है तुम सबको वो चित्रण जिसे देख ऐसा हुआ आभास।
खेत की आग ने हरे-भरे पेड़ो की छीन ली थी जीने की आस॥

पेड़ की विशाल शाखाएँ हरी पर उसका तना बुरी तरह गया जल।
ऐसे लगे जैसे पूछ रही उसकी टहनियां क्या ये मंजर नही जाता टल॥

मानों वो पेड़ कह रहा कि सुनो कभी मेरे दिल की करुण पुकार।
तुम्हें जीवन देने वाले तुम्हीं से लगाये एक रूदन भरी गुहार॥

रोपण ही काफी नही हमें बचाने के लिए कोई तो उठाओ कदम।
जीवनदान देने वालों की ही आज स्वार्थ ने कर दी आँखें इतनी नम॥

मन में उठे सवाल पूछें क्यूँ हमारे काम मानवता को करते शर्मसार।
आधुनिकता के नाम पर हर वर्ष लाखों पेड़ चढ़ते बलि बारम्बार॥

सुंदर जीवन के लिए खूब पेड़ लगाओ पर इनकी सुरक्षा में न पीछे रहो।
जिसके लिए ह्रदय तड़पे उस बात को सबसे बेबाक होकर कहो॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — कब तक अपने ऐशो आराम के लिए यूँ ही पेड़ काटते रहोगे इंसान। अगर अब भी न सुधरे तुम तो पृथ्वी का वातावरण बिलकुल ही गर्म हो जाएगा, तुम्हारे जीने के लाले पड़ जायेंगे; फिर रोते रहना। प्रत्येक वर्ष बहुत सारे पेड़ आग लगने से जल जाते है, और इंसान कम थोड़े ही है ये भी अपने ऐशो आराम के लिए यूँ ही पेड़ काटते रहते है। अभी जब गर्मी पड़ रही है तो इन्हें पेड़ की कमी खल रही हैं। जब हरे भरे पेड़ और पौधे होते है तो कितना खूबसूरत मौसम व वातावरण होता है, सभी ऋतुएँ अपने चक्र के अनुसार चलती है, और सभी फसल समय पर होते हैं। अब भी समय हैं सुधर जा तू इंसान। आओ हमसब मिलकर ये संकल्प ले की प्रत्येक वर्ष दो पेड़ जरूर लगाएंगे, और उनका अच्छे से देख रेख करेंगे तब तक; जब तक वो पेड़ अपना खुराक खुद न लेने लगे पृथ्वी से।

—————

यह कविता (हाय — वो मंजर।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस। ♦

आज बहुत ही, शुभ मंगल घड़ी आई।
सबको आज मित्रता दिवस की हार्दिक बधाई॥

मित्रता श्रीकृष्ण और सुदामा की, दुनिया में हो गए चर्चे।
महान थी उनकी मित्रता, दिए ब्रह्मांड ने भी अव्वल दर्जे॥

आओं मित्रों, अपने दिलों में मंथन करें आज।
जुबां से न बोलें सुदामा, फिर भी श्री कृष्ण ने सँवारे काज॥

एक भरोसा, एक आस्था, विश्वास था, दोस्ती के नाम में।
दुनिया भर की खुशी देखी, बस अपने श्याम में॥

अगाध प्रेम, श्रद्धा रखी थी, सुदामा ने अपने मित्र में।
जब-जब दोस्त का चेहरा देखें,
भगवान का ही अक्स नजर आए, उनके चित्र में॥

स्वार्थ वशीभूत होकर सुदामा ने,
कभी अपनी जिंदगी की व्यथा नही सुनाई।
ना ही कभी, अपने मित्र के समक्ष रखी गरीबी की दुहाई॥

सिर्फ एक लगन में ही, सुदामा रमें जा रहा था।
बस मित्रता के नाम में, भगवान जपे जा रहा था॥

बचपन के छुटे सब संगी साथी, रखी बस दोस्ती दिल मे निभायें।
निश्चल प्यार, दुलार की लगन रखी, श्री कृष्ण से लगाएं॥

था वो बहुत ही शुभ दिन, जब भगवान के घर भक्त चला आया।
भगवान ने भी मित्रता को ही, सर्वोपरि मान, मित्र को गले लगाया॥

वो एक ऐतिहासिक दिन था, जब भगवान भक्त के,
प्यार, आस्था, विश्वास से लबालब हो गया।
सिहांसन पर बैठा, चरण धोकर मित्र भक्त सुदामा के,
और भगवान भक्त के वश में हो गया॥

आओं, हम भी मित्रता के शब्द को सार्थकता में पिरोए।
आस्था, लग्न, प्रेम को सच्चे अर्थों में ही सँजोये॥

अपने जीवन में सदैव ही, सच्ची मित्रता के बोए मोती।
मित्र बने और बनायें ऐसे,
जो तेरे पथ को प्रकाशवान करें, ऐसी जगाए ज्योति॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से इस कविता में कवयित्री ने श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता का उदाहरण देकर, एक सच्चे मित्र के गुणों और व्यवहार का सुंदर मनोरम वर्णन किया है।

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यह कविता (अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस।) “श्रीमती सुशीला देवी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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हिंदी है भारत की बिंदी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ हिंदी है भारत की बिंदी। ♦

आज के शीर्षक को देखते ही, एक बात ह्रदय तल से टकराई।
मंथन करें आज, अपना घर होते हुए भी, क्यूँ हिंदी हुई पराई।

गर्व है हमे, हिंदी की बिंदी, जो है भारत माँ के माथे की शान।
हम भारतीयों के दिलों का है, खिलखिलाता अरमान।

पर आज क्यूँ इसका, आस्तित्व ख़तरे में खड़ा।
लगता है, किसी और भाषा के मोहपाश में दिल पड़ा।

हिंदी भाषा में एक बिंदी भी गर इधर उधर हो जायें, अर्थ ही बदल जाता।
तभी इसका मोहक स्वरूप बोलने में, लिख़ने में दिलों को लुभाता।

सबसे सुंदर शब्द प्रणाम, आठों पहर वंदन ही रहता।
जैसे चन्दन वृक्ष का सूक्ष्म टुकड़ा चन्दन ही रहता।

माना समयानुसार सब भाषाओं का ज्ञान भी जरूरी।
पर अपनी हिंदी को त्यागें, ऐसी भी क्या मजबूरी।

जितनी चाहे भाषाओं का ले लो ज्ञान, होगा ये आपका बड़प्पन।
पर हिंदी भाषा जितना कहीं, नही मिलेगा अपनापन।

हिंदी बिना भारतीयों का, नही साजे साज।
हिंदी भाषा अपनी भारत माँ का ताज।

३६५ दिन ही हम अपनी, हिंदी भाषा का करें सम्मान।
गर्व से प्रयोग करों, खूब बढ़ाये, इसका मान।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – इस कविता में कवयित्री ने हिंदी भाषा के गुणों और खूबियों का महत्व बयां किया है। हम सभी भारतीयों के लिए हिंदी भाषा शान है, भारत माँ के सिर का ताज है। हिंदी भाषा में जो अपनापन है वो दुनिया के किसी भी अन्य भाषा में नही हैं। आओ हम सब मिलकर सदैव ही करें हिंदी भाषा का सम्मान, गर्व से प्रयोग कर खूब बढ़ाये, इसका मान।

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यह कविता (हिंदी है भारत की बिंदी।) “श्रीमती सुशीला देवी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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