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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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कविता हिंदी में

कोरोना भारतीय सेनेटाइजेशन को समझता था।

Kmsraj51 की कलम से…..

Corona Understand Indian Sanitization | कोरोना भारतीय सेनेटाइजेशन को समझता था।

भारतीय सेनेटाइजेशन को समझता था,
लेकिन कुछ दूसरों के पल्ले नहीं पड़ता था।
जब पूरी दुनिया में कोरोना पूरी तरह छाया,
सब दुनिया के लोगों को भारतीयता समझ में आया।

मुंह पर सभी लोगों ने अपने से मांस्क लगाया,
और हाथ पांव धोकर ही पावन भोजन पाया।
बाहर से घर आते ही आकर पहले नहाया,
कपड़ों को खुद धोकर ही डेटॉल आदि लगाया।

जूता चप्पल प्राचीन काल से बाहर रखा जाता था,
हाथ पैर धो कर ही मनुष्य भोजन पाता था।
चुपके से घर अंदर मौजा पहने प्रवेश कर जाता,
दादी माई की कड़क आवाज और डॉ ट खाता।

पत्नी कहती आपको समझ में नहीं है कुछ आता,
धोकर ही सब्जी – भाजी क्यों बनाई जाती है।
शौचालय को खुद ही चमकाया जाता है,
कोना – कोना का कचरा रोज साफ किया जाता।

रोज – रोज झाड़ू – पोछा क्यों घुमाया जाता है,
संपूर्ण कमरों को सप्ताह भर में धोया जाता है।
सारी दुनिया मेरी यह बात समझ में पाई थी,
संसार में इसीलिए कोरोना वायरस जी आई थी।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

— Conclusion —

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — भारतीय सेनेटाइजेशन को पूरी दुनिया ने अच्छा माना और समझा, पूरी दुनिया के लोगों को भारतीयता व भारतीयों की दया समझ में आया। मुंह पर सभी लोगों ने अपने से मांस्क लगाया, और हाथ पांव धोकर ही पावन भोजन पाया। जूता चप्पल हमारे यहां प्राचीन काल से ही बाहर रखा जाता था और हाथ पैर धो कर ही मनुष्य भोजन पाता था। अगर कभी चुपके से घर अंदर मौजा पहने प्रवेश कर जाता, तो दादी माई की कड़क आवाज और डॉ ट खाता। सारी दुनिया के लोगो को स्वच्छता की सीख़ देने के लिए ही इस संसार में कोरोना वायरस जी आई थी। हम सभी को गर्व है अपने प्राचीन भारतीय संस्कृति पर, जो हमे स्वच्छता के साथ जीवन जीना सिखाया था। जैसे – जैसे समय बदला वैसे – वैसे इंसान के सोचने व समझने की छमता ख़त्म होती जा रही है, अपने प्राचीन महत्वपूर्ण संस्कारों को भूलता जा रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप कई तरह के समस्याओं से परेशान है, फिर भी भौतिक विकास के नाम प्रकृति के पञ्च तत्वों से खिलवाड़ करने से नही चूक रहा है। हे मानव अब भी समय है सुधर जाओ वर्ना ये पृथ्वी रहने लायक नहीं रहेगी। याद रखें की – जिस देश के लोग अपनी प्राचीन संस्कृति, संस्कार व सभ्यता को भूल जाते है, उनको विलुप्त होने से कोई भी नहीं बचा पायेगा। इसलिए अपने अंदरऔर वर्तमान पीढ़ी व आने वाली नई पीढ़ी को प्राचीन भारतीय संस्कृति, संस्कार व सभ्यता का पूर्ण ज्ञान दो, और उन्हें अनुसरण करना भी सिखाओ।

—————

sukhmangal-singh-ji-kmsraj51.png

यह कविता (कोरोना भारतीय सेनेटाइजेशन को समझता था।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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Filed Under: 2023-KMSRAJ51 की कलम से, हिंदी कविता, हिन्दी-कविता Tagged With: Corona Understand Indian Sanitization, Hindi Poems, Sukhmangal Singh, sukhmangal singh poems, कविता हिंदी में, कोरोना और भारतीय सेनेटाइजेशन, कोरोना भारतीय सेनेटाइजेशन को समझता था - सुख मंगल सिंह, गीत-गज़ल-कविता हिंदी में, सुख मंगल सिंह, सुख मंगल सिंह अवध निवासी, सुखमंगल सिंह, सुखमंगल सिंह की कविताएं, सुखमंगल सिंह की प्रकाशित कविताएं

पिता की सीख ही सच्ची थी।

Kmsraj51 की कलम से…..

Pita Ki Seekh Hi Sacchi Thi | पिता की सीख ही सच्ची थी।

“कहलाना तो है मानव हमको,
पर पशु सा हमे सब करने दो।
पिता हो तुम तो फिर क्या हुआ?
हमे मर्जी से ही सब करने दो।”

“जन्म दिया और पाला – पोसा,
पढ़ाया – लिखाया, बड़ा किया।”
“कौन सा तीर मारा है तुमने?
फर्ज मां – बाप का अदा किया।”

“धन्य लला तुम जो जान खपा कर,
आज तुमसे ये शब्द उपहार मिला।
नेकी कर दरिया में डाल का उम्दा,
पितृ कर्म का उत्तम उपकार मिला।

निवाला अपने मुंह का छीन कर,
तेरे मुंह में, इसी लिए ही डाला था?
नूर गंवाया, तेरी मां ने तुझे जनाया,
क्या इसी लिए ही तुझे पाला था?”

सुन भारी-भरकम बोझिल शब्द पिता के,
हुए अनुगुंजित अधिभारित अनुशासित थे।
हुए अंकुशित बुद्धि के घोड़े डर बेदखली के,
पर मनोभाव तो अभी भी त्यों विलासित थे।

होते ही जायदाद नाम अपने पिता की,
हुआ बेटा फिर से आपे से ही बेकाबू था।
उद्भासित पिता के अनुभव को भुला कर,
किया दूर प्रयोग से विवेक का तराजू था।

कुछ यारों ने लुटा, कुछ विकारों ने लुटा,
शेष कुछ लूट गई बेवफा महबूबा थी।
पिता की कमाई तो जाती रही हाथ से,
खुद के लिए तो कमाई उसे अजूबा थी।

पिता की पीठ में बजे नगाड़े की धुन,
समझा, कितनी मीठी, कितनी खट्टी थी।
मालामाल था, कंगाल हो लिया था जब,
तब समझा, पिता की सीख ही सच्ची थी।

गर्म खून था ठंडने लगा जब उसका,
लगा तोलने हर सौदा विवेक तराजू से।
संभलती दुकान फिर से जिंदगानी की,
तब तक जा चुकी थी ताकत ही बाजू से।

पछतावा तो था पर किस काम का ?
चिड़िया ने चुग लिए खेत अब सारे थे।
स्मृति पटल में अनुगुंजित शब्द पिता के,
अब समझा कि उनमें कौन से इशारे थे?

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — पिताजी मुझे हार न मानने और हमेशा आगे बढ़ने की सीख देते हुए मेरा हौसला बढ़ाते हैं। पिता से अच्छा मार्गदर्शक कोई हो ही नहीं सकता। हर बच्चा अपने पिता से ही सारे गुण सीखता है जो उसे जीवन भर परिस्थितियों के अनुसार ढलने के काम आते हैं। उनके पास सदैव हमें देने के लिए ज्ञान का अमूल्य भंडार होता है, जो कभी खत्म नहीं होता। आमतौर पर एक बच्चे का जुड़ाव सबसे अधिक उसके माता-पिता से होता है क्योंकि उन्हीं को वो सबसे पहले देखता और जानता है। माँ-बाप को बच्चे का पहला स्कूल भी कहा जाता है। लेकिन आजकल के बच्चों को हो क्या गया है ओ यह क्यों भूल जाते है की जैसा ओ अपने माता-पिता के साथ करेंगे वैसा ही उनके बच्चे भी उनके साथ करेंगे। एक बात याद रखें – पिता सदैव ही अपने अनुभव से आपको अच्छी सीख देते है, उनका कभी भी अनादर न करे, माता-पिता का यदि आप अनादर करेंगे तो सबकुछ मिल तो जायेगा लेकिन वह जल्द ही ख़त्म भी हो जायेगा। उनकी दुआओ व सीख से ही आप जीवन में आगे बढ़ेंगे।

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यह कविता (पिता की सीख ही सच्ची थी।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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खोता जा रहा बचपन।

Kmsraj51 की कलम से…..

Khota Ja Raha Bachpan | खोता जा रहा बचपन।

बच्चों की जिंदगी में अब आराम कहाँ,
बस्ता लादे फिरते दिखते जब देखो जहाँ।

हम एक बात पर सहज करते है विचार,
क्यों डाल रहे बच्चों पर पढ़ाई की मार।

तीन वर्ष की आयु में स्कूल क्या कम था,
अब तो चेहरे पर ट्यूशन का भी गम था।

जो उम्र थी उनके खिलखिलाने की,
छोटी ~ छोटी बातों पर मचल जाने की।

वो तो गिरवी रख दिया हमने उनका बचपन,
फिर कहां से आएगा उसमें वो अपनापन।

मासूम बच्चों को क्यों इसकी है जरूरत,
मां~बाप को बदलना होगा अपना मत।

बच्चों की झुंझलाहट साफ देती है दिखाई,
जब उनकी आँखें आंसुओं से होती नहाई।

चलो स्कूल जाने तक तो ठीक थी बात,
स्कूल में दिन बीता ट्यूशन में बीती रात।

इन मासूम बच्चों का खिलौनों से कोई सरोकार नही,
माता~पिता को क्या खुद पर ऐतबार नही।

इन नन्हें बच्चों के कंधो से ट्यूशन का बोझ उतारे,
खुद भी हम इनका कुछ तो भविष्य संवारे।

माता~पिता से बड़ा कभी कोई बना महान नही,
नन्हें बालकों को ट्यूशन भेजे कोई शान नही।

भविष्य तो तभी सुंदर होगा गौर करेगे जब वर्तमान पर,
बचपन थिरेकेगा जब परिवार के संस्कारों की तान पर।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — 2/5 वर्ष से 3 वर्ष के बच्चों के कंधे पर पढ़ाई का बैग लादकर स्कूल भेजना फिर उन्हें टूशन भेजना इस चक्कर में बेचारे बच्चे ऐसा चक्कर खा जाते है की बचपन क्या होता है वो समझ ही नहीं पाते। जो पढ़ाई के लिए होड़ मची है, इस होड़ की चक्की में बच्चे पीसकर रह गए है। बच्चों को बचपन का पूर्ण आनंद देने के लिए माता-पिता और टीचर्स को भी अपने पढ़ाने पर ध्यान देना होगा, जब टीचर्स स्कूल में अच्छे से पढ़ाएंगे तो बच्चों को अलग से टूशन की जरुरत ही नहीं होगी। टीचर्स को अपनी जिम्मेवारी ईमानदारी पूर्वक निभानी चाहिए, और इस कार्य में माता-पिता का सहयोग भी होना चाहिए। एक बात याद रखें – “ये बच्चे ही भविष्य के निर्माणकर्ता बनेगे, ये मन से जितने शांत व मज़बूत होंगे, उतना ही शांति पूर्वक अच्छे से कार्य करेंगे।” अगर ये बच्चे बचपन से ही अशांत व तनाव से भरे होंगे तो अपने अशांत व चिड़चिड़े मन से कोई भी अच्छा कार्य नहीं करेंगे, अपने व समाज के लिए हानिकारक साबित होंगे।

—————

यह कविता (खोता जा रहा बचपन।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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यह अकेला है।

Kmsraj51 की कलम से…..

Yah Akela Hai | यह अकेला है।

हमने जाड़े की सर्दी है झेली,
हर गर्मी का मौसम है झेला।
वसन्त ऋतु की बहारें हैं देखी,
देखा वर्षा ऋतु का क्रुद्ध खेला।

स्मृति के विलासित गहवार में,
हैं उभरती धंसती कई यादें।
हसरतें जो कुछ थी पूरी हुई,
रह गए अधूरे ही थे कई वादे।

इस जिन्दगी के अधूरे सफर में,
खूब है देखा यह जग का मेला।
किसी के धन की अम्बर है देखी,
किसी के नसीब में न देखा धेला।

अजूबों से भरी इस दुनियां में,
मैंने सपने सबके अधूरे देखे।
राजा रंक सब परेशान हैं देखे,
किसी के ख़्वाब नहीं पूरे देखे।

किसी को अहम से इठलाते देखा,
तो किसी को शर्म से शर्मिंदा देखा।
अमीर – गरीब सबको मरते हैं देखा,
किसी को सदा न यहां जिन्दा देखा।

पर होड़ाहोड़ी और आपाधापी में,
निरन्तर छटपटाते हैं सबको देखा।
लक्ष्मण रेखा को लांघते जो संघर्ष में,
उनको समाज द्वारा नकारते हैं देखा।

अजीब करिश्मा है इस जीवन का,
इस भीड़ भड़ाक में यह अकेला है।
इस जीवन ने अपने पूरे सफर में,
हर वफा व छल प्रपंच को झेला है।

यह जीवन इस जग के लगभग,
हर सम्भव सुख दुख से खेला है।
हसरतें तो थी आकाश में उड़ने की,
पर जीवन की हद ने इसे नकेला है।

अनुभव में जो आया है अब तक मेरे,
कि यह जीवन तो निरन्तर अकेला है।
आया इस दुनियां में यह अकेला ही था,
जाता भी इस दुनियां से यह अकेला है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — किसी भी मनुष्य के जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव आते है, लेकिन एक बात सदैव ही कॉमन होती है, कोई भी मनुष्य आता भी अकेला है और सदैव जाता भी अकेला ही है, कुछ साथ भी लेकर नही जाता है, तो सोचने वाली बात है की फिर मनुष्य अपने जीवन में अहंकार क्यों करता है, इतना गुमान किस बात का करता है। भगवान कृष्ण ने कहा है कि शरीर का निर्माण पांच तत्वों-पृथ्वी, जल, आकाश, वायु व अग्नि और तीन गुणों- सतो (सत), रजो (रज) व तमो (तम) से हुआ है। इसके बाद ब्रह्म का अंश जीव के रूप में शरीर में प्रवेश करके उसे जीवात्मा बनाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रकृति के गुण जीव निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जिस प्रकार मनुष्य बाल्यावस्था से प्रौढ़ावस्था और प्रौढ़ावस्था से वृद्धावस्था तक पारिवारिक जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हैं, उसी प्रकार परिवार भी विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हैं।

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यह कविता (यह अकेला है।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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आँखों में अश्रु भरे।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ आँखों में अश्रु भरे। ♦

रख काँधे पर सर अपना,
अँखियों में अश्रु भरे हुए।
पहन अँधियारों को,
दर्द – पीड़ा की सुबकी लेते।
हर्ष – कर्ष की बातों में,
अब्धुमन की वीरानी खाती।

किसकी आहट सुनें,
पास कौन आयेगा।
अतिथि की आँखों को,
जो आँसू दे जायेगा।
किससे हम अनुरक्त हो,
भेजते उर-वेदना की पाती।

क्यूँ करे कोई याद,
इष्ट अपना यहाँ कौन।
जग इक बंधन है,
अनुराग इक सपन।
विचार कर अकुलाए,
अंत: करण को ढाँढ़स दे जाती।

है चंदा भी अकेला,
अकेली है उसकी चाँदनी।
मुग्ध हो हँसी दोनों,
ले ली है हृदय पर अपनी।
खाली मन प्राणों से,
मीत-प्रीति की चुटकियाँ ले आती।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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यह कविता (आँखों में अश्रु भरे।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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सुगंध भी सुलभ न होगा।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सुगंध भी सुलभ न होगा। ♦

अगर न जागे आज दोस्तो,
कल को फिर से अंधेरा होगा।
पराधीनी में था किसने धकेला?
सवाल यह मेरा – तेरा होगा।

अपनी संस्कृति सभ्यता का शायद,
फिर सुगंध भी सुलभ न होगा।
कहीं आ न जाए फिर दौर वही,
जो सैंतालीस से पहले था भोगा।

यह पछुआ बयार कहीं ले ही न डूबे,
फिर से भारत के गौरव को।
आओ मिलकर पलवित पुष्पित करते हैं,
अपनी संस्कृति सभ्यता के सौरभ को।

उदासीनता भली नहीं है राष्ट्र धर्म में,
अपनी रीत तो अपनी ही होती है।
परिणाम कभी न अच्छा है होता,
जब देश की जनता सोती है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — अब भी समय है संभल जाओ, वर्ना अपनी संस्कृति सभ्यता का शायद फिर सुगंध भी सुलभ न होगा। कहीं आ न जाए फिर दौर वही, जो सैंतालीस से पहले था भोगा सभी ने। यह पछुआ बयार कहीं ले ही न डूबे, फिर से भारत के गौरव को। आओ मिलकर पलवित पुष्पित करते हैं, अपनी प्राचीन सभ्य संस्कृति सभ्यता के सौरभ को।

—————

यह कविता (सुगंध भी सुलभ न होगा।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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संवेदना।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ संवेदना। ♦

अरे भाई, न जाने इस भूपटल पर,
क्यों आज संवेदनाएं खो गई है?
विकल – व्यथित है बच्चा – बच्चा,
समूची मानवता क्यों रो रही है?

मानव – मानस में सिर्फ स्पर्धाएं रह गई,
सारा संवेदन खो गया।
आदमी – आदमी से लड़ – भीड़ रहा है,
न जाने यह क्या हो गया?

कहां तो थे यहां चौरासी से ऊपर,
मानव – मानस के कोमल भाव।
परहित में अपनी जाने गवा दी,
अब कहां गया वह मानव पड़ाव?

महल – अटालिकाएं खूब बनाई,
भाई – भाई में रहा न संवेदन – प्रेम।
बेहाता बहने पराई हो गई अब,
कौन पूछता है, उनका योग – क्षेम?

सास – ससुर से छुटकारा हो कैसे?
बहू – बेटियां भी ऐसा चाहती है।
जब बूढ़ों को ठुकराते बेटे उनके,
तब मानव संवेदना शर्मसार हो जाती है।

धान में सुलगी आग आज तो,
पराल भी कल जल जाएगा।
न जाने इन पश्चिम के अनुयायियों को,
यह सत्य समझ कब आएगा?

संवेदनहीन मानव, “मानव” कहां फिर?
वह पशु से भी बड़ा ढोर बन जाएगा।
यूं गिरता मानव – मानस कल तक,
समाज को, गर्त में ही ले जाएगा।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — “दिल की गहराई तक जो पहुंच कर अपने अनुभव कराएं संवेदना वह मानसिक प्रक्रम है, जो आगे विभाजन योग्य नहीं होता। यह ज्ञानेन्द्रियों को प्रभावित करने वाली उत्तेजना द्वारा उत्पादित होता है, तथा इसकी तीव्रता उत्तेजना पर निर्भर करती है, और इसके गुण ज्ञानेन्द्रिय की प्रकृति पर निर्भर करते हैं।” जब माता-पिता बूढ़े हो जाते है तो आजकल के युवा पीढ़ी द्वारा खासकर नई नवेली बहु द्वारा बूढ़े सास-ससुर का अनादर व खरी-खोटी बोलना उन्हें अंदर तक झकझोर कर रख देता हैं। ये युवा पीढ़ी यह कैसे भूल जाते है की जो वह जो अपने माता-पिता के साथ कर रहे है… उनका अपना पुत्र भी उनके साथ वैसा ही करेगा। एक बात याद रखे कभी भी आप अपने माता-पिता का अनादर कर जीवन के किसी भी क्षेत्र में तरक्की नही कर पाएंगे, माता-पिता का आशीर्वाद ही आपके सफलता का सीढ़ी बनता हैं। इसलिए कभी भी अपने माता-पिता का अनादर ना करें, वर्ना जीवन में कभी भी सुखी नहीं रह पाएंगे।

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यह कविता (संवेदना।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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हिन्दी काव्य दर्शन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ हिन्दी काव्य दर्शन। ♦

जीवन शैली है, भागवत धर्म,
हृदय सहजात है, हमारा।

इक मुल्क, कौम, संगत है,
कोई कभी न पराया।
मन तरंग आत्म बोध से,
क्षण एक में जुटता गया।

झुकने न दिया अन्य को,
सम्मान दिया हर विचार को।
हर वर्दी के नीचे, है नाम,
इक मात वसुंधरा का।

हर आत्म तन्मय जन है यहां,
योगी, हर दिवा है अर्पित प्रेम।
यज्ञ को, थाहे कौन बुनियाद,
इस भरत जन ज्ञान – विज्ञान का।

घटक अनेक राम – कृष्ण के,
इस देश में, असंख्य जाति।
धर्म, वर्ग, पंथ हैं, सुर – ताल,
लय, मन के द्वार हैं एकल।

विभिन्नता ही है छवि सुभग,
इस महा जीवन – मंत्र श्रृंगार का।
मत – भेदी होते… एकमना,
प्रश्न आता जब राष्ट्र के सेवा अस्मिता का।

संभव है, क्रूर हो कोई दस्यु ,
अंगुलिमाल सम, भाव हो अशुभ।
बुद्ध का प्रेम, ले भावांजलि,
गढ़े शुभत्व, हर नर में राम का।

कौम है यह संगम प्रेम, संयम, क्षमा का,
न रहा कभी मत्स्य न्याय यहां।
जलधार है नेह, दया, सेवा, सुख है,
वैराग्य, सहयोग, सदाचार यहां।

अमर बेल से एकत्व से बनता,
विश्व धर्म जन मन संगीत सदा।
है जनाधार सत् चित् आनन्द का,
आत्मबल ही… मनमीत यहां।

हिन्दी ही जोड़े, गुण धर्म सभी के,
गुण ग्राहिता, हर जन सम्मान यहां।

♦ प्रो• मीरा भारती जी – पुणे, महाराष्ट्र  ♦

—————

  • “प्रो• मीरा भारती जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से बताने की कोशिश की है — अतुल्य हमारा भारत देश सबसे न्यारा है, यहां बहुत सारी जातियों और धर्म के लोग, अलग – अलग बोली भाषा के साथ रहते है फिर भी सभी के बीच एक बात कॉमन है, सभी अपने मातृभूमि से अटूट प्रेम करते है। हर भारतीय के अंदर अपने देश के प्रति सच्चा प्रेम है, देश के लिए कुछ भी कर गुजरने का जज्बा है। हम आध्यात्मिकता, अहिंसा और वसुधैव कुटुम्बकम वाले लोग है, हम सभी से प्यार करते है, हम कभी भी किसी का बुरा नही चाहते है। हम सदैव से ही पूरी मानव जाती के कल्याण के लिए कार्य करते आ रहे है।

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यह कविता (हिन्दी काव्य दर्शन।) “प्रो• मीरा भारती जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं से नई पीढ़ी को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम मीरा भारती (मीरा मिश्रा/भारती) है। मैंने BRABU Muzaffarpur, Bihar, R.S College में प्राध्यापिका के रूप में 1979 से 2020 तक सक्रिय चिंतन और मनन, अध्यापन कार्य किया, आनलाइन शिक्षण कार्यक्रम से वर्तमान में भी जुड़ी हूं, मेरे द्वारा प्रशिक्षित बच्चे लेखनी का सुंदर उपयोग किया करते हैं। मैंने लगभग 130 कविताएं लिखी है, जिसमें अधिक प्रकाशित हैं, कई आलेख भी, लिखे हैं। दृढ़ संकल्प है, कि लेखन और अध्यापन से, अध्ययन के सामूहिक विस्तारण से समाज कल्याण – कार्य के कर्तृत्व बोध में वृद्धि हो सकती है। अधिक सकारात्मक परिणाम आ सकते हैं।

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जनक शहीदों के…

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ जनक शहीदों के… ♦

समन्दर बनकर आंसू बहते, हमने उन माँओं के देखे हैं।
शहीद हो कर सरहदों से जब, लौटते बलिदानी बेटे हैं।

पत्थर दिल बापों को हमने, पीटते छाती अपनी देखा है।
जब तिरंगे में लिपट लौटता, शहिद हो उनका बेटा है।

विधवा बहू की मांग को सूनी, देख के दोनो जब रोते हैं।
मृत प्राय से पड़ जाते हैं दोनो, सुध – बुद्ध अपनी खोते हैं।

जाना था जब हमको पहले, क्यों लल्ला को भिजवा दिया?
उल्टी गंगा बहाकर रब्बा, यह तुमने आखिर क्या किया?

नेह के आंसू सावन से झरते, बरसात को भी शर्मिंदा किया।
रुग्ण – रूष्ट इस मीच निगोडी ने, मुर्दों को कब जिंदा किया?

बूढ़ी आंखे बस रोती रही, बेटा धूं – धूं कर तब जलता गया।
मां सिसकियां भरती रह गई, बाप दोनों हाथ ही मलता गया।

अंतिम सत्य है मौत जीवन का, यह सबको इक दिन आनी है।
बेटा क्यों गया हमसे पहले? बूढ़ी आंखों में इसलिए पानी है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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ज़रूर पढ़ें — शिक्षक की महानता।

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — जब जवान सैनिक बेटा शहीद होकर घर आता है उस समय उसके माता – पिता की क्या मनोस्थिति होती है। उनके कलेजे का टुकड़ा उनसे पहले इस दुनिया से विदा होता है यही गम सबसे बड़ा होता है उनके लिए, मृत्यु एक अटल सत्य है इस जीवन का लेकिन समय से पहले दर्द दे जाता है। विधवा बहू की मांग को सूनी, देख के दोनो जब रोते हैं, मृत प्राय से पड़ जाते हैं दोनो, सुध – बुद्ध अपनी खोते हैं।

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यह कविता (जनक शहीदों के…) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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प्यार पर शोध।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ प्यार पर शोध। ♦

जब से मेरा साहित्य में अनुराग जगा,
मैंने नाना विधाओं का साहित्य पढ़ा।
किया गौर तो ये पाया मैंने कि आधा,
साहित्य प्रेम कथाओं से है भरा पड़ा।

गीत, गज़लें, कविता, दोहे, रुबाई, छन्द,
लेख, निबन्ध, मुक्तक न जाने कितने ग्रंथ।
रच डाले कवियों ने प्रेम की व्याख्या में,
फिर भी समझा न पाये है क्या प्रेम पंथ?

उसी पल मन में मेरे आया ये विचार,
करुँ शोध मैं भी, जानूँ क्या है प्यार ?
अपने अनेक मित्रों का आया मुझे ख्याल,
सबसे पूछा मैंने बस यही एक सवाल।

पहले एक डॉक्टर मित्र से की मुलाक़ात,
सुन कर प्रश्न हँसे वो, कही विचित्र बात।
कृती इट्स मीनिंगलैस वर्ड, मेक्स नो सेन्स,
यू कैन डिफाइन इट एज़ हॉर्मोनल इम्बैलेन्स।

किसी ने कहा इसे काल्पनिक अफसाना,
किसी ने कहा इसे जिंदगी का तराना।
कुछ थे गालिब से सहमत, बोले है ये,
आग का दरिया और डूब कर है जाना।

कोई बोला इश्क ने जीना सीखा दिया,
कोई बोला इश्क ने पीना सीखा दिया।
एक ने कहा बेकार की चीज है मुहब्बत,
खाम खां इंसान को निकम्मा बना दिया।

किसी ने नियामत कहा, किसी ने कयामत,
किसी ने शरारत कहा, किसी ने इबादत।
किसी के लिए आंसू और आह थी उल्फत,
किसी के लिये खुदा का नूर थी मुहब्बत।

परिभाषा प्यार की न कोई बता पाया,
सबने केवल अपना अनुभव ही सुनाया।
चकराई बुद्धि मेरी सोच – सोच कर फिर,
ढाई आखर की कितनी विचित्र है माया।

मन मस्तिष्क में चला वैचारिक संघर्ष,
गहन चिन्तन के बाद निकला ये निष्कर्ष।
निजी अनुभव नहीं है प्यार की परिभाषा,
प्यार तो है जीवन का उत्सर्ग, उत्कर्ष।

इस शोध के बाद एक सत्य तो पता चला,
प्यार ने किसी का किया भला या हो छल।
पर ये भावना हर किसी में थी मौजूद,
कोई भी हृदय प्यार से रिक्त नहीं मिला।

प्रेम होता नहीं दुखद जब तक रहे शुद्ध,
मिलावट हिंसा की करती है इसे अशुद्ध।
प्यार और मार का नहीं है कोई मेल,
सबका यही संदेश नानक हो या बुद्ध।

प्यार ही समझता है मानवता की हद,
नासमझी से हमारी हो जाता है बद।
होती है मिलावट इसमें हिंसा की जब,
खोकर स्वरूप अपना बन जाता है जिद।

यही भाव मेरे चिंतन में व्याप्त हुआ,
मुझे तो प्यार का यही अर्थ प्राप्त हुआ।
इसी ज्ञान और संदेश के साथ दोस्तों,
“प्रेम” विषय पर शोध मेरा समाप्त हुआ।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

—————

  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए समझाने की कोशिश की हैं — प्रेम होता नहीं दुखद जब तक रहे शुद्ध, मिलावट हिंसा की करती है इसे अशुद्ध। प्यार और मार का नहीं है कोई मेल, सबका यही संदेश नानक हो या बुद्ध।

—————

यह कविता (प्यार पर शोध।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
बी.एड. ( फ़िज़िकल )
आई आई टी . शिक्षिका ( प्राइवेट कोचिंग क्लासेज़)
लेखिका, कहानीकार, कवियित्री, समीक्षक, ( सभी विधाओं में लेखन ) अनुवादक. समाज सेविका।

अध्यक्ष : “सिद्धि एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह”
प्रदेश अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य सदन ( महाराष्ट्र इकाई )
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान बिहार प्रान्त की महिला प्रकोष्ठ,
श्री संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट : प्रदेश प्रतिनिधि ( महाराष्ट्र )
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद में – सह संगठन मंत्री, मुंबई ज़िला, महाराष्ट्र
हिन्दी और अँग्रेजी दोनों विधाओं में स्वतंत्र लेखन।

अनेक प्रतिष्ठित हिन्दी/अँग्रेजी पत्र – पत्रिकाओं में नियमित रचनाएँ प्रकाशित।

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