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कविता हिंदी में

अमृत महोत्सव।

Kmsraj51 की कलम से…..

Amrit Mahotsav | अमृत महोत्सव।

राष्ट्रधर्म का गौरव प्यारा, आज हम हैं देखो बढ़ाने चले।
आजादी का प्रतीक तिरंगा, आज घर -घर में हैं फहराने चले।

उत्तुंग शिखर हिमालय से लेकर, हिन्द महासागर तक फैला है।
अरुणाचल से गुजरात कच्छ तक, यह भारत देश ही फैला है।

दसों दिशाएं आलोकित जिसकी, है वीरता जिसके जर्रे- जर्रे में।
पुरुषार्थ छिपा है राष्ट्रप्रेम का, यहां जीवन यापन के हर ढर्रे में।

तिरंगा है यह खिलौना नहीं, हर रंग का लहदा भाव निराला है।
शौर्य, वीरता, शान्ति, समृद्धि, मध्य चक्र प्रतीक समय का डाला है।

वीर बलिदानियों की कुर्बानी की कहानी, तिरंगा याद दिलाता है।
इतिहास पढ़ा देता है वह बंदा, जो घर – घर तिरंगा फहराता है।

आजादी के दीवानों ने प्रणाहुतियों से, यज्ञ को सफल बनाया था।
गुलामी की बेडौल जंजीरों से, भारत को आजाद करवाया था।

इसे संभालना, जश्न मनाना, अब तो हमारे ही हिस्से में आया है।
मिलजुल कर देश को बढ़ाने का, गुर पुरखों ने हमें सिखाया है।

आजादी के अमृत महोत्सव की, पावन बेला भारत में आई है।
बच्चे से बूढ़े, अमीर – गरीब ने, यह बेला सबने ही तो मनाई हैं।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — कविता में भारत की भूगोलिक विशालता को हिमालय से लेकर हिन्द महासागर तक का संकेत दिया गया है, और अरुणाचल से लेकर गुजरात-कच्छ तक का भारतीय देश का विस्तार दिखाया गया है। कविता में दिशाओं की प्रकारों को प्रकाशित करते हुए यह कहा गया है कि वीरता हर जगह है, और राष्ट्रप्रेम की भावना हर व्यक्ति के जीवन में छिपी होती है। तिरंगे को खिलौना नहीं मानने के साथ ही, इसके हर रंग के पीछे भावनाओं की गहराई दिखाई गई है। यह शौर्य, वीरता, शान्ति, समृद्धि को प्रतिष्ठित करता है और समय के चक्र का प्रतीक होता है। कविता में वीर बलिदानियों की कहानी और उनकी कुर्बानियों का स्मरण कराया गया है, और तिरंगे के द्वारा उनकी यादें ताजगी देती है। जो व्यक्ति अपने घर में तिरंगा फहराता है, वह इतिहास को पढ़ता है और विशेष बनता है। कविता में स्वतंत्रता संग्राम के दीवानों ने यज्ञ को सफलता प्राप्त की थी, और उन्होंने गुलामी की बेडौल जंजीरों को तोड़कर भारत को आजादी दिलाई थी। कविता में इसे संभालने और मनाने की जिम्मेदारी को उठाने की बात की गई है, और गुरु पुरुषों द्वारा दिए गए सिखाने के उपदेश का उल्लेख किया गया है। कविता आजादी के अमृत महोत्सव की पवित्र अवधि का स्वागत करती है, जिसमें बच्चे से बूढ़े, अमीर से गरीब, सभी ने इस महत्वपूर्ण घटना का आयोजन किया है।

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यह कविता (अमृत महोत्सव।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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कहानी पूर्वोत्तर की।

Kmsraj51 की कलम से…..

Story of Northeast | कहानी पूर्वोत्तर की।

पूर्वोत्तर के जवानों को देखो, क्या से क्या होने आए हैं?
जिन हाथों में किताबें होनी थी, उन्होंने हथियार उठाए हैं।

यह समुदायों की जाति दुश्मनी है, या किसी ने ये लड़ाए हैं?
बेखौफ दरिंदगी दिखाते हैं, निर्वस्त्र घुमाई जाती बेटी मांएं हैं।

सीमा गांव की सरहद बनी है, गभरु हिफाजत में लगाए हैं।
आगजनी और मारधाड़ ने, नागा, मैतेई, कूकी सभी डराए हैं।

दहशत है चारों ओर वहां पर, सुख – चैन सभी का छीना है।
ऐसे भयावह वातावरण में, बड़ा मुश्किल किसी का जीना है।

यहां सियासत घनी है, वहां आक्रोशित बेबस आगजनी है।
मीडिया में नीरे सवाल उठे हैं, आखिर सरकारें क्यों बनी है?

इस्तीफे की मांग है, पक्ष – विपक्ष में हो रही है बस थिपाथोपी।
झुलसती हमेशा जनता है, सियासतदान तो सेंकेंगे ही रोटी।

यह आज नहीं कई बार हुआ है, हर राज में होता आया है।
इतिहास गवाह है, दो के झगड़े में, तीसरे ने लाभ उठाया है।

आओ मिलकर बैठे हम सब, प्यार प्रेम से बात सुलझाते हैं।
सम्पत्ति विवाद में औरों को घुसाना, वे तो बात उलझाते हैं।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — मणिपुर में मुख्य रूप से मैतई, कुकी और नगा जाति रहते हैं। नगा और कुकी को पहले से ही आदिवासी का दर्जा मिला हुआ है, लेकिन 1949 में मैतेई से यह दर्जा छीन लिया गया था। इसके बाद से ही मैतेई समुदाय के लोग इसकी मांग कर रहे थे। जिसे लेकर दोनों समुदायों के बीच हिंसक झड़प हो रही है। यह आज नहीं कई बार हुआ है, हर राज में होता आया है। इतिहास गवाह है, दो के झगड़े में, तीसरे ने लाभ उठाया है। आओ मिलकर बैठे हम सब, प्यार प्रेम से बात सुलझाते हैं, सम्पत्ति विवाद में औरों को घुसाना, वे तो बात उलझाते हैं।

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यह कविता (कहानी पूर्वोत्तर की।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

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आफता औली बरखा।

Kmsraj51 की कलम से…..

Afta Auli Barkha | आफता औली बरखा।

घरा रेयो जुगती ने,
राती दहां सौंदे दुबकी ने,
रहयो थोड़े से चुस्त,
नही ता बड़ा कुछ पई जाना पौने पुगत।

अंबरा ते बरने लगीरी आफत,
रूड़ने लगीरे सा बरखा ते।
डाल रुख कन्ने फाट,
कल्ले दहाँ जांदे किती खा जो,
कने जरूर लई जाएंओ अपने जागत।

एबकी बार पता नी क्या सोचीरा परमेसरे,
एड़ा दड़ा दड़ लाइरा बरखा रा दड़कया,
एड़ा लगीरा तियां जे एकी कडछियां,
बाटिए देने सारे निपटा।

कर रहम ओ परमेसर हूण,
तेरे सारे बच्चे, तेरी रची री सृष्टि सारी।
कैं लाईरे तरसाने तैं हूण,
करी दो ए आफता औली बरखा बंद हूण।
सब लोक रहो सुखी फेरी,
तायीं गाने सारेयां लोका तेरे गुण।

♦ लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी  – बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “श्री लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — ये बदरा तेज कड़क-कड़क कर बिजली तड़कने के साथ जोरदार मूसलाधार बारिश से तबाही मचा है सब ओर। ये जो आफत की बारिश आयी है चारों तरफ पानी ही पानी भरा है तेज वर्षा के कारण हे प्रभु अब इसे बंद करो तुम पर ही हम सबको विश्वास है। हम जानते है की ये मानवों के कुकर्मों और प्रकृति से खिलवाल का ही नतीज़ा है। तेज मूसलाधार वर्षा से पूरा जलमग्न हो गया ये पहाड़ी प्रदेश, सभी दुखी व परेशान है। हमसब तेरे ही बच्चें है प्रभु हम पर रहम करो और अब इस तेज वर्षा को बंद करो प्रभु, जिससे जनजीवन सामान्य हो सके।

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यह कविता (आफता औली बरखा।) “श्री लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, लघु कथा, सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल है। साहित्यिक नाम — डॉ• जय अनजान है। माता का नाम — श्रीमती कमला देवी महलवाल और पिता का नाम — श्री सुंदर राम महलवाल है। शिक्षा — पी• एच• डी•(गणित), एम• फिल•, बी• एड•। व्यवसाय — सहायक प्रोफेसर। धर्म पत्नी — श्रीमती संतोष महलवाल और संतान – शानवी एवम् रिशित।

  • रुचियां — लेखक, समीक्षक, आलोचक, लघुकथा, फीचर डेस्क, भ्रमण, कथाकार, व्यंग्यात्मक लेख।
  • लेखन भाषाएं — हिंदी, पहाड़ी (कहलूरी, कांगड़ी, मंडयाली) अंग्रेजी।
  • लिखित रचनाएं — हिंदी(50), पहाड़ी(50), अंग्रेजी(10)।
  • प्रेरणा स्त्रोत — माता एवम हालात।
  • पदभार निर्वहन — कार्यकारिणी सदस्य कल्याण कला मंच बिलासपुर, लेखक संघ बिलासपुर, सह सचिव राष्ट्रीय कवि संगम बिलासपुर इकाई, ज्वाइंट फाइनेंस सेक्रेटरी हिमाचल मलखंभ एसोसिएशन, सदस्य मंजूषा सहायता केंद्र।
  • सम्मान प्राप्त — श्रेष्ठ रचनाकार(देवभूमि हिम साहित्य मंच) — 2022
  • कल्याण शरद शिरोमणि सम्मान(कल्याण कला मंच) — 2022
  • काले बाबा उत्कृष्ट लेखक सम्मान — 2022
  • व्यास गौरव सम्मान — 2022
  • रक्त सेवा सम्मान (नेहा मानव सोसायटी)।
  • शारदा साहित्य संगम सम्मान — 2022
  • विशेष — 17 बार रक्तदान।
  • देश, प्रदेश के अग्रणी समाचार पत्रों एवम पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।

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क्या भरोसा।

Kmsraj51 की कलम से…..

Kya Bharosa | क्या भरोसा।

मानव मानव को मार सकता है,
मानव मानव का नरसंहार कर सकता है।
मानव मानव को डुबो सकता है,
पर मानव मानव का बेड़ा सिर्फ,
ऊपर वाला ही पार कर सकता है।

देख हालात हिमाचल के,
जय क्यों तू इतना इतराता है।
क्या भरोसा है इस जीवन का,
सिर्फ ऊपर वाला ही जाने,
इन सांसों के पल पल का कितना नाता है।

सच में ही यह कलयुग है,
जो सोचा ही नहीं अब वह हो सकता है।
किसने सोचा था हमारा पहाड़ी राज्य भी,
एक दिन जलमग्न हो सकता है।

जय भी कर रहा अरदास प्रभु से दिन-रात,
अब तू ही हमको बचा सकता है।
डर के मारे दिन रात सहम रहे अब लोग,
प्रकृति की भयंकर मार को,
अब सहन नहीं कर पा रहे लोग।
अब सिर्फ तुझ पर ही है एक भरोसा,
तू ही डर को भगाकर ,
अच्छे दिन ला सकता है अच्छे दिन ला सकता है।

♦ लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी  – बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “श्री लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — सच में ही यह घनघोर कलयुग है, जो सोचा ही नहीं था अब वह हो रहा है, किसने सोचा था हमारा पहाड़ी राज्य हिमाचल भी एक दिन जलमग्न हो सकता है। आखिर मानव ने जो प्रकृति से छेड़छाड़ की उसका दंड तो मिलना ही था उसे किसी न किसी आपदा रूप में, कर्म का फल तो मिलेगा ही। अब तो केवल प्रभु पर ही विश्वास है हम सबको अरदास प्रभु से दिन-रात करते हमसब अब तू ही हमको बचा सकता है। डर के मारे दिन रात सहम रहे अब लोग। प्रकृति की भयंकर मार को अब सहन नहीं कर पा रहे लोग। अब सिर्फ तुझ पर ही है एक भरोसा, तू ही डर को भगाकर, अच्छे दिन ला सकता है प्रभु।

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यह कविता (क्या भरोसा।) “श्री लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, लघु कथा, सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम लेफ्टिनेंट (डॉ•) जयचंद महलवाल है। साहित्यिक नाम — डॉ• जय अनजान है। माता का नाम — श्रीमती कमला देवी महलवाल और पिता का नाम — श्री सुंदर राम महलवाल है। शिक्षा — पी• एच• डी•(गणित), एम• फिल•, बी• एड•। व्यवसाय — सहायक प्रोफेसर। धर्म पत्नी — श्रीमती संतोष महलवाल और संतान – शानवी एवम् रिशित।

  • रुचियां — लेखक, समीक्षक, आलोचक, लघुकथा, फीचर डेस्क, भ्रमण, कथाकार, व्यंग्यात्मक लेख।
  • लेखन भाषाएं — हिंदी, पहाड़ी (कहलूरी, कांगड़ी, मंडयाली) अंग्रेजी।
  • लिखित रचनाएं — हिंदी(50), पहाड़ी(50), अंग्रेजी(10)।
  • प्रेरणा स्त्रोत — माता एवम हालात।
  • पदभार निर्वहन — कार्यकारिणी सदस्य कल्याण कला मंच बिलासपुर, लेखक संघ बिलासपुर, सह सचिव राष्ट्रीय कवि संगम बिलासपुर इकाई, ज्वाइंट फाइनेंस सेक्रेटरी हिमाचल मलखंभ एसोसिएशन, सदस्य मंजूषा सहायता केंद्र।
  • सम्मान प्राप्त — श्रेष्ठ रचनाकार(देवभूमि हिम साहित्य मंच) — 2022
  • कल्याण शरद शिरोमणि सम्मान(कल्याण कला मंच) — 2022
  • काले बाबा उत्कृष्ट लेखक सम्मान — 2022
  • व्यास गौरव सम्मान — 2022
  • रक्त सेवा सम्मान (नेहा मानव सोसायटी)।
  • शारदा साहित्य संगम सम्मान — 2022
  • विशेष — 17 बार रक्तदान।
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डिजिटल जमाना।

Kmsraj51 की कलम से…..

Digital Era | डिजिटल जमाना।

अब डिजिटल जमाना हो गया,
सब कुछ फोन में ही खो गया।

सुबह से शाम तक, दिन से रात तक,
चाय की चुस्की से लेकर,
रात के खाने की बात तक।

अब फोन साथी हमारा प्यारा हो गया,
इसने न जाने कितनों का चैन खोया,
इसे देखते रहने की चाह में दिन-रैन रोया।

क्या करे, हम सब की एक मजबूरी,
फोन से ही सारे काम आसान हो गये,
माना कि फोन बहुत ही जरूरी है।

इसके बिना जिन्दगी अधूरी है,
पर इसको अपनी उँगलियों पर नचाना है।

बनानी इक दूरी है, क्योंकि…
अधिकता हर चीज की बुरी है।

समय की जरूरत है,
चलना है समय के साथ,
पर इसके इशारों पर चले,
ना बाँधों इतने, अपने हाथ।

सोचो इसके साथ रहते हमने,
कितना खोया, कितना पाया है।

फोन की तलब लगी इतनी,
फोन हमें किस मोड़ पर ले आया है।

अब डिजिटल जमाना हो गया,
सब कुछ फोन में ही खो गया।

फन्नी वीडियो देखकर,
अब हँसी नहीं, चिंता होती है।

फोन के साथ रहते,
दूसरे कामों की क्या दुर्दशा होती है।

माँ फोन करती-2 जब,
अपने बच्चे को ही उल्टा
लटका कर पकड़ती है।

अब सोचो! मंथन करो,
उस मासूम बच्चे की
जुबां से क्या दुआ निकलती है।

न खाने-पीने की,
ना जागने सोने की खबर।

जहाँ देखों वही पर,
इसके ज्यादा दुष्प्रभावों की नजर।

हाय रे !
डिजीटल होने की दौड़ ने,
हमें कहाँ लाकर छोड़ा है।

नांदान बच्चे सीखें ना जाने क्या क्या,
इसके अच्छे गुणों से मुँह मोड़ा हैं।

अंत में रखना ध्यान इक छोटी सी बात,
चाहें फोन का दिन-रात रखो साथ।

इसमें कभी इतना ना होना व्यस्त,
कि छूट जाएँ अनमोल रिश्तों का हाथ।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आधुनिकता और डिजिटल उपकरण, स्मार्टफोन इत्यादि का उपयोग अच्छे कार्यों के लिए ही करें, याद रखें — डिजिटल उपकरण के कही आप या आपके बच्चें गुलाम ना बन जाए। माना की डिजिटल उपकरण, स्मार्टफोन इत्यादि जरुरी है लेकिन इनका दुरुपयोग करना ठीक नहीं है। सोचने और जानने की शक्ति प्रभावित करता है स्मार्टफोन, बच्चों में किसी चीज़ को सीखने की ललक बहुत ज्यादा होती है, तो अधिक जिज्ञासा के कारण वह गलत चीज़ें भी सीख सकते हैं। इसके अलावा मेंटल हेल्थ पर भी नकारात्मक प्रभाव होता है अवसाद, नींद पूरी न होना जैसी समस्या होती है। बच्चें मोबाइल का प्रयोग जितना कम समय के लिए करेंगे उतना बेहतर है। स्मार्टफोन के प्रयोग से आजकल के बच्चें ज्यादा गुस्से वाले व चिड़चिड़े हो गए है।

—————

यह कविता (डिजिटल जमाना।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी (राष्ट्रीय नवाचारी शिक्षिका व अंतरराष्ट्रीय साहित्यकार) है। शिक्षा — डी•एड, बी•एड, एम•ए•। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

  • अनेक मंचों से राष्ट्रीय सम्मान।
  • इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज।
  • काव्य श्री सम्मान — 2023
  • “Most Inspiring Women Of The Earth“ – Award 2023
    {International Internship University and Swarn Bharat Parivar}
  • Teacher’s Icon Award — 2023
  • राष्ट्रीय शिक्षा शिल्पी सम्मान — 2021
  • सावित्रीबाई फुले ग्लोबल अचीवर्स अवार्ड — 2022
  • राष्ट्र गौरव सम्मान — 2022
  • गुरु चाणक्य सम्मान 2022 {International Best Global Educator Award 2022, Educator of the Year 2022}
  • राष्ट्रीय गौरव शिक्षक सम्मान 2022 से सम्मानित।
  • अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ लेखिका व सर्वश्रेष्ठ कवयित्री – By — KMSRAJ51.COM
  • अंतरराष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान — 2022
  • राष्ट्रीय शिक्षक गौरव सम्मान — 2022
  • राष्ट्रीय स्त्री शक्ति सम्मान — 2022
  • राष्ट्रीय शक्ति संचेतना अवार्ड — 2022
  • साउथ एशिया टीचर एक्सीलेंस अवार्ड — 2022
  • 50 सांझा काव्य-संग्रहों में रचनाएँ प्रकाशित (राष्ट्रीय स्तर पर)।
  • 70 रचनाएँ व 11+ लेख और 1 लघु कथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित (KMSRAJ51.COM)। इनकी 6 कविताएं अब तक विश्व स्तर पर प्रथम और द्वितीय स्थान पा चुकी है, जिनके आधार पर इनको सर्वश्रेष्ठ कवयित्री व पर्यावरण प्रेमी का खिताब व वरिष्ठ लेखिका का खिताब की प्राप्ति हो चुकी है।
  • इनकी अनेक कविताएं व शिक्षाप्रद लेख विभिन्न प्रकार के पटल व पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे हैं।
  • 3 महीने में तीन पुस्तकें प्रकाशित हुए। जिसमें दो काव्य संग्रह “समर्पण भावों का” और “भाव मेरे सतरंगी” और एक लेख संग्रह “एक नजर इन पर भी” प्रकाशित हुए। एक शोध पत्र “आओं, लौट चले पुराने संस्कारों की ओर” प्रकाशित हुआ। इनके लेख और रचनाएं जन-मानस के पटल पर गहरी छाप छोड़ रहे हैं।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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निर्जीव से मोह।

Kmsraj51 की कलम से…..

Nirjeev Se Moh | निर्जीव से मोह।

समय की जरूरतों के हिसाब से,
एक निर्जीव चीज ने हर घर में,
प्रवेश ले लिया।

कुछ न होते हुए भी वो,
वो सब कुछ बन गया वो,
ऐसा मोहपाश दे दिया।

खा गया जो लोगों की भूख – प्यास,
अपनों से मिलने का प्यारा अहसास,
खुद से रिश्ता खास दे गया।

अखबार की उस खबर ने खो दिया होश,
जिसमें प्यारी बहना को भाई ने भर कर जोश,
मौत का ग्रास दे गया।

ये यंत्र जो आजकल की दुनिया पर हुआ भारी,
हर व्यक्ति को लगी इसकी भयानक बीमारी,
अपना नाम हर श्वास पर दे गया।

माना कि आधुनिकता की दौड़ में,
जरुरत इसकी जिंदगी के हर मोड़ पे,
ऐसा ये जोकर का ताश दे गया।

हम सजीवों पर क्यों हो रहा है इसका पहरा,
क्यों ज्यादा वक्त दिल निर्जीव मोबाइल पर ही ठहरा,
ये तन~मन का नाश दे गया।

निर्जीव को निर्जीव ही रहने दे हम,
प्यार सजीव रिश्तों से होने न पाए कम,
सजीवो से प्रेम ही जीने की आस दे गया।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — जो जिवंत (सजीव) है प्यार उससे कभी भी कम ना हो ऐसा आदत होना चाहिए सदैव ही हम सबका। निर्जीव से मोह ठीक नही है, निर्जीव का उपयोग मात्र जरूरत तक ही सीमित रखें, निर्जीव के गुलाम ना बन जाये। आधुनिक युग में किसी भी टेक्नोलॉजी का उपयोग केवल अच्छे कार्य को करने के लिए करे। उसका कभी भी शैतानो की तरह दुरुपयोग ना करो। याद रखें – हर निर्जीव वस्तु के फायदे है तो उनसे नुकसान भी है, आप केवल फायदे के लिए सही तरीके से उपयोग करें, उसके गुलाम बनकर शैतान की तरह काम मत करो। इन निर्जीव वस्तुओं की वजह से आपसी प्रेम कम ना हो।

—————

यह कविता (निर्जीव से मोह।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी (राष्ट्रीय नवाचारी शिक्षिका व अंतरराष्ट्रीय साहित्यकार) है। शिक्षा — डी•एड, बी•एड, एम•ए•। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

  • अनेक मंचों से राष्ट्रीय सम्मान।
  • इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज।
  • काव्य श्री सम्मान — 2023
  • “Most Inspiring Women Of The Earth“ – Award 2023
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बदरा को आमंत्रण।

Kmsraj51 की कलम से…..

Invitation To Clouds | बदरा को आमंत्रण।

दे दी हमने झुके विकल नैनों से,
आमंत्रण घनेरे जल भरे बदरा को।
बढ़े कदमों को रोकने लगे,
धूमिल अर्दित विगत जीवन दर्पण में।

साँझवाती से अँगना में,
सुहागन बनी रात घनेरी।
प्राण – प्रिये को सम्मुख पाकर,
छलक पड़ी निर्मोही आँखों में।

नम पलकों पर आकर बिखर गई,
न जाने कितनी झूठी कसमें।
सिमट गई शर्वरी के पहरों से,
मीलों लम्बी दूरी जुग सहमों में।

पल भर को भूल गईं साँसें भी,
पैरों में बँधी इस मजबूरी को।
बहका जीवन लगा सिसकने,
सहसा आकर गुम यादों में।

मौन समर्पण की ज्वाला में,
द्रवित हुई कामनाशक्ति हमारे।
उद्बोधित उर के भाव बावरे,
पी लूँ पहले अपने अश्रु हमारे।

भुलाने को आये हैं ये सारे,
धर नये रूप चितवन के उसने।
आते – जाते हर इक मोड़ पर,
निज चित्त विश्वास को खोए हमने।

राहों पे लगते हैं इसलिए,
अपने भी साये पराये से।
और जलता है मेरा तन-मन,
पाकर आमंत्रण नयनों से।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

—————

यह कविता (बदरा को आमंत्रण।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख/दोहे सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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वेदना।

Kmsraj51 की कलम से…..

Pain | वेदना।

एक दिन ऐसा आएगा, हम तो चले जायेंगे।
कुछ को छोड़, सभी को याद बहुत आयेंगे।

ढूढ़ने वाले ढूंढते रहेंगे, पर हमें कहीं न ढूंढ पायेंगे।
ये मुराद कभी पूरी न होगी, कहीं भी न मिल पायेंगे।

मेरे सभी अजीज, अपनी दुनिया में मस्त रहेंगे।
हम किसी दूसरी दुनिया में खो जायेंगे।

कोई न रोक पायेगा, आने वाले आते रहेंगे।
जो आया इस जहां में, मुक़र्रर वक़्त पर जाते रहेंगे।

“भोला” का पथ सत्कर्म है, जीवन का यही मर्म है।
आना – जाना लगा रहेगा, यही कुदरत का क्रम है।

इससे मुक्ति मिल जायेगा, फिजूल वो भ्रम है।
भगवान के घर में, गुनाहगारों की शिनाख्त बाकी है।

थोड़ी इबादत राम, कृष्ण, चित्रगुप्त की कर लूं।
तू भी जा अब मस्जिद में, अज़ान तेरी बाकी है।

जाना हैं दोनों को भगवान के पास, तुझे भी मुझे भी।
गुज़ारिश है बन्दगी कर, जो साँसे बाकी है।

मिलना है ग़र प्रभु से, तो चलना है नेकी की राह पर।
आहत न हो कोई दिल, इसे अख़लाक़ कहते हैं।

मग फिरत के बाद, जन्नत मिल जाये।
इसे खुशकिस्मती, वो इत्तफाक कहते हैं।

♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150 / नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

—————

  • “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — अन्‍य जीवों की तरह मनुष्य के प्राण संकट में नहीं होते तभी यह जीवन प्रभु स्मरण और भजन के लिए अनुकूल है। पर जीवों की वेदना से भी बड़ी वेदना मानव जन्म में तब होती है जब हम प्रभु के बनने का सुअवसर भी गवां देते है फालतू के कार्यों की वजह से। मानव जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते है, कभी भी एक जैसा समय लम्बे समय तक नहीं रहता हैं।

—————

यह कविता (वेदना।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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बरखा तेरा बरसना।

Kmsraj51 की कलम से…..

Barakha Tera Barsana | बरखा तेरा बरसना।

कभी धूप, कभी उमस भरे मौसम को सहना,
ऐसे में बारिश का आना, वाह! क्या कहना।

रात भर से काला आसमां जी भरकर रोता रहा ,
धरती ने इसके इन विरह के आंसुओं को सहा।

बयान करना चाह रहे ये आंसू अपनी खुशी को,
वनस्पति धुलकर लहलहा कर दर्शाती हंसी को।

कभी बारिश धीमी~धीमी तो कभी तेज होती,
किसी को चैन की नींद तो कोई आंख रात-भर रोती।

खैर, भोर होते~होते मौसम साफ हो गया,
धरती~आसमां का कहा~सुना माफ हो गया।

बादलों की गड़गड़ाहट रातभर डराती रही,
कुछ आंखें इनकी आवाज सुन कराहती रही।

किसी को तो रात भर खुशी नही इनके बरसने की,
कुछ दुख सजा देता ऐसे मौसम में भी तरसने की।

सुबह का मौसम धुला~धुला सा प्रतीत हुआ,
आसमां ने खुश होकर जमीं को प्रेम से छुआ।

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — वर्षा ऋतु में कड़कड़ाती और चिलचिलाती धूप से निजात मिलता है। धरती पर पानी के मुख्य स्रोत जैसे नदियाँ, तालाब, झरने और कुँवों में वर्षा ऋतु के होने से पानी भर जाता है जिससे वातावरण में ठंडी हवाएँ चलने लगती है। वर्षा ऋतु के सुहाने मौसम के आने से गर्मी से इंसानों, जानवरों, जीव-जंतुओं एवं पेड़-पौधे सभी को राहत मिलती है। कड़कड़ाती गर्मी के बाद जून और जुलाई के महीने में वर्षा ऋतु का आगमन होता है और लोगों को गर्मी से काफी राहत मिलती है। वर्षा ऋतु एक बहुत ही सुहाना ऋतु है। वर्षा ऋतु आते ही लोगों में खासकर के किसानों में खुशियों का संचार हो जाता है। वर्षा ऋतु सिर्फ गर्मी से ही राहत नहीं देता है बल्कि यह खेती के लिए वरदान है।

—————

यह कविता (बरखा तेरा बरसना।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी (राष्ट्रीय नवाचारी शिक्षिका व अंतरराष्ट्रीय साहित्यकार) है। शिक्षा — डी•एड, बी•एड, एम•ए•। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

  • अनेक मंचों से राष्ट्रीय सम्मान।
  • इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज।
  • काव्य श्री सम्मान — 2023
  • “Most Inspiring Women Of The Earth“ – Award 2023
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  • Teacher’s Icon Award — 2023
  • राष्ट्रीय शिक्षा शिल्पी सम्मान — 2021
  • सावित्रीबाई फुले ग्लोबल अचीवर्स अवार्ड — 2022
  • राष्ट्र गौरव सम्मान — 2022
  • गुरु चाणक्य सम्मान 2022 {International Best Global Educator Award 2022, Educator of the Year 2022}
  • राष्ट्रीय गौरव शिक्षक सम्मान 2022 से सम्मानित।
  • अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ लेखिका व सर्वश्रेष्ठ कवयित्री – By — KMSRAJ51.COM
  • अंतरराष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान — 2022
  • राष्ट्रीय शिक्षक गौरव सम्मान — 2022
  • राष्ट्रीय स्त्री शक्ति सम्मान — 2022
  • राष्ट्रीय शक्ति संचेतना अवार्ड — 2022
  • साउथ एशिया टीचर एक्सीलेंस अवार्ड — 2022
  • 50 सांझा काव्य-संग्रहों में रचनाएँ प्रकाशित (राष्ट्रीय स्तर पर)।
  • 70 रचनाएँ व 11+ लेख और 1 लघु कथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित (KMSRAJ51.COM)। इनकी 6 कविताएं अब तक विश्व स्तर पर प्रथम और द्वितीय स्थान पा चुकी है, जिनके आधार पर इनको सर्वश्रेष्ठ कवयित्री व पर्यावरण प्रेमी का खिताब व वरिष्ठ लेखिका का खिताब की प्राप्ति हो चुकी है।
  • इनकी अनेक कविताएं व शिक्षाप्रद लेख विभिन्न प्रकार के पटल व पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे हैं।
  • 3 महीने में तीन पुस्तकें प्रकाशित हुए। जिसमें दो काव्य संग्रह “समर्पण भावों का” और “भाव मेरे सतरंगी” और एक लेख संग्रह “एक नजर इन पर भी” प्रकाशित हुए। एक शोध पत्र “आओं, लौट चले पुराने संस्कारों की ओर” प्रकाशित हुआ। इनके लेख और रचनाएं जन-मानस के पटल पर गहरी छाप छोड़ रहे हैं।

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आदिपुरुष।

Kmsraj51 की कलम से…..

Adipurush | आदिपुरुष।

कथा, पात्र, संवाद नहीं,
ना भाव भंगिमा दिखती है।
सौम्य सरल सीता मैया,
अर्धनग्न दशा में दिखती है।
क्या यही हनुमत की वाणी है?
क्या यही दशानन उस युग के?
क्या कर दिया रामायण को,
रे रावण तुम इस कलयुग के॥

मर्यादा पुरुषोत्तम को तुम,
शिष्टाचार रहित किया।
खून धर्म का कर तुमने,
संतों का खूब अहित किया।
निज स्वार्थ के खातिर सत्य को,
चले मिटाने सतयुग के।
क्या कर दिया रामायण को,
रे रावण तुम इस कलयुग के॥

हो अपराधी श्रीराम के,
क्षमा मांग लो सब होगा।
गर निकला तीर जो तरकस से तो,
निश्चित तेरा वध होगा।
कालनेमि क्यों बनने चले हो,
राघव के उस त्रेतायुग के।
क्या कर दिया रामायण को,
रे रावण तुम इस कलयुग के॥

♦ अमित प्रेमशंकर जी — एदला-सिमरिया, जिला–चतरा, झारखण्ड ♦

—————

Conclusion

  • “अमित प्रेमशंकर“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इजिस रामायण की कहानी को हम सब बचपन से सुनते आ रहे हैं उसका भद्दा मजाक आप फिल्म में देख पाएंगे। फिल्म में सबसे खराब हैं इसके डायलॉग। फिल्म में हनुमान जी भगवान राम का मैसेज लेकर लंका गए। मेघनाद उनकी पूछ में आग लगा कर पूछता है ‘जली!’ हनुमान जवाब देते हुए कहते हैं, ‘तेल तेरे बाप का, कपड़ा तेरे बाप का, और जलेगी भी तेरे बाप की’। इसके अलावा जब हनुमान लंका से वापस राम के पास पहुंचते हैं तो राम उनसे वहां के बारे में पूछते हैं। इसके जवाब में हनुमान कहते हैं- ‘बोल दिया, जो हमारी बहनों को हाथ लगाएंगे, उनकी लंका लगा देंगे।’

—————

यह कविता (आदिपुरुष।) “अमित प्रेमशंकर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। आपकी ज्यादातर कविताएं युवा पीढ़ी को जागृत करने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

नाम: अमित प्रेमशंकर
पिता: श्री द्वारिका प्रजापति

माता: श्रीमती रेखा देवी
पत्नी: श्रीमती संजू प्रेमशंकर

जन्मतिथि: १० मार्च १९९३
पता: ग्राम+पोस्ट – एदला
प्रखण्ड: सिमरिया
जिला: चतरा (झारखण्ड)
पिन: ८२५१०३

शिक्षा: स्नातक (हिंदी) विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग
सम्प्रति: कवि, गीतकार व ढोलक वादक।

प्रकाशित पुस्तकें: मन की धारा(एकल),आत्म सृजन, काव्य श्री, एक नई मधुशाला १, एक नई मधुशाला २, भावों के मोती, हमारी शान तिरंगा है व अक्षर पुरूष
प्रकाशित रचनाएं: देश के अलग-अलग पत्र पत्रिकाओं में लगभग दो सौ रचनाएं प्रकाशित व समय समय पर सामाचार पत्रों के माध्यम से पत्राचार।
विशेष: कविता “सीता माता सी कोई नहीं” तथा “आज राम जी आएंगे” महाराष्ट्र के वरिष्ठ साहित्यकार श्री ओ. सी. पटले द्वारा पोवारी भाषा में अनुवाद व दर्जनों हिन्दी, भोजपुरी गीत यूट्यूब पर मौजूद हैं जिसे अलग अलग गायक और गायिकाओं ने अपने स्वर से सजाया है।

प्राप्त सम्मान: काव्य श्री साहित्य सम्मान, आत्म सृजन साहित्य सम्मान, भावोन्नती साहित्य सम्मान, सरदार भगतसिंह काव्य लेखन सम्मान, सुमित्रानंदन पंत स्मृति सम्मान, साहित्य कर्नल सम्मान दो बार, रैदास साहित्य सम्मान,द फेस ऑफ इंडिया साहित्य सम्मान, राष्ट्र प्रेमी साहित्य सम्मान तथा दिल्ली साहित्य रत्न सहित अनेकों आनलाईन काव्य पाठ द्वारा ई-सम्मान पत्र शामिल है।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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