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Bhadro Ra Mahina | भाद्रो रा महीना।
सौणा ते बाद भाद्रो गया आई।
हुण भान्ति भान्ति रे तवाहर लैणे मनाई॥
सबणी ते पैहले राखड़िया रा तवाहर गया आई।
ता बैहणी अपणे भाई जो राखड़ी लैंईं पैहनाई॥
गूगे री मण्डलियां घरा घरा जांई आई।
गूगे री गाथा सुणाई कने सबणी जो निहाल करी जाईं॥
तेते बाद चनण षष्ठी जाईं आई।
कोई व्रत कराएं ता कोई व्रत छिद्री कने भट्टी लैं ख्वाई॥
ऐते बाद जन्माष्टमी रा ध्याड़ा जां आई।
दिना जो व्रत रखी ने राती जो कृष्ण महिमा लैं गाई॥
गूगा नौमीं जो गूगे री मण्डलियां फिरना करी देईं बंद।
गूगे जो रोट चढ़ाई कने रोट खाई कने लैं बड़ी नंद॥
फेरी अवांसा डुगांसा जाईं आई।
घोघड़ा रिया धारा देवतेया कने डैणी च खूब हुईं लड़ाई॥
दूज कने तृतीया रे ध्याड़े मुनियां कने जनाना व्रत करी लईं।
जनाना सदा सुहागण कने मुनियां बांके लाड़े जो पाणे री आस लगाई जाईं॥
पत्थर चौथा रा डर सबणी जो लगां।
झूठा लांछण नी लगो इदी डरा ते तयाड़े घरा आंदर रैहणा ही बांका लगां॥
हलावे बजौए री पूजा भी हुई जाईं।
हुण नौईं फसल बाहणे री तयारी भी हुई जाईं॥
सैरी रा तवाहर भी जां आईं।
नौईं लाड़िया हुण अपणे सौरया चली जाईं॥
♦ विनोद वर्मा जी / जिला – मंडी – हिमाचल प्रदेश ♦
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- “विनोद वर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इस कविता का सारांश है कि इसमें विभिन्न त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों का वर्णन किया गया है, जो भाद्रपद महीने में मनाए जाते हैं। कविता में राखी के त्योहार से लेकर जन्माष्टमी, गूगा नौमी, अवांसा डुगांसा, और सैरी जैसे त्योहारों का जिक्र किया गया है।
- राखी: बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं।
- गूगा नौमी: गूगा की मंडलियां घर-घर जाकर गाथाएं सुनाती हैं, और लोग गूगे के रोट चढ़ाकर प्रसाद ग्रहण करते हैं।
- जन्माष्टमी: लोग दिन में व्रत रखते हैं और रात में भगवान कृष्ण की महिमा गाते हैं।
- अवांसा डुगांसा: इस त्योहार में देवताओं के बीच युद्ध की कहानी सुनाई जाती है।
- सैरी: यह एक पारिवारिक त्योहार है, जिसमें नई बहुएं अपने ससुराल जाती हैं।
- कविता में इस महीने के त्योहारों और अनुष्ठानों के महत्व को दर्शाया गया है, जो समाज में रिश्तों और परंपराओं को मजबूत करते हैं।
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यह कविता (भाद्रो रा महीना।) “विनोद वर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम विनोद कुमार है, रचनाकार के रुप में विनोद वर्मा। माता का नाम श्री मती सत्या देवी और पिता का नाम श्री माघु राम है। पत्नी श्री मती प्रवीना कुमारी, बेटे सुशांत वर्मा, आयुष वर्मा। शिक्षा – बी. एस. सी., बी.एड., एम.काम., व्यवसाय – प्राध्यापक वाणिज्य, लेखन भाषाएँ – हिंदी, पहाड़ी तथा अंग्रेजी। लिखित रचनाएँ – कविता 20, लेख 08, पदभार – सहायक सचिव हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ मंडी हिमाचल प्रदेश।
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