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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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कोरोना पर कविता

दुहागन रोटी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ दुहागन रोटी। ♦

औरंगाबाद की पटरियों पर,
बिखरी रोटी आज शर्मिंदा है।
तार -तार है इज्जत उसकी,
खाने वाला ही न जिंदा है।

खून-पसीना बहा कर उसने,
मुश्किल से इसको पाया था।
क्षुधा नाशनी इस महासुंदरी से,
निवाला एक न खाया था।

पटरी पर थी बिखरी रोटी,
पटक रही थी अपने माथे।
जलमग्न नयन थे उस बेचारी के,
कहानी इश्क की बताते-बताते।

अपने बाबा को मेरे बारे,
गांव में सुना था उसने बतियाते।
फिदा हुआ था मुझ पर तब वह,
मेरे कदमों में बाबा थे शीश नमाते।

निकल पड़ा वह गांव छोड़कर,
शहर को मेरी तलाश में।
मैं पा के रहूंगा, उस महा प्रेयसी को,’
क्या, ताकत थी उसके विश्वास में?

वह ललचता रहा, मैं ललचाती रही,
वह भटकता गया, मैं भटकाती गई।
खूब थी खेली ठिठोली उससे,
मैं भी कितनी मदमाती रही?

मुझे पाने को देख सखी,
क्या-क्या पीड़ा न उसने झेली है?
शायद मेरे गुनाहों की सजा है,
आज पटरियों पर अकेली है।

न जाने क्यों सड़कों से डर कर,
पटरी पर वह आया था?
आज सरकार ने नचाया उसको,
जीवन भर मैंने नचाया था।

धूप – धार की होकर मैंने,
पीछा उससे करवाया था।
वह भी मोह में पड़कर मेरे,
गांव से शहर को आया था।

मुझे पाने की जद्दोजहद में,
उसने, खूब मेहनत से कमाया था।
एक से बढ़कर एक करतब,
दिखा कर, उसने मुझे रिझाया था।

मैं बंध चली थी उसके पल्लू में,
मेहनत का लोहा मुझसे मनवाया था।
चल दिए अब बिन भोगे मुझको,
क्यों मेरी जिंदगी में आया था?

बेवफा न कहना प्यारे मुझको,
मैंने कदम-कदम पर सताया था।
तेरे प्यार को हे प्रियतम प्यारे!
जी भर कर मैंने आजमाया था।

क्यों छोड़ दिया इसे हालत पर इसकी?
इसका जीवन क्या इतना सस्ता है?
वह रोटी है सिसक रही आज,
यह भी कैसी व्यवस्था है?

महबूब मेरे क्या मिलन हुआ यह?
देख रहा ये जमाना है।
किस्मत में मिलन था इतना ही शायद,
मौत तो महज एक बहाना है।

हो गई हूं अछूत सी अब मैं,
कोई मानुष न मुझको अब खाएगा।
कौन मिलेगा प्रीतम ऐसा?
जो तुझ सा मुझे कमाए गा।

तू जा प्यारे में जी लूंगी,
भूखा, चील-कौआ मुझे कोई नोचेगा।
है कौन सहारा, बेसहारा का अब?
जो मेरी इज्जत की इतनी सोचेगा।

आज मैं समझी प्रीतम-प्यारे,
सच्चा प्यार क्या होता है?
तू जिया मेरे लिए, मरा मेरे लिए,
मुझे पाने को हल तक जोता है।

बाकी तो खरीददार है सब,
चंद पैसा ही मोल मेरा होता है।
वे क्या जाने कीमत मेरी?
रोटी का मोल क्या होता है?

तेरी शहादत पर आज प्रिये,
मेरा जर्रा-जर्रा रोता है।
तेरा अरमान थी मैं, तेरा भगवान थी मैं,
मुझसे बढ़कर तेरा, और कोई न होता है।

खामोश है बिखरी रोटी बेचारी,
आंखों से अश्रुओं का सोता है।
किया प्रेम न जीवन में जिसने, वह क्या जाने?
मिलकर बिछड़ने का, दर्द क्या होता है?

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — मैं रोटी हूं, हर किसी को मुझे देखकर बहुत ही खुशी होती है क्योंकि मैं हर किसी की भूख मिटा देती हूं। चाहे गरीब हो, चाहे अमीर हो, चाहे बच्चे हो, बूढ़े हो, नौजवान हो सभी को सदैव ही मेरी जरूरत होती है। मैं दूसरों के काम आती हूं हर किसी की मैं मदद करती हूं, भूखे बेसहारा लोगों के चेहरे पर पलभर में मुझे देखकर मुस्कान आ जाती है। मेरे लिए ही सब अपना घर बार छोड़कर गांव से शहर को आते है, लेकिन उन्हें कहाँ पता था की कोरोना रुपी राक्षस, असुर, दैत्य आएगा और हमें (मजदूरों) रुलाएगा। हमें क्या पता था की हम एक एक रोटी के लिए मोहताज हो जायेंगे।

—————

यह कविता (दुहागन रोटी।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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त्रासदी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ त्रासदी। ♦

इस सदी की सुनकर त्रासदी,
नई नस्लें तो थरथर कांपेगी।
यह भी सच है, वे व्याधि की,
हर घटना का राज भी जांचेगी।

विश्व पटल पर जो है घटित हुआ आज,
कल को इतिहास वही तो बन जाएगा।
एक दूसरे देश का परदा फाश कर कर,
हर छुपाया राज भी तब सामने आएगा।

लोथ पे गिरती लोथों को देख देख,
मुलायम मोम सी जलती छाती है।
दारुण दंश देख दिल द्रवित न होवे,
वह इंसान नहीं खूनी खुराफाती है।

भव्य भवनों में ओ रहने वालो,
ये झुग्गियों के लोग भी अपने हैं।
जीने दो इत्मीनान से इनको भी,
इनके भी तो अपने कुछ सपने हैं।

जैविक युद्ध की सुगबुगाहट है या कि,
फिर कुदरत ने ही मचाई तबाही है?
शोध – चर्चाएं हैं विश्व में नित बड़ी बड़ी,
बन सकी न रोग की पक्की दवाई है।

पसीना चू – चू पड़ता है देखो तो,
भयभीत हो, होकर हर भालों से।
एक तो गुप्त यह व्याधि है व्यापी,
ऊपर से परेशानी दुगनी नकालों से।

श्वेत – ब्लैक और दो फंगस है आए अब,
कोरोना से कहां कोई कसर रही थी?
मानी कितनी वे बातें हमने अब तक, जो,
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हमसे कही थी।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – कोरोना काल के दौरान दुनिया भर में होने वाले उथल – पुथल, जान-माल की हानि को बखूबी दर्शाया है कविता के रूप में। विश्व पटल पर जो है घटित हुआ आज, कल को इतिहास वही तो बन जाएगा।। एक दूसरे देश का परदा फाश कर कर, हर छुपाया राज भी तब सामने आएगा।

—————

यह कविता (त्रासदी।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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जनता सकपकाई है।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ जनता सकपकाई है। ♦

बक्सर के गंगा घाट में बहती, लाशें देती गवाही है।
भारत में कोरोना द्वितीय ने, घनी मचाई तबाही है।

यह दुष्ट बीमारी दुनियां में, जाने कहां से आई है?
बेगुनाहों की जिन्दगियां, इसके आगोश में समाई है।

शमशानों में जगह नहीं, बिन जले ही लाशें बहाई है।
पानी में बहती लाशों को देख, जनता सकपकाई है।

गांव – गांव में है घुमा कोरोना, नंगा नाच नचाया है।
चुन चुन बदला ले रहा है, हमने इसका क्या खाया है?

जाति धर्म का भेद नहीं, ऊंच नीच का न कोई ख्याल।
बिन एस ओ पी के इससे बचे, किसकी ऐसी मजाल ?

सत्ता पक्ष के नथुने है फूले, विपक्ष ने मचाई धमाल है।
पक्ष – विपक्ष के इस झगड़े में, बेचारी जनता बेहाल है।

हस्पतालों में बिस्तर न, ऑक्सीजन की किल्लत भारी है।
हल्के में न लो इसको कोई भईया, यह खूनी महामारी है।

सौ सालों के अंतरालों में, सुना ऐसा कुछ न कुछ होता है।
काटता इन्सान फसले वही है, जैसा वह खेतों में बोता है।

भ्रष्टाचार और फरेबी, मकारी, जब नस नस में समाई है।
कुदरती तिलसम वाजिव है, बबुल में आमें तो न आई है।

खुद को खुदा की पदवियां, नेता – धर्मनेता जब जब देते हैं।
इतिहास गवाह है कुदरत के मालिक, सजा तब तब देते हैं।

आदमी ने खोई अदमियत सारी, इंसानियत का गला है रेता।
शैतानी फितरत में जी रहा है, यूं ही खुदा यह सिला न देता।

यूं ही न बहती लाशें गंगा घाट में, इंसानों की बेबस ढोरों सी।
काले जो लगे हैं करने अब करतूतें, आज फिरंगी गोरों सी।

अपनों का बैरी अपना बने, दुश्मनों की दुश्मनी तब बौनी है।
दौर -ए -नाजुक में हालात को समझो, राजनीति घिनौनी है।

उससे पहले कि कातिल हो जाए पवने, सावधानी जरूरी है।
इस गर्दिशे माहौल में, सेनेटाइजर, मास्क, दूरियां मजबूरी है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – कोरोना काल में आम जनता किस तरह से मर रही है, चारो तरफ सभी परेशान है इस कोरोना से, न जाने अभी क्या – क्या गुल खिलायेगा ये कोरोना। वर्तमान सरकार अपनी तरफ से हर संभव कोशिश कर रही है कोरोना को काबू करने के लिए। लेकिन सभी विरोधी पार्टी गन्दी राजनीती कर रही है, कोरोना पर और वैक्सीन पर। इनके गन्दी राजनीती से आम जनता मर रही है।

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यह लेख (भारतीय संस्कृति और पाश्चात्य संस्कृति का तुलनात्मक अध्ययन।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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ऐसा सोचा न था।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ ऐसा सोचा न था। ♦

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स्वतंत्रता की 73 वर्ष बीत जाने पर,
लोग मनमानी करने लगेंगे।
जीवन में सोचा नहीं था।

पढ़े लिखे भी अज्ञानी बने रहेंगे।
शिक्षा की इतनी व्यवस्था के बाद भी,
ऐसा कोई सोचा न था।

नाश विनाश सामने आया खड़ा हो।
स्वभाव के कारण जागरूक नहीं है।
कभी ऐसा सोचा न था।

बुढ़ापे तक वही सोच पुरानी रहेगी।
दुखी अज्ञानी मानव आगे नहीं आएगा।
अब तक ऐसा सोचा न था।

जीवन बचाने स्वास्थ्य कर्मी घर पहुंचे।
उन्हें देख दूर लोग भाग जाते हों।
ऐसा अब तक देखा ना था।

मानव का धर्म आचरण क्षीन हो जाएगा।
तमोगुण उसका बढ़ जाएगा।
ऐसा होगा सोचा ना था।

अधिकारों की केवल मांग करेगा।
कर्तव्य परायणता नहीं रखेगा।
ऐसा भी सोचा न था।

हठ पूर्वक उद्योग से वह कतराता।
मेल से होने वाली प्रवृत्ति अपनाता।
तमोगुण की अकर्मण्यता ने पाता।

गर सतगुण की ओर प्रवृत्ति बढ़ाता।
स्मृति सरलता विनम्र श्रद्धा लाता।
घमंड अकड़ रजोगुण न पाता।

मनुष्य यदि विवेकी निपुण हो जाता।
प्रलय काल में अपनी सोच बढाता।
कोरोना की वैक्सीन लगवाता।

पेट भर भोजन यहां से ही खाता।
कोरोना की वैक्सीन देख घबराता।
सुविधा के लिए आगे आ जाता।

जनता को अभी भी जगाना होगा।
नैतिकता का पाठ पढ़ाना होगा।
नियम का पालन करना होगा।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – क्या कभी किसी ने सोचा था की ऐसा भी ख़राब / बुरा समय आएगा, पढ़े लिखे भी अज्ञानी बने रहेंगे, लोग मनमानी करने लगेंगे। विनाश सामने आया खड़ा हो, स्वभाव के कारण जागरूक नहीं है। मानव का धर्म आचरण क्षीन हो जाएगा, तमोगुण उसका बढ़ जाएगा। कर्तव्य परायणता नहीं रखेगा अपने आप में, तमोगुण बढ़ता जायेगा। इंसान के अंदर इंसानियत नही बचेगा किसने ऐसा सोचा था।

—————

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यह कविता (ऐसा सोचा न था।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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