Kmsraj51 की कलम से…..
ϒ मैं क्या मेरी आरज़ू क्या। ϒ
मैं क्या मेरी आरज़ू क्या लाखों टूट गए यहाँ।
तू क्या तेरी जुस्तजू क्या लाखों छूट गए यहाँ।
चश्म-ए-हैराँ देख हाल पूँछ लेते हैं लोग मिरा।
क़रीबी मालूम थे हमें हम-नशीं लूट गए यहाँ।
फूलों की बस्ती में काँटों से तो न डरते थे हम।
सालों से हो रखे थे इकट्ठे ग़ुबार फूट गए यहाँ।
वक़्त के साथ बदल जाने दो ये मज़हबी रिश्ते।
बे-ख़लिश हो जियो जाने कितने रूठ गए यहाँ।
क़ाबिल-ए-इम्तिहाँ जान सब्र परखते हैं मिरा।
सख़्त मिज़ाज है ‘राहत’ वर्ना लाखों टूट गए यहाँ।
डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ – हैदराबाद, तेलंगाना ®
हम दिलसे आभारी है – डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ जी के, हिंदी में ग़ज़ल शेयर करने के लिए।
डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ जी के लिए मेरे विचार:
♣ “डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ जी” ने “मैं क्या मेरी आरज़ू क्या।…“ काे ग़ज़ल के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – इक – इक शब्द दिल की गहराइयों तक उतरते है। आपके लेखन की खासियत है की बिलकुल खुले मन से लिखते है, आपके लेख के हर एक शब्द दिल को छूने वाले होते है। हर एक शब्द अपने आप में एक पूर्ण सुझाव देता है, फिर चाहे वो नज़्म, गज़ल हो या कवितायें हो या अन्य लेख। जो भी इंसान इनके लेख को दिल से समझकर आत्मसात करेगा उसका जीवन धन्य हो जायेगा।
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Krishna Mohan Singh(KMS)
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