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जंगल पर कविता

जंगलों की बात।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ जंगलों की बात। ♦

आंधी तूफानों के गहन थपेड़ों में,
हमने झेली सदा से हर पीड़ा है।
हिले डुले और टूटे कभी बिखरे,
उठाया जीव संरक्षण का बीड़ा है।

हम धरती के वंशज धरती से उपजे,
कहां किसने हमको खुद से उपजाया है?
जीये सदा से अम्बर पिता की छत के नीचे,
पालती पोषती सदा से हमे हमारी जाया है।

न जाने क्यों नर नृशंस ने संघारा फिर हमको?
हमने आखिर उसका कब और क्या खाया है?
उल्टा उसने ही है हमको हमेशा लूटा खसोटा,
फल, छाया, सांसें ली लकड़ी से घर बनाया है।

अंधा मानुष नासमझी में जाने अनजाने ही,
क्यों मारता खुद के ही पांव में कुल्हाड़ी है?
अपने ही प्राणदाता को जो नर मारे काटे,
वह मंद बुद्धि है, न के कोई बड़ा खिलाड़ी है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — हम पेड़ों ने आंधी तूफानों के गहन थपेड़ों में, हमने झेली सदा से हर पीड़ा है। हिले डुले और टूटे कभी बिखरे भी उठाया जीव संरक्षण का बीड़ा है। वनों में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे, जड़ी-बूटियाँ, झाड़ियाँ आदि होते हैं। उनमें से कई औषधीय मूल्य प्रदान करते हैं। हमें वनों से विभिन्न प्रकार के लकड़ी के उत्पाद भी प्राप्त होते हैं। इसके अलावा, वे वायु में प्रदूषकों को हटाने में भी सहायक होते हैं, इस प्रकार वायु प्रदूषण को कम करने में वन अहम भूमिका निभाते हैं। फिर भी आज का मानव विकास के नाम पर वनों को सम्पूर्ण रूप से ख़त्म करता जा रहा है, आखिर कब समझेगा ये मानव की पेड़ों का हमारे जीवन व श्वास से गहरा तार जुड़ा है। आओ हम सब मिलकर ये संकल्प ले की प्रत्येक वर्ष एक बड़े पेड़ को जरूर लगाएंगे और उसका रख रखाव तब तक करेंगे जब तक वह अपना खुराक जमीं से खुद न लेने लगे।

—————

यह कविता (जंगलों की बात।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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