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“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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ज्ञान शक्ति

एक पाती : अपने आराध्य के नाम।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ एक पाती : अपने आराध्य के नाम। ♦

एक कवि की कल्पना, एक लेखक की उड़ान की कोई सीमा नहीं होती। इसलिए वह अपनी कल्पना में क्या सोचता है, किसका सृजन करता है इसके बारे में कई बार वो स्वयं भी नहीं जान पाता। इसलिए मैं अपने वादे के लिए किसी इंसान के बजाय उस सृष्टि के रचयिता से ही अपनी बात कहना चाहती हूं, क्योंकि मेरा सोचना थोड़ा अलग है कि क्यों ना हम अपनी इच्छाएं,अपनी आकांक्षाएं, अपना दु:ख, अपनी संवेदनाएं उस ईश्वर से ही साझा करें जो बदले में केवल शांति, सुकून, आलंबन और आशीर्वाद ही प्रदान करता है। ना कि वक्त आने पर हमारा ही मजाक उड़ा देता है जो कि इंसानी फितरत है।

• सर्वशक्तिमान ईश्वर कण-कण में विराजमान है। •

हम जानते हैं कि सर्वशक्तिमान ईश्वर कण-कण में विराजमान है। ईश्वर का साकार, साक्षात रुप है यह अथाह समुद्र, यह विशालकाय पर्वत श्रृंखला, यह अविचल, अविरल धारा, ये अनन्त क्षितिज यह सब उसी का ही तो प्रमाण है, और सबसे जीवंत प्रमाण तो हम स्वयं है कि जिस में इतना कुछ उस ईश्वर ने डाला है कि एक जीवन भी उसके बारे मे समझने के लिए कम है। यदि हम यह महसूस करें कि जब हम बहुत प्रसन्न होते हैं तो हमारा मन हिलोरे लेता है कि हम अपनी खुशी को अधिक से अधिक उसके साथ बैठे जो हमारी खुशी को दुगना करें तो इस अवस्था में प्रकृति हमारे साथ हमारी खुशी को दुगना कर के हमें लौटाती है।

• आपने कभी सागर की लहरों को देखा है? •

आपने कभी सागर की लहरों को देखा है? यदि हम खुश हैं तो वह और उफन- उफन कर हमारी खुशी में लहरा कर नाचने का एहसास कराती हैं और हमें यह बताती हैं कि देखो; ….. हम तुम्हारी खुशी से कितने प्रसन्न है।

इसके विपरीत यदि हम दुखी हैं, खिन्न है, अकेले हैं तो मानो बार-बार आकर हमें आलिंगन करते हुए सांत्वना प्रदान करती हैं कि….. कोई बात नहीं यही दुनियां है, ये इसी तरह ही चलती है। मेरे (समुद्र के) मेरे पानी को ही देखो न…. न जाने कितने के आंसुओं को पी कर ही नमकीन हुआ है। इसलिए धैर्य रखो…… सब ठीक हो जाएगा… और थोड़ी देर में ही हम इन लहरों का सानिध्य पाकर अपने आप को शांत पाते हैं।

आप कितने ही लोगों के बारे में जानते होंगे जो दोनों ही अवस्थाओं में प्रकृति के सानिध्य में रहना पसंद करते हैं क्योंकि एक ईश्वर ही सत्य है, प्रामाणिक है, आदि अनंत है, यह हम सबका है और यह बहुत बड़ी विडंबना है कि हम सब ही उसके ना आज तक हुए हैं ना भविष्य में हो सकेंगे, क्योंकि पूर्ण समर्पण जिन्होंने भी किया है वह बहुत कम है।

• कुछ लोग ईश्वरीय सत्ता को मानते ही नहीं •

कुछ लोग ईश्वरीय सत्ता को मानते ही नहीं और कुछ ऐसे हैं जो अपने जन्म, अपनी क्षमताओं, को अपनी उपलब्धियों को केवल अपने से ही संबंधित मानते हैं और इसका श्रेय केवल स्वयं को देते हैं। इसमें उन्हें किसी का सहयोग, किसी का आशीर्वाद, किसी की तपस्या, किसी का देवत्व नजर ही नहीं आता है।
खैर… जाने दो।

यहां बात सिर्फ मेरी और मेरे परम मित्र ईश्वर की है। जहां वह मेरे इतने निकट है कि मैं उनसे अधिकार से भी बहुत कुछ कह सकती हूं। वह मेरे अपने हैं जिनसे लिपट कर मैं रो सकती हूं। जिनको मैं अपने आसपास महसूस कर सकती हूं। यह एक भाव है, एक पागलपन है जिसे समझने के लिए उच्च कोटि की संवेदना, सुकोमल हृदय, पवित्र भावनाएं, निष्ठा, भक्ति और समर्पण चाहिए।
..… तो मैं अपनी बात कहना चाहती हूं अपने परम मित्र ईश्वर से कि सुनो; तुम करो वादा ….…

तुम तो सर्वशक्तिमान हो, तो आज मुझसे यह वादा करो कि तुम जब भी नई सृष्टि की रचना करो तो उसमें इंसान को इतना ज़हरीला ना बनाना जितना वह बन चुका है। तुम वादा करो मुझसे कि ऐसे इंसानों को इस धरती पर जन्म ही नहीं दोगे जो केवल स्वार्थी हैं, केवल अपने ही बातें करते हैं, अपने ही कामों के प्रति सचेत हैं, आत्म प्रशंसा के अतिरिक्त उन्हें कुछ आता ही नहीं। वे इतने निष्ठुर हैं कि किसी इंसान की भावनाएं, उसकी सेवा, उसकी निष्ठा, उसका भोलापन, उसकी निश्चल संवेदनाओं को एक पल में कुचल कर रख देते हैं वह भी इतने नुकीले कीलों से कि लहूलुहान कर के रख देते हैं।
तुम वादा करो….. मुझसे अपनी इस नई सृष्टि में उन इंसानों को जन्म नहीं दोगे जो दरिंदे हैं, छोटी बच्चियों को नोच खाते हैं, विक्षिप्त मानसिकता के शिकार हैं।

• तुम वादा करो…… •

तुम वादा करो….. अपनी नई दुनिया में उन लोगों को जगह नहीं दोगे तो अपनी वासना के लिए, क्षणिक शारीरिक आनंद के लिए अपनी संतान को प्लास्टिक की थैली में जिंदा ही फेंक देते हैं। तुम्हारी इस अनूठी, अप्रितम, अतुलनीय सृजन शक्ति का इतना घिनौना रूप सामने लाते हैं। एक जीव को, एक जीवन को इस दुनिया में लाकर कुत्तों के खाने के हवाले कर देते हैं। कूड़े के ढेर में तुम्हारे ही स्वरूप को फेंक देते हैं, क्योंकि बच्चे तो साक्षात भगवान का ही स्वरूप होते हैं। अपने जिगर के टुकड़े को स्वयं से ही दूर कैसे कर लेते हैं ये लोग?
तुम वादा करो मुझसे….. अपनी इस नई दुनिया में कहीं भी धोखा, फरेब नहीं होगा। इंसान को इंसान समझा जाएगा क्योंकि आज के हालात तो ऐसे हैं कि….

“कहीं गीता में ज्ञान नहीं मिलता,
कहीं कुरान में ईमान नहीं मिलता,
अफसोस तो है कि इस दुनियां में
इंसान को,
इंसान में,
इंसान नहीं मिलता”।

उस दुनियां में जहां रिश्तों की, भावनाओं की कद्र होगी। जहां कान खजूरे की टांगों की तरह उतने ही लोगों के दंश नहीं होंगे, क्योंकि सांप और बिच्छू के डंक और जहर से तो बचा जा सकता है क्योंकि उनका ज़हर दिखाई देता है परंतु इंसानी ज़हर आत्मा को छलनी कर देता है। मैं बहुत परेशान हूं तुम्हारी इस दुनियां से जहां इतना पाप, इतना धोखा, इतना छल भरा हुआ है कि हिंसक जानवरों से तो बचा जा सकता है परंतु जो इंसानों का ही शिकार करें उनसे कैसे बचा जाए? तुम ही बताओ …..

अब तुम जो कहोगे मैं जानती हूं ……
तुम कहोगे कि मैंने तो यह सृष्टि बहुत सुंदर, निर्मल, निश्चल ही बनाई थी। परंतु तुम इंसानों ने ही इसे अपने कर्मों के द्वारा ऐसा बनाया है। जहां मेरा कीर्तन, मेरा नाम लेकर कितने गलत काम किए जाते हैं। मुझे ‘बनाते’ हो, मुझे ही सजाकर बाजार में बेचते हो, भला कौन ऐसा है जो मुझे ‘बना’ सके? मेरा ‘निर्माण’ कर सके? मेरी बोली लगा सके? और मेरी कीमत में भी मोल – भाव करते हो।

• मैं तो केवल श्रद्धा, भक्ति, भाव और प्रेम से ही बिक जाता हूं। •

किसमें इतनी हिम्मत है कि मुझे पैसों में खरीद सके ? अरे मैं तो केवल श्रद्धा, भक्ति, भाव और प्रेम से ही बिक जाता हूं। परंतु इन सब केआभाव में तुम कलयुगी मानवों ने मेरा कितना मजाक उड़ाया है?…… तुम अपराधी होकर भी मेरा स्वरूप होने की घोषणा करते हो…….. और स्वयं भगवान होने के दावे करते हो……. क्या मैं ऐसा हूं? ……. तुम मेरी शक्तियों का इतना दुरुपयोग करते हो, मेरा कितना दोहन करते हो। मुझ पर पत्थर फेंकते हो। परंतु मैं तो फिर भी तुम्हें मधुर फल ही देता हूं, और क्या – क्या बताऊं तुम्हें। यदि मैं बोलने पर आया तो तुम कोई भी नहीं सुन पाओगे …….।
इसलिए सिर्फ इतना ही कि यह सब तुम्हारे कर्मों का फल है और इस धरती को तुमने ही ऐसा बनाया है, मैंने नहीं।

मैं जानती हूं तुमने जो कहा है, सब सत्य है। पर मेरे परम मित्र, मेरे आधार, मेरे आराध्य…. इसलिए इतना होने के बाद भी तो सिर्फ तुमसे….. और सिर्फ तुमसे ही तो यह कह सकती हूं कि अगली सृष्टि में इंसान बनाना ही नहीं क्योंकि केवल वही ऐसे हैं जो सब दूषित करते हैं। मैं यह भी जानती हूं कि बहुत से अच्छे लोग भी हैं जो अपना जीवन मानवता, वैश्विक मूल्यों पर, प्रकृति प्रेम, भाईचारे पर ही, न्यौछावर कर देते हैं। पर इनकी संख्या बहुत कम है क्योंकि यही तो पृथ्वी की धुरी कहे जा सकते हैं। तभी तो पृथ्वी निराधार, निरंतर घूम रही है।
पर तुम वादा करो….. यदि ऐसे ही दुनिया बनाओगे तो ठीक है वरना फिर उसमें भी यही सब व्याप्त हो जाएगा और जितनी तकलीफ मुझे हो रही है उससे ज्यादा तुम्हें होगी। पर तुम तो बर्दाश्त कर लोगे पर शायद मैं ना कर पाऊं…. क्योंकि मैं थक चुकी हूं दोगले इंसानों से, इस नकली हंसी से, इस झूठी शख्सियतों से।
मैं नहीं चाहती इस दुनिया में रहना……

तुम वादा करो मुझसे…. मुझे अपने साथ ही रखोगे, अपने पास ही रखोगे, जब भी मैं आऊंगी तुम्हारे पास मुझे अपनी बाहों में भर कर अपने अनंत वक्षस्थल से जुदा मत करना। मुझे अपने पास ही रखना और नई दुनियां में इंसान मत बनाना और बनाना तुम्हारी मजबूरी हो तो कृपया मुझे इंसान नहीं बनाना। कुछ भी बनाना पर इंसान नहीं।

• मीरा की तरह…… •

नहीं झेल पाऊंगी दोबारा से यह सब। मैं टूट जाऊंगी, बिखर जाऊंगी। तुम तो सब समझते हो ना….. तुम तो मेरे अपने हो ना….. फिर तुम ऐसा नहीं करना….. तुम करो वादा कि मुझे फिर छलने के लिए नहीं छोड़ोगे। खुश रखने के झूठे वादे करने वालों से तुम मुझे बचाओगे। तुम अपने पास ही मुझे रखना… वहीं जहां झूठ फरेब, धोखे यह सब ना हो।

जहां अनंत, अगाध प्रेम हो…. निष्कपटता हो….. निश्छलता हो….. मासूमियत हो….. भावनाएं हो…..आलिंगन हो….. स्पंदन हो…. खुशी हो…. आत्मा हो….. चेतना हो……. स्पर्श हो…. समर्पण हो….. भाव हो….. एकैक्य हो….. सरलता हो…… सहजता हो……साम्य हो…… अनंतता हो….. और वो सब सिर्फ तुम्हारे पास है….. तुम्हारे साथ है….. इसलिए तुम करो वादा .. कि……

बस मीरा की तरह तुम में ही समा जाऊं….. तुम में खो कर, तुमको ही पा जाऊं….
बस तुम करो वादा…. तुम करो वादा……

इन्ही शुभकामनाओं के साथ — शुभमस्तु।

♦ डॉ विदुषी शर्मा जी – नई दिल्ली ♦

—————

  • ” लेखिका डॉ विदुषी शर्मा जी“ ने अपने इस लेख से, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है — इस पृथ्वी पर सबसे ज्यादा अगर गंदगी किसी प्राणी ने किया है तो वो प्राणी इंसान ही है। चाहे बात प्रकृति को गन्दा करने की हो या अन्य गंदगी की वो सब इंसान ने ही किया है। पूरी पृथ्वी को नर्क बना दिया है इंसानो ने। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार के वशीभूत हो, विकर्म पर विकर्म करता चला जा रहा है आज का इंसान। सत्य व अच्छे कार्यों से दूर होता जा रहा है। अभी भी समय है तू संभल जा इंसान वर्ना सिर्फ पछताता रह जायेगा बाकि बचे हुए जीवन भर। तुम वादा करो मुझसे…. मुझे अपने साथ ही रखोगे, अपने पास ही रखोगे, जब भी मैं आऊंगी तुम्हारे पास मुझे अपनी बाहों में भर कर अपने अनंत वक्षस्थल से जुदा मत करना। मुझे अपने पास ही रखना और नई दुनियां में इंसान मत बनाना और बनाना तुम्हारी मजबूरी हो तो कृपया मुझे इंसान नहीं बनाना। कुछ भी बनाना पर इंसान नहीं।

—————

यह लेख (एक पाती : अपने आराध्य के नाम।) “डॉ विदुषी शर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख / कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम डॉ विदुषी शर्मा, (वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर) है। अकादमिक काउंसलर, IGNOU OSD (Officer on Special Duty), NIOS (National Institute of Open Schooling) विशेषज्ञ, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।

ग्रंथानुक्रमणिका —

  1. डॉ राधेश्याम द्विवेदी — भारतीय संस्कृति।
  2. प्राचीन भारत की सभ्यता और संस्कृति — दामोदर धर्मानंद कोसांबी।
  3. आधुनिक भारत — सुमित सरकार।
  4. प्राचीन भारत — प्रशांत गौरव।
  5. प्राचीन भारत — राधा कुमुद मुखर्जी।
  6. सभ्यता, संस्कृति, विज्ञान और आध्यात्मिक प्रगति — श्री आनंदमूर्ति।
  7. भारतीय मूल्य एवं सभ्यता तथा संस्कृति — स्वामी अवधेशानंद गिरी (प्रवचन)।
  8. नवभारत टाइम्स — स्पीकिंग ट्री।
  9. इंटरनेट साइट्स।

ज़रूर पढ़ें — साहित्य समाज और संस्कृति।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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रामायण और जीवन मूल्य।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ रामायण और जीवन मूल्य। ♦

राम कथा में वैश्विक मूल्य।

भारतवर्ष में सत्य सनातन धर्म की पहचान है रामायण। युगों – युगों से इस धरा पर श्री रामचंद्र जी का नाम सदैव ही लिया जाता रहा है और आने वाले युगों तक भी लिया जाता रहेगा क्योंकि —

“कलयुग केवल नाम अधारा
सुमिर सुमिर नर उतरहीं पारा”॥

यह चौपाई केवल एक उदाहरण ही नहीं है अपितु इसमें सोलह आने सही बात कही गई है। राम कथा और रामायण ऐसे विषय हैं जिन पर कितने ही शोध हो चुके हैं, हो रहे हैं और आगे भी होते ही रहेंगे क्योंकि हमारे ऋषि – मुनियों द्वारा जो भी ग्रंथ लिखे गए हैं वह इतने सत्य, इतने प्रामाणिक और इतने प्रासंगिक है, इतने सार्वकालिक हैं कि उन्हें जिस भी युग में, जिस भी काल में पढ़ा जाएगा या पढ़ा जाता रहा है उनमें से कुछ नए तथ्य ही निकल कर सामने आते हैं।

जीवंत रूप में — रामायण व रामचरितमानस का पाठ।

वह एक ऐसे अथाह सागर के समान है जिसमें मंथन करने पर केवल अमृत ही प्राप्त होता है और यह हमारी निष्ठा है, परिश्रम है, साधना है, श्रद्धा है, विश्वास है, आस्था है, भक्ति है, धर्म है कि हम उस में से कितना अमृत निकाल पाते हैं। राम कथा और कृष्ण कथा भारतवर्ष में सदैव ही चलती रहती है। यह इस बात का जीवंत उदाहरण है कि वे जीवंत रूप में इन कथाओं के माध्यम से प्रत्येक भारतवासी के हृदय में निवास करते हैं। वरना हर साल वही रामायण हर साल वही कथा हर समय वही रामचरितमानस का गान ….. फिर भी लोग सुनते हैं, समझते हैं, भावविभोर हो जाते हैं, क्यों ?

हिंदू धर्म में अभिवादन का एक स्वरूप ‘राम-राम’।

यह इसलिए कि इन कथाओं के माध्यम से हम सदैव ही उनके चरित्र का स्मरण करते हैं। उन्हें अपने पास समझते हैं, मानते हैं, उनकी भक्ति में लीन हो जाते हैं, नतमस्तक होते हैं। यह हमारे सत्यता का प्रमाण है और प्रभु भक्ति का एक सरल उपाय है। हिंदू धर्म में अभिवादन का एक स्वरूप ‘राम-राम’ भी कहा जाता है।

ऐसा क्यों इसके पीछे भी एक वैज्ञानिक कारण है। जितने भी परंपराएं, रीति रिवाज,16 संस्कार हमारे सत्य सनातन धर्म में बनाए गए हैं उन सब के पीछे वैज्ञानिक कारण उपलब्ध है। हमारे ऋषि मुनि बहुत ही दूर दृष्टा थे। उन्होंने आस्था और विश्वास को वैज्ञानिकता को धर्म के साथ जोड़ दिया ताकि लोग इनका प्रयोग करने में थोड़ा सा भय भी समझे ताकि यह धर्म उन्हें हर प्रकार के विकारों से दूर रखें।

और रामायण में भी कहा गया है कि —

‘भय बिन होय न प्रीति’॥

रामचरितमानस के कुछ अद्वितीय उदाहरण।

श्री रामचरित मानस में शिव भक्त श्री रावण के मन की बात जो उन्होंने न केवल स्वयं के मोक्ष के लिए सोची अपितु सारी राक्षस जाति के शुभ कल्याण के लिए भी इस पर विचार किया।

यथा …

सुर रंजन भंजन महि भारा। जौं भगवंत लीन्ह अवतारा॥
तौ मैं जाइ बैरु हठि करऊँ। प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊँ॥

भावार्थ: रावण ने विचार किया कि देवताओं को आनंद देने वाले और पृथ्वी का भार हरण करने वाले भगवान ने ही यदि अवतार लिया है, तो मैं जाकर उनसे हठपूर्वक वैर करूँगा और प्रभु के बाण (के आघात) से प्राण छोड़कर भवसागर से तर जाऊँगा॥

मानस प्रेमी ही जान पायेगें कि तुलसीदास जी ने कितना परिश्रम किया होगा, इस प्रस्तुति को संकलित करने में, हम कलयुगी जीव केवल इन्हें पढ़कर ही अपना जीवन सफल कर सकते हैं क्योंकि इन सब में “राम” है और जहाँ “राम” हैं वहां प्रेम है, भक्ति है, समर्पण है, विश्वास है, श्रद्धा है, त्याग है, मर्यादा है, करूणा है, और जब इतने सकारात्मक गुण हमारे जीवन में एक साथ आ जाते हैं तो फिर वह जीवन वास्तव में ही सार्थक हो जाता है क्योंकि इन सब का किसी के भी जीवन में आना एक विशुद्ध चरित्र को जन्म देता है, यानी किसी भी मनुष्य के जीवन में यह सब गुण जब आ जाते हैं तो वह चरित्र निश्चल, विनम्र, और विशुद्ध, आत्मीय तथा प्रभु के सामिप्य को प्राप्त करने वाला हो जाता है, और कहते भी है ना —

‘राम से बड़ा राम का नाम’ और जहां “राम” हैं वहां सब कुछ है।

इसलिए यदि इन चौपाइयों के अर्थ हमें ना भी समझ में आए तो केवल पढ़ने भर से हमारे जीवन का उद्धार संभव है आवश्यकता है तो केवल विश्वास की, आस्था की, भक्ति की, प्रेम की और समर्पण की।

रामचरितमानस* की चौपाइयों में ऐसी क्षमता है कि इन चौपाइयों के जप से ही मनुष्य बड़े से बड़े संकट से भी मुक्त हो जाता है। जितना सरल राम का नाम है उतना ही सरल उनका भजन है उनका स्मरण है। इन मंत्रो का जीवन में प्रयोग करने से जीवन में हर प्रकार से सुख – समृद्धि आती ही है। इसमें कोई भी संशय नहीं है क्योंकि “राम” का नाम सर्वकालिक TIMELESS है।

1. रक्षा के लिए —
मामभिरक्षक रघुकुल नायक ।
घृत वर चाप रुचिर कर सायक ॥

2. विपत्ति दूर करने के लिए —
राजिव नयन धरे धनु सायक ।
भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ॥

3. सहायता के लिए —
मोरे हित हरि सम नहि कोऊ ।
एहि अवसर सहाय सोई होऊ ॥

4. सब काम बनाने के लिए —
वंदौ बाल रुप सोई रामू ।
सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ॥

5. वश मे करने के लिए —
सुमिर पवन सुत पावन नामू ।
अपने वश कर राखे राम ॥

6. संकट से बचने के लिए —
दीन दयालु विरद संभारी ।
हरहु नाथ मम संकट भारी ॥

7. विघ्न विनाश के लिए —
सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही ।
राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ॥

8. रोग विनाश के लिए —
राम कृपा नाशहि सव रोगा ।
जो यहि भाँति बनहि संयोगा ॥

9. ज्वार ताप दूर करने के लिए —
दैहिक दैविक भोतिक तापा ।
राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ॥

10. दुःख नाश के लिए —
राम भक्ति मणि उर बस जाके ।
दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ॥

11. खोई चीज पाने के लिए —
गई बहोर गरीब नेवाजू ।
सरल सबल साहिब रघुराजू ॥

12. अनुराग बढाने के लिए —
सीता राम चरण रत मोरे ।
अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ॥

13. घर मे सुख लाने के लिए —
जै सकाम नर सुनहि जे गावहि ।
सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ॥

14. सुधार करने के लिए —
मोहि सुधारहि सोई सब भाँती ।
जासु कृपा नहि कृपा अघाती ॥

15. विद्या पाने के लिए —
गुरू गृह पढन गए रघुराई ।
अल्प काल विधा सब आई ॥

16. सरस्वती निवास के लिए —
जेहि पर कृपा करहि जन जानी ।
कवि उर अजिर नचावहि बानी ॥

17. निर्मल बुद्धि के लिए —
ताके युग पद कमल मनाऊँ ।
जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ॥

18. मोह नाश के लिए —
होय विवेक मोह भ्रम भागा ।
तब रघुनाथ चरण अनुरागा ॥

19. प्रेम बढाने के लिए —
सब नर करहिं परस्पर प्रीती ।
चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ॥

20. प्रीति बढाने के लिए —
बैर न कर काह सन कोई ।
जासन बैर प्रीति कर सोई ॥

21. सुख प्रप्ति के लिए —
अनुजन संयुत भोजन करही ।
देखि सकल जननी सुख भरहीं ॥

22. भाई का प्रेम पाने के लिए —
सेवाहि सानुकूल सब भाई ।
राम चरण रति अति अधिकाई ॥

23. बैर दूर करने के लिए —
बैर न कर काहू सन कोई ।
राम प्रताप विषमता खोई ॥

24. मेल कराने के लिए —
गरल सुधा रिपु करही मिलाई ।
गोपद सिंधु अनल सितलाई ॥

25. शत्रु नाश के लिए —
जाके सुमिरन ते रिपु नासा ।
नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ॥

26. रोजगार पाने के लिए —
विश्व भरण पोषण करि जोई ।
ताकर नाम भरत अस होई ॥

27. इच्छा पूरी करने के लिए —
राम सदा सेवक रूचि राखी ।
वेद पुराण साधु सुर साखी ॥

28. पाप विनाश के लिए —
पापी जाकर नाम सुमिरहीं ।
अति अपार भव भवसागर तरहीं ॥

29. अल्प मृत्यु न होने के लिए —
अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा ।
सब सुन्दर सब निरूज शरीरा ॥

30. दरिद्रता दूर के लिए —
नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना ।
नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना ॥

31. प्रभु दर्शन पाने के लिए —
अतिशय प्रीति देख रघुवीरा ।
प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ॥

32. शोक दूर करने के लिए —
नयन बन्त रघुपतहिं बिलोकी ।
आए जन्म फल होहिं विशोकी ॥

33. क्षमा माँगने के लिए —
अनुचित बहुत कहहूँ अज्ञाता ।
क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता ॥

श्री राम कथा अद्भुत है, अनोखी है, सुंदर है, रसिक है। इसके बारे में किसी कवि ने निम्न पंक्तियां कही है जो सर्वथा उचित जान पड़ती है —

ये है राम कथा, ये है राम कथा,
इसे पढ़ कर मिट जाती है,
जीवन की हर व्यथा।
ये है राम कथा, ये है राम कथा॥

श्री रामचरितमानस और नीति शिक्षा।

तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित मानस नीति – शिक्षा का एक महत्मपूर्ण ग्रंथ है। इसमें बताई गई कई बातें और नीतियां मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी मानी जाती हैं, जिनका पालन करके मनुष्य कई दु:खों और परेशानियों से बच सकता है।

रामचरित मानस में चार ऐसी महिलाओं के बारे में बताया गया है, जिनका सम्मान हर हाल में करना ही चाहिए। इन चार का अपमान करने वाले या इन पर बुरी नजर डालने वाले मनुष्य महापापी होते हैं। ऐसे मनुष्य को जीवनभर किसी न किसी तरह से दुख भोगने पड़ते ही है।

“अनुज बधू भगिनी सुत नारी, सुनु सठ कन्या सम ए चारी ।
इन्हिह कुदृष्टि बिलोकइ जोई, ताहि बधें कछु पाप न होई” ॥

अर्थात: छोटे भाई की पत्नी, बहन, पुत्र की पत्नी और अपनी पुत्री – ये चारों एक समान होती हैं। इन पर बुरी नजह डालने वाले या इनका सम्मान न करने वाले को मारने से कोई पाप नहीं लगता। वास्तव में रामचरितमानस में कोई भी उक्ति ऐसी नहीं है, कोई भी चौपाई ऐसी नहीं है जिसमें कोई शिक्षा ना हो। केवल आवश्यकता है तो हमें इनका अनुकरण करने की।

हमें निज धर्म पर चलना सिखाती रोज रामायण ।
सदा शुभ आचरण करना सिखाती रोज रामायण ॥
जिन्हें संसार सागर से उतरकर पार जाना है ।
उन्हें सुख से किनारे पर लगाती रोज रामायण ॥

कहीं छवि विष्णु की बाकी, कही शंकर की है झांकी,
हृदयानंद झूले पर झूलाती रोज रामायण ।
सरल कविता की कुंजों में बना मंदिर है हिंदी का,
जहां प्रभु प्रेम का दर्शन कराती रोज रामायण॥

कभी वेदों के सागर में, कभी गीता की गंगा में,
सभी रस बिंदुओं को मन में मिलाती रोज रामायण ॥

कही त्याग, कही प्रेम ,कहीं समर्पण का भाव है,
भक्ति, प्रेम का संदेश जन – जन को पहुंचाती रोज रामायण।
सत्य, निष्ठा ,मर्यादा का अनुपम संदेश है ये,
भारत की गरिमा में चार चांद लगाती रोज रामायण” ॥

यह भी कहा जाता है कि —

“जिन हिंदू परिवारों में रामचरितमानस की चौपाई के स्वर नहीं होते उन घरों में राग, शोक, दुख, दरिद्रता व क्लेश सैदेव चारपाई बिछाए स्थाई रूप से निवास करते हैं”।

अतः श्री रामचरितमानस का पाठ अत्यंत कल्याणकारी है। इसे हमे अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए।

निष्कर्ष — Conclusion

निष्कर्षत: यही कहा जा सकता है कि श्रीरामचरितमानस एक ऐसा महाकाव्य है जो प्रत्येक भारतीय के हृदय में बसा है। इसके नियम, मूल्य, मान्यताएं, रीति रिवाज हमारी रक्त धारा के साथ मिलकर हमारे शरीर में अनवरत चलाएमान है, गतिमान है, और जो रक्त धारा है, वह जीवनदायिनी शक्ति है, आधार है वह तो बहुमूल्य होगी ही।

श्री रामचरितमानस के बिना भारत की पहचान संभव नहीं हो सकती।
यह सर्वसाधारण भारतीय का अपना महाकाव्य है।

” सकल सुमंगल दायक, रघुनायक गुण गान ।
सादर सुनहिं ते तरही भव, सिंधु बिना जल जान” ॥
(सुंदरकांड, दोहा- 60)

अर्थात: रघुनायक श्री राम जी का गुणगान अति मंगलकारी है जो नर इसे आदर के साथ सुनते हैं, इस संसार सागर से पार उतर जाते हैं।

रामचरितमानस एक वृहद ग्रंथ है। इसको शब्द सीमा में बांधना असंभव कृत्य है, क्योंकि स्वयं देवताओं ने भी जिसके बारे में नेति – नेति कहा हो, तो हम जैसे अल्प बुद्धि व्यक्ति इसका वर्णन करने में कैसे समर्थ हो सकते हैं। इसका कथानक, इसकी विशालता, इसकी विविधता को समझ पाना हमारे बस का काम नहीं है। फिर भी एक तुच्छ प्रयास है क्योंकि …

“जाति पाती पूछे नहीं कोई ।
हरि को भजे सो हरि का होई “॥

अतः हमने भी भक्ति भावना को समाहित करते हुए श्री रामचरितमानस के ऊपर अपने विचार व्यक्त किए है क्योंकि यह प्राकृतिक है, जहां श्री रामचरितमानस का नाम होगा वहां भक्ति अवश्य होगी।

अतः अंत में बस यही कहना चाहूंगी कि श्रीरामचरितमानस का जो स्थान भारतवर्ष में है या पूरे विश्व में है वो ऐसे ही आदरणीय बना रहे, और आगे भी यह ग्रंथ हमारे आने वाली पीढ़ियों के लिए भक्ति, संस्कार, चेतना, नैतिकता, मानवीय मूल्यों का संरक्षण, संवर्धन करता रहे इसी मंगल कामना के साथ — “जय श्री राम”।

1 — आचार्य तुलसीदास: रामचरित मानस

इन्ही शुभकामनाओं के साथ — शुभमस्तु।

♦ डॉ विदुषी शर्मा जी – नई दिल्ली ♦

—————

  • ” लेखिका डॉ विदुषी शर्मा जी“ ने अपने इस लेख से, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है — राम कथा (रामायण) – मंथन करने पर केवल अमृत ही प्राप्त होता है और यह हमारी निष्ठा है, परिश्रम है, साधना है, श्रद्धा है, विश्वास है, आस्था है, भक्ति है, धर्म है कि हम उस में से कितना अमृत निकाल पाते हैं।

—————

यह लेख (रामायण और जीवन मूल्य।) “डॉ विदुषी शर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख / कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम डॉ विदुषी शर्मा, (वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर) है। अकादमिक काउंसलर, IGNOU OSD (Officer on Special Duty), NIOS (National Institute of Open Schooling) विशेषज्ञ, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।

ग्रंथानुक्रमणिका —

  1. डॉ राधेश्याम द्विवेदी — भारतीय संस्कृति।
  2. प्राचीन भारत की सभ्यता और संस्कृति — दामोदर धर्मानंद कोसांबी।
  3. आधुनिक भारत — सुमित सरकार।
  4. प्राचीन भारत — प्रशांत गौरव।
  5. प्राचीन भारत — राधा कुमुद मुखर्जी।
  6. सभ्यता, संस्कृति, विज्ञान और आध्यात्मिक प्रगति — श्री आनंदमूर्ति।
  7. भारतीय मूल्य एवं सभ्यता तथा संस्कृति — स्वामी अवधेशानंद गिरी (प्रवचन)।
  8. नवभारत टाइम्स — स्पीकिंग ट्री।
  9. इंटरनेट साइट्स।

ज़रूर पढ़ें — साहित्य समाज और संस्कृति।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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नारी : इच्छा शक्ति ज्ञान शक्ति कर्म शक्ति।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ नारी : इच्छा शक्ति ज्ञान शक्ति कर्म शक्ति। ♦

सार —

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
या देवी सर्वभूतेषु सृष्टि-रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

नारी अपने आप में शक्ति है। वह चाहे किसी भी प्रकार की हो जैसे सृजन शक्ति, सहन शक्ति, इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति, वैराग्य शक्ति, श्रृंगार शक्ति, समर्पण शक्ति, श्रद्धा, भक्ति, त्याग शक्ति, आसक्ति, प्रेम, समर्पण और इन सब को यथार्थ रूप प्रदान करने के लिए सबसे बड़ी शक्ति, “कर्म शक्ति”।

शिव और शक्ति की कथा के बारे में कौन नहीं जानता? हमारे भारतवर्ष में “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता” इस उक्ति का पालन अनादि काल से ही होता चला आ रहा है। नारी का एक माँ का रूप सबसे सुंदर, आकर्षक, प्रेममय और अनुकरणीय होता है। मेरा ऐसा मानना है कि नारी केवल एक माँ बनकर ही पूर्णता को प्राप्त कर लेती है।

नारी केवल मनुष्य रूप में ही पूजनीय नहीं है अपितु संपूर्ण नारी जाति चाहे वह धरती मां हो या किसी अन्य प्रजाति की भी, सदैव ही अग्रगण्य होती है क्योंकि वह जन्म और पालन पोषण में अपना सर्वस्व त्याग देती है। हमारा पूरा जीवन ही स्त्री जाति पर निर्भर करता है, एक माँ के विभिन्न स्वरूपों पर निर्भर करता है, यदि हम यह कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

हमारी सृष्टि का प्रारंभ शक्ति से होता है, हमारे अस्तित्व से यानी जन्म से होता है। जन्म एक माँ ही दे सकती है ( हालांकि बीज तत्व, पुरुषत्व की भूमिका को नकारा नही जा सकता ) उसके बाद भरण पोषण का कार्य धरती मां पर निर्भर करता है, अन्नपूर्णा द्वारा किया जाता है, विद्या की देवी और अन्य सभी कलाओं की देवी भी स्त्री जाति यानी सरस्वती मां है, और पूरा जीवन लक्ष्मी मां की कृपा से चलता है तथा मृत्यु के बाद मां गंगा या पुन: धरती मां की गोद में ही हम समा जाते हैं।

यानी
“जीवन से पहले, जीवनपर्यंत और जीवन उपरांत”

तीनों ही स्थितियों में मां की भूमिका, नारी जाति की भूमिका अग्रगण्य है, वंदनीय है, अनुकरणीय है, अभिनंदनीय है। परंतु यह भी सत्य है कि बिना पुरुष के हर नारी अधूरी है। उसे जीवन के हर मोड़ पर पुरुष की आवश्यकता है, उसके आलंबन की आवश्यकता है, इस शाश्वत सत्य को नकारा नहीं जा सकता।

परिचय —

नारी इस चराचर जगत की धुरी है या यूं कहा जाए कि यह जगत जिस पर आश्रित है वह आधार, वह आलंबन स्वयं धरती मां ही है जो नारी का ही एक स्वरूप है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

हमारा अस्तित्व, हमारे जन्म से आरंभ होता है। जीवन होगा तो सब बातें होंगी। यदि अस्तित्व और जीवन ही नहीं होगा तो कुछ भी संभव नहीं है। तो हम आरंभ से ही आरंभ करते हैं, यानी सृजन, निर्माण से यानि जन्म से। जन्म के लिए मां यानी नारी का होना अपरिहार्य है। जैसे कि पहले भी कहा जा चुका है कि नारी का पूर्ण रूप एक मां का होता है और जन्म प्रक्रिया में हम बीज तत्व यानि “पुरुषत्व” को नकार नहीं सकते। यहाँ मैं स्वरचित कविता की दो पंक्तियां कहना चाहूंगी —

“मां है तो कृष्ण है, राम है, बलराम भी है, क्योंकि मां के बिना असंभव, इंसान तो क्या भगवान भी है।”

इस पृथ्वी पर अवतरित होने के लिए स्वयं सृष्टि के रचयिता विष्णु भगवान को भी माँ के गर्भ की आवश्यकता हुई क्योंकि जन्म प्रक्रिया बिना माँ के असम्भव है। भगवान के बाद नारी वो शक्ति है जो —

“मौत की गोद में जाकर जिंदगी को जन्म देती है”।

आज नारी हर क्षेत्र में कामयाब है। पौराणिक काल से लेकर आज तक हमारे पास इतने जीवंत उदाहरण हैं कि हम इस सत्य को नकार नहीं सकते।

इच्छाशक्ति — Willpower

जब तक नारी अपने मन में किसी बात का संकल्प नहीं लेती तो – उसे कोई भी अपने स्वार्थ हेतु झुका सकता है। परंतु एक बार जब उसने अपनी इच्छा शक्ति को जागृत कर लिया और कोई काम करने की ठान ली, कोई संकल्प ले लिया तो संसार की कोई भी ताकत उसे अपने फैसले से हटा नहीं सकती।

इसी इच्छा शक्ति के बल पर सभी कार्यों की रूपरेखा तैयार की जाती है, जैसे कोई भी कार्य “मनसा, वाचा, कर्मणा” के आधार पर पूर्ण माना जाता है अर्थात किसी भी कार्य को करने के लिए पहले मन में विचार आता है, फिर उस कार्य को करने की ‘इच्छा शक्ति’ जागृत होती है। फिर वाणी से उसे संसार के सामने रखा जाता है और अंत में कार्यक्रम ‘कर्मशक्ति’ के द्वारा उसे यथार्थ का रूप प्रदान किया जाता है।

इच्छा हमारी शक्ति का केंद्र बिंदु है। इसी को आधार मानकर बछेंद्री पाल, अनीता कुंडू, संतोष यादव आदि ने एवरेस्ट की चोटी को भी झुका दिया। उन्होंने दुनिया को यह दिखा दिया कि यदि नारी चाहे तो उसके हौसले पर्वतों से भी बुलंद और तटस्थ होते हैं। इन्हीं बुलंद इरादों को लेकर ये विश्व में अपना नाम रोशन करती आ रही हैं।

ज्ञान शक्ति — Knowledge Power

ज्ञानशक्ति को इच्छा शक्ति का दूसरा पड़ाव माना जा सकता है क्योंकि जब तक कुछ सीखने की इच्छा मन में नहीं होगी तो किसी भी प्रकार का ज्ञान हासिल नही किया जा सकता।

साहित्य और कला के क्षेत्र में भारतीय नारी ने ज्ञान और कला की शक्ति को सजीव प्रमाण प्रदान किया है, जिनमें प्रमुख हैं – लता मंगेशकर,आशा भोंसले, मधुबाला, वैजन्ती माला, अरुंधति राय, सरोजिनी नायडू, महादेवी वर्मा, गिरिजा देवी, परवीन सुल्ताना, नालिनी कामलिनी, आदि ऐसी कितनी ही बड़ी हस्तियां हैं जिन्होंने साहित्य और कला के क्षेत्र में विश्व में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।

कोई भी कला तो बिन नारी के पूर्ण हो ही नही सकती, यदि यूं कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि साहित्य में, कला में, चित्रों में, नृत्य में, गीत में, संगीत में, अभिनय में, भक्ति में, प्रेम में, त्याग में, समर्पण आदि, इन सब में यदि “नारी” को हटा दिया जाए तो हमारे पास कुछ भी नहीं बचेगा।

एक बार आप कल्पना करके देखें कि मीराबाई, अहिल्याबाई, राधा, देवकी मां, यशोदा मां, कौशल्या, सुमित्रा, केकई, सीता, उर्मिला इत्यादि इन नारी पात्रों को यदि अपने इतिहास से, अपने साहित्य से निकाल दिया जाए तो न हीं कृष्ण कथा का सौंदर्य बचेगा और ना ही राम काव्य का ही स्वरुप कायम रह पायेगा।

यानि जिस प्रकार एक घर, एक परिवार नारी के बिना पूर्ण नहीं हो सकता, एक मां के बिना पूर्ण नहीं हो सकता, क्योंकि नारी जब मां बनती है तभी वह पूर्ण होती है, तथा परिवार का निर्माण भी तभी होता है, जब घर में संतान का जन्म होता है। इस के संदर्भ में पुन: स्वरचित कविता की दो पंक्तियां कहना चाहूंगी कि —

“मां है तो परिवार है, संस्कार है, क्योंकि माँ में ही तो ममता है, प्यार है दुलार है।”

इच्छा शक्ति, प्राण शक्ति है। इसी इच्छा शक्ति को अपना आलंबन बनाकर सावित्री अपने सतीत्व के बल पर अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से भी वापस ले आई थी। एक नारी के धर्म में, उसकी निष्ठा में, उसके प्रेम में बहुत अधिक ताकत होती है। सती अनुसूया ने इसी बल को ढाल बनाकर सूर्य को भी उदय होने से रोक दिया था।

कर्म शक्ति — Karmic Force / Work Power

इच्छा शक्ति और ज्ञान शक्ति को जहां यथार्थ रूप प्राप्त होता है उसे कर्म शक्ति कहते हैं। इसी के आधार पर सभी कार्यों में सफलता प्राप्त की जा सकती है। कर्म शक्ति में तो नारी का कोई सानी ही नही है। वह अकेली ही माँ दुर्गा की भांति एक ही समय में दस काम कर सकती है।

नारी हर रूप में एक शक्ति है। वह पुरुष को जन्म देती है, उसका पालन करती है (एक मां के रूप में) आजीवन उसका साथ देती है (एक पत्नी के रुपमें) जिम्मेदार बनाती है, सोचने का नजरिया बदलती है, (एक बेटी के रूप में) और जीवन को आलंबन देती है (पुत्र वधू के रूप में)।

— यानी जीवन के हर पड़ाव में, हर रिश्ते में वह सशक्त है।

जब हम समाज निर्माण की बात कर रहे हैं, भारतवर्ष की बात कर रहे हैं, स्त्रियों के शौर्य की बात कर रहे हैं तो भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता आंदोलन में नारियों की भूमिका की बात को कैसे छोड़ा जा सकता है। इस आंदोलन में रानी लक्ष्मीबाई, चेनम्मा, सावित्रीबाई फुले, अरुणा आसफ अली, दुर्गाबाई, सुचेता कृपलानी, विजयलक्ष्मी पंडित इन सबके नाम स्वर्ण अक्षरों से अंकित है। इन सब नारियों ने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया अपितु समाज के उत्थान के लिए भी उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया।

समाज हम सब लोगों से ही मिलकर बना है, और जिसमें हमें ऐसे कार्य करने चाहिए कि अधिक से अधिक जन कल्याण हो सके, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो शिक्षा के, स्वास्थ्य के, खेलों के, सांस्कृतिक आदि।

यानी समाज को हर दृष्टि से सक्षम और सफल बनाना है तो उसमें उसके सभी क्षेत्रों में बराबर उन्नति करनी होगी। लोगों को आम जनता को ऊपर उठाने की बात करनी होगी। यदि हम लोगों में मानवीय गुणों, सांस्कृतिक चेतना मातृभूमि के प्रति प्रेम, समर्पण आदि के भाव जागृत कर पाते हैं तो यह एक उत्कृष्ट कृत्य बन जाता है क्योंकि एक व्यक्ति से ही समाज का निर्माण होता है।

सकारात्मक अभिप्रेरणा —

यदि प्रत्येक व्यक्ति और भावी पीढ़ी यदि सही सोच वाली है, अच्छे विचारों वाली है, सकारात्मक अभिप्रेरणा से प्रेरित है तो वह समाज प्रगति के पथ पर सदैव अग्रसर बना रहता है, और इन सब में एक नारी की भूमिका सर्वोपरि है क्योंकि एक परिवार को बनाने में नारी का स्थान सर्वोच्च है और परिवार समाज की प्राथमिक इकाई है।

जब इतने महान कार्य नारी द्वारा किए जा सकते हैं तो नारी उत्थान की संकल्पना अनिवार्य तत्व बन जाती है और वर्तमान परिदृश्य में इनका मूल्यांकन इन आधारों पर किया जा सकता है कि इतने महान कार्य करने वाली नारी राष्ट्र निर्माण का कार्य बखूबी कर सकती है एवं राष्ट्र निर्माण में सक्रिय सार्थक भूमिका अवश्यंभावी रूप से निभा सकती है और निभाती ही चली आ रही है।

यहां हम कमला नेहरु, श्रीमती इंदिरा गांधी, शीला दीक्षित, सुषमा स्वराज, स्मृति इरानी, मीरा कुमार, वसुंधरा राजे, सुमित्रा महाजन, निर्मला सीतारमण आदि इन सबका नाम ले सकते हैं। यहाँ हमने केवल भारतीय नारी की बात की है इसके अतिरिक्त पूरे विश्व में तो ऐसे अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं। ये सब कर्म शक्ति का उदाहरण कहे जा सकते हैं।

निष्कर्ष — Conclusion

निष्कर्षत: यही कहा जा सकता है कि इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति, कर्म शक्ति के द्वारा समाज निर्माण में नारी की भूमिका सर्वोपरि है। वह निर्माण, पालन और मुक्ति तीनों की हेतु भूता सनातनी देवी के समान है।

एक तरह से वह ‘त्रिदेव’ यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का कार्य अकेले ही करती है क्योंकि जिस प्रकार ब्रह्माजी सृष्टि के ‘रचयिता’ माने गए हैं (नारी सृजनकर्ता है) विष्णु जी पालनहार (नारी और धरती माँ ही हम सबका भरण, पोषण करती है) और शिवजी विनाशक या संहारक। [(यहां हम विनाश के स्थान पर मुक्ति का प्रयोग कर रहे हैं माँ गंगा मुक्ती प्रदान करती है) क्योंकि मां कभी भी विनाशक नहीं हो सकती। एक पुत्र कुपुत्र हो सकता है परंतु एक माता कभी कुमाता नहीं हो सकती।]

“कुपुत्रो जायते क्वचिदपि कुमाता न भवति।”
— (श्री दुर्गा सप्तशती)

इस प्रकार जीवन का कोई भी क्षेत्र हो वहां नारी जाति ने अपना लोहा मनवाया ही है। वर्तमान युग में भी ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां स्त्रियों की सक्रिय, सार्थक भागीदारी ना हो और वह सफल ना हुई हो।

इतिहास में भी किसी भी क्षेत्र में नारी की सफलता पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता। और वास्तव में ही ‘नारी नारायणी’ है। उसका पूरा जीवन चुनौतियों से भरा होने के बावजूद वो तटस्थ खड़ी है एक और आने वाली चुनौती का सामना करने के लिए।

फिर भी मुस्कुरा कर अपना जीवन व्यतीत करती है तथा सबके लिए अपने अरमानों का हमेशा से ही बलिदान करती आयी है। इस पृथ्वी पर ऐसा कोई जीव नही जिसका संघर्ष जीवन से पहले यानि जन्म लेने से पहले ही आरंभ हो जाता हो या यूं कहें कि जन्म के लिए संघर्ष शुरू हो जाता हो एक माँ के लिए भी और एक बेटी के लिए भी ( दोनो ही नारी जाति )।

इससे अधिक और क्या कहना है कि सब जानते हुए भी नारी ने अपना वर्चस्व कायम रखा है तथा विश्व में तो क्या अंतरिक्ष में भी अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित कर इतिहास बनाया है।

और आगे भविष्य में भी ऐसी ही उम्मीद की जा सकती है क्योंकि —

” माना कि पुरुष बलशाली है, पर जीतती हमेशा नारी है,
सांवरिया के छप्पन भोग पर सिर्फ एक तुलसी भारी है”।

हमारा साहित्य समाज को न केवल ज्ञान, बोध और मूल्य प्रदान करता है अपितु एक चिंतन की दिशा भी प्रदान करता है ताकि हम सभी यथासंभव प्रयास कर सके जिससे कि भारतीय मूल्य, भारतीय सभ्यता एवम संस्कृति, भारतीय साहित्य का विश्व में सदैव उच्चस्थ स्थान बना रहे तथा भारत पुन: “जगदगुरु” (विश्वगुरु) की उपाधि ग्रहण करे वो भी अपने अक्षय साहित्य, विशुद्ध सभ्यता एवं अलौकिक संस्कृति के बल पर।

इन्ही शुभकामनाओं के साथ — शुभमस्तु।

ज़रूर पढ़ें — साहित्य समाज और संस्कृति।

♦ डॉ विदुषी शर्मा जी – नई दिल्ली ♦

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  • ” लेखिका डॉ विदुषी शर्मा जी“ ने अपने इस लेख से, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है — नारी अपने आप में शक्ति है। वह चाहे किसी भी प्रकार की हो जैसे सृजन शक्ति, सहन शक्ति, इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति, वैराग्य शक्ति, श्रृंगार शक्ति, समर्पण शक्ति, श्रद्धा, भक्ति, त्याग शक्ति, आसक्ति, प्रेम, समर्पण और इन सब को यथार्थ रूप प्रदान करने के लिए सबसे बड़ी शक्ति, “कर्म शक्ति”।

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यह लेख (नारी : इच्छा शक्ति ज्ञान शक्ति कर्म शक्ति।) “डॉ विदुषी शर्मा जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख / कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम डॉ विदुषी शर्मा, (वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर) है। अकादमिक काउंसलर, IGNOU OSD (Officer on Special Duty), NIOS (National Institute of Open Schooling) विशेषज्ञ, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।

ग्रंथानुक्रमणिका —

  1. डॉ राधेश्याम द्विवेदी — भारतीय संस्कृति।
  2. प्राचीन भारत की सभ्यता और संस्कृति — दामोदर धर्मानंद कोसांबी।
  3. आधुनिक भारत — सुमित सरकार।
  4. प्राचीन भारत — प्रशांत गौरव।
  5. प्राचीन भारत — राधा कुमुद मुखर्जी।
  6. सभ्यता, संस्कृति, विज्ञान और आध्यात्मिक प्रगति — श्री आनंदमूर्ति।
  7. भारतीय मूल्य एवं सभ्यता तथा संस्कृति — स्वामी अवधेशानंद गिरी (प्रवचन)।
  8. नवभारत टाइम्स — स्पीकिंग ट्री।
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