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“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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नई शिक्षा नीति

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ राष्ट्रीय पाठ्यचर्या। ♦

शिक्षा में बदलाव, बेहतरीन लचीलेपन के साथ।

आओ आज आपको,
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या का अर्थ बताते हैं,
विस्तार समझाते हैं…

शिक्षक और स्कूल अनुभवों की,
योजना बनाते हैं।
शैक्षणिक उद्देश्य, शैक्षिक अनुभव,
अनुभव संगठन, शिक्षार्थी आंकलन,
ये चार मुद्दे बताते हैं।
विस्तार समझाते हैं…

एनसीएफ पाठ्यचर्या और पाठ्यक्रम,
दोनों को अलग बतलाता है।
अनेक पहलुओं पर दिशानिर्देश दे,
व्यवहारवादी और मनोविज्ञान पर,
आधारित बताते है।
विस्तार समझाते है…

एनसीएफ 2005 टैगोर जी सभ्यता,
प्रगति, रचनात्मक भावना, उदारता का,
बचपन से जुड़ाव बताते हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा निति में केंद्र योजनाओं,
शैक्षिक प्रौद्योगिकी, कंप्यूटर साक्षरता को दर्शातें है।
विस्तार समझाते हैं…

ज्ञान को बाहरी जीवन से,
जुड़ाव कर पढ़ना बताते हैं।
शिक्षा और परीक्षा को एकीकृत कर,
शिक्षा में लचीलापन लाते हैं।
विस्तार समझाते हैं…

यूईई के अनुसार सामाजिक,
आर्थिक, मनौवैज्ञानिक, शारीरिक,
बौद्धिक विकास बच्चे का होना बताते हैं।
विस्तार समझाते हैं…

संविधान में शामिल अधिकारों,
और कर्तव्यों, प्रतिबद्धताओं का,
ज्ञान करा सभ्य नागरिक बनाना बताते हैं।
विस्तार समझाते हैं…

सीखने का ज्ञान सक्रिय रूप से,
जोड़कर विचारों की संरचना के,
साथ विचारो के पुनर्गठन कर,
शिक्षार्थियों का विकास बताते हैं।
विस्तार समझाते हैं…

बाहर की दो चीजों के,
स्कूल लर्निंग से संबंध कर,
बच्चों को प्रोत्साहित करते,
हुए जवाबदेही बनाते हैं।
विस्तार समझाते हैं…

एनसीएफ पाठ्यचर्या ढांचा-शिक्षक,
शिक्षा 2019-20 में स्कूलों में लागू कर,
नित नए शिक्षा आयामों को खेल विधि से,
बच्चों तक पहुंचाते है।
विस्तार बताते हैं…

6-12 के छात्रों के लिए शिक्षा में,
व्यवसायिकरण विषय ला रोजगार के,
नए पहलू से जोड़ना बताते हैं।
विस्तार समझाते हैं…

♦ विजयलक्ष्मी जी – झज्जर, हरियाणा ♦

—————

  • “विजयलक्ष्मी जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए समझाने की कोशिश की हैं —समय के साथ-साथ शिक्षा नीति में बदलाव की अति-आवश्यकता है, समय-समय पर परिवर्तन बहुत जरूरी है। शिक्षा व्यवहार परक व प्रैक्टिकल हो। प्रैक्टिकल ज्ञान का होना बहुत ही जरूरी है, क्योकि कार्य करना है, बैठकर केवल सुनाना नहीं हैं। अच्छी व्यवहार परक शिक्षा वह है जिससे सामाजिक, आर्थिक, मनौवैज्ञानिक, शारीरिक, बौद्धिक विकास के साथ-साथ बच्चों के अंदर भारतीय संस्कृति, संस्कार व सभ्यता का समझ का विस्तार हो। संविधान में शामिल अधिकारों, और कर्तव्यों, प्रतिबद्धताओं का ज्ञान करा सभ्य नागरिक बनाना हो। शिक्षा ऐसी हो की बच्चें शिक्षा लेने के बाद व्यवसायिकरण वाला उनका दिमाग बने, और अपना व्यवसाय शुरू कर अपने साथ-साथ अन्य को भी रोजगार प्रदान करें। उम्मीद है की नई शिक्षा नीति से कुछ बदलाव जरूर होगा।

—————

यह कविता (राष्ट्रीय पाठ्यचर्या।) “विजयलक्ष्मी जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम विजयलक्ष्मी है। मैं राजकीय प्राथमिक कन्या विद्यालय, छारा – 2, ब्लॉक – बहादुरगढ़, जिला – झज्जर, हरियाणा में मुख्य शिक्षिका पद पर कार्यरत हूँ। मैं पढ़ाने के साथ-साथ समाज सेवा, व समय-समय पर “बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ” और भ्रूण हत्या पर Parents मीटिंग लेकर उनको समझाती हूँ। स्कूल शिक्षा में सुधार करते हुए बच्चों में मानसिक मजबूती को बढ़ावा देना। कोविड – 19 महामारी में भी बच्चों को व्हाट्सएप ग्रुप से पढ़ाना, वीडियो और वर्क शीट बनाकर भेजना, प्रश्नोत्तरी कराना, बच्चों को साप्ताहिक प्रतियोगिता कराकर सर्टिफिकेट देना। Dance Classes प्रतियोगिता का Online आयोजन कराना। स्वच्छ भारत अभियान के तहत विद्यालय स्तर पर कार्य करना। इन सभी कार्यों के लिए शिक्षा विभाग और प्रशासनिक अधिकारी द्वारा और कई Society द्वारा बार-बार सम्मानित किया गया।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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हिंदी राष्ट्रभाषा के पथ पर अग्रसर।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

♦ हिंदी राष्ट्रभाषा के पथ पर अग्रसर। ♦

हिंदी ने भारतीय भाषाओं की दीवार को तोड़ने का काम किया है। जबकि शिक्षा के प्रारंभिक चरण से ही हिंदी के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता रहा है। हिंदी के नाम पर प्रतियोगिताएं होती हैं। हिंदी के प्रयोग का मूल्यांकन होता है। पुरस्कार दिए जाते हैं, परंतु हिंदी को कोई अपना बनाता नहीं। यही कारण है कि बच्चों की सोच की क्षमता लगभग-लगभग समाप्त होती जा रही है, बच्चे केवल रटते रहते हुए अंग्रेजी ज्ञान को पढ़ते आ रहे हैं।

हिंदी अपनों के बीच ही बेगाने होती जा रही

हिंदी अपनों के बीच ही बेगाने होती जा रही है। स्कूली शिक्षा में राज-भाषा और व्यावहारिक हिंदी की स्तरीय अनिवार्यता की कमी, हिंदी में आत्मविश्वास की कमी का कारण बनता जा रहा है। जिस हिंदी ने हमें आजादी दिलाई। एक दूसरे को जोड़े रखा। उस हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा – दिलाने में हम सभी सफलता नहीं प्राप्त कर सके। यह बहुत विचारणीय विषय है।

आज हिंदी सूर्य की किरणों की भांति सारे संसार को प्रकाशित कर रही है। हिंदी सर्वगुण संपन्न आनंददायक – सुखदायक भाषा है।

हम सूरज तू चंदा,
मेरा कार्य प्रकाश फैलाना।
अंधेरा से कहते जाओ,
हो रहा कहां है नंगा।
मैं सूरज तू चंदा॥

गंगा नहावन से सुख,
मुझ में डूबे हो जा चंगा।
रोम – रोम आनंदित हो,
बहोरी विश्व साहित्य गंगा।
मैं सूरज तू चंदा॥

हिंदी भाषा स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख हथियार

हिंदी भाषा स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख हथियार थी, इसके माध्यम से अंग्रेजो के खिलाफ योजनाएं बनाई गई, समाचार पत्रों के माध्यम से जन-जन तक सूचनाएँ/पहुँचाई गई। हिंदी को गौरव दिलाने में हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अहम भूमिका निभाई। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, सुभाष चंद्र बोस आदि प्रमुख महापुरुषों ने भाग लिया। उन्होंने हिंदी का गौरव बनाए रखने के लिए अपना बहुमूल्य योगदान दिया।

हिंदी एक प्रतिष्ठित भाषा

हिंदी जनता के हृदय संयोग की भाषा थी। सम्मान पूर्वक बोली जाने वाली हिंदी एक प्रतिष्ठित भाषा है। आज हिंदी, हिंदी के प्रति बच्चों में सोच की क्षमता लगभग समाप्त हो रही है। केवल रतटे हुए ज्ञान के माध्यम से घर के आस-पास देश काल को भीं नहीं जान पाते, न हिंदी तिथियां हमारी हैं, न दिन हमारा है, न महीना हमारा है, न ऋतुएँ हैं, न गांव है, ना गांव के आस – पास के बिरवे रहते हैं, ना उन बिराओं पर अलग-अलग मौसम में तरह- तरह की बोली बोलने वाले पक्षी रहते हैं। आज अगर कुछ है तो केवल मम्मी-पापा और मेज-कुर्सी है।

हिंदी विश्व में सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा है।

हिंदी के बारे में अगर सारे आंकडे पर नजर रखी जाए तो आंकड़े यह बताते हैं कि हिंदी विश्व में सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा है। यह विश्व के सैकड़ों विश्व विद्यालयों में पढ़ाई जा रही है। हिंदी भाषा के श्रेष्ठ हो जाने से अन्य भारतीय भाषाओं पर उसके प्राण तत्व पर कोई बोझ पड़ने वाला नहीं है। तमिल जैसी प्राचीन और समृद्ध भाषा को अपनी तुलना करवानी हो तो वह संस्कृत के साथ तुलना करवा सकती है।

अपनी एक राष्ट्र-भाषा

किसी भी देश की अपनी एक राष्ट्र-भाषा होनी चाहिए। राष्ट्र-भाषा के अभाव में किसी भी देश को हानि होती है। सन 1853 फरवरी – 2, को ब्रिटिश संसद के एक व्याख्यान में जिसमें कहा गया कि ‘मैंने भारत की ओर छोर का भ्रमण किया है और मैंने एक भी आदमी नहीं पाया जो चोर हो। इस देश में मैंने ऐसी समृद्धि ऐसे सक्षम व्यक्ति तथा ऐसी प्रतिभा देखी है कि मैं नहीं समझता कि इस देश को विजित (जीत) लेंगे।

सांस्कृतिक एवं नैतिक मेरु दंड को तोड़ नहीं देते’

  • जब तक की हम इसके सांस्कृतिक एवं नैतिक मेरु दंड को तोड़ नहीं देते’ इसलिए मैं यह प्रस्ताव करता हूं कि हम भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति एवं संस्कृत को बदल दें, क्योंकि यदि भारतीय यह सोच लेंगे कि जो विदेशी और अंग्रेजी में है वह उनके आचार- विचार से अच्छा एवं बेहतर हैं तो वे अपना आत्मसम्मान एवं संस्कृत को छोड़ देंगे तथा वे एक पराधीन कौम बन जाएंगे। जो हमारी चाहत है।

मैकाले की शिक्षा नीति

  • मैकाले की शिक्षा नीति भारतीयों को उनकी भाषा से पृथक कर वैचारी बनाने की है जिसे हम नहीं समझ सके। मैकाले ने खुद अपने होम सेक्रेटरी को पत्र लिखा कि ‘मैं नहीं कह सकता कि भारत राजनीतिक रूप से आपके अधीन रह पाएगा, लेकिन इतना मैं अवश्य करके जा रहा हूं कि यह देश राजनीतिक स्वतंत्रता पा लेने के बाद भी अंग्रेजी मानसिकता अंग्रेजी सभ्यता और अंग्रेजी भाषा के प्रभाव से मुक्त नहीं हो सकेगा। उसका यह कथन अक्षरसः से सिद्ध हो रहा है। आज भी हम अंग्रेजी मानसिकता से मुक्त नहीं हो सके।

अपने साथ डूभाष्ये

  • कोई भी देश जैसे जर्मन, जापान, रूस, इजराइल, फ्रांस या अन्य कई विकसित देशों के प्रतिनिधि मंडल जब किसी दुसरे देश के राज्य की यात्रा पर जाते हैं तो वे अपने साथ डूभाष्ये को लेकर जाते हैं क्यों कि उनकी अपनी राष्ट्र भाषा होती है, परंतु भारत की अपनी राष्ट्र भाषा नहीं है। ऐसी स्थिति में जब हमारे कोई मंत्री दूसरे देश में जाता है तो उन्हें English में बात करने के लिए बाध्य होना पड़ता है।

उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश

  • जबकि भाषा के प्रश्न को गंभीरता से लेते हुए उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एम एन वेंकटचलैया और न्यायमूर्ति एस मोहन की तत्कालीन खण्ड पीठ ने कहा था, कि प्रारंभिक स्तर पर बच्चों को शिक्षा केवल मातृ-भाषा में ही दी जानी चाहिए। मातृ-भाषा में दी गई शिक्षा संस्कृति और परंपराओं पर गर्व करना सिखाती है। कर्नाटक सरकार ने उच्चतम न्यायालय के आदेश को स्वीकार कर, एक ऐतिहासिक और साहसिक कार्य किया। जिसका अंग्रेजी मानसिकता के अभिभावकों ने ज़ोरदार विरोध किया था। परंतु दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण विरोधी मानसिकता वालों की एक न चली।

नई शिक्षा नीति

भारत की वर्तमान सरकार नई शिक्षा नीति में बदलाव के साथ मातृ-भाषा पढ़ाए जाने पर जोर दिया है।
भारत सरकार से जुड़े अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ-साथ कुछ हद तक नागरिकों की हिंदी के प्रति नीरस मानसिकता भी उत्तर दाई है। हमारे देश में नागरिकों और कर्मचारियों की एक बड़ी तादाद है जो स्वदेश की भावना को व राज भाषा के महत्व को समझ नहीं पाता, भाषण व संस्कृत के ज्ञान व समझ में कमी के चलते बे-वजह के मोह ने हिंदी के प्रति हम समर्पित नहीं हो पाते।

अपनी भाषा में अपने – अपने निवासियों का लगाव

भाषा की बात करें तो अपनी भाषा में अपने – अपने निवासियों का लगाव होना चाहिए। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जिस समय जर्मनी के अधीन फ्रांस था, उसी समय जर्मनी की महारानी एक स्कूल में गई, वहां जाकर जर्मनी के राष्ट्रगान सुनाने के लिए बच्चों से कहा।

उस स्कूल की एकमात्र एक ही बच्ची जर्मन भाषा में राष्ट्र गान किया। राष्ट्रगान को सुनकर महारानी ने उस बच्ची से कहा, कुछ मांगो! वह बच्ची महारानी की बात सुनकर खुश होकर तत्काल कहा कि – हमारी शिक्षा का माध्यम फ्रेंच बना दीजिए। इसे कहते हैं अपनी भाषा के प्रति लगाव, अनुराग और भाषा के प्रति प्रेम।

एक घटना सोवियत रूस की

एक घटना सोवियत रूस की है, हमें उससे सीख लेनी चाहिए। जिस समय भारत देश गणतंत्र हुआ उस समय अंतरराष्ट्रीय संबंधों के कारण एक भारतीय राजनयिक बनाकर सोवियत रूस भेजा गया। उसने वहां जाकर कार्यभार ग्रहण करते समय अंग्रेजी भाषा में अपना लिखा पत्र प्रस्तुत किया।

सोवियत रूस सरकार में भारत के राजनयिक के पत्र को अस्वीकार करते हुए कहा, याद दिलाया कि अंग्रेजी में पत्र उसी गुलामी का प्रतीक है। फिर किसी गुलाम देश से अंतरराष्ट्रीय संबंध स्थापित करने का कोई प्रश्न नहीं बनता। भाषा के प्रश्न पर सोवियत रूस की फटकार भारतवर्ष के 70 वर्षों के अंतराल में भी परिवर्तन में सोच का नया पन ना आना, हमारी हिंदी के प्रति उदासीनता पर करारा प्रहार है।

हमें मात्र कौरवी ना समझें,
दिल्ली हरियाणा क्षेत्रीय बोली।
आठवीं सदी से मैं आई,
सरहपा के मुख पर छाई।
संस्कृत में ही मैं समाई,
बहिना संस्कृत की भाई।
बाबर नामा भी करे बड़ाई।
कौरवी हिन्दुस्तानी कहाई।
खालिकबारी खुसरो लिखे,
कौरवी को वह हिंदवी कहे।

वह भी एक समय था जब हिंदी अर्थात कड़ी बोली हरियाणा और दिल्ली की क्षेत्रीय बोली तक ही सीमित थी। उसी बोली को कौरवी कहा गया। भाषा का अपना महत्त्व होता है। सभी देश की एक अपनी राष्ट्र भाषा का होना अनिवार्य है।

ऑक्सफोर्ड में शब्दकोश में हिंदी।

जबकि भाषा के महत्व को समझते हुए ऑक्सफोर्ड में शब्दकोश में हिंदी के शब्द लिए जा रहे हैं। हिंदी का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परीक्षाएं हो रही हैं। हिंदी का विस्तार पूरे विश्व में हो रहा है।

जबकि आज तक के इतिहास में भारत के मात्र 2 प्रधानमंत्री माननीय अटल बिहारी बाजपेई और नरेंद्र मोदी ही ऐसे प्रधानमंत्री हुए जिन्होंने विशेष अवसरों पर संयुक्त राष्ट्र संघ को हिंदी में संबोधित किया और भारत की हिंदी का मान बढ़ाया। वर्तमान समय में यू-ट्यूब, व्हाट्स एप, मैसेज, लिंकडन और फेसबुक आदि पर हिंदी का प्रयोग आश्चर्यजनक रूप से बढ़ रहा है।

विश्वास दिल में रखना कोशिशें ही काम आएंगी।
टूटे हुए हर दिल को हिंदी ही फिर जोड़ पाएगी॥

महात्मा गांधी जी ने सन 1910 में कहा था कि ‘हिंदुस्तान को अगर सचमुच राष्ट्र बनाना है तो राष्ट्रभाषा हिंदी ही हो सकती है’। स्वतंत्रता दिलाने में हिंदी ने पूरे देश को एक कड़ी में पिरोया और लोगों को इकट्ठा करने का कार्य किया। हिंदी में ही सूचनाएं भेजी गई सूचनाओं का आदान-प्रदान हिंदी में ही होता रहा।

बारूद थी, आरी थी, कुल्हाड़ी लिए लोग मगर।
जंगलों से चलकर शिकार करते हुए आ रही॥

राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जी राष्ट्रभाषा को राष्ट्रीयता का स्रोत मानते थे। उन्होंने कहा कि ‘कोई विदेशी भाषा हमारे देश की रक्षा नहीं कर सकती राष्ट्र के विकास के लिए अपनी भाषा अनिवार्य है’। भाषाओं का आश, उनके शब्दों में हिंदी था। वे हिंदी के साथ अन्य सभी भाषाओं के व्यवहारिक बनाए जाने के पक्षधर थे।

भारत के दक्षिणी राज्यों में हिंदी प्रवेश कर गई है।

भारत के दक्षिण के राज्य जहां हिंदी का विरोध होता था आज उन राज्यों में हिंदी प्रवेश कर गई है। हिंदी अपनी आंतरिक ऊर्जा से सरलता, सहायता बोधगम्यता और समन्वय की भावना के कारण अनेकानेक विरोध सहते हुए भी आगे बढ़ रही है। हिंदी की अनिवार्यता पर गौर करें तो जिन देशों के लोग भारत से व्यापार संबंध रखना चाहते हैं उनको हिंदी जानना आवश्यक है। हिंदी उनके लिए अनिवार्य हो गई है।

देवनागरी लिपि के समान सरल जल्दी सीखने योग्य और तैयार लिपि दूसरी कोई है ही नहीं। जो संपूर्णता और ध्वनात्मकता हिंदी में है। देवनागरी लिपि में है। वैसी क्षमता उर्दू और रोमन में भी नहीं है।

भाषा का कोई धर्म – पंथ नहीं होता। भाषा किसी की प्रतिलिपि नहीं होती। भाषा संवाद और संचार का माध्यम है। जहां तक स्वयं भाषा के स्थापत्य की बात है अपनी जन भाषा के सम्मान का प्रश्न है तो अपने देश की एक राष्ट्रीय भाषा होनी ही चाहिए।

जीने की ना दी राह तो जीवन ही क्यों दिया।
जीने के नाम पर शर्मिंदा क्यों फिर किया।
सागर में जलती पर आश अभी बाकी मुझमे।
इतनी सुख सम्पदा डगर पर भटकने दिया।

हिंदी की सहज भाषा ही अपने लचीलेपन के कारण अपने आयाम का विस्तार कर दी जा रही है। हिंदी की अनिवार्यता से राष्ट्र की अखंडता परिभाषित हो सकती है। यदि हमें हिंदी के गौरव की पुनर्स्थापना करना है तो देश को भाषाई आधार पर एकरूपता मैं रंगना होगा, हमें सोच बदलनी होगी। तभी प्रगट का पथ प्रदर्शित होगा।

हिंदी को हिंदू और उर्दू को मुसलमान के चश्मे से दूर रखना होगा। इन्हीं खोखले आधारों से भाषा का युद्ध और विरोध का जन्म होता है। हिंदी केवल एक भाषा नहीं है, बल्कि संवाद का सर्वोच्च शिखर भी आज हिंदुस्तान में हिंदी ही है। भारत को उच्च शिखर पर स्थापित करने के लिए भारत की मेधा के बच्चों को हिंदी या मातृभाषा में दक्ष रखना ही होगा।

हिंदी के संवर्धन और विकास के लिए –

प्रथम ऐतिहासिक संस्था 18 सौ ई. में फोर्ट विलियम कॉलेज नाम से कोलकाता में स्थापित हुआ। स्थापना भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली द्वारा की गई थी। इसका प्राचार्य सबसे पहले जॉन गिलक्रिस्ट को बनाया गया। उन्होंने देवनागरी में ‘हिंदी’ और फारसी लिपि में ‘उर्दू’ या ‘हिन्दुस्तानी’ का अध्ययन शुरू करवाया।

उस समय हिंदी की पाठ्य पूर्ती के लिए प्राचार्य ने कई लेखकों से पुस्तकें लिखवाई। उन लेखकों में लल्लू लाल, सदल मिश्र, इंशाअल्लाह खान, मुंशी सदा सुखलाल’ नियाज’ का नाम आता है। लल्लूलाल और सदल मिश्र को हिंदी पढ़ाने के लिए फोर्ट विलियम कालेज में शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया।

इनके अलावा अध्यापकों में से ईश्वरचंद विद्यासागर, राम राय बासु, तरनतारन मिश्र , मृतुन्जय विद्यालंकार भी थे, जो अन्य भाषाओं की शिक्षा देते थे। कुछ और लेखकों ने मिलकर अनुवाद और लेखन का कार्य किया जिससे पुस्तकों की कमी को दूर किया गया।

हिंदी के विकास और संवर्धन के लिए दूसरी संस्था

हिंदी के विकास और संवर्धन के लिए दूसरी संस्था 16 जुलाई 1883 को नागरी प्रचारिणी सभा के नाम से वाराणसी में स्थापित हुई। जिसकी स्थापना क्वींस कालेज के नवीं के तीन छात्र – श्यामसुंदर दास, शिवकुमार सिंह और राम नारायण मिश्र ने की। इसके संस्थापक अध्यक्ष राम कृष्ण दास बनाये गए और सात सदस्य हुये। आगे चलकर सम्पूर्ण भारत के अलग अलग क्षेत्रों में जैसे प्रयाग, चेन्नई, गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद, हिंदी विद्यापीठ देवधर झारखंड की स्थापना 1929 में हुई।

उड़ीसा राष्ट्र भाषा परिषद पूरी, केरल हिंदी प्रचार सभा तिरुवनंतपुरम सं 1934 में , राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा 1936 में गांधी और राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन की प्रेरणा से, महाराष्ट्र सभा पुणे की स्थापना 1937 में काका कालेकर की अध्यक्षता में, चौदहवीं सौराष्ट्र हिंदी प्रचार समिति राजकोट, प्रारम्भ में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा की एक समिति के रूप में 1937 में उन दिनों उसे काठियावाड़ राष्ट्र-भाषा प्रचार नामक संस्था द्वारा चलाया जा रहा था।

बम्बई हिंदी विद्यापीठ की स्थापना 1936 में, हिदुस्तान प्रचार सभा मुंबई 1938 में गांधी की प्रेरणा से, असम राष्ट्र-भाषा प्रचार समिति की स्थापना 1938 में, कर्नाटक हिंदी प्रचार समिति बेंगलूर की स्थापना सं 1939 में, मैसूर हिंदी प्रचार परिषद की स्थापना बेंगलुरु में 1943 में, कर्नाटक महिला हिंदी सेवा समिति बेंगलूरी में 1953 में, मणिपुर हिंदी परिषद इम्फाल की स्थापना नवयुवकों द्वारा 1953 में।

साहित्य अकादमी दिल्ली की स्थापना 12 मार्च 1954 को की गई, केंद्रीय हिंदी संसथान आगरा की स्थापना 1961 में, अखिल भारतीय हिंदी संस्था संघ दिल्ली की स्थापना 1964 में, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ की स्थापना उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 1976 में और हिंदी अकादमी दिल्ली की स्थापना 1981 में दिल्ली सरकार द्वारा स्वायत्त शासी संस्था के रूप में हुई।

देखे सबके बम और तोपें।
फिर भी लड़ते रहती हूँ।
गाँव के युवकों ने सोचा था।
मुझसे उनकी भलाई है।
बारूदों पर घर है जिनका।
वही मसलते मिलते हैं।
शहर का मौसम बदलेगा।
मन की मंगल कहता है।

भारतीयों के ह्रदय में रचने बसने निवास करने वाली भाषा हिंदी महापुरुषों का याद कराते रहती है और राष्ट्र-भाषा बनने के लिए किसी महापुरुष की खोज में आशान्वित है।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

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  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – विश्व पटल पर हिंदी भाषा का महत्व। हिंदी भाषा के विकास और संवर्धन की जरूरत क्यों है। क्यों सभी को हिंदी सीखना जरूरी है। आधुनिक युग में राष्ट्र भाषा हिंदी के साथ क्या – क्या हुआ, और आधुनिक युग में राष्ट्र भाषा हिंदी के विकास और संवर्धन के काल खंड का बहुत ही सटीक विस्तार से वर्णन किया हैं।

—•—•—•—

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यह लेख “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपके लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपके लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपके इस लेख से आने वाली पीढ़ियां (Future generations) हिंदी के महत्व को समझ पायेगी और हिंदी को अपने जीवन में उचित स्थान देगी।

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  • तुम से ही।
  • होली के रंग खुशियों के संग।
  • आओ खेले पुरानी होली।
  • हे नारी तू।
  • रस आनन्द इस होली में।

KMSRAJ51: Motivational Speaker

https://www.youtube.com/watch?v=0XYeLGPGmII

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ब्रह्मचारिणी माता।

हमारा बिहार।

शहीद दिवस।

स्वागत विक्रम संवत 2080

नव संवत्सर आया है।

वैरागी जीवन।

मेरी कविता।

प्रकृति के रंग।

फिर भी चलती साथ-साथ वो हमेशा।

यह डूबती सांझ।

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