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नया साल - हेमराज ठाकुर

नया साल।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ नया साल। ♦

यह नया साल हमारा और वह तुम्हारा,
हैप्पी न्यू ईयर, नव संवत्सर की बधाई।
जश्न तो नए साल का है दोनो जगह पर,
फिर भी है भावों और विचारों की लड़ाई।

न जाने क्यों नफ़रत सी होती है मन में मुझे,
अंग्रेजी नव वर्ष के हर एक बधाई संदेश से।
जब ये नहीं मानते हैं नव संवत्सर हमारा तो,
मैं कहीं धोखा तो नहीं कर रहा हूं स्वदेश से?

हम क्यों भूल दें जी सनातन तहजीब हमारी?
और उपनिवेशवादियों का सब अपनाते चले।
भौतिक वैभव तो लूट ही गए थे हमारा ये सब,
और आज भावों से भी जाए क्यों हम ही छले?

आज, मंजूर है मुझको इनका हर त्यौहार मानना,
पर ये भी तो हमारे पर्वों को मिलजुल कर मनाएं।
पर हां, यह तो नहीं चलेगा कि हर बार ये इठले,
और हम हमेशा बस यूं ही मौन रह मुंह की खाएं।

ताली कहां सुना है बजाते तुमने एक हाथ से भाई,
आओ मिलकर मित्रवत दोनों ही हाथों से बजाएं।
हमने अपनाया आपका बहुतेरा है जी आज तक,
तुम भी तो संस्कृति का कुछ हमारी जी अपनाएं।

हमारे नव संवत्सर में मौसम नूतन वसंत है आता,
तुम्हारे नव वर्ष में आती महज पतझड़ और सर्दी।
अपनाने दो हमे भी कुछ अपनी ही संस्कृति का,
तुम्हारी नकल की तो हमने आज हद ही है कर दी।

लिवास तुम्हारे हैं, है हर एक अजब अंदाज़ तुम्हारा,
हमारे पास तो आज बचा ही क्या कुछ है हमारा?
अन्दर से बाहर, कुछ भी देखो, पैंट कोट चाहे शरारा,
चिन्तित हूं कि क्यों रंगा है पछुआ रंग में देश हमारा?

फैला दिया है जैसे रायता सा मेरे देश में तुमने आज,
छोड़ा ही क्या है तुमने आज शेष, बाकी देने लेने को?
कुछ तो रहने दो हमारे भी शेष अपनी संस्कृति का,
हमारे पास भी कोई थाती हो, नई पीढ़ी को देने को।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — अब भी समय है संभल जाओ, वर्ना अपनी संस्कृति सभ्यता का शायद फिर सुगंध भी सुलभ न होगा। वैसे जश्न तो नए साल का है दोनो जगह पर फिर भी है भावों और विचारों की लड़ाई। न जाने क्यों नफ़रत सी होती है मन में मुझे, अंग्रेजी नव वर्ष के हर एक बधाई संदेश से। जब ये नहीं मानते हैं नव संवत्सर हमारा तो, मैं कहीं धोखा तो नहीं कर रहा हूं स्वदेश से? जरा सोचे हमने क्यों भूला दिया अपने सनातन तहजीब को? हमारी भौतिक वैभव तो लूट ही गए थे हमारा ये सब, और आज भावों से भी जाए क्यों हम ही छले? आज, मंजूर है मुझको इनका हर त्यौहार मानना, पर ये भी तो हमारे पर्वों को मिलजुल कर मनाएं। हमारे नव संवत्सर में मौसम नूतन वसंत है आता, चारों तरफ हरियाली और खुशियां ही खुशियां और तुम्हारे नव वर्ष में आती महज पतझड़ और सर्दी। अब तो लिवास तुम्हारे हैं, है हर एक अजब अंदाज़ तुम्हारा, हमारे पास तो आज बचा ही क्या कुछ है हमारा? फैला दिया है जैसे रायता सा मेरे देश में तुमने आज, छोड़ा ही क्या है तुमने आज शेष, बाकी देने लेने को हमारे पास? कुछ तो रहने दो हमारे भी शेष अपनी संस्कृति का, हमारे पास भी कोई थाती हो, अपनी नई पीढ़ी को देने को।

—————

यह कविता (नया साल।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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