Kmsraj51 की कलम से…..
♦ मैं कौन हूँ? ♦
एक नारी पूछे खुद से ही एक सवाल।
कहो कैसा है तुम्हारे दिल का हाल॥
बाल तेरे आज क्यूँ इस कदर बिखर गए।
बाकी आस-पास वाले तो सब सँवर गए॥
सबके लिए तुम समय निकालती हो।
क्या कभी अपने को भी जानती हो॥
पहचाने तुझको न जाने वो तो कौन है।
क्यूँ झनझनाते तेरे स्वर आज मौन है॥
कौन सा दर्द-ए-जख्म छुपाया है तुमने।
इस चुप्पी में चुपके से दबाया तुमने॥
इन आँखों में ज्यादा हो गया था पानी।
तेरे लुढ़कते आँसू भी कह गए कहानी॥
अपने त्याग से तो हुई दुनिया में मशहूर।
मशहूर की कीमत तो अदा करनी जरूर॥
वैसे एक बात कहूँ तू ऐसे भी अच्छी।
बात कड़वी लगती तेरी जो कहे सच्ची॥
क्यूँ देखना तुझको जहां का हसीन नजारा।
तेरी जिम्मेदारी ही तो बस फर्ज तुम्हारा॥
क्यूँ कभी तू खिलखिलाकर इतनी हँसती।
तेरी तो मुस्कान भी है सबसे सस्ती॥
चाँद-सितारों को छूने का तुझको हक नही।
उड़ान भर सके, तुझें मिले वो पंख नही॥
चल फिर कभी बातें करेगें तुझसे चंद।
तेरा आस्तित्व हूँ मैं जो तेरे लिए फिक्रमंद॥
♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦
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- “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — स्त्री ईश्वर की वह सुन्दर रचना है जिसमें त्याग, स्नेह, भावनाओं और समर्पण भरपूर होता है। स्त्री अनेक भूमिकाओं को बखूबी निभाती है। आज के समय की बात की जाये तो आधुनिक स्त्री घर-परिवार और दफ्तर को भी बखूबी संभालती है। परन्तु महिला त्याग का ही इंसानी रूप है। प्राचीन भारत में नारी और पुरुष को बराबर ही समझा जाता था और एक समान सम्मान प्रदान किया जाता था। “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता।” मनुस्मृति के वचन अनुसार:- जहां स्त्री जाति का आदर सम्मान होता है उनकी आवश्यकता और अपेक्षाओं की पूर्ति होती है उस स्थान, समाज ,परिवार पर देवता गण प्रसन्न रहते हैं।
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यह कविता (मैं कौन हूँ?) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।
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