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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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नारी पर कविता इन हिंदी

ओ नारी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ ओ नारी। ♦

कभी लाड़ लड़ती कभी प्यार लड़ाती,
तेरे कोमल भावों ने जग को सींचा है।
परिवार की खुशी के खातिर तो तूने,
हर आंसू का कतरा कोरों में भींचा है।
फिर भी न जाने इस नृशंस समाज ने,
तेरा वीभत्स सा चित्र क्यों खींचा है?

तेरे कदम से तो ओ पगली उग आते हैं,
मरू भूमि के बंजर में भी हरित उद्यान।
तेरे स्पर्श से पस्त हुए पुरुरवा सरीखे,
हो जाते हैं द्रवित तब कठोर पाषाण।
जब नम्रता की प्रतिमूर्ति तुझ नारी की,
पड़ती है मंद – मंद वह मधुर मुस्कान।

तेरे रहमों करम की कायल यह दुनियां,
पगली क्या क्या में आज बखान करूं?
तुझ पर हो रहे अत्याचारों का ओ देवी!
हां किस विधि से आज मैं निदान करूं।
खुद मैं गुनहगार सदियों से शायद तेरा,
इस बात का कैसे किससे प्रचार करूं?

आज विश्व नारी दिवस के अवसर पर,
देख रहा हूं, दुनियां तेरी जयकार करें।
यह झूठा है सब मान – सम्मान या फिर,
क्यों तू नित दिन छुप छुप के आहें भरें?
बलिदान की अजीबोगरीब कहानी की,
तेरे यह मतलबी संसार क्यों कदर करें?

जब जन्म लेना था मुझ को पगली तो,
तू नारी से ममता की मूर्ति बन मां बनी।
फिर भगनी, भावज और चाची – ताई,
पत्नी बनकर तू मेरा सकल जहां बनी।
नर के इस नृशंस जीवन में ओ पगली!
तेरी हर पल ही तो खलती यहां कमी।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — कवि इस संसार के लोगो से प्रश्न कर रहे हैं – आखिर क्यों नारी को वह मान सम्मान सदैव नही दिया जाता जिसकी वह सदैव से हकदार हैं? क्या केवल एक दिन का मान सम्मान ही काफी हैं उनके लिए? इस पर गंभीरता से विचार करें। आखिर जो हर शक्ति से सम्पूर्ण हैं चाहे वो किसी भी रूप में हो, माँ, बहन, दादी, पत्नी, काकी हर रूप में सदैव ही हम पर प्यार, ममता बरसाती हैं। आज के समय में नारी हर क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं, चाहे वह आसमान हो, या समुद्र हर जगह अपना सम्पूर्ण योगदान दे रही हैं। माँ बन कर जीवन में पूर्णता पा लेती है नारी, सर्वस्व अपना सौंप कर, बच्चों को महान बनाती हैं नारी। जैसे प्रकृति धरती सदैव ही देना जानती है, उसी की तरह, बस देना ही जानती है नारी, प्रेम, भाव, इज्जत, बस यही तो मांगती हैं नारी। जीवन के हर पड़ाव में, बस आलंबन चाहती है नारी, वरना तो वो स्वयं शक्ति है, और हर किसी पर भारी है नारी। नारी को सरल समझने की भूल न करो, ईश्वरत्व का मिश्रण है नारी, हम खुद अपना सम्मान करें, और मान करें हम हैं नारी। ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ पर साहस व शौर्य की प्रतिमूर्ति नारी शक्ति को नमन। नारी सशक्तिकरण के बिना मानवता का विकास अधूरा है।

—————

यह कविता (ओ नारी।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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नारी है।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ नारी है। ♦

पुरुष की बराबरी में सीमा पर जाती,
फिर भी दहेज की बलि चढ़ जाती।
कड़वा सत्य है समाज में नहीं आती,
नारी पुरुष से कम क्यों दिखाई जाती?

भिन्न – भिन्न रंगों के गाने गाते जाती,
बुरी नजर वालों को राख में मिलाती।
वक्त पर फूल और कांटा बन जाती है,
लक्ष्मी दुर्गा और काली कहलाती है।

बहन स्वरुप में स्नेह प्यार लुटाती है,
माता के रूप में ममता दिखाती है।
शोभित आभूषण युक्त होकर शिवाली,
युद्ध क्षेत्र में महाकाल पीर घरवाली।

प्रीति करने में सक्षम वहराधा रानी,
गृहस्थ करने में भी एक खानदानी है।
सम्मान की रक्षा के लिए वह काली,
दुश्मनों के लिए विकराल रूप वाली।

औरत है समस्याएं आती – जाती हैं,
सहती है, भावनाओं में नहीं बहती!
टूटती और बिखरती सहती जाती है,
कड़वी सच्ची, सच्चाई स्वीकारती है।

देवी का दर्जा मिला, उसने मांगा नहीं,
कितनी सशक्त है वह, यह जाना नहीं।
हर जीत में उसका जलवा, माना नहीं,
महान बल पर खास जिद, ठाना नहीं।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

— Conclusion —

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — कड़वा है मगर सत्य है ये नारी तू नारायणी, जननी तू, माँ के रूप में प्यार ममता, स्नेह, लालन-पालन, जीवन के अंतिम पल तक दिखाती है। बहन स्वरुप में स्नेह प्यार सदैव लुटाती है। बुरी नजर वालों को राख में मिलाती तू, वक्त पर फूल और कांटा बन जाती है, लक्ष्मी, दुर्गा और काली कहलाती है। सदैव ही पुरुष की बराबरी में सीमा पर जाती, फिर भी दहेज की बलि क्यों चढ़ जाती। ये नारी है समस्याएं आती – जाती हैं, सहती है, भावनाओं में नहीं बहती! टूटती और बिखरती सहती जाती है, कड़वी सच्ची, सच्चाई स्वीकारती है। देवी का दर्जा मिला उसे, उसने कभी मांगा नहीं, कितनी सशक्त है वह, यह जाना नहीं। हर जीत में उसका जलवा, माना नहीं, महान बल पर खास जिद, ठाना नहीं कभी। नारी तू नारायणी।

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यह कविता (नारी है।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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