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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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नारी पर निबंध

दोहरी मानसिकता।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ दोहरी मानसिकता। ♦

आज के युग में एक ऐसी दोहरी मानसिकता ने बहुत इंसानों के दिल में इस प्रकार से घर कर लिया है ऐसा लगता है मानों ये इसी प्रकार से इस धरती पर जन्में हो, और ये प्रवृति इंसान समय मिलते ही दिखाने लगते हैं। इसका जीता जागता उदाहरण हमें अपने बच्चों के मुख से भी सुनने को मिल जाता है जब वो बोलते है कि मेरा भाई प्राइवेट स्कूल में है और हम बहनें सरकारी स्कूल में।

जब अभिभावक-अध्यापक मीटिंग में उनसे इस बारें में कोई चर्चा होती है तो वो हँसते हुए इस बात को कहते है कि जी एक लड़का है इसलिए वहाँ पर पढ़ा रहें हैं और जब हम पूछते है कि आपकी बेटियों की पढ़ाई यहाँ पर कैसी है तब वो कहते हैं कि बहुत अच्छी पढ़ाई होती है यहाँ भी। आजकल तो सरकारी स्कूलों में अच्छी पढ़ाई होती है। कई बार तो वो तुलनात्मक स्थिति में ये भी कह देते है कि बेटियाँ अच्छा काम कर रही है।

फिर समझ में नही आता कि फिर भी माता-पिता का ये भेदभाव क्यूँ।

घर में एक साथ रहने वाले बेटा-बेटी के साथ ये अलगाव की स्थिति घर से ही पैदा हो जाती है। जो लड़कियों के बालमन पर कई बार ऐसी छाप छोड़ देती है जो चाह कर भी जिंदगी भर दूर नही होती। क्योंकि हमें अक्सर इस प्रकार के बच्चों के कोमल दिल से ऐसे भाव देखने सुनने को मिलते है जो हम शिक्षकों को भी दुख देने में पीछे नही रह पाते।

खासकर वो पूरा वर्ष पढ़ाई संबंधी चीजें कॉपी, पेंसिल, रबड़ व नए बैग, टिफ़िन और बोतल के लिए झूझते दिखाई देते है जैसे भाई की ही पुरानी बोतल में पूरा साल काम चलाना या कॉपी के पिछले पन्नों पर लिखा मिटाकर काम करना। इस प्रकार की बहुत सी बातें हमें अपनी कक्षाओं में देखने को मिलती है जिससे माता-पिता की दोहरी मानसिकता दिखाई दे जाती। इसका सबसे ज्यादा उदाहरण हमारे सरकारी विद्यालयों में मिलता है जो कि एक कड़वा सच है। आखिरी में दसवीं, बारहवीं तक आते-आते लड़कियाँ ही टॉप करती है हर वर्ष।

क्योंकि एक सरकारी अध्यापक के लिए तो कक्षा का हर छात्र-छात्रा एक समान है। इसलिए उनमें किसी प्रकार भेदभाव किए बिना ही उनको एक समान शिक्षा मिलती है।

अंत में वे बेटियाँ ही माता-पिता की शान बनती है जिनको सरकारी विद्यालयों में ये सोच कर दाखिला दिलवाते है कि इन पर पैसा तो खर्च करना नहीं होगा बल्कि कुछ न कुछ इनसे हासिल ही होता है। पर ये अपनी योग्यता से हर बार सिद्ध कर ही देती है कि लड़कियाँ कभी भी पीछे नही रही बल्कि उन्होंने हर जगह ही सफलता का परचम लहराया। सही तो सार्थक कथन इन बेटियों के लिये:—

हम हर हाल में अपने माता-पिता का नाम रोशन कर जाएगी।
देखोगे जिधर भी बेटियाँ ही सफलता का परचम लहराएगी।।
एक शिक्षिका की कलम से…
(श्रीमती सुशीला देवी – जे.बी.टी.अध्यापिका करनाल हरियाणा)

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आखिर कब तक समाज में ये दोहरी मानसिकता चलता रहेगा लड़कियों के लिए। आखिर क्यों लड़कियों को लड़को के बराबर सबकुछ नहीं दिया जा रहा है, क्यों उनको दोयम दर्जे का प्यार और सबकुछ दिया जा रहा है आज भी समाज में, क्या यही मानसिक विकास है? प्राचीन समय में भारत के हर स्थान की नारी स्वतंत्र थी, महिलाओं पर किसी भी प्रकार का कोई प्रतिबन्ध नहीं था। महिलाएं यज्ञों और अनुष्ठानों में भी भाग लेती थी। मध्य युग में धीरे-धीरे समय बदलने के साथ पुरुष ने अपने अहम भाव के कारण नारी को निम्न स्थान दिया। आज फिर से नारी समाज में प्रतिष्ठित और सम्मानित हो रही है अपने अद्भुद समझ व अच्छे ज्ञान व प्रतिभा के प्रदर्शन के दम पर। अक्सर यह देखा गया है— अंत में वे बेटियाँ ही माता-पिता की शान बनती है जिनको सरकारी विद्यालयों में ये सोच कर दाखिला दिलवाते है कि इन पर पैसा तो खर्च करना नहीं होगा बल्कि कुछ न कुछ इनसे हासिल ही होता है। पर ये अपनी योग्यता से हर बार सिद्ध कर ही देती है कि लड़कियाँ कभी भी पीछे नही रही बल्कि उन्होंने हर जगह ही सफलता का परचम लहराया।

—————

यह लेख (दोहरी मानसिकता।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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आधुनिक समाज में महिलाओं का अस्तित्व।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMY-KMSRAJ51-N

आधुनिक समाज में नारी का अस्तित्व।

nari-

आम बोलचाल की भाषा में ‘लेडिज फर्स्ट’ एक ऐसा कथन है, जो नारी के लिए सम्मान स्वरूप है। इतिहास साक्षी है, सिन्धुघाटी की सभ्यता हो या पौराणिंक कथाएं हर जगह नारी को श्रेष्ठ कहा गया है।

“यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवता” वाले भारत देश में आज नारी ने अपनी योग्यता के आधार पर अपनी श्रेष्ठता का परिचय हर क्षेत्र में अंकित किया है। आधुनिक तकनिकों को अपनाते हुए जमीं से आसमान तक का सफर कुशलता से पूरा करने में सलंग्न है। फिर भी मन में ये सवाल उठता है कि क्या वाकई नारी को ‘लेडीज फर्स्ट’ का सम्मान यर्थात में चरितार्थ है या महज औपचारिकता है। अक्सर उन्हे भ्रूणहत्या और दहेज जैसी विषाक्त मानसिकता का शिकार होना पङता है। नारी की बढती प्रगति को भी यदा-कदा पुरूष के खोखले अंह का कोप-भाजन बनना पङता है।

आज की नारी शिक्षित और आत्मनिर्भर है। प्रेमचन्द युग में नारी के प्रति नई चेतना का उदय हुआ। अनेक शताब्दियों के पश्चात राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त ने नारी का अमुल्य महत्व पहचाना और प्रसाद जी ने उसे मातृशक्ति के आसन पर आसीन किया जो उसका प्राकृतिक अधिकार था। आजादी के बाद से नारी के हित में कई कानून बनाये गये। नारी को लाभान्वित करने के लिए नित नई योजनाओं का आगाज भी हो रहा है। बजट 2013-14 में तो महिलाओं के लिए ऐसे बैंक की नीव रखी गई जहाँ सभी कार्यकर्ता महिलाएं हैं। उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कठोर से कठोर कानून भी बनाये गये हैं। इसके बावजूद समाज के कुछ हिस्से को दंड का भी खौफ नही है और नारी की पहचान को कुंठित मानसिकता का ग्रहंण लग जाता है। “नारी तुम श्रद्धा हो” वाले देश में उसका अस्तित्व तार-तार हो जाता है।

आधुनिकता की दुहाई देने वाली व्यवस्था में फिल्म हो या प्रचार उसे केवल उपभोग की वस्तु बना दिया गया है। लेडीज फर्स्ट जैसा आदर सूचक शब्द वास्तविकता में तभी सत्य सिद्ध होगा जब सब अपनी सोच को सकारात्मक बनाएंगे। आधुनिकता की इस अंधी दौङ में नारी को भी अबला नही सबला बनकर इतना सशक्त बनना है कि बाजारवाद का खुलापन उसका उपयोग न कर सके। नारी को भी अपनी शालीनता की रक्षा स्वयं करनी चाहिए तभी समाज में नारी की गरिमा को सम्पूर्णता मिलेगी और स्वामी विवेकानंद जी के विचार साकार होंगे।
विवेकानंद जी ने कहा था कि- “जब तक स्त्रियों की दशा सुधारी नही जायेगी तब तक संसार में समृद्धी की कोई संभावना नही है। पंक्षी एक पंख से कभी नही उङ पाता।”

इस उम्मीद के साथ कलम को विराम देते हैं कि, आने वाला पल नारी के लिए निर्भय और स्वछन्द वातावरण का निर्माण करेगा, जहाँ आधुनिकाता के परिवेश में वैचारिक समानता होगी। नारी के प्रति सोच में सम्मान होगा और सुमित्रानन्दन पंत की पंक्तियाँ साकार होंगी—

मुक्त करो नारी को मानव, चिर वन्दिनी नारी को।
युग-युग की निर्मम कारा से, जननी सखि प्यारी को।।

अनीता शर्मा जी।

Anita Sharma
अनीता शर्मा जी।

 

Post inspired by रौशन सवेरा,

We are grateful to Mrs. अनीता शर्मा जी।

 

एक अपील

आज कई दृष्टीबाधित बच्चे अपने हौसले से एवं ज्ञान के बल पर अपने भविष्य को सुनहरा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। कई दृष्टीबाधित बच्चे तो शिक्षा के माधय्म से अध्यापक पद पर कार्यरत हैं। उनके आत्मनिर्भर बनने में शिक्षा का एवं आज की आधुनिक तकनिक का विशेष योगदान है। आपका साथ एवं नेत्रदान का संकल्प कई दृष्टीबाधित बच्चों के जीवन को रौशन कर सकता है। मेरा प्रयास शिक्षा के माध्यम से दृष्टीबाधित बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना है। इस प्रयोजन हेतु, ईश कृपा से एवं परिवार के सहयोग से कुछ कार्य करने की कोशिश कर रहे हैं जिसको YouTube पर “audio for blind by Anita Sharma” लिख कर देखा जा सकता है।

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Krishna Mohan Singh(KMS)
Editor in Chief, Founder & CEO
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– कुछ उपयोगी पोस्ट सफल जीवन से संबंधित –

* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

* KMSRAJ51 के महान विचार हिंदी में।

* खुश रहने के तरीके हिन्दी में।

* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

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