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Hariyali Teej | हरियाली तीज।
माह श्रावण, शुक्ल पक्ष की तृतीया को पर्व हरियाली तीज आया।
अंकुर फूटेंगे अब तो हरे-भरे पौधों के, इसने सुप्त बीजों को जगाया।
आओं जानें, ये हरियाली तीज क्यूँ कहलाये।
यही तो आकर, सब त्योहारों के बीज बिखेर जायें।
फिर प्रकृति ओढ़ ले, धानी चुनरिया बहार की।
महिलाओं के मयूर मन नाचें, खुमारी छाए प्यार की।
माँ पार्वती-शिवजी की आराधना कर, सुहागिनें व्रत करती हैं।
मांग में सुहाग की लंबी उम्र, सौभाग्यवती का सिंदूर भरती हैं।
तन पुलकित, मन आनंदित, ए तीज! आने पर तेरे।
आ अब लगा दे सुहागिनों की मेहंदी, हाथों के मुहाने पर मेरे।
सावन के आते ही, तेरे आने को सब बाट निहारें।
इस रुत पिया बोले, बस हम तो है तुम्हारें।
हरी-भरी कांच की चूड़ियाँ सज आयें, अब इन कलाइयों में।
लाकर कोथली बढ़ आएँ, प्यार बहन-भाइयों में।
शाखाओं पर पड़े झूलें भी, झूम-झूम कर गुहार लगाये।
ए हरियाली तीज! तेरे आगमन से चहुँ ओर, प्रीत-प्यार ही समाये।
♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦
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- “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — माँ पार्वती-शिवजी की आराधना कर, सुहागिनें व्रत करती हैं। मांग में सुहाग की लंबी उम्र, सौभाग्यवती का सिंदूर भरती हैं। तन पुलकित, मन आनंदित, ए तीज! आने पर तेरे। आ अब लगा दे सुहागिनों की मेहंदी, हाथों के मुहाने पर मेरे। हरियाली तीज, एक प्रमुख हिन्दू त्योहार, जो प्रायः श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है और इसका मुख्य उद्देश्य पतिव्रता सुधा की भक्ति और पतिव्रता धर्म का पालन करना होता है। हरियाली तीज का नाम इसकी हरा-भरा प्राकृतिक आवाज के आधारित होता है, जिसमें पर्यावरण की हरियाली का आभास होता है। इस दिन महिलाएं हरिद्वार, गंगा तट, उत्तराखंड के मंदिरों में जाती हैं और गंगाजल से स्नान करती हैं। महिलाएं सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं और विशेष रूप से तरह-तरह की गायन, नृत्य और खेल-कूद के आयोजन करती हैं। हरियाली तीज का आयोजन खुशियों और उत्साह के साथ होता है, जहां महिलाएं हरियाली रंगीन वस्त्र पहनती हैं और खुशी के गीत गाती हैं। इस त्योहार का एक और महत्वपूर्ण पहलू बरसाती ऋतु के आगमन की सूचना देना है, जिससे किसान वर्ग अपनी खेती की तैयारियों में लग जाते हैं। समग्र रूप से, हरियाली तीज एक उत्सवपूर्ण और धार्मिक त्योहार है, जो महिलाओं को शक्ति, समर्पण और पतिव्रता धर्म के माध्यम से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है।
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यह कविता (हरियाली तीज।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी (राष्ट्रीय नवाचारी शिक्षिका व अंतरराष्ट्रीय साहित्यकार) है। शिक्षा — डी•एड, बी•एड, एम•ए•। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।
- अनेक मंचों से राष्ट्रीय सम्मान।
- इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज।
- काव्य श्री सम्मान — 2023
- “Most Inspiring Women Of The Earth“ – Award 2023
{International Internship University and Swarn Bharat Parivar} - Teacher’s Icon Award — 2023
- राष्ट्रीय शिक्षा शिल्पी सम्मान — 2021
- सावित्रीबाई फुले ग्लोबल अचीवर्स अवार्ड — 2022
- राष्ट्र गौरव सम्मान — 2022
- गुरु चाणक्य सम्मान 2022 {International Best Global Educator Award 2022, Educator of the Year 2022}
- राष्ट्रीय गौरव शिक्षक सम्मान 2022 से सम्मानित।
- अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ लेखिका व सर्वश्रेष्ठ कवयित्री – By — KMSRAJ51.COM
- अंतरराष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान — 2022
- राष्ट्रीय शिक्षक गौरव सम्मान — 2022
- राष्ट्रीय स्त्री शक्ति सम्मान — 2022
- राष्ट्रीय शक्ति संचेतना अवार्ड — 2022
- साउथ एशिया टीचर एक्सीलेंस अवार्ड — 2022
- 50 सांझा काव्य-संग्रहों में रचनाएँ प्रकाशित (राष्ट्रीय स्तर पर)।
- 70 रचनाएँ व 11+ लेख और 1 लघु कथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित (KMSRAJ51.COM)। इनकी 6 कविताएं अब तक विश्व स्तर पर प्रथम और द्वितीय स्थान पा चुकी है, जिनके आधार पर इनको सर्वश्रेष्ठ कवयित्री व पर्यावरण प्रेमी का खिताब व वरिष्ठ लेखिका का खिताब की प्राप्ति हो चुकी है।
- इनकी अनेक कविताएं व शिक्षाप्रद लेख विभिन्न प्रकार के पटल व पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे हैं।
- 3 महीने में तीन पुस्तकें प्रकाशित हुए। जिसमें दो काव्य संग्रह “समर्पण भावों का” और “भाव मेरे सतरंगी” और एक लेख संग्रह “एक नजर इन पर भी” प्रकाशित हुए। एक शोध पत्र “आओं, लौट चले पुराने संस्कारों की ओर” प्रकाशित हुआ। इनके लेख और रचनाएं जन-मानस के पटल पर गहरी छाप छोड़ रहे हैं।
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