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पास न आते भँवरे जिन फूलों के पास पराग नहीं

भ्रमर गुंजार।

Kmsraj51 की कलम से…..

Bhramar Gunjar | भ्रमर गुंजार।

भ्रमर तुम्हारे गुंजारों पर,
फूल-फूल हंसे कलियां मुस्कायी।
पंकज के पंखुड़ियों में तुम,
बंद हुये रजनी जब आई।

रजनी भर दुःख झेला तुमने,
रश्मि रथी जब नभ में छाई।
छिप गये तारे नभ में सारे,
उषा लली चिड़ियां चहकायी।

मुंह धोकर जल-पान कि ये सब,
उठ गये बाल युवा नर – नारी।
बांध पीठ पर बस्ता बालक,
पढ़ने की सब की तैयारी।

भौंरे सहगामी बन मधु-रस,
चूस सुमन से छत्ता भरते।
शहद बना जीवन हित ‘मंगल’,
दिनभर दौड़ लगाते रहते।

♦ सुख मंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

— Conclusion —

  • “सुख मंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — भ्रमर(भौरे) दिन – रात एक करके जी-तोड़ मेहनत करती है, एक फूल से दूसरे फूल पर, फिर तीसरे फूल पर जाती है, इस तरह से वह अनगिनत फूलों पर जाती है और उन फूलों से थोड़ा – थोड़ा रस लेकर अपने छत्ते में इकट्ठा करती है। इतनी कड़ी मेहनत के बाद तब कही जाकर मधु बनता है, जो हम सभी को बहुत पसंद हैं। भ्रमर(भौरे) से हमें यह सीख मिलती है की कठिन से कठिन मेहनत करने से कतराना व घबराना नहीं चाहिए। हम सभी को हर परिस्थिति से डटकर सामना करना चाहिए।

—————

यह कविता (भ्रमर गुंजार।) “सुख मंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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