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“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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पीड़ा अंतः मन की

खट्टी मिट्ठी अतरंग।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ खट्टी मिट्ठी अतरंग। ♦

पंच वर्षों की अथक परिश्रम,
शब्दों इरादों मजबूत दीवारें।
कुछ मजबूती कुछ ढहती मीनारें,
ले चलती, फिर सत्ता के गलियारे।

कौन कहाँ कैसे रह पायेगा,
आने वाले आज में जी पायेगा।
सुदृढ़ नींव संग ऊंचा उठ पायेगा,
अस्तित्व की लड़ाई में बच पायेगा।

धर्म की ध्वजा फहराने के लिए,
कर्म कर्तव्य की सतह बनाने में।
सिर पर मुकुट रखने के लिए,
इस सत्ता समर गलियारे में।

अनबूझ व्यक्तित्व बन छा जाने में,
देखो – देखो आँखों के चारों को।
सर्वाधार संकल्प दोहरानें को,
फिर बन बवंडर छा जानें को।

लाल पीला भगवा नीला,
या रंगीन बहारों को सजाने में।
हरियाली की सम्मत लाने में,
खट्टी-मिट्ठी बंधा अतरंगी सपने में।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — सच्ची प्रीति और प्रेम अपने देश की माटी से हम भी रखते हैं, जब भी जरूरत हो देश को हमारी, माँ भारती की सेवा के लिए सदैव तैयार हम भी रहते है। माँ भारती की सेवा के लिए हो तो अपेक्षा अर्पित होने की तो वो साहस हम भी रखते हैं। धर्म की ध्वजा फिर से फहराने के लिए,कर्म कर्तव्य की सतह बनाने में, सिर पर मुकुट रखने के लिए, इस सत्ता समर गलियारे में।

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यह कविता (खट्टी मिट्ठी अतरंग।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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ख्वाहिश हम भी रखते हैं।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ ख्वाहिश हम भी रखते हैं। ♦

प्रीति और प्रेम अपने देश की माटी से हम भी रखते हैं,
चुभती रहे जो मन में वो पिपासा हम भी रखते हैं।

हो तो अपेक्षा अर्पित होने की वो साहस हम भी रखते हैं,
वो हिम्मत वो शूर वीरता वो बहादुरी हम भी रखते हैं।

दुनियां को उलट देने का घमंड रखने वालों,
जगत को कंपकपा देने की ताकत हम भी रखते हैं।

कहर कयामत से हो पूरी अमा उनके समर्थन पर,
दैवीय ताकतों का समर्थन हम भी रखते हैं।

बासंतिक गुलिस्तां की आशा भी मरीचिका हो जाये,
माँ जया की असीम कृपा से कर्म-वांक्षा हम भी रखते हैं।

न शत्रुता न ही शिकायत की सुन लिया सब से,
तुम्हारी करुणा उपकार की शिकायत हम भी रखते हैं।

पवित्र कर्म है की मुक्ति से अनुराग तुम भी रखते हो,
अवगुण है की स्वतंत्रता से अनुराग हम भी रखते हैं।

‘परिमल’ तेरा नाम भी शायद कुसुरवारों में शामिल होगा,
माँ दुर्गा की कृपा से उन्माद से रक्षण हम भी रखते हैं।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — सच्ची प्रीति और प्रेम अपने देश की माटी से हम भी रखते हैं, जब भी जरूरत हो देश को हमारी, माँ भारती की सेवा के लिए सदैव तैयार हम भी रहते है। माँ भारती की सेवा के लिए हो तो अपेक्षा अर्पित होने की तो वो साहस हम भी रखते हैं, वो हिम्मत वो शूर वीरता वो बहादुरी हम भी रखते हैं। अदम्य और अद्भुत साहस हम भी रखते है, दैवीय ताकतों का समर्थन हम भी रखते हैं। याद रखना माँ दुर्गा की कृपा से उन्माद से रक्षण हम भी रखते हैं।

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यह कविता (ख्वाहिश हम भी रखते हैं।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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पीड़ा अंतः मन की।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ पीड़ा अंतः मन की। ♦

अर्दित की स्मृति करे लहूलुहान मुझे,
पल-पल की यादें करती छलनी मुझे।

उर-वेदना की पीड़ा दृश्य पुराना दिखलाती,
छटपटाती काया जिसमें मृत तुल्य बतलाती।

हृदि-माला के घट में विजन सहन तक ले जाती,
खालीपन का बोध करा तन-निभृत कर ले आती।

द्रवित मन मेरा कसक हिय का ही बतलाये,
निशदिन खुद का दमन करूं अंतस् ये समझाये।

तेरा कुछ नहीं जग में विकल हो क्यूं तू फिरता,
अतिशय का रख बोध तन-मठ ही तेरा ही रहता।

इक दिन भस्मीभूत हो चिरयुवा तू हो जायेगा,
दारुण रुदन करता पुंगल तेरा चिरशान्त हो जायेगा।

आवेश न कर जग से तू तुझे जितना निसर्ग ने दिया,
अपने स्‍वप्‍न को अन्तर्घट में रख भव ने भार ले लिया।

सब सम्भाला हिय में अपने अधर तक न आने देना,
क्षण-क्षण जो बीते तुझपर होंठों को तुम सिल लेना।

पल-पल की पीड़ा से नम कारक दारुण हो ले,
शैल-शिखा की गति अपने खचित-उर तू कर ले।

अंतः मन की अर्दित सुध को प्रेत-पट समझ ओढ़ ले,
इक दिन उदधिमेखला के तन पर अर्घट बन उड़ ले।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल` जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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  • “सतीश शेखर श्रीवास्तव `परिमल`“ जी ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — जब अंतः मन में पीड़ा होती है उस समय मन में चलने वाले विचारों और भावनावों को बताया है। जब भी अंतः मन में पीड़ा होती है मन के अंदर किस-किस तरह से संकल्पो का उथल पुथल चलता है इसे समझाने की कोशिश की है। अतीत के पीड़ादाई दृश्य को मन का दर्पण बार-बार दिखलाता है, जिसमें तन व मन को बहुत ही ज्यादा पीड़ा दिखलाती, जैसे की मृत तुल्य हो ये काया। अंतः मन में पीड़ा को हृदय की अंतः गहराई तक ले जाती व खालीपन का बोध करा तन-निभृत कर ले आती वापस। मेरा द्रवित मन बार-बार मुझें ये बतलाये, निशदिन मैं खुद का दमन कर रहा हूँ आंतरिक मन यही समझाए। अंतः मन सदैव ही यही समझाए इस संसार में कुछ भी नही है तेरा फिर इस मोह पास में क्यों फस कर रोता है तू। एक दिन ये तन आग के हवाले होकर भस्मीभूत हो जायेगा। ये रोता हुआ तेरा मन चिरशान्त होकर सो जायेगा। आवेश में आकर दुनिया से तू बैर न कर, तुझें जितना ये प्रकृति ने दिया उसे सही से उपयोग कर। अपने स्‍वप्‍न को अंतः मन में रख कर अंतः आत्मा ने भार ले लिया।

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