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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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प्रेरणादायक हिंदी कहानियां

मैं क्षत्राणी हूँ।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मैं क्षत्राणी हूँ। ♦

महाभारत काल एवं सभी पौराणिक और ऐतिहासिक कथाओं के अनेक पात्र ऐसे हैं जिनका योगदान उस काल की घटना विशेष में बहुत ही सराहनीय रहा है किन्तु उसका उतना उल्लेख नहीं हुआ जितना केंद्रीय पात्रों का।

ऐसी ही एक पात्र है महाभारत काल की हिडिम्बा, जिसने अपने इकलौते पुत्र की आहुति इस युद्ध में दे दी थी। आज की कहानी उस माँ को समर्पित है जिसके बलिदान की बदौलत अर्जुन की उस शस्त्र से रक्षा हुई जो युद्ध के परिणाम को बदल सकता था।

——•——

न जाने कब से मैं अपने कक्ष में उदास, व्यथित एवं निःसहाय बैठी हूँ किन्तु न ह्रदय की टीस कम हो रही है और न अश्रु थम रहे हैं। न अतीत की स्मृतियों की श्रृंखला ही रुक रही है।

अपने इकलौते पुत्र घटोत्कच की वीरगति का समाचार ह्रदय को शूल की तरह बींधे जा रहा है। न कोई मेरे दुःख को बांटने वाला है न अभी तक सांत्वना के दो शब्द ही मेरे हिस्से में आये हैं। संताप की अग्नि मुझे निरंतर दग्ध करती जा रही है।

सोचती हूँ कि जीवन में मुझे क्या मिला ? न जाने किस कर्म दोष के कारण मेरा राक्षस कुल में जन्म तो हुआ किन्तु राक्षसों की तामसिक वृत्तियों से मुझे कभी प्रीति नहीं रही। या यूँ भी कह सकते हैं की जन्म से दानवी हो कर भी मैं अपनी वृत्तियों से राक्षसी नहीं रही।

मुझे मनुष्यों का मांस और दानवों को प्रिय लगने वाली अनेक वस्तुएँ सदा अप्रिय रहीं। शायद एक मनुष्य के प्रति मेरा प्रेम और आकर्षण मेरी इन्हीं प्रवृत्तियों का परिणाम था। हिडिम्बा के मानस पटल पर अतीत साकार हो गया ………

क्या मैं कभी भूल सकती हूँ वह दिन, जब मेरे सहोदर ने मुझे एक मनुष्य को पकड़ कर लाने की आज्ञा मुझे दी थी और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मैं वन में गयी थी। वहाँ मैंने अति सुन्दर, पराक्रमी, बलवान मध्यम पाण्डव भीम को देखा और प्रथम दृष्टि में ही उनसे प्रेम कर बैठी।

इस प्रेम को पाने के लिए मुझे अपने कुल का कोप तथा बहिष्कार सहना पड़ा। इस त्याग के पश्चात् भी मुझे अपना प्यार अत्यन्त अल्प अवधि के लिए ही मिला। ‘ पुत्रवती होते ही आर्य पुत्र भीम को लौटा दूँगी ‘ ऐसा वचन मैंने माता कुंती को दिया था, जिसे पुत्र घटोत्कच के जन्म लेते ही मैंने पूर्ण निष्ठा से निभाया।

अब पुत्र घटोत्कच और आर्य पुत्र के प्रेम की स्मृतियाँ ही मेरे जीवन का एकमात्र सहारा थीं। समय का पहिया घूमता रहा और घटोत्कच युवा हो गया। बिल्कुल अपने पिता के समान ही तेजस्वी, निडर, पराक्रमी।

एक दिन अचानक पुत्र घटोत्कच के कारण ही मुझे आर्य पुत्र भीम के पुनः दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वह बलि के लिए उन्हें ही पकड़ लाया। मैं इस कल्पना से भी कांप गयी और मुझे अनायास ही उन सभी बलि दिए गए मनुष्यों की याद हो आयी और इस विचार से ग्लानि हुई कि आज जैसे मैं आर्य पुत्र की बलि की कल्पना से भी कांप गयी उसी प्रकार उन पत्नियों, माताओं का जीवन कैसे बीत रहा होगा जिनकी हम लोगों ने अनुष्ठान के नाम पर बलि चढ़ा दी थी। उस दिन से मैंने जीवन भर कभी बलि न देने का निश्चय किया।

किन्तु इस घटना का एक अच्छा परिणाम ये रहा कि पिता और पुत्र का मिलन तो हुआ।

कुछ वर्षों के बाद महाभारत का भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में मेरे पुत्र ने जो पराक्रम दिखाया उसे देख सारे दिग्गज योद्धा दंग रह गये। मेरा मातृत्व, पालन पोषण गौरवान्वित हो उठा। आख़िर क्षत्राणियां और क्या किया करती हैं ? क्या मैंने भी वही सब कुछ नहीं किया ?

आर्य पुत्रियों के समान ही मैंने जीवन में केवल एक बार प्रेम किया। उस प्रेम को जीवन पर्यन्त निभाया पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ निभाया। एक महा पराक्रमी वीर पुत्र को जन्म दिया। आवश्यकता पड़ने पर अपने एकमात्र पुत्र को युद्ध में प्रस्तुत कर देने में भी नहीं हिचकिचाई।

सोचते सोचते हिडिम्बा को पुनः अपने पुत्र की वीरगति का स्मरण हो आया और अपार हार्दिक वेदना से वह पुनः कराह उठी – ” हा घटोत्कच ! अब तुम्हारे बिना मैं कैसे जीवन यापन करुँगी ?

तुम्हारे वियोग से मुझे असहनीय वेदना हो रही है। क्या मेरे इस संताप और बलिदान की कभी कोई चर्चा होगी। नहीं, शायद कभी नहीं। भला राक्षस कुमारियाँ भी कहीं भविष्य में पढ़े जाने वाले इतिहास की नायिकाएं हुआ करती हैं ?

चर्चा हो या न हो, किन्तु मेरा हृदय और ईश्वर जानता है, कि जन्म से न सही किन्तु कर्म से मैं क्षत्राणी हूँ। हां, हां, हां, मैं क्षत्राणी हूँ। पुत्र घटोत्कच तुमने मेरे यहां जन्म
लेकर मेरा गौरव तो बढ़ाया ही है अपने पिता, पाण्डव कुल और वीरों का गौरव भी बढ़ाया है। .. कहते – कहते व्यथित हिडिम्बा पुनः सिसक उठी।

♦ वेदस्मृति ‘कृती’ जी – पुणे, महाराष्ट्र ♦

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  • “वेदस्मृति ‘कृती’ जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए समझाने की कोशिश की हैं — घटोत्कच की माता हिडिम्बा के त्याग और बलिदान के बारे में बताया है। लोग माता हिडिम्बा के त्याग और बलिदान को भूल गए है। माता हिडिम्बा ने ख़ुशी – ख़ुशी अपने पुत्र घटोत्कच को धर्म युद्ध महाभारत में जाने का आदेश दे दिया।

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यह लेख (मैं क्षत्राणी हूँ।) ” वेदस्मृति ‘कृती’ जी “ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/गीत/दोहे/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी दोहे/कविताओं और लेख से आने वाली नई पीढ़ी और जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूँ ही चलती रहे जनमानस के कल्याण के लिए।

साहित्यिक नाम : वेदस्मृति ‘कृती’
शिक्षा : एम. ए. ( अँग्रेजी साहित्य )
बी.एड. ( फ़िज़िकल )
आई आई टी . शिक्षिका ( प्राइवेट कोचिंग क्लासेज़)
लेखिका, कहानीकार, कवियित्री, समीक्षक, ( सभी विधाओं में लेखन ) अनुवादक. समाज सेविका।

अध्यक्ष : “सिद्धि एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह”
प्रदेश अध्यक्ष : अखिल भारतीय साहित्य सदन ( महाराष्ट्र इकाई )
राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान बिहार प्रान्त की महिला प्रकोष्ठ,
श्री संस्था चैरिटेबल ट्रस्ट : प्रदेश प्रतिनिधि ( महाराष्ट्र )
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी परिषद में – सह संगठन मंत्री, मुंबई ज़िला, महाराष्ट्र
हिन्दी और अँग्रेजी दोनों विधाओं में स्वतंत्र लेखन।

अनेक प्रतिष्ठित हिन्दी/अँग्रेजी पत्र – पत्रिकाओं में नियमित रचनाएँ प्रकाशित।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

 

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कर्मों का फल जन्म जन्मों तक।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ कर्मों का फल जन्म जन्मों तक। ♦

एक सन्यासी ने भगवान की भक्ति करते – करते जीवन के तीन पड़ाव गुजार दिए, चौथे पड़ाव में वो भ्रमण पर निकल पड़े, रास्ते मे भयंकर जंगल था जिसमें डाकुओं का राज था।

कुछ दूर जाने पर साधु ने देखा कि डाकुओं ने पीछा शुरू कर दिया है। लेकिन सन्यासी ने सोचा, मेरे पास क्या है जो छीन लेंगे और अपनी मस्ती से चलते रहे। डाकुओं ने भी देख लिया कि यह एक सन्यासी है, इसके पास कुछ नही मिलेगा।

जैसे ही वो डाकू सन्यासी के पास से गुजरे उन्हें जमीन पर पड़ी अठमाशी दिखाई दी, ठीक उसी समय सन्यासी के पैर में भयंकर कांटा लगा। सन्यासी ने भगवान को याद किया, इसलिए नहीं कि डाकुओं को आठमाशी मिली और ना ही इसलिये कि भक्ति का फल क्या मिला, पर इसलिए कि डाकुओं के सामने यह घटना घटी।

साधु भगवान को याद कर ही रहे थे कि भगवान जी ने दर्शन दिए और कहा, हे, साधु, चिंतित मत हो। यह सब कर्मों का फल है। पूर्व जन्म में आपके कर्म इतने खराब थे कि आपको यहां फांसी लगनी थी पर इस जन्म के कर्मों से केवल कांटे में टल गई और जो ये डाकू है इनके पूर्व जन्म के कर्म इतने अच्छे थे, इन्हें यहां राज्य सिंहासन मिला था जो इस जन्म के कर्मों के कारण केवल आठमाशी में टल गया।

जैसे कि पानी मे फेंकी गई कंकर से उठी लहर आखिरी किनारे तक पहुँचती है। उसी तरह कर्मों का फल भी जन्म जन्मों तक चलता है। अच्छे कर्म करे व अच्छा फल पाए।

♦ दौलत राम गर्ग जी – जींद – हरियाणा ♦

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— Conclusion —

  • “दौलत राम गर्ग जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लघु कथा में समझाने की कोशिश की है — आपकी कोशिश यही हो की आपकी वजह से कभी भी किसी को कोई दुःख न पहुंचे। इसलिए सदैव ही अच्छे कर्म करे जिससे आपका वर्तमान और भविष्य दोनों अच्छा हो। जैसे कि पानी मे फेंकी गई कंकर से उठी लहर आखिरी किनारे तक पहुँचती है। उसी तरह कर्मों का फल भी जन्म जन्मों तक चलता है। अच्छे कर्म करे व अच्छा फल पाए।

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यह लघु कथा (कर्मों का फल जन्म जन्मों तक।) “दौलत राम गर्ग जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा जन्म — जींद – हरियाणा, तहसील सफीदों, गांव खातला में हुआ, मैट्रिक तक शिक्षा गांव में ही प्राप्त की फिर पानीपत S D College से B. Com में डिग्री प्राप्त की। 2 वर्ष तक इसी कॉलेज में कार्यरत रहा। 1977 में बैंक की नौकरी शुरू की और 2014 में Sr. Manager की पोस्ट से रिटायर हुआ। इस दौरान कलकत्ता, फरीदाबाद, उदयपुर, दिल्ली, चंडीगढ़, हिसार व रोहतक स्थानों में सेवा का मौका मिला। 1977 से ही गांव छोड़ दिया था। 1987 से दिल्ली में ग्रस्थ आश्रम है। अब रिटायरमेंट जीवन गुजार रहे है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

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प्यार का return गिफ्ट।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

ϒ प्यार का return गिफ्ट। ϒ

प्यार का रिटर्न गिफ्ट – हम जानते है की शब्दो की अपेक्षा कार्य अधिक जोर से बोलते है। यदि हम किसी से कहे, “मैं तुमसे प्यार करता हूँ,” चाहे इन शब्दों में या किसी दूसरे शब्दों में और फिर कुछ ऐसा कार्य कर दे जो यह प्रदर्शित करे कि हमारा वाकई यह मतलब नहीं था तो हमारी क्रियाएँ हमारा भेद खोल देगी। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि हर स्थिति में हम वैसा ही कार्य करे जैसा हम बोलते हैं।

  • हमे लगता है कि इसका एक उत्तम उदाहरण वह सच्ची घटना हैं जो कई वर्षों पहले घटी थी और जो देश के पहले और सबसे बड़े करोड़पति व्यक्तियों में से एक और दयावान एंड्रयू कारनेगी से संबंधित है।
  • एक दिन गिरते पानी में एक मैली कुचैली सी बूढी महिला न्यूयार्क के एक डिपार्टमेंटल स्टोर में पानी से बचने और मदद मांगने के लिए आई। परन्तु वह पूरी गीली और निर्धन दिखाई पड़ रही थी, इसलिए किसी ने भी उसकी ओर ध्यान नहीं दिया।
  • एक युवा सेल्समैन को छोड़कर जिसने उससे कहा – “जब तक कोई आपको लेने नहीं आता और आप उसका इंतज़ार कर रही है, क्या आप बैठना चाहेंगी?” और उसने उस बूढ़ी महिला के लिए taxi की व्यवस्था की। जाने के पहले उसने पूछा, “young मैन, तुम्हारा नाम और पता एक कागज पर लिखकर मुझे दो।” और उसने वही किया।
  • अगले दिन उस महिला के बेटे, एंड्रयू कारनेगी, ने उस स्टोर को फ़ोन किया और कहा कि वह अपने नए ख़रीदे हुए स्कॉटिश महल की सजावट के लिए पूरा furniture खरीदना चाहता है। उसने आगे कहा कि वह चाहता है कि वही युवा सेल्समैन सारी बिक्री करे और पूरा कमीशन उसे ही दिया जाए। इसके अतिरिक्त वह चाहता है कि वह युवक उसके साथ स्कॉटलैंड जाकर उस furniture को fit करने में मदद करे। 
  • मैनेजर ने अपने को लगे आघात को छुपाया और कहा कि वह युवक अनुभवहीन है और वह स्वयं वहाँ पर कई वर्षो से कार्य कर रहा है और उसे इतना बड़ा कार्य करके बहुत ख़ुशी होगी।
  • इस पर कारनेगी ने जवाब दिया, “मेरी माँ ने कहा कि इस युवक ने उसके प्रति उदारता दिखाई है जबकि वह जानता भी नहीं था कि वह महिला कौन थी। इससे मुझे पता चला कि वह व्यापार और लोगों को समझता है। उसे यह कार्य सौंपा जाता है और मैं चाहता हूँ कि उसे सभी कमीशन दिया जाए। मैं दुबारा जाँच करूँगा कि उसे यह मिले, और यदि उसे नहीं मिला, तो मैं अपना लेन-देन भविष्य में कही और करूँगा।

“दुनिया में प्यार ऐसी अकेली वस्तु है जिसे पाने के लिए उसे देना पड़ता है।”

उदारता से कार्य करते हुए उस युवक ने मानवीय प्यार का प्रदर्शन किया था।

सीख – इस संसार में प्यार से बड़ी कुछ भी नहीं। जिसे भी सच्चा प्यार मिल जाए इससे बढ़कर और कुछ भी नहीं। अगर आप प्यार चाहते है तो पहले सभी को प्यार देना शुरू कर दे – “प्यार देंगे तो प्यार मिलेगा जरूर” प्रेम ईश्वर का दूसरा रूप है। सच्चे प्यार की कोई भी कीमत नहीं लगा सकता है – अर्थात: बेशकीमती। चाहे बड़े हो या छोटे सभी को प्यार आदर और सम्मान दे बदले में आपको भी प्यार – आदर और सम्मान मिलेगा।

  • हिंदी कहानी – निरंतर प्रयास जरूर पढ़े।

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Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaensolar radiation, and encourage good solar radiation to become themselves.

 ~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)

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निरंतर प्रयास।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ निरंतर प्रयास। ϒ

प्यारे दोस्तों, Secret of success…

महात्मा बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के लिए घोर तप में लगे थे। उन्होंने शरीर को काफी कष्ट दिया, यात्राएं की घने जंगलों में कड़ी साधना की, पर आत्मज्ञान की प्राप्ति नही हुई। एक दिन बुद्ध निराश होकर सोचने लगे मैंने अभी तक कुछ भी प्राप्त नही किया। अब आगे क्या कर पाउँगा? निराशा, अविश्वास के इन नकारात्मक भावों ने उन्हें क्षुब्ध कर दिया। कुछ ही क्षणों बाद उन्हें प्यास लगी। वे थोड़ी दूर स्थित एक झील तक पहुंचे। वहां उन्होंने एक दृश्य देखा कि एक नन्ही सी गिलहरी के दो बच्चे झील में डूब रहे है। पहले ताे वह गिलहरी जड़वत बैठी रही, फिर कुछ देर बाद उठकर झील के पास गई, अपना सारा शरीर झील के पानी में भिगोया और फिर बाहर आकर पानी झाड़ने लगी। ऐसा वह बार – बार करने लगी। 

बुद्ध सोचने लगे, इस गिलहरी का प्रयास कितना मूर्खतापूर्ण है। क्या कभी यह इस झील को सुखा सकेगी? किन्तु गिलहरी का यह क्रम लगातार जारी था। “बुद्ध को लगा मानो गिलहरी कह रही हो – यह झील कभी खाली होगी या नहीं, यह मैं नहीं जानती, किन्तु मैं अपना प्रयास नहीं छोडूंगी।” अंततः उस छाेटी सी गिलहरी ने महात्मा बुद्ध को अपने लक्ष्य-मार्ग से विचलित होने से बचा लिया। वे सोचने लगे कि जब यह नन्ही गिलहरी अपने लघु सामर्थ्य से झील को सूखा देने के लिए कृत संकल्पित है तो मुझमें क्या कमी है? मैं तो इससे हजार गुना अधिक क्षमता रखता हूँ। यह सोचकर महात्मा बुद्ध पुनः अपनी साधना में लग गए और एक दिन बाेधि-वृक्ष तले उन्हें ज्ञान का आलोक प्राप्त हुआ।

सीख – असफलताओं के बावजूद, असफलताओं से सीख लेकर – लगातार प्रयास जारी रखना चाहिए। यदि हम प्रयास करना न छोड़े तो एक न एक दिन लक्ष्य की प्राप्ति हो ही जाती है। शांत दिमाग से धैर्य के साथ प्रयास जारी रखें। परिवर्तन व risk लेने से घबराये नहीं। Life में Growth करना है तो परिवर्तन जरूरी है। सफलता प्राप्त करने के लिए अपने Comfort Zone से बाहर निकले। प्रयासों के छोटे-छोटे सकारात्मक step के साथ आगे बढ़े। सफलता आपको अवश्य मिलेगी।

Put your heart, mind, and soul into even your smallest acts. This is the secret of success.

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स्व का पहचान सर्व ज्ञान का स्रोत।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMSRAJ51-4

ϒ स्व का पहचान सर्व ज्ञान का स्रोत। ϒ

प्यारे दोस्तों – आज मैं आप सभी को बहुत समय पहले की एक सत्य से अवगत करवाता हूँ।

महर्षि उद्दालक के पुत्र श्वेतकेतु अत्यंत प्रतिभाशाली थे। गुरुकुल में निरंतर १२ वर्षो तक शास्त्रों का अध्ययन करने के पश्चात् – जब वे महर्षि के पास लौटे तो उन्होंने उनसे प्रश्न किया – “वत्स ! वह क्या है, जिसका ज्ञान होने से सृष्टि के समस्त पहलुओं का ज्ञान हो जाता है।”

इस प्रश्न का उत्तर श्वेतकेतु से न देते बना तो – उसकी जिज्ञासा का समाधान करते हुए महर्षि उद्दालक बोले – “पुत्र जिस प्रकार स्वर्ण का ज्ञान हो जाने से स्वर्ण से बनी सभी वस्तुओं का ज्ञान हो जाता है, कृषि का ज्ञान हो जाने से सभी अन्य वनस्पतियो को उगाने का ज्ञान हो जाता है।”

“वैसे ही आत्मा का ज्ञान हो जाने से सृष्टि के समस्त पहलुओं का ज्ञान हो जाता है। तुम अब अपना जीवन उसी आत्मज्ञान को प्राप्त करने में लगाओं।”

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जो जैसा दिखता है – वैसा होता नहीं सदैव।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ जो जैसा दिखता है – वैसा होता नहीं सदैव। ϒ

दो बंदर एक दिन घूमते-घूमते एक गांव के समीप पहुंच गये। उन्होंने वहाँ फलों से लदा पेड़ देखा। एक बंदर ने चिल्लाकर कहा – “इस पेड़ को देखो ! ये फल कितने सूंदर दिख रहे है। ये अवश्य ही स्वादिष्ट होंगे। चलो, हम दोनों पेड़ पर चढ़कर फल खाये।”

दूसरा बंदर बुद्धिमान था। उसने कुछ सोचकर कहा – “नहीं, नहीं। ज़रा ठहराे ! यह पेड़ गांव के समीप है और इसके फल इतने सुंदर और पके हुए है, लेकिन यदि ये फल अच्छे होते तो गांव वाले ही इन्हे तोड़ लेते, इन्हें ऐसे ही पेड़ पर नहीं लगे रहने देते। लेकिन इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि किसी ने भी इन फलों को हाथ तक नहीं लगाया है। हो सकता है कि ये फल खाने लायक न हो।”

उसकी ये बातें सुनकर पहले बंदर ने कहा – ” कैसी बेकार कि बातें कर रहे हो। मुझे तो इन फलों में कुछ बुरा नहीं दिख रहा। मैं तो इन्हें खाने जा रहा हूँ, तुम्हे साथ चलना है तो चलो।”

दूसरे बंदर ने फिर से उसे सावधान करते हुए कहा – “तुम्हे इस बारे में फिर से सोचकर निर्णय लेना चाहिए। मैं भोजन के लिए कुछ और ढूंढता हूँ।” पहला बंदर पेड़ पर चढ़कर फल खाने लगा, परन्तु वे फल ही उसका अंतिम भोजन बन गए; क्योकि वे फल ज़हरीले थे।

  • हिंदी कहानी – निरंतर प्रयास जरूर पढ़े।

दूसरा बंदर जब लौटा तो उसने अपने साथी को मरा हुआ पाया। इसलिए कहा जाता है कि हर चमकने वाली चीज सोना नहीं हुआ करती। अर्थात: जो जैसा दिखता है – वैसा होता नहीं सदैव।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।~Kmsraj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

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“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAJ51

 

 

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कर्तव्य की उपेक्षा।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ कर्तव्य की उपेक्षा। ϒ

kmsraj51-dereliction-of-duty

एक सेठ के पास बहुत सारी गायें थी। उसने उनकी देखभाल के लिए दाे नाैकर रखे। कुछ दिनाें के बाद पता चला कि गायें बहुत दुबली हाे गई हैं और कुछ मर भी चुकी हैं। सेठ को इस पर बहुत गुस्सा आया। उसने इसके लिए दाेनाें नाैकराें काे जिम्मेदार ठहराया। जांच करने पर पता चला कि दाेनाें नाैकर अपने-अपने व्यसनाें में लगे रहे। एक काे जुआ खेलने की आदत थी। गायाें की देखभाल करने में उसका मन नहीं लगता था।

अक्सर वह जुआ खेलने बैठ जाता और गायाें की देखभाल नहीं हाे पाती थी। यही बात दुसरे के साथ भी थी। वह पूजा-पाठ का व्यसनी था। वह गायाे की तरफ ध्यान नहीं देता और पूजा-पाठ में लगा रहता था। सेठ दाेनाें काे राजा के पास ले गया। राजा काे उनके बारे में फैसला करना था। लाेगाें काे लगा कि राजा पूजा-पाठ करने वाले नाैकर काे क्षमा कर देगा। लेकिन राजा ने दाेनाें काे समान दंड दिया और कहा कर्तव्य की उपेक्षा अपराध है चाहे वह किसी भी कारण से किया जाए।

प्यारे दोस्तों – जब भी कभी काेई भी जिम्मेदारी वाला कार्य आपके ऊपर हाे, अर्थांत आपके ऊपर निर्भर हाे ताे सही समय पर कार्य काे प्रधानता देते हुए सही तरह से करें।

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* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

* अपनी आदतों को कैसे बदलें।

∗ निश्चित सफलता के २१ सूत्र।

* क्या करें – क्या ना करें।

∗ जीवन परिवर्तक 51 सकारात्मक Quotes of KMSRAJ51

* विचारों का स्तर श्रेष्ठ व पवित्र हो।

* अच्छी आदतें कैसे डालें।

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* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

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बहन का स्नेह मिलना खुशनसीबी है।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ बहन का स्नेह मिलना खुशनसीबी है। ϒ

एक छोटा-सा पहाड़ी गांव था। वहां एक किसान, उसकी पत्नी, एक बेटा और एक बेटी रहते थे। एक दिन बेटी की इच्छा स्कार्फ खरीदने की हुई और उसने पिताजी की जेब से 10 रुपए चुरा लिए।

पिताजी को पता चला तो उन्होंने सख्ती से दोनों बच्चों से पूछा – पैसे किसने चुराए ?
अगर तुम लोगों ने सच नहीं बताया तो सजा दोनों को मिलेगी। बेटी डर गई, बेटे को लगा कि दोनों को सजा मिलेगी तो सही नहीं होगा।

वह बोला – पिताजी, मैंने चुराए, पिताजी ने उसकी पिटाई की और आगे से चोरी न करने की हिदायत भी दी। भाई ने बहन के लिए चुपचाप मार खा ली। वक्त बीतता गया। दोनों बच्चे बड़े हो गए।

एक दिन मां ने खुश होकर कहा – दोनों बच्चों के रिजल्ट अच्छे आए हैं। पिताजी (दुखी होकर) – पर मैं तो किसी एक की पढ़ाई का ही खर्च उठा सकता हूं।

बेटे ने फौरन कहा – पिताजी, मैं आगे पढ़ना नहीं चाहता।
बेटी बोली – लड़कों को आगे जाकर घर की जिम्मेदारी उठानी होती है, इसलिए तुम पढ़ाई जारी रखो। मैं कॉलेज छोड़ दूंगी। अगले दिन सुबह जब किसान की आंख खुली तो घर में एक चिट्ठी मिली।

उसमें लिखा था – मैं घर छोड़कर जा रहा हूं। कुछ काम कर लूंगा और आपको पैसे भेजता रहूंगा। मेरी बहन की पढ़ाई जारी रहनी चाहिए। एक दिन बहन हॉस्टल के कमरे में पढ़ाई कर रही थी।

तभी गेटकीपर ने आकर कहा – आपके गांव से कोई मिलने आया है। बहन नीचे आई तो फटे-पुराने और मैले कपड़ों में भी अपने भाई को फौरन पहचान लिया और उससे लिपट गई।

बहन – तुमने बताया क्यों नहीं कि मेरे भाई हो – भाई।

मेरे – ऐसे कपड़े देखकर तुम्हारे सहेलियाें में बेइज्जती होगी। मैं तो तुम्हें बस एक नजर देखने आया हूं।
भाई चला गया – बहन देखती रही।

बहन की शादी शहर में एक पढ़े – लिखे लड़के से हो गई। बहन का पति कंपनी में डायरेक्टर बन गया। उसने भाई को मैनेजर का काम ऑफर किया, पर उसने इनकार कर दिया।

बहन ने नाराज होकर वजह पूछी तो भाई बोला – मैं कम पढ़ा-लिखा होकर भी मैनेजर बनता तो तुम्हारे पति के बारे में कैसी-कैसी बातें उड़तीं, मुझे अच्छा नहीं लगता।

भाई की शादी गांव की एक लड़की से हो गई। इस मौके पर किसी ने पूछा कि उसे सबसे ज्यादा प्यार किससे है ?

वह बोला – अपनी बहन से, क्योंकि जब हम प्राइमरी स्कूल में थे तो हमें पढ़ने दो किमी दूर पैदल जाना पड़ता था। एक बार ठंड के दिनों में मेरा एक दस्ताना खो गया।

बहन ने अपना दे दिया – जब वह घर पहुंची तो उसका हाथ सुन्न पड़ चुका था और वह ठंड से बुरी तरह कांप रही थी। यहां तक कि उसे हाथ से खाना खाने में भी दिक्कत हो रही थी। उस दिन से मैंने ठान लिया कि अब जिंदगी भर मैं इसका ध्यान रखूंगा। बहन ने हमारी हर गलती का बचाव किया था बचपन से वो हमे मां-बाप से ज्यादा स्नेह करती है।

जीवन में कुछ मिले या ना मीले पर बहन का स्नेह मिलना खुशनसीबी है।

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समोसे की दुकान।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ समोसे की दुकान। ϒ

दोस्तों – सदैव ही अपने आत्मा की आवाज काे सुने। जाे कर्म करने से आपकाे अंदर से ख़ुशी(आनंद) महसूस हाे वही कर्म आपके लिए Perfect हैं।

अर्थात – यदि आपकाे आर्ट करना अच्छा लगता है, ताे इसे ही अपना Career बना लें। वह काेई भी कार्य हाे सकता है – जैसे तैराकी, कढ़ाई, बुनाई, सिलाई, व्यवसायी, खाना बनाना, प्रेरक वक्ता बनना, अध्यापक, अभिनेता, किसी भी प्रकार के खेल कूद, नृत्य इत्यादि।

Samosa shop-KMSRAJ51

एक बडी कंपनी के गेट के सामने एक प्रसिद्ध समोसे की दुकान थी। लंच टाइम मे अक्सर कंपनी के कर्मचारी वहा आकर समोसे खाया करते थे। एक दिन कंपनी के एक मैनेजर समोसे खाते-खाते समोसे वाले से मजाक के मूड मे आ गये।

मैनेजर साहब ने समोसे वाले से कहा, “यार गोपाल, तुम्हारी दुकान तुमने बहुत अच्छे से मेंटेन की है। लेकीन क्या तुम्हे नही लगता की तुम अपना समय और टॅलेंट समोसे बेचकर बर्बाद कर रहे हो ? सोचो अगर तुम मेरी तरह इस कंपनी मे काम कर रहे होते तो आज कहा होते ~ हो सकता है शायद तुम भी आज मैनेजर होते मेरी तरह।”

इस बात पर समोसे वाले गोपाल ने बडा सोचा, और बोला – ” सर ये मेरा काम अापके काम से कही बेहतर है। 10 साल(10 Year) पहले जब मै टोकरी मे समोसे बेचता था तभी आपकी जाॅब लगी थी। तब मै महीना हजार रुपये कमाता था और आपकी पगार थी 10 हजार।

इन 10 सालो मे हम दोनो ने खूब मेहनत की – आप सुपरवाइजर से मैनेजर बन गये, और मै टोकरी से इस प्रसिद्ध दुकान तक पहुच गया। आज आप महीना 40,000 रुपये कमाते है, और मै महीना 2,00,000 रुपये।

लेकीन इस बात के लिए मै मेरे काम को आपके काम से बेहतर नही कह रहा हूँ। ये तो मै बच्चो के कारण कह रहा हूँ।

जरा सोचिए सर मैने तो बहुत कम कमाइ पर धंधा शुरू किया था, मगर मेरे बेटे को यह सब नही झेलना पडेगा। मेरी दुकान मेरे बेटे को मिलेगी। मैने जिंदगी मे जो मेहनत की है, वो उसका लाभ मेरे बच्चे उठाएंगे।

जबकी आपकी जिंदगी भर की मेहनत का लाभ आपके मालिक के बच्चे उठाएंगे ….. अब आपके बेटे को आप Direct अपनी पोस्ट पर तो नही बिठा सकते ना। उसे भी आपकी ही तरह जीरो से शुरूआत करनी पडेगी, और अपने कार्यकाल के अंत मे वही पहुच जाएगा जहा अभी आप हो।

जबकी मेरा बेटा बिजनेस को यहा से और आगे ले जाएगा, और अपने कार्यकाल मे हम सबसे बहुत आगे निकल जाएगा। अब आप ही बताइये की किसका समय और टॅलेंट बर्बाद हो रहा है ?” मैनेजर साहब ने समोसेवाले को 2 समोसे के 20 रुपये दिये और बिना कुछ बोले वहा से खिसक लिये।

सीख – सदैव याद रखें – जाे कर्म करने से आपकाे अंदर से ख़ुशी(आनंद) महसूस हाे वही कर्म आपके लिए Perfect हैं।

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प्यार ही सर्वोपरि है।

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ϒ प्यार ही सर्वोपरि है। ϒ

Love is paramount-kmsraj51

 

प्यार ही सर्वोपरि है – एक बार गोपाल बहुत परेशान था। उसके घर में शांति नहीं थी। सभी एक दूसरे से लड़ते झगड़ते रहते थे। एक दूसरे को  दोषी ठहराते थे और अंत में भगवान् पर भी दोषारोपण करते -“कि भगवान् तूने हमे क्यों जन्म दिया ? या फिर तुम सबकुछ देखते रहते हो और आनंद उठाते हो।”

एक दिन गोपाल ने कहा – “आज शाम को छः  बजे  सभी घर के आँगन में जमा होंगे, लड़ाई झगड़ा करते हुए तो हमने काफी समय बिताया है पर आज हम कहीं घूमने जाएंगे।”

घूमने की बात सुनकर सभी राजी हो गए। शाम के छः बजे तो सभी आँगन में इकट्ठे हो गए। सभी जानने के लिए उत्सुक थे कि आखिर घूमने कहाँ चलेंगे?

गोपाल ने कहा – “मैंने गाडी बुलाई है, उसी में बैठ कर चलेंगे।” तभी दो तीन रिक्शा आ गयी। फिर से झगड़ा शुरू हो गया। खैर समझाने पर वो सब रिक्शा में बैठ गए। लेकिन रिक्शा में बैठते ही मुंह सुकोड़ने लगे और भगवान् को ताने देना शुरू -“हे भगवान् ! कहाँ फंसा दिया? कहाँ घूमने जाएंगे ? “मंदिर घूमने आये हैं क्या हम ?

“हाँ क्यों नहीं ? अभी सभी तो भगवान् को याद  कर रहे थे। चलो इन्ही से पूछ लेते हैं—- ” – गोपाल ने कहा।

मुंह बनाकर सभी मंदिर में गए – गोपाल ने कहा “देखो – हम सब भगवान् से बहुत कुछ मांगते हैं, अपना दुःख दर्द इन्हें बताते हैं। कभी कभी गुस्से में इन्हें बहुत कुछ कह भी देते हैं पर कभी सोचा है कि ये तो भगवान् हैं परंतु वो जीव भी जो इनके संपर्क में है कितनी सादगी, प्रेम, सहनशीलता और शान्ति के साथ रहते हैं जो आवश्यक रूप से एक दूसरे के शत्रु होते हैं, यहाँ उनमें भी मित्रता है फिर तुम लोग तो भाई बहिन हो।”

बच्चों  की समझ में कुछ न आया तब गोपाल ने कहा -“शिवजी का वाहन – नंदी बैल, माता जी का वाहन – शेर, अर्थात – शेर बैल का शत्रु  होता है। शिवजी के गले का अलंकार / गहना -सांप, कार्तिकेय का वाहन – मोर, अर्थात मोर सांप का शत्रु होता है लेकिन कभी सुना है इन्हें आपस में झगड़ते हुए ?”

बच्चों ने कहा – “नहीं ये सब एक दूसरे के शत्रु नहीं बल्कि ये तो भगवान् का परिवार है।”

सीख:- गोपाल ने कहा – “ठीक कहा तुमने कि ये भगवान् का परिवार है पर हम भी तो उन्ही की संतान हैं और फिर तुम सब भी तो भाई बहन हो शत्रु नहीं। जब प्रकृति अनुरूप शत्रुता होने के बाद भी कुछ प्राणी प्रेम करना नहीं भूलते तो फिर मित्रता भाव प्रकृति होने पर हम एक दूसरे के शत्रु क्यों बन जाते हैं?”

सभी को गोपाल की बात अच्छी लगी, सभी ने मिलकर कहा – “प्यार ही सर्वोपरि है।” तभी से वो सभी लोग घर में शांतिपूर्वक और प्रेम से रहने लगे।

©- नंदिता शर्मा जी। (नोएडा, उत्तर प्रदेश)®

Nandita-Kmsraj51
नंदिता शर्मा जी।

हम दिल से आभारी हैं नंदिता शर्मा जी के “प्रेरणादायक कहानी – प्यार ही सर्वोपरि है।” हिन्दी में साझा करने के लिए।

नंदिता शर्मा जी के लिए मेरे विचार: 

♣ “नंदिता शर्मा जी” ने Love is paramount (“♥ प्यार ही सर्वोपरि है। ♥“) का कितना सुंदर-रमणीय वर्णन कहानी के माध्यम से किया हैं। जिसके हर एक शब्दों में सकारात्मक ऊर्जा रूपी अलाैकिक सार भरा हैं। जाे हर एक शब्द पर विचार सागर-मंथन कर हृदयसात करने योग्य हैं। सरल शब्दाे में हाेते हुँये भी हृदयसात करने योग्य हैं। जाे भी इंसान इन कहानियों काे गहराई(हर शब्दाे का सार) से समझकर आत्मसात करें, उसका जीवन धन्य हाे जायें।

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© आप सभी का प्रिय दोस्त ®

Krishna Mohan Singh(KMS)
Head Editor, Founder & CEO
of,,  http://kmsraj51.com/

जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं। ~ कृष्ण मोहन सिंह(KMS)

 ~Kmsraj51

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– कुछ उपयोगी पोस्ट सफल जीवन से संबंधित –

* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

∗ निश्चित सफलता के २१ सूत्र।

* क्या करें – क्या ना करें।

∗ जीवन परिवर्तक 51 सकारात्मक Quotes of KMSRAJ51

* विचारों का स्तर श्रेष्ठ व पवित्र हो।

* अच्छी आदतें कैसे डालें।

* KMSRAJ51 के महान विचार हिंदी में।

* खुश रहने के तरीके हिन्दी में।

* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

kmsraj51- C Y M T

“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaensolar radiation, and encourage good solar radiation to becomethemselves.

 ~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”

~KMSRAJ51

 

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