Kmsraj51 की कलम से…..
ϒ कुछ दिन पहले। ϒ
कुछ दिन पहले इस किताब में –
महक रहे थे बरक नये।
जिल्दसाज तुम बतलाओ।
वे सफे सुनहरे किधर गये।
जहाँ इत्र की महक रवां थी।
जलने की बू आती है।
दहशत वाले बादल कैसे।
आसमान में पसर गये।
बूढ़ा होकर इंकलाब क्यों –
लगा चापलूसी करने।
कलमों को चाकू होना था।
क्यों चमच्च में बदल गये।
बंधे रहेंगे सब किताब में।
मजबूती के धागे से।
एक तमन्ना रखने वाले।
बरक-बरक क्यों बिखर गए।
जिल्दों से नाजुक बरकों को।
क्या तहरीर बचाएगी।
क्या मजनून बदलने होंगे।
गढ़ने होंगे लफ़्ज नए।
डॉ कौशल किशोर श्रीवास्तव जी के लिए मेरे विचार:
आपकी कविताओं को गहराई से जो भी समझे – मानो उसका जीवन धन्य हो जाएं। मानो उसने हीरा ही पा लिया हो। दिल को छूनेवाली – अत्यंत सुंदर कविता।
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Krishna Mohan Singh(KMS)
Editor in Chief, Founder & CEO
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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।~Kmsraj51
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