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बचपन की यादें इन हिंदी

लोहारी नहीं डूबा।

Kmsraj51 की कलम से…..

Lohari Nahin Dooba | लोहारी नहीं डूबा।

लोहारी नहीं डूबा, डूबी हमारी यादें सारी,
बचपन में जहाँ खेले कूदे, आपस मे थी सब मे यारी।
नफरत का नामोनिशान न था, न बेईमानी न मक्कारी,
गाँव था मेरा स्वर्ग समान, जहाँ थे पचासों मकान।

भलाई, ईमानदारी के तराजू थे, न थी कोई मतलबी दुकान,
बच्चे, बूढे़ और जवान, करते एक दूजे का सम्मान।
शहरों की अन्धेरी होड़ मे, चारो तरफ है मारामारी,
लोहारी नहीं डूबा, डूबी हमारी यादें सारी।

जिस गाँव की गलियों मे, लुका छुपि का खेल खेलते,
दादा-दादी हुक्का पीते, और हुक्के के अंगारे जलते।
हुक्के की आवाज को, हम बडे़ चाव से सुनते,
कभी उनकी लाठी खींचते, कभी उनके बालों को धुनते।

हमें कभी एहसास भी न था कि ऐसा मंजर आएगा,
हम भोले ग्रामीणों का, सुख चैन ले जाएगा।
कितना रोते कितना विलखते, कोई नही था सुनने वाला,
भगवान से प्रार्थना करते, रक्षा करो हे ऊपर वाला।
जब सरकार के आकाओं ने, किया एक फरमान जारी,
अपनी यादें समेट लो, अब करो तुम जाने की तैयारी,
लोहारी नहीं डूबा है, डूबी है यादें हमारी।

हे लोकतंत्र के ठेकेदारों, हम कहा जाएगें,
अपने प्यारे गाँव को, अब कहा से लाएगे।
कितने बडे़ खरीद्दार हो? हमारी यादों को भी खरीद पाओगे,
जिन यादों में बचपन पला है, उनको कैसे लौटाओगे?

क्या कसूर था भोले गाँव का? जो तुमने ये सिला दिया,
सभी लोगों की यादों को, पानी मे क्यों मिला दिया?
जो तुमने आँकलन किया यह नहीं थी अभिलाषा हमारी,
लोहारी नहीं डूबा है, डूबी है आत्मा हमारी।
लोहारी नहीं डूबा है, डूबी है तमन्नाऐं हमारी,
लोहारी नहीं डूबा है, डूबी है जन्म भूमि, मातृ भूमि हमारी।

लोहारी तथा इस प्रकार से पीड़ित ग्रामीणों को समर्पित कविता।

♦ लाल सिंह वर्मा जी – जिला – सिरमौर, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

• Conclusion •

  • “लाल सिंह वर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — दो पल ठहर कर मन-मन से अब गुफ्तगू करने लगा। कितना निर्मल व पवित्र सुखमय जीवन था पहले गांव वालो का, वह जीवन आजकल के शहर के चकाचौध में कहां गुम सा हो गया हैं, आया बनावटी भूचाल, कुछ ऐसा की सब कुछ तहस-नहस कर गया। वह बचपन की यादे व सुख चैन यादों में सदैव के लिए फीड सा हो गया। जब कोरोना आया चारों तरफ अपना कोहराम मचाया सब कुछ तहस नहस करके, सभी के जीवन को प्रभावित किया। किसी को एहसास भी न था कि ऐसा मंजर आएगा, हम भोले ग्रामीणों का, सुख चैन ले जाएगा।

—————

यह कविता (लोहारी नहीं डूबा।) “लाल सिंह वर्मा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं लाल सिंह वर्मा सुपुत्र श्री भिन्दर सिंह, गांव – खाड़ी, पोस्ट ऑफिस – खड़काहँ, तहसील – शिलाई, जिला – सिरमौर, हिमाचल प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक शिक्षक हूं, शिक्षा विभाग में भाषा अध्यापक के पद पर कार्यरत हूँ। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है, हिंदी भाषा से सम्बन्धित साहित्यिक विधाओं में रचनाएं लिखना तथा विशेष रूप से सांस्कृतिक, आध्यात्मिक व मानवीय मूल्यों से सम्बन्धित रचनाओं का अध्ययन करना पसंद है। इस Platform (KMSRAJ51.COM) के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

शैक्षिक योग्यता – J.B.T, BEd., MA in English and MA in Hindi, हिंदी विषय में राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण की है। अध्यापक पात्रता परीक्षा L.T., J.B.T., TGT पास की है। केंद्र विश्वविद्यालय PHD• (पीएचड•) प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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Filed Under: 2023-KMSRAJ51 की कलम से, हिंदी कविता, हिन्दी-कविता Tagged With: Hindi Poems, कवि‍ताएँ, गाँव की मिट्टी, गाँव की यादें पर कविता, गाँव की व्यथा, गाँव की व्यथा – लाल सिंह वर्मा, गाँव पर कविता, गांव पर कविता इन हिंदी, बचपन की मासूमियत शायरी, बचपन की यादें इन हिंदी, लाल सिंह वर्मा, लाल सिंह वर्मा जी की कविताएं, लोहारी नहीं डूबा, लोहारी नहीं डूबा - लाल सिंह वर्मा, शहर और गांव पर कविता

गाँव की व्यथा।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ गाँव की व्यथा। ♦

लोग थे मेरे भोले भाले,
लोग थे मेरे भोले भाले।
लाखो संकट सहन किए,
मानव को मानवता मे रहने दिए,
कभी ना हुए ओ मन के काले।

चका चौध की इस दुनिया को,
शांति उनकी रास न आई।
कई अंधेरों ने आगे आकर,
उलटी उनको राह दिखाई।

देश से विदेश गए कुछ,
गाँव से प्रदेश गए कुछ।
लगी भनक जब चका चौध की,
अपनों को ही मानने लगे तुच्छ।

पर औकात क्या थी,
उनकी ऐसा करने की।
अगर जागरूक सरकारी तंत्र होता,
उन भोले ग्रामीणों के लिए,
इनके पास उन्नति का मंत्र होता।

भेज दिया गाँव को ढूंढने,
एक पतली सी सड़क को।
हाफ़्ती हाफ़्ती गाँव पहुंची,
बची कसर पूरी करने को।

आना था उसे वर्षो पहले,
बड़ी उलझनों से आज आई।
ग्रामीण संस्कृति को आँख दिखाकर,
फिर वह सभ्य कहलाई।

उदय होता…
सम्पूर्ण सनातनता का।
यदि गाँव का पूर्ण उदय होता,
रखते लाज मेरे संरक्षण की।
हाल न आज ऐसा होता,
लोग थे मेरे भोले भाले,
लोग थे मेरे भोले भाले।

♥ गाँव को समर्पित कविता। ♥

♦ लाल सिंह वर्मा जी – जिला – सिरमौर, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

• Conclusion •

  • “लाल सिंह वर्मा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — देश से विदेश गए कुछ, गाँव से प्रदेश गए कुछ। आखिर क्यों आजकल के बच्चें गांव से शहर को जाकर वहां की लगी भनक जब चका चौध की अपना सुध-बुध खोकर गांव वालों को व अपनों को ही मानने लगे तुच्छ। पर औकात क्या थी, उनकी ऐसा करने की। अगर जागरूक सरकारी तंत्र होता तो उन भोले ग्रामीणों के लिए, इनके पास भी उन्नति का मंत्र होता। गांव भी उन्नति से सराबोर होता। अभी कुछ समय पहले जब कोरोना आया था तो सभी को अपना गांव ही याद आया सभी बचने के लिए गांव भागकर आये। उदय होता… सम्पूर्ण सनातनता का, यदि गाँव का पूर्ण उदय होता। रखते लाज मेरे संरक्षण की हाल न आज ऐसा होता। गांव के लोग थे मेरे भोले भाले। एक बात याद रखना – आज भी गांव में इंसानियत जीवित है, ताज़ी हवा व खानपान सात्विक है, सभी मिल जुलकर प्रेम से रहते है, मुसीबत में एक दूसरे के काम आते है। जब जब तुम तकलीफ में रहोगे तुम्हे अपना गांव ही याद आएगा।

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यह कविता (गाँव की व्यथा।) “लाल सिंह वर्मा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं लाल सिंह वर्मा सुपुत्र श्री भिन्दर सिंह, गांव – खाड़ी, पोस्ट ऑफिस – खड़काहँ, तहसील – शिलाई, जिला – सिरमौर, हिमाचल प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक शिक्षक हूं, शिक्षा विभाग में भाषा अध्यापक के पद पर कार्यरत हूँ। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है, हिंदी भाषा से सम्बन्धित साहित्यिक विधाओं में रचनाएं लिखना तथा विशेष रूप से सांस्कृतिक, आध्यात्मिक व मानवीय मूल्यों से सम्बन्धित रचनाओं का अध्ययन करना पसंद है। इस Platform (KMSRAJ51.COM) के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

शैक्षिक योग्यता – J.B.T, BEd., MA in English and MA in Hindi, हिंदी विषय में राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण की है। अध्यापक पात्रता परीक्षा L.T., J.B.T., TGT पास की है। केंद्र विश्वविद्यालय PHD• (पीएचड•) प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की है।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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खोता जा रहा बचपन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ खोता जा रहा बचपन। ♦

बचपन जीवन का वो सबसे सुंदर पड़ाव है जिसको इंसान बुढ़ापे तक भी नही भूलता। ये समय भगवान का दिया वो अनमोल उपहार है जिसको जीने के लिए भगवान भी इस धरा पर अवतरित होते है। बच्चा जो भी अपने बचपन में अठखेलियां करता है वो बड़ों के चेहरों पर मुस्कान लाता है।

पर अब लगता है उस बचपन को ग्रहण लग गया जिसमें वो लुभाने वाली मासूमियत व भोलापन दिखाई देता था। बचपन को न कोई डर न किसी को ख़ौफ होता था बस उन अनमोल लम्हों को जीता हैं।

पहले पांच वर्ष के बालक को किताबों की ओर ले जाया जाता था ताकि वो स्कूली शिक्षा को प्राप्त करने में पूरी तरह सक्षम हो जाये। बच्चा अपना खुल कर बचपन को जी सके। लेकिन हम बड़ो ने अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए शायद ये भी बच्चों से छीन लिया।

इसका सबसे बड़ा उदाहरण है प्ले-वे-स्कूल। जहाँ पर बच्चे को लगभग दो साल में ही छोड़ दिया जाता है। कहने को वहाँ पर खेल-खेल में शिक्षा होती है। लेकिन आओं एक विचार करें कि तीन या चार कमरों की बन्द कोठियों में किस प्रकार कोई भी स्वतंत्र रहकर खेल सकता है।

जिस समय उसे माँ की ममता, दादा-दादी का दुलार, बड़े भाई-बहन का प्यार मिलना था वो तो सब उस खेल-खेल में शिक्षा के प्रांगण में खो गया। जिनके घर भरा-पूरा परिवार होता है उनका भी बचपन छीन जाता है।

जब बच्चा बड़े भाई-बहन को स्कूल जाते देखता है उसका जी भी मचलता है क्योंकि उस अबोध मन को कुछ पता नही होता। तो माता-पिता उसको उस प्राँगण में भेजने लग जाते है और सोचते है बच्चें की खुशी की खातिर किया।

लेकिन क्या कभी दस या पंद्रह दिन के बाद उस बच्चे की उस उदासी को भी महसूस किया है जब वो स्कूल जाने के नाम से ही रोने लगता है। चिड़चिड़ा हो जाता है। जिद्दी हो जाता है। अब उसकी बातों में बचपना नही एक झुंझलाहट दिखाई देती है।

क्योंकि उस प्राँगण में होता तो सब नियत समय पर ही है जैसे खाना, पीना, खेलना।

वो बच्चे को सुलाने में माँ की गोदी की लोरी तो खत्म ही हो जाती है। तो क्यूँ नही बच्चों को उनका बचपन ही उपहार में दिया जाए क्योंकि पूरी उम्र तो उसको इन्हीं नियमों में बंधे रहना है।

एक विचारणीय विषय है हम सब मिलकर विचार-विमर्श करें कि बच्चों का बचपन अपने घरों में ही किस प्रकार लौटाए, जिससे उनके खिलखिलाते बचपन में ही गुण भर जाए।

एक बच्चे का बचपन करें पुकार—

मुझसे मेरा बचपन मत छीनों यही पर तो मुझें पूरा जीवन जीना है।
यही पर वो खिलखिलाते अनुभव होंगे आगे तो बहाना पसीना है॥
मेरी मासूमियत मुझें लौटाकर मुझ पर एक अहसान करो।
भोले बचपन की यादें संजो लूं बस पूरा ये अरमान करो॥

♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — बच्चे मन के सच्चे, इनसे न छीनो इनका बचपन। इनको खुलकर जी लेने दो इनका बचपन, अपनी बचपन की यादों को अपनी जहन में समेट लेने दो इन्हें, इन नन्हे राजकुमारों को ना बांधो स्कूल के बंधन में। जिस समय उसे माँ की ममता, दादा-दादी का दुलार, बड़े भाई-बहन का प्यार मिलना था वो तो सब उस खेल-खेल में शिक्षा के प्रांगण में खो गया। जिनके घर भरा-पूरा परिवार होता है उनका भी बचपन छीन जाता है।

—————

यह लेख (खोता जा रहा बचपन।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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