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You are here: Home / Archives for ‘बसंत पंचमी’ का त्योहार

'बसंत पंचमी' का त्योहार

बसंत पंचमी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बसंत पंचमी। ♦

बसन्त पंचमी भारत का प्रमुख पर्व है हर साल माघ के महीने के पांचवें दिन (पंचमी) को हिन्दू कलेण्डर के अनुसार मानते है। हिंदी भाषा मे ” बसंत” बसन्त का अर्थ है बसंत और ” पंचमी” का अर्थ है, पांचवे दिन इस दिन माँ सरस्वती की पूजा की जाती है जो सबको कला बुद्धि और विद्या का आशीर्वाद देती है। इस दिन देवी सरस्वती का जन्म दिन भी होता है।

शीत ऋतु के बाद बसंत का आगमन होता है इस मौसम में प्रकृति खिल उठती है। खेतो में सरसों के पीले-पीले फूल खिल जाते है इसलिए देवी की पूजा में पीले वस्त्र पहनकर पूजा करने का विधान है, पीले फूल देवी पर अर्पित करते है। इस दिन सभी कलाकार किसी भी वर्ग के हो सब अपने उपकरण का पूजन करते है माँ से आशीर्वाद मांगते है। इसके साथ ही कुछ प्राचीन कहानी भी जुड़ी है।

ब्रह्मा जी के विनती पर देवी सरस्वती ने वीणा बजायी सारे संसार को वाणी की प्राप्ति हुई इसी कारण देवी सरस्वती को वीणा की देवी कहा, ये सब बसन्त पंचमी वाले दिन हुआ।

रावण के द्वारा सीताजी के हरण के बाद श्री राम जी दक्षिण की ओर बढे सीताजी की खोज में चलते चलते वो दण्डकारण्य स्थान पर पहुंचे। वही शबरी भीलनी भी रहती थी, वो श्रीराम की परम भक्त थी जब रामजी उनकी कुटिया में पधारे तो वह अपनी सुधि बुधि भूल गयी और चख चख कर श्रीरामजी की मीठे बेर खिलाने लगी।

दंडकारण्य स्थान गुजरात और मध्यप्रदेश में आता है गुजरात के डॉग जिले का वह स्थान है जहाँ शबरी माँ का आश्रम था बसन्त पंचमी वाले दिन श्रीराम जी उनके आश्रम में आये थे, वो शिला आज भी पूजी जाती है जहाँ श्री रामजी विराजे थे वहीं शबरी माँ का मंदिर भी है।

बसन्त का रंग पीला होता है जो सभी को बहुत लुभावना लगता है पीले रंग से प्रकृति अपना सिंगार करती है बसन्त सबके जीवन में उत्साह और प्रेम भरता है।

♦ पूनम गुप्ता जी – भोपाल, मध्य प्रदेश ♦

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  • “पूनम गुप्ता जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — बसन्त पंचमी भारत का प्रमुख पर्व है। बसन्त पंचमी के महत्व, और बसन्त पंचमी के दिन क्या क्या हुआ था इस बारे में विस्तार से बताया है। ज्ञान और बुद्धि के बिना ये जीवन किसी काम का नहीं। ज्ञान, बुद्धि की देवी अपनी कृपा व करुणा का संचार कर हम पर, हे माँ तुम्हारी करुणा बड़ी अपरम्पार है। मां शारदे की महिमा से अछूता न कोई मनुष्य है, मां के रूपों में ही छुपा हुआ पूर्ण जग संसार है। उन्हीं के चरणों में ज्ञान का भंडार है, विद्यादायिनी मां से आज रज है हमारी। मां शारदे वर दे तू अपने ही रंग में रंग दे। जो नकारात्मक प्रवृतियों से सकारात्मकता का कराए सदैव भान, पुस्तक ही बस एक नाम। जो निरस जीवन में सरसता का, रंग भरती, वीणा ही वो सरगम। स्फटिक माला दर्शाती वैराग्य और ध्यान बिन, न मिलता संपूर्णता का है भाव। अपनाने के लिए तो बहुत है मगर, कल्याणकारी अपनाने की कला हंस है सिखलाता। कीचड़ में ही कमल है खिलता, अर्थात: सर्व विघ्न से न्यारे व पवित्र, कोमलता और सुंदरता का क्या अनुपम सार है। वीणापाणी मां के सर्वस्व संरचना में, सबक बहुत बेहिसाब है। आओ हम सब मिलकर सच्चे मन से माँ की वंदना करे।

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यह लेख (बसंत पंचमी।) “पूनम गुप्ता जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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माँ सरस्वती वंदना।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ माँ सरस्वती वंदना। ♦

आदि ब्रह्मा की शुक्लाम्बरा,
कन्या हैं, माँ शारदा आप।
वेद-धर्म में है नारी सशक्त,
युग विचार की संविदा आप।
ब्रह्म-विद्या की वरदा हैं आप।

पितामह संकल्प से सिरजें,
जंगम-स्थावर जीव अनेक।
मौन, उदास थे उनमे हरेक।
अभाव-तम में ज्योति आप।

ब्रह्मा, विष्णु ने की स्तुति, वह
परावाणी हैं, माँ शारदा आप।

सब दिश तिमिर घनघोर था,
सारहीन, जैसे मृत शरीर था।
विष्णु-आह्वान से आदि-मूल,
ज्योति-पुंज प्रकट होती माँ।
शब्द – रूपा शारदा आप।

श्वेतवर्ण तेजस्विनी, हैं दिव्य,
मातृरूप हैं तपस्विनी आप।

मातृ – वीणा करे जो मधुर-नाद,
वीणा-राग लाती है मधुर संवाद।
आप बनाती पशु से मनु-ज्ञानी,
वाद-प्रतिवाद जन्म देकर माँ।
साधक को दें आत्मज्ञान आप।

मुस्कान में उल्लास, पुस्तक में,
ज्ञान, माला है सत-वृत्ति दानी।
हंस सौंदर्य, मधुर स्वर प्रतीक,
जन-मन को करें समर्थ तन्मय।
छंद-रस से बनाती सिद्ध आप।

बनती जल-धार, पवन-वेग में,
भाव संग ओजस्विता दामिनी।
प्रज्ञा, बुद्धि, क्षमता के दान से,
बनीं जन-हित मंत्र-उच्चारिणी।

संगीत, कला में भाव संचारिणी,
मुक्तहस्त समभाव दानी आप।

♦ प्रो• मीरा भारती जी – पुणे, महाराष्ट्र  ♦

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  • “प्रो• मीरा भारती जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से बताने की कोशिश की है — ज्ञान और बुद्धि के बिना ये जीवन किसी काम का नहीं। ज्ञान, बुद्धि की देवी अपनी कृपा व करुणा का संचार कर हम पर, हे माँ तुम्हारी करुणा बड़ी अपरम्पार है। मां शारदे की महिमा से अछूता न कोई मनुष्य है, मां के रूपों में ही छुपा हुआ पूर्ण जग संसार है। उन्हीं के चरणों में ज्ञान का भंडार है, विद्यादायिनी मां से आज रज है हमारी। मां शारदे वर दे तू अपने ही रंग में रंग दे। जो नकारात्मक प्रवृतियों से सकारात्मकता का कराए सदैव भान, पुस्तक ही बस एक नाम। जो निरस जीवन में सरसता का, रंग भरती, वीणा ही वो सरगम। स्फटिक माला दर्शाती वैराग्य और ध्यान बिन, न मिलता संपूर्णता का है भाव। अपनाने के लिए तो बहुत है मगर, कल्याणकारी अपनाने की कला हंस है सिखलाता। कीचड़ में ही कमल है खिलता, अर्थात: सर्व विघ्न से न्यारे व पवित्र, कोमलता और सुंदरता का क्या अनुपम सार है। वीणापाणी मां के सर्वस्व संरचना में, सबक बहुत बेहिसाब है। आओ हम सब मिलकर सच्चे मन से माँ की वंदना करे।

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यह कविता (माँ सरस्वती वंदना।) “प्रो• मीरा भारती जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं से नई पीढ़ी को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम मीरा भारती (मीरा मिश्रा/भारती) है। मैंने BRABU Muzaffarpur, Bihar, R.S College में प्राध्यापिका के रूप में 1979 से 2020 तक सक्रिय चिंतन और मनन, अध्यापन कार्य किया, आनलाइन शिक्षण कार्यक्रम से वर्तमान में भी जुड़ी हूं, मेरे द्वारा प्रशिक्षित बच्चे लेखनी का सुंदर उपयोग किया करते हैं। मैंने लगभग 130 कविताएं लिखी है, जिसमें अधिक प्रकाशित हैं, कई आलेख भी, लिखे हैं। दृढ़ संकल्प है, कि लेखन और अध्यापन से, अध्ययन के सामूहिक विस्तारण से समाज कल्याण – कार्य के कर्तृत्व बोध में वृद्धि हो सकती है। अधिक सकारात्मक परिणाम आ सकते हैं।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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माँ शारदे वर दे।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ माँ शारदे वर दे। ♦

मां शारदे की महिमा से अछूता न कोई सार है,
मां के रूपों में ही छुपा जग संसार है।
उन्हीं के चरणों में ज्ञान का भंडार है,
विद्यादायिनी मां से आज रज है हमारी।
मां शारदे वर दे तू अपने ही रंग में रंग दे।

मां की कृपा के बिना न होता ज्ञान का संचार है,
इनकी करुणा बड़ी अपरम्पार है।
अपने रूपों में धारित वस्तु से,
मां जग को सबक देती खास है।
विद्यादायिनी मां से आज रज है हमारी,
मां शारदे वर दे तू अपने ही रंग में रंग दे।

नकारात्मक प्रवृतियों से सकारात्मकता का,
कराए भान, पुस्तक ही बस एक नाम।
निरस जीवन में सरसता का,
रंग भरती, वीणा ही वो सरगम।
विद्यादायिनी मां से आज रज है हमारी,
मां शारदे वर दे तू अपने ही रंग में रंग दे।

स्फटिक माला दर्शाती वैराग्य और,
ध्यान बिन, न मिलता संपूर्णता का है भाव।
अपनाने के लिए तो बहुत है मगर,
कल्याणकारी अपनाने की कला हंस है सिखलाता।
विद्यादायिनी मां से आज रज है हमारी,
मां शारदे वर दे तू अपने ही रंग में रंग दे।

कीचड़ में ही कमल है खिलता,
कोमलता और सुंदरता का क्या अनुपम सार है।
वीणापाणी मां के सर्वस्व संरचना में, सबक बेहिसाब है,
विद्यादायिनी मां से आज रज है हमारी।
मां शारदे वर दे तू अपने ही रंग में रंग दे।

हम अज्ञानी मुरख हमें ज्ञान का दर्श दिखा दे मां,
अपने ज्ञान के रस में हमें तू सराबोर कर दे मां।
विद्यादायिनी मां से आज रज है हमारी,
मां शारदे वर दे तू अपने ही रंग में रंग दे।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

मेरे प्रिय पाठकों आपको सपरिवार बसंत पंचमी की शुभकामनाएं।-KMSRAJ51

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• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — ज्ञान और बुद्धि के बिना ये जीवन किसी काम का नहीं। ज्ञान, बुद्धि की देवी अपनी कृपा व करुणा का संचार कर हम पर, हे माँ तुम्हारी करुणा बड़ी अपरम्पार है। मां शारदे की महिमा से अछूता न कोई मनुष्य है, मां के रूपों में ही छुपा हुआ पूर्ण जग संसार है। उन्हीं के चरणों में ज्ञान का भंडार है, विद्यादायिनी मां से आज रज है हमारी। मां शारदे वर दे तू अपने ही रंग में रंग दे। जो नकारात्मक प्रवृतियों से सकारात्मकता का कराए सदैव भान, पुस्तक ही बस एक नाम। जो निरस जीवन में सरसता का, रंग भरती, वीणा ही वो सरगम। स्फटिक माला दर्शाती वैराग्य और ध्यान बिन, न मिलता संपूर्णता का है भाव। अपनाने के लिए तो बहुत है मगर, कल्याणकारी अपनाने की कला हंस है सिखलाता। कीचड़ में ही कमल है खिलता, अर्थात: सर्व विघ्न से न्यारे व पवित्र, कोमलता और सुंदरता का क्या अनुपम सार है। वीणापाणी मां के सर्वस्व संरचना में, सबक बहुत बेहिसाब है। आओ हम सब मिलकर सच्चे मन से माँ की वंदना करे।

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यह कविता (माँ शारदे वर दे।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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