Kmsraj51 की कलम से…..
♦ बारिश का वो हमारा जमाना। ♦
बरसाती को पहले ही अपने बस्ते में सजा के रखना।
अपने भीगने से ज्यादा उन कॉपी-किताबों का ध्यान धरना।
बारिश का वो हमारा जमाना॥
छत के पानी के पतनाल के नीचे सिर भिगोना।
खुले आसमाँ के नीचे बारिश में खोना।
बारिश का वो हमारा जमाना॥
मंद-मंद बारिश आते ही कॉपी के कागजों का फाड़ना।
फिर कागज की नाव का दूसरों की नाव से टकराना।
बारिश का वो हमारा जमाना॥
बाजार में वो नई-नई बरसाती चप्पलों का आना।
उसमें से अपनी मनपसंद चप्पलों का ढूंढ लाना।
बारिश का वो हमारा जमाना॥
बारिश के भरे पानी से कभी नही डरा हमारा बचपन।
तब उसमें कितना आनंदमय होता था वो बालमन।
बारिश का वो हमारा जमाना॥
बारिश आते ही गीले कपड़ों की पंक्तियां लगती।
ऐसे लगता घर में ही जैसे कपड़ों की हॉट सजती।
बारिश का वो हमारा जमाना॥
बारिश की बूंदों में बहते पानी के बीच ऐसे निकलते।
स्थान पर सुरक्षित पहुँचते ही किला फतह जैसे भाव निकलते।
बारिश का वो हमारा जमाना॥
ओले के आने की प्रार्थना भी करते बर्फ देखने की चाह में।
नादान थे भोले थे नही जानते थे कितना दर्द देते ये आह में।
बारिश का वो हमारा जमाना॥
छप-छप करके उस आसमान की फुहारों का आनंद लेते।
बिजली कड़कते ही माँ के आंचल की छाया में खुद को छुपा देते।
बारिश का वो हमारा जमाना॥
डरते नही थे बारिश के कीचड़ से न इसके छम-छम बरसते पानी से।
प्रकृति के उन सुखद पलों को जिया हमने तभी सहेज रखा उनको जिंदगानी में।
बारिश का वो हमारा जमाना॥
♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦
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- “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — बारिश का वो हमारा जमाना उसका क्या कहना? बरसात के आने से पहले ही, अपने भीगने से ज्यादा उन कॉपी-किताबों का ध्यान धरना, बरसाती को पहले ही अपने बस्ते में सजा के रखना। वर्षा का वो पानी जो छत के पानी के पतनाल के नीचे खड़े होकर सिर भिगोना, खुले आसमाँ के नीचे बारिश में खो जाना। मंद-मंद बारिश आते ही कॉपी के कागजों का फाड़ना और फिर उस कागज की नाव का दूसरों की नाव से टकराना, इस आनंद का लुफ्त उठाना मन को तरोताज़ा कर देता था। छप-छप करके उस आसमान की फुहारों का भरपूर आनंद लेते, जब भी बिजली कड़कते तुरंत ही माँ के आंचल की छाया में खुद को छुपा देते, माँ के आंचल में अपने आपको सदैव ही सुरक्षित महसूस (Feel safe) करते। कभी भी डरते नही थे बारिश के उन कीचड़ से न इसके छम-छम बरसते पानी से, प्रकृति के उन सुखद पलों को जिया हमने तभी सहेज रखा उनको जिंदगानी (यादों) में। बारिश का वो हमारा जमाना।
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यह कविता (बारिश का वो हमारा जमाना।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।
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