Kmsraj51 की कलम से…..
Yah Kya Ho Raha Hai? | यह क्या हो रहा है?
बड़े खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि यह आज समाज में हो क्या रहा है? मुद्दा आज सता पक्ष और विपक्ष की तू – तू मैं – मैं का नहीं है। मुद्दा है तो वह है देश की बहू बेटियों की असमत का।
वह चाहे मां – पत्नी हो या बहु हो या फिर बेटी,
दुख यह है कि क्यों की जा रही है उसकी अनदेखी?
साथियों यह भयानक मंजर हमने मीडिया में बड़े स्तर पर निर्भया मामले के समय देखा था। पूरा देश उस आक्रोश में उबल गया था। विपक्ष ने हवा को तूल दिया और सत्ता पक्ष ने कड़े कानून बनाने और दोषी को तुरन्त कड़ी सजा दिलाने का आश्वासन दिया। हम सब जानते हैं कि निर्भया मामले में दोषियों को सजा दिलाने तक का सफर कैसा रहा और कितना लम्बा रहा? ऐसा नहीं है कि इससे पूर्व बहू बेटियों के साथ कोई बलात्कार नहीं हुए थे। पर यह मामला पहली बार मीडिया में राष्ट्रव्यापी स्तर पर इस तरह से भटका था कि पूरे देश की आत्मा ही जैसे जाग उठी थी।
पर सवाल यह है कि क्या फिर ऐसी वारदातें होना बंद हो गई? यूपी के हाथरस की घटना हम कहां भूले हैं? रात के अंधेरे में ही दाह संस्कार हमे याद है। क्या पश्चिम बंगाल में हुई हिंसात्मक घटनाएं देश को शर्मसार नहीं करती? हाल ही में राजस्थान के अलवर में नाबालिग लड़की के साथ शादी और उसके साथ उसके ससुर, नंदोई और जेठ द्वारा पति की सहमति से सामूहिक बलातकार तब तक करना, जब तक वह बेहोश नहीं हो जाती। अब मणिपुर में महिलाओं के साथ एक घिनौना कुकृत्य दिन दहाड़े समाज द्वारा पुलिस की मौजूदगी में किया जाना। इधर हिमाचल में समाज के ही सामने युवतियों के साथ छेड़छाड़ और मार पीट।
मित्रों शर्मिंदगी राजनैतिक पार्टियों की कारगुजारी और बयानबाजी पर नहीं बल्कि समाज की कुत्सित सोच पर होती है। आखिर क्यों समाज इस कदर खुदगर्ज और मूक दर्शक तथा भीरू होता जा रहा है कि हकीकत को अपनी आंखों से देख कर भी वह अपना मुंह मोड़ कर वहां से इस कदर से निकल जाता है कि जैसे उसने कुछ होते हुए ही नहीं देखा?
सवाल सत्ताधीशों से भी है कि वे भी अपनी शक्ति का दुरुपयोग आखिर क्यों करते हैं? शायद यह हमारी कानून व्यवस्था और न्याय प्रणाली की कमजोरी को भी दर्शाता है।कानून में कई हथकंडे और लम्बे दौर तक चलती न्यायिक प्रक्रिया तथा कई मामलों में राजनैतिक संरक्षण अपराधियों के हौसलों को बुलन्द करता रहता है कि क्या होगा। जो भी होगा देखी जाएगी। कोर्ट में निपट लेंगे।
सबसे बड़ी चिन्ता तो समाज की पढ़ी-लिखी स्त्रियों के समुदाय की होती है कि वे अपने साथ हो रहे अन्याय में स्वयं ही एक जुट नहीं है। वे खेमों में और राजनैतिक दलों में विभाजित हो कर कई बार पक्ष-विपक्ष में वाद – विवाद प्रतियोगिता करती हुई नजर आती है। मेरा निवेदन उन सभी माताओं बहनों से है कि ऐसे मुद्दों में न ही तो हमे राजनैतिक दलदल में वोटों के नफे नुकसान में पड़ना चाहिए और न ही समाज को बांटने वाली विचारधारा का समर्थन करना चाहिए। ऐसे मुद्दों पर राजनीति, जाति, धर्म, सम्प्रदाय इत्यादि समाजगत कुत्सित भावबोधों से ऊपर उठ कर राष्ट्र की मानव समाज वाली भावना से काम करना चाहिए।
- बेटी या औरत कोई भी हो और किसी भी जाति धर्म सम्प्रदाय इत्यादि की हो, वह हमारे देश की मातृ शक्ति है। उसके शील की रक्षा करना हमारा सामूहिक दायित्व है। यह माना कि कई मुद्दों पर महिलाएं भी गलत हो सकती है। पर जो ये घटनाएं ऊपर मैने गिनाई है। ये सब महिलाओं के साथ हुए घोर अन्याय और समाज की कुत्सित मानसिकता की उदाहरण है।
- बंधुओ और भगनियों यह बात याद रखना कि दूसरों के घरों में लगी आग को बुझाने में जो लोग मदद नहीं करते बल्कि उससे अपनी रोटियां सेंकने का काम करते हैं। उन्हे यह कभी भी नहीं भूलना चाहिए कि हमारे घर भी यहीं नजदीक है। कहीं यह आग भड़क कर हमारे घर को भी न लील जाए।
- आज किसी दूसरे की बहू बेटी के साथ किसी दूसरे के उन्मत बेटों ने गलत किया है और कल को यही घटना हमारी बहु – बेटियों या मां – पत्नियों के साथ भी हो सकती है और हमारे बेटे भी उन्मत हो कर ऐसी घटनाओं को मिलकर अंजाम दे सकते हैं।
इसलिए समाज को अपने दायित्व को समझना होगा। सोशल मीडिया और फिल्मी दुनियां के ऐसे अपराधिक दृश्यों का बहिष्कार करना चाहिए, जो युवा पीढ़ी को गलत करने के आइडिया देते हो।
जातिवाद, धर्मवाद और संप्रदायवाद के नाम पर समाज में नफरत फ़ैलाने वाले हर जाति – धर्म और सम्प्रदाय के व्यक्तियों को कड़े से कड़े कानून बनाकर कड़ी सजा का प्रावधान करने की मांग करनी चाहिए। फिर वह आग चाहे वोट के लिए भड़काई जाए या फिर किसी अन्य कारण से। एक व्यक्ति भड़काए या फिर कोई पूरा समुदाय।सामूहिक सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए। यह भीड़ तन्त्र तो फिर समाज की कानून व्यवस्था को ठेंगा दिखाता ही रहेगा, यदि इस व्यवस्था पर अंकुश न लगाया गया तो।
हमे समझना होगा कि समाज में मात्र एक ही धर्म कुदरत ने बनाया है, जो है मानव धर्म। दो ही जातियां हैं एक स्त्री और दूसरी पुरुष। उनमें किसी को कोई छूत भी नहीं लगती और न ही कोई अन्य बाधा है। दोनो जातियों को एक दूसरे की कुदरती नितान्त आवश्यकता है और उन्हें कुदरत के नियम का पालन कर के अपने – अपने जाति धर्म का ईमानदारी और सामाजिक मर्यादाओं से पालन करना चाहिए। न ही कोई लड़ाई होगी और न ही तो कोई झगड़ा दंगा – फसाद।
बाकी समाज बुद्धिजीवी है। ये अन्य जाति धर्म और सम्प्रदाय आज पढ़े – लिखे समाज में हमे मिल बैठकर अपने कई निजी स्वार्थों को छोड़ कर राष्ट्र हित में छोड़ देने चाहिए और कुदरत के सनातन नियम की जाति धर्म व्यवस्था को राष्ट्र हित के लिए स्वीकार करना चाहिए। माताओं को अपने साथ होने वाले अत्याचारों के खिलाफ एकजुट हो कर सामने आना होगा और पुरुष समाज को भी इसमें महिलाओं का साथ देना चाहिए। क्योंकि नारी किसी भी समाज या राष्ट्र का सम्मान होती है।
♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦
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- “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — माताओं को अपने साथ होने वाले अत्याचारों के खिलाफ एकजुट हो कर सामने आना होगा और पुरुष समाज को भी इसमें महिलाओं का साथ देना चाहिए। क्योंकि नारी किसी भी समाज या राष्ट्र का सम्मान होती है। हमे समझना होगा कि समाज में मात्र एक ही धर्म कुदरत ने बनाया है, जो है मानव धर्म। दो ही जातियां हैं एक स्त्री और दूसरी पुरुष। उनमें किसी को कोई छूत भी नहीं लगती और न ही कोई अन्य बाधा है। दोनो जातियों को एक दूसरे की कुदरती नितान्त आवश्यकता है और उन्हें कुदरत के नियम का पालन कर के अपने – अपने जाति धर्म का ईमानदारी और सामाजिक मर्यादाओं से पालन करना चाहिए। न ही कोई लड़ाई होगी और न ही तो कोई झगड़ा दंगा – फसाद।
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यह लेख (यह क्या हो रहा है?) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।
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