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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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भोला शरण प्रसाद की रचनाएँ

सफल जीवन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सफल जीवन। ♦

इस संसार में कहीं भी, कोई भी, कभी भी किसी के भी साथ हमेशा नहीं रह सकता। यह एक कटु सत्य है। जो भी आपस में जुड़े हुए हैं, आज न कल उन्हें एक-दूसरे से बिछड़ना ही पड़ेगा। रिश्ता चाहे पत्नी का हो, पुत्र का हो, पुत्री का हो, धन का हो, मकान का हो, अपने शरीर का हो, एक दिन छोड़कर जाना ही पड़ेगा। माया, मोह, भ्रम में इन्सान सत्य से भटक जाता है।

एक ही अन्न खाकर बच्चा जवान होता है, वही अन्न खाकर जवान बूढ़ा होता होता है, और बूढ़ा व्यक्ति धीरे-धीरे मौत के मुँह में चला जाता है— आखिर क्यों ?

• पाप-पुण्य का फल •

हर इन्सान अकेले पैदा होता है, अकेले दर्द का एहसास करता है और अकेले ही मरता भी है। पाप-पुण्य का फल अकेले ही भोगता है। अधर्म की कमाई से परिवार का पालन-पोषण करने वाले अकेले ही पाप की गठरी सिर पर लादकर घोर नरक में जाते है। दर्द में कोई दवा दे सकता है लेकिन अनुभव स्वंय ही करनी पड़ती है।

सदगुणों की शुरुआत स्वंय से ही करनी होती है। जब तक खुद की उंगली पर कुमकुम नहीं लगेगा तब तक दूसरे के ललाट पर तिलक नहीं लगा सकते। सारे सुख एंव दुःख का कारण मन है। मन की बात न सुनकर आत्मा की आवाज सुनने पर, दुःख और सुख का अनुभव स्वतः समाप्त हो जायेगा। यदि खेत में बीज न डाला जाए तो घास-फूस अपने आप निकल जाते हैं।

• अच्छे व बुरे विचार •

दिमाग में अगर अच्छे विचार न भरे जाऍं तो बुरे विचार अपने आप जगह बनाकर इन्सान की जिन्दगी को बर्बाद कर देगें, भोजन, न पचने पर रोग बढ़ता है, पैसा न पचने पर व्यभिचार और दिखावा बढ़ता है, बात न पचने पर चुगली बढ़ती है, प्रशंसा न पचने पर, अहंकार बढ़ता है, निंदा न पचने पर, दुश्मनी बढ़ती है, दुःख न पचने पर निराशा बढ़ती है, सुख न पचने पर, पाप बढ़ता है, दौलत न पचने पर, खतरा बढ़ता है।

जवानी, धन-संम्पत्ति, सत्ता, मूर्खता, अहंकार, शक्ति, व्यक्ति को मार्ग से भटका देती है। व्यक्ति बुराइयों में फॅंसकर, डूब जाता है और अपने साथ-साथ दूसरे का भी जीवन नष्ट कर देता है। अच्छे कर्म ही इन्सान को बुराइयों से दूर रख सकता है।

• हर कर्म धर्मानुसार •

भगवान शिव, भोला, शंकर, औघर दानी की आराधना के पवित्र सावन महीने में शिव जी की सवारी नंदी बैल जो हमेशा साथ रहता है, आखिर क्यों ? यह धर्म का स्वरुप है। बैल की सवारी का मतलब हर कर्म धर्मानुसार करना। जिस मानव के जीवन में धर्म ही नहीं हो वह साधन सम्पन्न होने के बावजूद भी उसका जीवन दुःखों से भरा रहेगा।

प्रसन्नता भीतर की स्थिति है। धर्म के मार्ग पर चलने से नव संकल्पों का सृजन होता है और आत्मा तृप्त रहती है। शिव को देवों के देव महादेव कहते हैं उनके पास धर्म रुपी साधना है, सुख धन से नहीं धर्म से प्राप्त होता है। विष पीने के बाद भी, औघर दानी है, वो राजा नहीं है लेकिन सर्वप्रिय और पूज्य है त्याग की मूर्ति हैं। आदि काल से भगवान शिव की पूजा होती आ रही है।

• ढाई अक्षर में ही सारी दुनिया निहित है —

ढाई अक्षर की महिमा जो समझ लिया, वो वास्तव में झानी और महापुरुष हो गया…

ढाई अक्षर के ब्रहमा, ढाई अक्षर की सृष्टि,
ढाई अक्षर के विष्णु, ढाई अक्षर की कान्ता (राधा),
ढाई अक्षर की दुर्गा, ढाई अक्षर की शक्ति,
ढाई अक्षर की श्रध्दा, ढाई अक्षर की भक्ति
ढाई अक्षर का ध्यान, ढाई अक्षर का त्याग,
ढाई अक्षर का धर्म, ढाई अक्षर का कर्म,
ढाई अक्षर का ग्रन्थ, ढाई अक्षर का सन्त,
ढाई अक्षर का मन्त्र, ढाई अक्षर का यन्त्र,
ढाई अक्षर का जन्म, ढाई अक्षर की अस्थि,
ढाई अक्षर की अर्थी,
ढाई अक्षर में ही सारी दुनिया निहित है, जो समझ लिया वो स्वामी विवेकानन्द।

महर्षि महेश योगी, महर्षि में ही, परमहंस योगानन्द, महर्षि दयानंद, गुरु नानक, श्री अरविन्दो धोष हो गये, ‘राम’ में दो अर्थ व्यंजित हैं- दुःख में हे राम, पीड़ा में अरे राम, लज्जा में हाय राम, अशुभ में अरे राम-शम, अभिवादन में राम-राम, शपथ में राम दुहाई, अझानता में राम जाने, अनिश्चितता में राम भरोसे, अचूकता के लिए रामबाण, मृत्यु के लिए राम नाम सत्य, सुशासन के लिए राम राज्य, निर्बल के बल राम। हमारे अन्दर जो कुछ अनुकरणिय है वह राम है, शाश्वत है।

⇒ ज्ञानी कौन ?

इन्सान मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, इत्यादि में जाता है। तीर्थ स्थल में जाकर सदबुध्दि के लिए प्रार्थना करता है। जब भगवान के दरबार में सर्प, मोर, चूहा, शेर, बैल एक साथ रह सकते हैं तो अपने को सबसे उत्तम और ज्ञानी कहने वाला मनुष्य क्यों नहीं ? अज्ञानी सर्प, मोर, चूहा, बैल, शेर, एक जगह शांति पूर्वक महादेव की शरण में रहते हैं, लेकिन मनुष्य अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, जलन के कारण विनाश का कारण बन
जाता है। सुख-शांति से दूर दर्द भरी जिन्दगी जीने के लिए मजबूर हो जाता है।

सही ज्ञान धर्म के मार्ग पर चलकर ही सच्चा सुख व शांति मिलता है। सही ज्ञान ही “सफल-जीवन” की कुन्जी है।

“न जीवन न मृत्यु, क्या है तेरे हाथ,
गले से गले लगाओ, जीलो कुछ दिन साथ”

⇒ अमरत्व प्राप्त करने के लिए धर्म के मार्ग पर चले…

भगवान शिव, राम, कृष्ण, चित्रगुप्त, ब्रह्मा, विष्णु ने अपने नाम के आगे सिंह, शर्मा, दुबे, प्रसाद नहीं लगाया, भगवान महावीर ने जैन नहीं लगाया क्योंकि वो किसी जाति के नहीं है, वो सर्वव्यापी, सर्वप्रिय, सर्वज्ञानी हैं वो कण-कण में हैं, सभी उनकी पूजा करते हैं। जब तक इन्सान अपने-आप को पूरे मानव समाज के लिए समर्पित नहीं करेगा, त्यागी नहीं बनेगा, जीवन सुखमय एंव सफल नहीं बनेगा। अपनी पहचान बनाते-बनाते धरती छोड़ देता है फिर भी पहचान खुद-ब-खुद मिट जाती है। अमरत्व प्राप्त करने के लिए धर्म के मार्ग पर ही चलना होगा।

♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150/नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

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  • “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — प्रसन्नता भीतर की स्थिति है। धर्म के मार्ग पर चलने से नव संकल्पों का सृजन होता है और आत्मा तृप्त रहती है। शिव को देवों के देव महादेव कहते हैं उनके पास धर्म रुपी साधना है, सुख धन से नहीं धर्म से प्राप्त होता है। विष पीने के बाद भी, औघर दानी है, वो राजा नहीं है लेकिन सर्वप्रिय और पूज्य है त्याग की मूर्ति हैं। दिमाग में अगर अच्छे विचार न भरे जाऍं तो बुरे विचार अपने आप जगह बनाकर इन्सान की जिन्दगी को बर्बाद कर देगें। हर इन्सान अकेले पैदा होता है, अकेले दर्द का एहसास करता है और अकेले ही मरता भी है। पाप-पुण्य का फल अकेले ही भोगता है। इस संसार में कहीं भी, कोई भी, कभी भी किसी के भी साथ हमेशा नहीं रह सकता। यह एक कटु सत्य है।

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यह लेख (सफल जीवन।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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कर्मों का फल।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ कर्मों का फल। ♦

मनुष्य का जीवन एक खेत की तरह है, जिसमें उसके कर्म बोए जाते हैं और मनुष्य अपने कर्मों के अच्छे व बुरे फल काटते हैं। बुरे कर्म करने वाले बुराई की दल-दल में फंस कर बुराई बटोरता रहता है; आम बोने वाला आम खाता है, बबूल बोने वाले के नसीब में कांटा ही कांटा होता है।

बबूल बोकर आम प्राप्त करने की कामना, प्रकृति के नियम के विरुध्द है, असंभव है, उसी प्रकार बुराई के बीज बोकर भलाई की उम्मीद करना, मृत इन्सान को जिन्दा देखने के समान है।

इतिहास गवाह है; कार्य कभी कारण रहित नहीं होते और कोई भी परिणाम अकारण नहीं होता। जो परीक्षा ही नहीं देगा उसका परिणाम कैसे निकलेगा। परिणाम हमेशा व्यक्ति के कर्मों की कलम से लिखी जाती है।

भाग्य का निर्माण कर्म से ही होता है। समाज, राष्ट्र या व्यक्ति कभी बुराई से नहीं पनपता। जीवन के हर क्षण का लेखा-जोखा भगवान चित्रगुप्त के पास होता है, कोई प्राणी बुरा कर्म करके बच नहीं सकता। जल कीचड़ से बहेगा, सड़े हुए चीज में दुर्गंध होगी, गंदे नाले का पानी पेय होगा-यह मात्र भ्रम है। सच्चाई से कोई वास्ता नहीं, ठीक उसी प्रकार बुरे कर्म, धोखे की असफलताएँ “पतन” और अपयश को जन्म देती है, कर्म फल अकाट्य है।

कल की सुबह का पता नहीं, लेकिन योजना लम्बी बनाने वाले, अंहकार में चूर इन्सान, दूसरे के विनाश की सोच रखने वाले, गरीबों का खून चूसने वाले, अपने कर्म की परवाह न करने वाले, अमावस्या की रात को चांदनी की कल्पना करते है जो कभी संभव नहीं है।

जैसा अन्न वैसा मन, अगर एक लड़के का चप्पल समुद्र में चला जाए तो वह समुद्र को चोर कहेगा, अगर किसी को मोती मिल जाए तो वह दानी कहेगा, जैसा अन्ना, वैसा मन, जैसी भावना, वैसा विचार। जिसे तुम अच्छा मानते हो, यदि उसे अपने व्यवहार में नहीं लाते, तो यह तुम्हारी कायरता है। अगर भय तुम्हें ऐसा करने से रोकता है तो न तो तुम्हारा चरित्र उठेगा और ना हीं तुम्हें प्रतिष्ठा मिलेगी।

मन की इच्छा को बार-बार दबाना, अपने विचारों को खुलकर व्यक्त नहीं करना, आत्महत्या करने के समान है। यदि ऐसा करके कोई किसी लाभ की उम्मीद करके बैठा है तो वह बहुत बड़े धोखे में है, बिन बादल बरसात की आश में है।

मनुष्य का जीवन दुःखों से भरा है, शारीरिक, आर्थिक, मानसिक, सामाजिक, चाहे कुछ भी हो, हर इन्सान इससे निजात पाने के लिए, सुख की प्राप्ति के लिए हर संभव प्रयास करता है; परन्तु विडंबना यह है कि कुछ ही लोगों को सुख की प्राप्ति होती है। अधिकतर लोगों की झोली में असफलता, असंतोष, अभाव, अतृप्ति एंव दुःख ही मिलता है। लोग भटकते हैं सुख की प्राप्ति के लिए, लेकिन मिलता है दुःख, अपमान, यही पीड़ा और वेदना है हर इन्सान की।

सुख ढूढ़ने वाले ये भूल जाते हैं कि दुःख कहीं बाहर से नहीं आता, दुःखों का मूल हमारे भीतर होता है। बाहर ढूढ़ने के कारण तो हजारों हो सकते हैं लेकिन समाधान कहीं नहीं मिल सकता। दुःखों से मुक्ति पाने के लिए दृष्टिकोण में बदलाव लाते हुए, दिल की गहराई में आत्मसात करना होगा।

जिम्मेदार कोई और नहीं- “केवल मैं खुद हूँ” ये हमारे ही द्वारा किए गए कर्मों का परिणाम है। बाहर दिखने वाली हर चीज अन्दर की छाया है। सुख हो या दुःख, आनंद हो या विषाद, सम्मान हो या अपमान – ये सभी अपने कर्मों का ही फल है। स्वंय पर जिम्मेदारी लेने के बाद ही दृष्टिकोण में बदलाव संभव है। क्रांन्ति उन्हीं के जीवन में घटती है जो जिम्मेदारी लेना जानते हैं। जो अपनी गलतियों के लिए दूसरों को दोषी ठहराते हैं वो अपने अन्दर बदलाव कभी नहीं ला सकते।

दुःख का कारण अपने अंदर तलाशने वाले ही समाधान ढूढ़ सकते हैं। किसी इन्सान को यह पता नहीं, वह कब तक जिन्दा रहेगा। अगर किसी को यह पता चल जाए कि कल उसकी मौत निश्चित है; तो क्या उसका व्यवहार वही रहेगा जो वह प्रतिदिन रखता है। निश्चित रुप से उसके व्यवहार में बदलाव आ जाएगा, किसी का दिल नहीं दुखाएगा, अंहकार त्याग देगा, विनम्र भाव से पेश आएगा, हर गलत कर्मों के लिए माफी मांगेगा, माया-मोह के बंधन से मुक्त होने की कोशिश करेगा। जब यही सत्य है कि जीवन अपने हाथ में नहीं तो अपने कर्मों को सुधार कर क्यूं न अच्छा मनुष्य बने।

किसी को दोष देने से बेहतर है खुद को दोषी मानें; यही सत्य है।

“जिन्दगी है बहुत छोटी, इसका न कोई ठिकाना।
किसके लिए बना रहे हो, ये महल, ये आशियाना॥”

♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150/नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

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  • “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — देर हो सकता है लेकिन अंधेर नहीं होता हैं; कर्मो का फल एक न एक दिन जरूर मिलता हैं। अगर किसी को यह पता चल जाए कि कल उसकी मौत निश्चित है; तो क्या उसका व्यवहार वही रहेगा जो वह प्रतिदिन रखता है। निश्चित रुप से उसके व्यवहार में बदलाव आ जाएगा, किसी का दिल नहीं दुखाएगा, अंहकार त्याग देगा, विनम्र भाव से पेश आएगा, हर गलत कर्मों के लिए माफी मांगेगा, माया-मोह के बंधन से मुक्त होने की कोशिश करेगा। जब यही सत्य है कि जीवन अपने हाथ में नहीं तो अपने कर्मों को सुधार कर क्यूं न अच्छा मनुष्य बने। इतिहास गवाह है; कार्य कभी कारण रहित नहीं होते और कोई भी परिणाम अकारण नहीं होता। जो परीक्षा ही नहीं देगा उसका परिणाम कैसे निकलेगा। परिणाम हमेशा व्यक्ति के कर्मों की कलम से लिखी जाती है।

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यह लेख (कर्मों का फल।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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अंधविश्वास।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ अंधविश्वास। ♦

मानव समाज युगों-युगों से अंधविश्वास की कड़ियों में जकड़ा हुआ है। धर्म की आड़ में इन्सान के सोचने की शक्ति खत्म हो जाती है। इस धरती पर कई महापुरुष, ज्ञानी, संत, अवतरित हुए, समाज में प्रचलित अंधविश्वास, कुरीतियों को दूर करने के लिए। श्री राजाराम मोहन राय, श्री स्वामी विवेकानन्द, श्री महर्षि महेश योगी, श्री परमहंस योगानन्द जी, श्री महर्षि दयानन्द सरस्वती, श्री गुरु नानक देव जी वगैरह ने मानव समाज को अंधविश्वास से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया।

• अंधविश्वास का बोलबाला •

आज भी समाज में अंधविश्वास का बोलबाला है चाहे इन्सान कितना भी शिक्षित हो जाए, किसी भी धर्म का अनुयायी हो; अंधविश्वास उसका पीछा कभी नहीं छोड़ता। कुछ ऐसे बंधन हैं जो इन्सान को कभी मुक्त नहीं होने देता।

स्वार्थ एंव वर्चस्व की लड़ाई में जघन्य अपराध का समर्थन करते हैं, बच्चों की बलि देना, जानवरों की बलि देना, अपने ही समाज के कमजोर महिला को लाक्षंन लगाकर अपमानित करना, श्राध्द के नाम पर शोषण करना, अंधविश्वास के प्रमाण हैं।

भूत-प्रेत, डायन, काली-बिल्ली, विधवा औरत का अलग ही महत्व है। पूरी दुनिया में अंधविश्वास फैलाने में बिल्लियों का बड़ा योगदान है। क्या आप जानते हैं- “काली बिल्ली के प्रति अंधविश्वास” भारतवर्ष में शादी से पहले काली बिल्ली देखना खुशनसीबी मानी जाती है।

• बिल्ली एक, अंधविश्वास अनेक •

स्काटलैण्ड में अगर काली बिल्ली बरामदे में धूमती नजर आती है, इसका मतलब कोई मुसीबत आने वाली है। इग्लैण्ड में अगर काली बिल्ली अपने कान के पीछे सफाई करती नजर आए तो बारिश जरुर होगी। आयरलैण्ड में अगर बिल्ली चन्द्रमा की रौशनी में रास्ता काट दे तो किसी की मौत महामारी से होगी।

फ्रांस में यदि बिल्ली दिखाई दे नदी के पास, तो लोग पानी में नहीं जाते। तुर्की में यदि काली बिल्ली दिखाई दे तो लोग अपने बालों को पकड़ लेते हैं, अन्यथा बदनसीबी आ जायेगी। अमेरिका में यदि एक ऑंख की काली बिल्ली दिखाई पड़ती है तो लोग अपने एक हाथ के अंगूठे को दूसरे हथेली पर कसकर दबाते हैं और मुराद मांगते हैं। बिल्ली एक, अंधविश्वास अनेक।

• वैज्ञानिक युग में भी लोगों का विचार पुर्ववत •

इस वैज्ञानिक युग में भी लोगों का विचार पुर्ववत, भिन्न-भिन्न हैं। विद्वता, शिक्षा का कोई प्रभाव नहीं। जापान में लोग आमदनी बढाने के लिए अपने पर्स में सांप की केचुली रखते हैं और अंक चार शुभ माना जाता हैं।

ताइवान में सुबह-सुबह काला कौआ देखना अशुभ माना जाता हैं। तुर्की में दो व्यक्ति यदि एक नाम वाले एक साथ खड़े हों तो उनके बीच में खड़े होने से मन्नत पूरी होती हैं। वेनेजुएला में लोग रुमाल का उपहार नहीं लेते। कोरिया में लोग परीक्षा के दिन बाल नहीं धोते, चीन में दीवाल घड़ी तोहफा में नहीं लेते।

रुस में यदि कुछ लेने के लिए लौटते हैं तो बिना आईना देखे घर से वापस नहीं जाते। चाहे कोई भी देश कितना भी विकसित हो, अंधविश्वास को मानने वाले की कभी नहीं हैं। विधवा औरत को शादी के रस्म से दूर रखा जाता हैं।

जन्म और मृत्यु किसी भी दिन, किसी भी मुहुर्त्त में होती हैं फिर भी इंसान शुभ मुहुर्त्त के पीछे जीवन भर भागता हैं। शादी शुभ मुहुर्त्त में विद्वान पंडित करवाते हैं सभी बड़े आशीर्वाद देते हैं फिर भी औरत विधवा हो जाती हैं और पुरुष विधुर। जिम्मेदार कौन है- कोई नहीं। अगर लड़की पैदा होती है या शादी के बाद लड़की के ससुराल में किसी की मृत्यु हो जाती है तो लड़की (दुल्हन) अशुभ मानी जाती हैं।

अगर गंगा में नहाने से पाप धूल जाता तो गंगा पुत्र भीष्म वाण की शैया पर प्राण नहीं त्यागते। मछली और अन्य जीव-जन्तु को मोक्ष मिलता। गंगा की कोई जिम्मेदारी नहीं हैं। वह तो सब कुछ समुद्र को दे देती हैं। समुद्र वाष्प बनाकर आसमान में भेज देती हैं फिर बादल बनकर धरती पर पानी के रुप में आ जाता है।

• इविल आई •

गंगा स्नान से पाप धूल जाएगा यह आग लगने पर स्वतः बरसात हो जाएगी, के समान हैं। काला टीका लगाकर नजर उतारी जाती हैं। मिश्र में काटों की ऑंख का लाकेट पहनने से देखने वाली हर बुरी निगाह का उल्टा असर होता है। मिश्र एंव तुर्की से आई “इविल आई” का सारी दुनिया में प्रचलन है।

• टोटका या अंधविश्वास •

समाज में कुछ लोग वहम, टोटका या अंधविश्वास को हवा देते रहते हैं। आज के वैज्ञानिक युग में सच्चाई में ही विश्वास करना चाहिए, न कि अंधविश्वास में। अंधविश्वास हमें पूर्वजों से विरासत में मिली है।

वक्त के साथ जब हम पोशाक बदल रहे हैं, नई-नई प्रथाऍं समाज में स्वतः अपनायी जा रही है तो फिर अंधविश्वास में विश्वास क्यों, हर शिक्षित व जागरुक व्यक्ति का यह धर्म है कि वह समाज को अंधविश्वास से मुक्त करे।

अंधविश्वास के जंजीर को तोड़ना ही, विज्ञान की उपलब्धि होगी। श्री राजा राम मोहन राय अपशब्द सुनकर भी भारतीय समाज को सती प्रथा से मुक्त किया। इन्हीं की प्रेरणा से वैशाली जिले के महनार तहसील के जहॉंजीरपुर शाम में कुछ बुध्दिजीवियों ने गॉंव को अंधविश्वास से मुक्त किया, आज सभी खुशहाल हैं।

—♥—

दुःख में सब को सिखाए मुस्कुराना,
अंधविश्वास तो धोखा है, सत्य ही अपनाना।
चाहे दुनिया कुछ भी कहे, मुझे आवाज लगाना,
अगर देर हो गई, गुजर जाएगा जमाना।

जिन लोगों ने समाज सेवा के साथ साथ,
अंधविश्वास के खिलाफ लोगों को,
जागृत किया, उन्हें गॉंव के लोग,
बच्चा-बच्चा उनके अच्छे कर्मों के,
लिए आज भी याद करता है।

डा. शम्भु शरण अपने अच्छे कार्यो,
के लिए अमर हो गए, गॉंव का हर
व्यक्ति अपने में सुधार लाने की,
प्रतिज्ञा करता हैं, समाज उन लोगों
का ऋणी होता है जो समाज के उत्थान,
के लिए अपने को समर्पित कर देते हैं।

आज इस गॉंव में साक्षरता बढ़ गई,
आज हर सपना साकार होता हुआ नजर आता हैं।
“जब तक अंधविश्वास रहेगा,
इन्सान भय त्रस्त और परेशान रहेगा।

पहले घर में करो उजाला,
फिर मंदिर में दीप जलाओ।
मानव-मानव में भेद नहीं,
सब को अपने गले लगाओ।

जैसे किसी के द्वारा प्रार्थना किए,
बिना ही सूर्य कमल-समूह को,
विकसित करता हैं, जैसे चन्द्रमा,
कैरव-समूह को प्रफुल्लित करता हैं।

तथा जिस प्रकार मेघ बिना मांगे,
ही प्राणियों को जल देता हैं।
उसी प्रकार महापुरुष स्वाभाविक,
स्वंय ही परहित में लगे रहते हैं,
ताकि समाज की बुराइयां,
स्वतः दूर हो जाए।

“कोपरनिकस” ने कहा पृथ्वी गोल हैं,
यह वैज्ञानिक खोज धार्मिक तथ्यों से,
अलग होने के कारण, कोपरनिकस को
मौत मिली, अंधविश्वास से मुक्ति
तभी मिलेगी जब सोच वैझानिक हो।

♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150/नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

—————

  • “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — वक्त के साथ जब हम पोशाक बदल रहे हैं, नई-नई प्रथाऍं समाज में स्वतः अपनायी जा रही है तो फिर अंधविश्वास में विश्वास क्यों, हर शिक्षित व जागरुक व्यक्ति का यह धर्म है कि वह समाज को अंधविश्वास से मुक्त करे। अंधविश्वास के जंजीर को तोड़ना ही, विज्ञान की उपलब्धि होगी।

—————

यह लेख (अंधविश्वास।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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