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महिला सशक्तिकरण पर निबंध

शक्तिशाली बनना है तुझे मेरी लाडो।

Kmsraj51 की कलम से…..

Shaktishali Banna Hai Tujhe Meri Laado | शक्तिशाली बनना है तुझे मेरी लाडो।

Women empowerment refers to making women powerful to make them capable of deciding for themselves.हम अपनी बेटियों को फूल की तरह, तितली की तरह नाजुक बनाते जा रहे हैं। क्योंकि हम सब अपनी लाड-दुलारी से बेहद प्यार करते हैं और चाहते हैं कि उसे हमारे सामने रहते हुए एक भी कष्ट ना सहन करना पड़े। अच्छी बात है परंतु आज के समाज को देखते हुए सही नहीं है। कुछ समय पीछे चले जाए तो पहले की मां बेटी को तमाम काम सिखा देती थी। ऐसा नहीं कि बेटियां पढ़ती नहीं थी। पढ़ाई के साथ-साथ घर का काम करना भी उन्हें बचपन से सिखाया जाता था।

गांव की बेटियां

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि लड़कियां अपने घर का सारा काम करके पढ़ने जाती थी। गांव में तो यह अब भी जारी है, कुछ घरों को छोड़कर। क्योंकि उनकी मां को पशुओं के साथ घर की जिम्मेदारी निभानी होती है। गांव में तो ज्यादातर को दूसरे गांव में पढ़ने जाना पड़ता है। सुबह जल्दी उठना घर के काम में मां का हाथ बंटाना उन्हें शुरू से सिखाया जाता है।

ऐसा नहीं है सिर्फ बेटियों से काम करवाया जाता है लड़कों को भी बहुत सारे काम करवाए जाते हैं। समय के साथ-साथ लोगों की सोच भी बदलती जा रही है। अब अगर कोई मां कुछ करवाना भी चाहती है तो पिताजी आकर बोलेंगे नहीं मेरी बेटी काम नहीं करेगी। तुम किस लिए हो। जिसे तुम यह सब कह रहे हो क्या वह किसी की बेटी नहीं है। बोलते हैं यह तो सिर्फ पढ़ेंगी, अच्छी बात है पढ़ना बहुत जरूरी है। परन्तु कुछ काम सीखने में भला क्या बुराई है।

मेरे पापा अक्सर कहते थे बेटा चाहे कुछ भी काम मत सीखना पर खाना बनाना जरूर सीखना, और उन्होंने हमें सिखाया भी। ऐसा नहीं कि सिर्फ हम बहनों को बल्कि भाईयों को भी खाना बनाना सिखाया है। और उनका कहना बिल्कुल सही था जब हम बाहर पढ़ने गए तो खाना बनाने में कोई दिक्कत भी नहीं आई। घर पर आराम से खाना बनाकर खाते थे उससे पैसे तो बचते थे साथ में शुद्ध खाना मिल जाता था। कई मां लड़की को कुछ भी नहीं करने देती। टेबल पर चाय, नाश्ता सब कुछ दे देती है सोचती है कि पढ़ लिखकर नौकरी लग जाएगी।

पढ़ाई के साथ-साथ…

पर ये सही नहीं है पढ़ाई के साथ-साथ उसकी योग क्लास, कराटे क्लास भी लगाएं। उसे मजबूत बनाएं। ताकि आवश्यकता पड़ने पर सब काम आए। क्योंकि उसे आगे भविष्य में जाकर अकेले भी रहना पड़ेगा और देर रात को भी घर आना पड़ेगा तो उसका पढ़ाई के साथ-साथ अपने शरीर को मजबूत करना बेहद जरूरी है।

चाहकर भी मां-बाप उसके साथ नहीं रह सकते। कभी ना कभी तो उसे अकेला रहना ही पड़ेगा। अगर आप सोच रहे हैं बाहर खा सकती हैं तो रोज-रोज बाहर का खाना नहीं खा सकते। सोचते हो कि कोई भी खाना बनाने वाली मिल जाएगी, आप सभी ने कोरोना काल में देख लिया होगा। वक्त का भला किसे पता है। दुनिया बड़ी तेजी से बदलती जा रही है सिर्फ पढाई से काम नहीं चलेगा। अपनी बिटिया को स्वावलंबी बनाना होगा। उसे समाजिक बनाना भी होगा ताकि बाहर निकल कर उसे समझ आ जाए दुनिया में क्या चल रहा है।

सभी प्यारी मां और बेटियों को समर्पित मेरी चंद पंक्तियां…

मेरी लाडो तू हमारी जान है,
मेरी घर की शान है।
तू मेरे घर की रौनक है,
तुझसे महकता संसार है।
बेटी खुश है तो घर के
सभी सदस्य खुश हैं।
उसे ताकतवर बनाना,
हमारा फर्ज है,
और हम पढ़ाई के साथ साथ
जुड़े-कराटे और अपने
पैरों पर खड़ा भी करेंगे।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इस लेख में लिखा गया है कि बेटियों को सिर्फ नाजुक और पढ़ाई में ही ध्यान देने की बजाय, उन्हें विभिन्न कौशल भी सीखाना चाहिए। लेखिका के पापा ने उन्हें खाना बनाने की कौशल सिखाया और उन्हें समझाया कि स्वावलंबी बनना महत्वपूर्ण है। उनका मत है कि बेटियों को पढ़ाई के साथ-साथ अपने शारीरिक और सामाजिक कौशल भी विकसित करना चाहिए, ताकि वे आगे जाकर समस्याओं का समाधान कर सकें और स्वतंत्र रूप से जीवन जी सकें।

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यह लेख (शक्तिशाली बनना है तुझे मेरी लाडो।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख, कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम सीमा रंगा इंद्रा है। मेरी शिक्षा बी एड, एम. ए. हिंदी। व्यवसाय – लेखिका, प्रेरक वक्ता व कवयित्री। प्रकाशन – सतरंगी कविताएं, देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं व लेख, दैनिक भास्कर, दैनिक भास्कर बाल पत्रिका, अमर उजाला, संडे रिपोर्टर, दिव्य शक्ति टाइम्स ऑफ़ डेजर्ट, कोल्डफीरर, प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, इंदौर समाचार लोकांतर, वूमेन एक्सप्रेस सीमांत रक्षक युगपक्ष, रेड हैंडेड, मालवा हेराल्ड, टीम मंथन, उत्कर्ष मेल काव्य संगम पत्रिका, मातृत्व पत्रिका, कोलकाता से प्रकाशित दैनिक पत्रिका, सुभाषित पत्रिका शब्दों की आत्मा पत्रिका, अकोदिया सम्राट दिव्या पंचायत, खबर वाहिनी, समतावादी मासिक पत्रिका, सर्वण दर्पण पत्रिका, मेरी कलम पूजा पत्रिका, सुवासित पत्रिका, 249 कविता के लेखक कहानियां प्रकाशित देश के अलग-अलग समाचार पत्रों में समय-समय पर।

सम्मान पत्र -180 ऑनलाइन सम्मान पत्र, चार बार BSF से सम्मानित, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सोसायटी से सम्मानित, नेहरू युवा केंद्र बाड़मेर से सम्मानित, शुभम संस्थान और विश्वास सेवा संस्थान द्वारा सम्मानित, प्रज्ञा क्लासेस बाड़मेर द्वारा, आकाशवाणी से लगातार काव्य पाठ, सम्मानित, बीएसएफ में वेलफेयर के कार्यों को सुचारु रुप से चलाने हेतु सम्मानित। गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, प्रेसिडेंट ग्लोबल चेकर अवार्ड।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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यह क्या हो रहा है?

Kmsraj51 की कलम से…..

Yah Kya Ho Raha Hai? | यह क्या हो रहा है?

बड़े खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि यह आज समाज में हो क्या रहा है? मुद्दा आज सता पक्ष और विपक्ष की तू – तू मैं – मैं का नहीं है। मुद्दा है तो वह है देश की बहू बेटियों की असमत का।

वह चाहे मां – पत्नी हो या बहु हो या फिर बेटी,
दुख यह है कि क्यों की जा रही है उसकी अनदेखी?

साथियों यह भयानक मंजर हमने मीडिया में बड़े स्तर पर निर्भया मामले के समय देखा था। पूरा देश उस आक्रोश में उबल गया था। विपक्ष ने हवा को तूल दिया और सत्ता पक्ष ने कड़े कानून बनाने और दोषी को तुरन्त कड़ी सजा दिलाने का आश्वासन दिया। हम सब जानते हैं कि निर्भया मामले में दोषियों को सजा दिलाने तक का सफर कैसा रहा और कितना लम्बा रहा? ऐसा नहीं है कि इससे पूर्व बहू बेटियों के साथ कोई बलात्कार नहीं हुए थे। पर यह मामला पहली बार मीडिया में राष्ट्रव्यापी स्तर पर इस तरह से भटका था कि पूरे देश की आत्मा ही जैसे जाग उठी थी।

पर सवाल यह है कि क्या फिर ऐसी वारदातें होना बंद हो गई? यूपी के हाथरस की घटना हम कहां भूले हैं? रात के अंधेरे में ही दाह संस्कार हमे याद है। क्या पश्चिम बंगाल में हुई हिंसात्मक घटनाएं देश को शर्मसार नहीं करती? हाल ही में राजस्थान के अलवर में नाबालिग लड़की के साथ शादी और उसके साथ उसके ससुर, नंदोई और जेठ द्वारा पति की सहमति से सामूहिक बलातकार तब तक करना, जब तक वह बेहोश नहीं हो जाती। अब मणिपुर में महिलाओं के साथ एक घिनौना कुकृत्य दिन दहाड़े समाज द्वारा पुलिस की मौजूदगी में किया जाना। इधर हिमाचल में समाज के ही सामने युवतियों के साथ छेड़छाड़ और मार पीट।

मित्रों शर्मिंदगी राजनैतिक पार्टियों की कारगुजारी और बयानबाजी पर नहीं बल्कि समाज की कुत्सित सोच पर होती है। आखिर क्यों समाज इस कदर खुदगर्ज और मूक दर्शक तथा भीरू होता जा रहा है कि हकीकत को अपनी आंखों से देख कर भी वह अपना मुंह मोड़ कर वहां से इस कदर से निकल जाता है कि जैसे उसने कुछ होते हुए ही नहीं देखा?

सवाल सत्ताधीशों से भी है कि वे भी अपनी शक्ति का दुरुपयोग आखिर क्यों करते हैं? शायद यह हमारी कानून व्यवस्था और न्याय प्रणाली की कमजोरी को भी दर्शाता है।कानून में कई हथकंडे और लम्बे दौर तक चलती न्यायिक प्रक्रिया तथा कई मामलों में राजनैतिक संरक्षण अपराधियों के हौसलों को बुलन्द करता रहता है कि क्या होगा। जो भी होगा देखी जाएगी। कोर्ट में निपट लेंगे।

सबसे बड़ी चिन्ता तो समाज की पढ़ी-लिखी स्त्रियों के समुदाय की होती है कि वे अपने साथ हो रहे अन्याय में स्वयं ही एक जुट नहीं है। वे खेमों में और राजनैतिक दलों में विभाजित हो कर कई बार पक्ष-विपक्ष में वाद – विवाद प्रतियोगिता करती हुई नजर आती है। मेरा निवेदन उन सभी माताओं बहनों से है कि ऐसे मुद्दों में न ही तो हमे राजनैतिक दलदल में वोटों के नफे नुकसान में पड़ना चाहिए और न ही समाज को बांटने वाली विचारधारा का समर्थन करना चाहिए। ऐसे मुद्दों पर राजनीति, जाति, धर्म, सम्प्रदाय इत्यादि समाजगत कुत्सित भावबोधों से ऊपर उठ कर राष्ट्र की मानव समाज वाली भावना से काम करना चाहिए।

  • बेटी या औरत कोई भी हो और किसी भी जाति धर्म सम्प्रदाय इत्यादि की हो, वह हमारे देश की मातृ शक्ति है। उसके शील की रक्षा करना हमारा सामूहिक दायित्व है। यह माना कि कई मुद्दों पर महिलाएं भी गलत हो सकती है। पर जो ये घटनाएं ऊपर मैने गिनाई है। ये सब महिलाओं के साथ हुए घोर अन्याय और समाज की कुत्सित मानसिकता की उदाहरण है।
  • बंधुओ और भगनियों यह बात याद रखना कि दूसरों के घरों में लगी आग को बुझाने में जो लोग मदद नहीं करते बल्कि उससे अपनी रोटियां सेंकने का काम करते हैं। उन्हे यह कभी भी नहीं भूलना चाहिए कि हमारे घर भी यहीं नजदीक है। कहीं यह आग भड़क कर हमारे घर को भी न लील जाए।
  • आज किसी दूसरे की बहू बेटी के साथ किसी दूसरे के उन्मत बेटों ने गलत किया है और कल को यही घटना हमारी बहु – बेटियों या मां – पत्नियों के साथ भी हो सकती है और हमारे बेटे भी उन्मत हो कर ऐसी घटनाओं को मिलकर अंजाम दे सकते हैं।

इसलिए समाज को अपने दायित्व को समझना होगा। सोशल मीडिया और फिल्मी दुनियां के ऐसे अपराधिक दृश्यों का बहिष्कार करना चाहिए, जो युवा पीढ़ी को गलत करने के आइडिया देते हो।

जातिवाद, धर्मवाद और संप्रदायवाद के नाम पर समाज में नफरत फ़ैलाने वाले हर जाति – धर्म और सम्प्रदाय के व्यक्तियों को कड़े से कड़े कानून बनाकर कड़ी सजा का प्रावधान करने की मांग करनी चाहिए। फिर वह आग चाहे वोट के लिए भड़काई जाए या फिर किसी अन्य कारण से। एक व्यक्ति भड़काए या फिर कोई पूरा समुदाय।सामूहिक सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए। यह भीड़ तन्त्र तो फिर समाज की कानून व्यवस्था को ठेंगा दिखाता ही रहेगा, यदि इस व्यवस्था पर अंकुश न लगाया गया तो।

हमे समझना होगा कि समाज में मात्र एक ही धर्म कुदरत ने बनाया है, जो है मानव धर्म। दो ही जातियां हैं एक स्त्री और दूसरी पुरुष। उनमें किसी को कोई छूत भी नहीं लगती और न ही कोई अन्य बाधा है। दोनो जातियों को एक दूसरे की कुदरती नितान्त आवश्यकता है और उन्हें कुदरत के नियम का पालन कर के अपने – अपने जाति धर्म का ईमानदारी और सामाजिक मर्यादाओं से पालन करना चाहिए। न ही कोई लड़ाई होगी और न ही तो कोई झगड़ा दंगा – फसाद।

बाकी समाज बुद्धिजीवी है। ये अन्य जाति धर्म और सम्प्रदाय आज पढ़े – लिखे समाज में हमे मिल बैठकर अपने कई निजी स्वार्थों को छोड़ कर राष्ट्र हित में छोड़ देने चाहिए और कुदरत के सनातन नियम की जाति धर्म व्यवस्था को राष्ट्र हित के लिए स्वीकार करना चाहिए। माताओं को अपने साथ होने वाले अत्याचारों के खिलाफ एकजुट हो कर सामने आना होगा और पुरुष समाज को भी इसमें महिलाओं का साथ देना चाहिए। क्योंकि नारी किसी भी समाज या राष्ट्र का सम्मान होती है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — माताओं को अपने साथ होने वाले अत्याचारों के खिलाफ एकजुट हो कर सामने आना होगा और पुरुष समाज को भी इसमें महिलाओं का साथ देना चाहिए। क्योंकि नारी किसी भी समाज या राष्ट्र का सम्मान होती है। हमे समझना होगा कि समाज में मात्र एक ही धर्म कुदरत ने बनाया है, जो है मानव धर्म। दो ही जातियां हैं एक स्त्री और दूसरी पुरुष। उनमें किसी को कोई छूत भी नहीं लगती और न ही कोई अन्य बाधा है। दोनो जातियों को एक दूसरे की कुदरती नितान्त आवश्यकता है और उन्हें कुदरत के नियम का पालन कर के अपने – अपने जाति धर्म का ईमानदारी और सामाजिक मर्यादाओं से पालन करना चाहिए। न ही कोई लड़ाई होगी और न ही तो कोई झगड़ा दंगा – फसाद।

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यह लेख (यह क्या हो रहा है?) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दों में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

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महिला सशक्तिकरण।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ महिला सशक्तिकरण। ♦

पढ़ी लिखी हूं,
घर को संभाल लूंगी।
बच्चों को भी पाल लूंगी,
रेलगाड़ी से लेकर जहाज चला लूंगी।
विश्व में परचम लहरा दूंगी,
अबला नहीं हूं।
नारी हूं शक्ति की मूरत हूं।

आज महिलाएं किसी भी क्षेत्र में देखो कमजोर नहीं है। आधुनिक युग में जागरूकता ने नारी को ऊंचाइयों पर ला दिया। अब बात साइकिल, स्कूटी, कार तक सीमित नहीं रही। महिलाएं अब रेलगाड़ी चलाने लगी। आसमान में जहाज उड़ाने लगी है।विश्व में देश का नाम आगे बढ़ाने लगी है। खेलों में भी अपना परचम लहरा रही हैं।

आज दौर आ गया है एक नारी पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। बात चाहे सोशल मीडिया की हो या घर-परिवार की हर जगह महिलाओं का वर्चस्व कायम है। हो भी क्यों ना हो, का खाना, झाड़ू, पोछा, बच्चों को संभाल कर। घर की जिम्मेदारियां पूरी कर निकल पड़ती है ऊंचाइयां छूने।

अब हम किसी भी क्षेत्र में चले जाएं महिलाएं पुरुषों के साथ काम कर रही है कुछ समय पहले ऐसा नहीं था परंतु महिलाओं ने अपनी मेहनत और लगन से ये स्थान हासिल कर लिया है। हर जगह महिलाएं अपने हुनर को दिखा रही हैं।

खाना, झाड़ू, पोछा, बच्चों को संभाल कर घर की जिम्मेदारियां पूरी कर निकल पड़ती है ऊंचाइयां छूने। अब हम किसी क्षेत्र में चले जाए महिला पुरुषों के साथ काम कर रही हैं। कुछ समय पहले जो दबी रहती थी आज आसमान में उड़ रही हैं।

बात चाहे धरती से आसमान की हो हर स्थान पर महिलाओं ने अपना वर्चस्व कायम कर लिया है। सब इनकी कठोर मेहनत, लगन का परिणाम है जो प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं ने अपने दम पर बड़ी-बड़ी कंपनियां स्थापित कर ली है।

जो खूब चल रही है अब महिला इतनी सक्षम हो गई है कि हजारों महिलाओं को अपने साथ काम दे रहीं है। इनकी ताकत हौसलें का ही परिणाम है कि पूरा दिन थक कर आकर भी घर के कामों में हाथ बटां देती हैं।

हम एक महिला की दूसरी महिला से तुलना नहीं करेंगे पर हर महिला अपने काम को बखूबी निभा रही है और घर का काम हो या ऑफिस का काम हो हर जगह अपना परचम लहरा रही है।

राजनीति में भी महिलाएं खूब नाम कमा रही है। और देश का नेतृत्व कर रही हैं। एक बात बिल्कुल सत्य है कि जब एक महिला पढ़ी लिखी हो तो वह एक साथ दो – दो परिवारों का जीवन बना देती है।

नारी शक्ति की मुरत है,
इसे बस थोड़े प्यार की जरूरत है।
आपको पता भी नहीं चलेगा,
कब एक नारी आपके घर को स्वर्ग बना देगी।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — महिला सशक्तिकरण में ये ताकत है कि वो समाज और देश में बहुत कुछ बड़ा बदल सकें। वो समाज में किसी भी समस्या को पुरुषों से बेहतर ढ़ंग से निपट सकती है। वो देश और परिवार के लिये अधिक जनसंख्या के नुकसान को अच्छी तरह से समझ सकती है। अच्छे पारिवारिक योजना से वो देश और परिवार की आर्थिक स्थिति का प्रबंधन करने में भी पूरी तरह से सक्षम है। नारी शक्ति की मुरत है, इसे बस थोड़े प्यार की जरूरत है। आपको पता भी नहीं चलेगा, कब एक नारी आपके घर को स्वर्ग बना देगी।

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यह लेख (महिला सशक्तिकरण।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें व कहानी, लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम सीमा रंगा इंद्रा है। मेरी शिक्षा बी एड, एम. हिंदी। व्यवसाय – लेखिका, प्रेरक वक्ता व कवयित्री। प्रकाशन – सतरंगी कविताएं, देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं व लेख, दैनिक भास्कर, दैनिक भास्कर बाल पत्रिका, अमर उजाला, संडे रिपोर्टर, दिव्य शक्ति टाइम्स ऑफ़ डेजर्ट, कोल्डफीरर, प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, इंदौर समाचार लोकांतर, वूमेन एक्सप्रेस सीमांत रक्षक युगपक्ष, रेड हैंडेड, मालवा हेराल्ड, टीम मंथन, उत्कर्ष मेल काव्य संगम पत्रिका, मातृत्व पत्रिका, कोलकाता से प्रकाशित दैनिक पत्रिका, सुभाषित पत्रिका शब्दों की आत्मा पत्रिका, अकोदिया सम्राट दिव्या पंचायत, खबर वाहिनी, समतावादी मासिक पत्रिका, सर्वण दर्पण पत्रिका, मेरी कलम पूजा पत्रिका, सुवासित पत्रिका, 249 कविता के लेखक कहानियां प्रकाशित देश के अलग-अलग समाचार पत्रों में समय-समय पर।

सम्मान पत्र -180 ऑनलाइन सम्मान पत्र, चार बार BSF से सम्मानित, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सोसायटी से सम्मानित, नेहरू युवा केंद्र बाड़मेर से सम्मानित, शुभम संस्थान और विश्वास सेवा संस्थान द्वारा सम्मानित, प्रज्ञा क्लासेस बाड़मेर द्वारा, आकाशवाणी से लगातार काव्य पाठ, सम्मानित, बीएसएफ में वेलफेयर के कार्यों को सुचारु रुप से चलाने हेतु सम्मानित। गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, प्रेसिडेंट ग्लोबल चेकर अवार्ड।

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Filed Under: 2022-KMSRAJ51 की कलम से, निबंध हिंदी में।, हिन्दी साहित्य Tagged With: Author Seema Ranga Indra, Seema Ranga Indra, women empowerment, Women Empowerment in Hindi, निबंध हिंदी में, महिला सशक्तिकरण, महिला सशक्तिकरण आसान भाषा क्या है?, महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता एवं महत्व, महिला सशक्तिकरण पर निबंध, महिला सशक्तिकरण पर निबंध 500 शब्दों में, सीमा रंगा इन्द्रा

कटु सत्य।

Kmsraj51 की कलम से…..

Katu Satya | कटु सत्य।

नारी उत्थान पर निबंध।

आत्म शलाघाओं के नशे में चूर भारतीय समाज नारी के विषय में प्राय एक वेदोक्त मंत्र बड़े चाव से जपता नज़र आता है। वह मंत्र है, “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता।” मैं नारी शक्ति की पूजा करने के खिलाफ नहीं हूँ। परंतु सवाल खड़ा होता है कि क्या हम इस पंक्ति के सही मायने को समझ पाए? यदि हाँ तो मेरा सवाल यह है कि इस पंक्ति में कौन से रमण करने वाले देवताओं की बात की गई है?

सृष्टि की सृजन शक्ति की महानायिका

क्या उन्ही इंद्र सरीखे देवताओं का ज़िक्र किया गया है जिन्होंने त्रेता काल की अहल्या माता का चालाकी से उपभोग करके उसे सदा-सदा के लिए सजा भोगने के लिए छोड़ दिया? क्या यही उनके दैवत्व का लक्षण है? चापलूसी, छल, प्रपंच धोखा, आदि उपहार ही तो नारी के खाते में अनादिकाल से पड़ते आए हैं। यह कितनी भयंकर विडंबना है कि वह संसार का महा सौंदर्य और सृष्टि की सृजन शक्ति की महानायिका हमेशा से ठगी-सी गई है और आज भी समाज उसे निरन्तर ठगता ही चला जा रहा है।

इसने छोटे-बड़े सभी घरों में सिवाए ज़लालत के कुछ नहीं पाया है। पर फिर भी यह बेचारी अपनी तनिक प्रशंसा सुन कर फुली न समाती है। उस चापलूसी भरी प्रशंसा के उन्माद में यह अपने साथ हुए तमाम जुल्मों को भूल कर यूं महसूस करती है मानो इसने संसार का सब सुख पा लिया हो। यही इसकी उस कमजोरी का वह पहलू है जिसके बूते यह ऊपर कही पंक्ति इजाद की गई हो शायद। अर्थात नारी सदा से सौंदर्य की प्रतिमूर्ति समझी जाती आई है और समझी जा रही है।

विलासी समाज

यह सब मैं अपनी मर्जी से नहीं कह रहा हूँ। यह स्वयं नारी की अपनी मनःस्थिति और व्यवहार सिद्ध करता है। हम प्राय स्त्री के हार शृंगार के प्रति रुचि और दूसरों की देखा – देखी में सौंदर्य प्रसाधनों का ज़रूरत से ज़्यादा प्रयोग करने की प्रवृति को सदियों से देखते आए हैं।

उसका यह सज धज कर रहना, यह सिद्ध करता है कि वह सौंदर्य की प्रतिमूर्ति है। उसकी यही वृती कई बार उस बेचारी के गले की फांस भी बन चुकी है। यदि इंद्र जैसे देवताओं के रमण की बात की जा रही है तो वह देवताओं के विलासी समाज की ओर ही इशारा करती है।

तो यह सिद्ध हुआ कि नारी की पूजा का समर्थन, इसलिए भारतीय समाज में किया जाता है ताकि वह अपनी खुशामद से रीझ कर हमारी उपभोग की वस्तु बनना स्वीकार करती रहे बस। देवताओं की बात करें तो स्वयं ब्रह्मा तक ही नारी सौंदर्य से अभिभूत हो कर अपनी ही बेटी संध्या के रूप पर लट्टू हो बैठे। क्या यही नारी की पूजा है? क्या यही देवताओं का रमण है? फिर चाहे सीता, अहिल्या, द्रोपदी, पद्मावती जैसी उच्च गृहस्थ नारियों के साथ हुए शोषण की बात हो या फिर आम घरों की बहन-बेटियों की ज़लालत का मामला हो।

पौराणिक आख्यानों पर चर्चा

खैर मैं यहाँ पौराणिक आख्यानों पर चर्चा करने नहीं आया हूँ पर वेदोक्त उक्त पंक्ति का सहारा ले कर नारी का चापलूसी से शोषण करने और उसे बहकाने वाले समाज की पोल खोलने ज़रूर आया हूँ। पीछे जो हुआ सो हुआ। उसे हमने भी किताबों में ही पढ़ा है। वह अपनी आंखों से घटते नहीं देखा, इसलिए वह कितना सत्य है और कितना असत्य, इसका ठीक समझ पाना मुश्किल है। अतः उसे छोड़ देना ही उचित समझा जाना चाहिए।

वर्तमान समाज में ही नारी जीवन

आइये वर्तमान समाज में ही नारी जीवन पर एक नज़र पक्षपात रहित हो कर डालते हैं। आज हम देखें तो आज भी नारी के साथ वही कुछ हो रहा है। वही बलातकार, वही चापलूसी और वही शोषण।

छोटे घरों से ले कर बड़े घरों तक। अब आप कहेंगे कि कैसे? तो सिद्ध करते हैं। छोटे घरों में तो हम आए दिन पत्नियों, बेटियों के कत्लों और तलाकों की खबरें सुनते ही रहते हैं पर यह बीमारी बड़े घरों में भी कम नहीं है।

यहाँ मीडिया, फ़िल्म जगत और प्रतिष्ठित समझा जाने वाला उच्च वर्गीय समाज नारी की चापलूसी से बाज नहीं आते। वे उसे उत्तरोत्तर गर्त में धकेल रहे हैं। वह बेचारी अपनी उसी वाहवाही की कमजोरी के कारण इस भंवर में डूबती जा रही है।

ये सभी उसे अपनी-अपनी ज़रूरतों के मुताबिक चंद पैसों के लालच में यूं प्रयोग करते हैं कि जैसे वह कोई एक वस्तु है मानव नहीं। यह सब अनादि काल से हो रहा है।

विरोध क्यों नहीं ?

हैरानी तो इस बात की है कि इस नारी ने कभी विरोध क्यों नहीं किया कि क्यों मैं ही सदा से हर महफ़िल में नचाई जाती आ रही हूँ? क्यों मुझे ही फ़िल्मों, समाचार पत्रों के विज्ञापनों में या फिर सामाजिक सूचना प्रसारण में अर्धनग्न हो कर परोसा जा रहा है?

मैं भी तो किसी की मां, बहन, बेटी या पत्नी हूँ। जब वे सब मेरी ये तस्वीरे देखते होंगे तो वे क्या सोचते होंगे? क्यों न मेरे काम को अब स्वयं मर्द करें? ये सवाल खड़ा करना आज नारी समाज की ज़रूरत बन गया है वरना ये समाज के धुरंधर नारी के जिस्म से सब कुछ उतार कर एक दिन इतना शर्मिंदा करेंगे कि वह बेचारी ख़ुद की दुर्दशा पर रो भी नहीं पाएगी। तब भी ये मीडिया वाले यही पंक्ति हमेशा की तरह कहेंगे कि हमें नज़रिया बदलना चाहिए जी।

समाज के आयने

बदलाव तो समाज का नियम है और फिर नारी की यह हालत मैंने थोड़े ही न की है। यह तो ख़ुद ही यह सब करने को राजी हुई थी। कृपया ध्यान दें कि चंद पैसों की लालच में हमें अपना ज़मीर नहीं बेचना चाहिए।

जो चंद मातृ शक्ति इन व्यवसायों में काम करती भी है, उन्हें भी इस वस्त्र अल्पिकरण का सामूहिक विरोध करना चाहिए। क्योंकि सिनेमा, मीडिया और उसके कर्णधार आप समाज के आयने तथा आदर्श होते हैं।

नज़रिया बदलने की नसीहत

समाज में बहू-बेटियाँ आदि आपकी नक़ल करती है और वस्त्र अल्पता के नशे में मदहोश अनजाने में अपना ही अहित कर बैठती है। मीडिया के लोग किसी की घटना पर जब बात करते हैं तो बस बार-बार नज़रिया बदलने की ही नसीहत देते हैं।

अरे भाई नज़रिया जब विश्वामित्र जैसे राजर्षी नहीं बदल पाए तो आम लोग कैसे बदलेंगे। वहाँ अगर कोई यह कह दें कि यदि पुरुष समाज अपने बदन को ढक कर रहता है तो क्या नारी समाज नहीं रह सकता।

वे भी तो उसी वातावरण में रहते हैं। तो पुरुष को दबाने में सब लग जाते हैं। अरे बहादुरों सत्य को तुम्हारे प्रमाण पत्र की ज़रूरत नहीं है। यदि तुम्हें सच में नारी की इतनी ही चिंता है तो उसे सही दिशा की ओर ले चलो और शोषण से बचाओ। तो जानूं कि आपने कुछ अच्छा किया है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – अनादि काल से चले आ रहे, नारी के ऊपर होने वाले अत्याचार व शोषण को इस लेख के माध्यम से। अब नारी समाज नहीं जागी तो कब जागेगी। कही ऐसा न हो जाये की बहुत देर हो जाये – वर्ना बेचारी ख़ुद की दुर्दशा पर रो भी नहीं पाएगी।

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यह लेख (कटु सत्य।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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महिला दिवस – बधाईयां।

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♦ महिला दिवस – बधाईयां। ♦

Women’s Day

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अंतर्राष्ट्रीय – महिला दिवस

कौन सा दिन महिलाओं के लिए नहीं है।
कुछ बातें सिर्फ़ समझने की, अनकही है।
जो यह कहते हैं कि आज महिला दिवस है।
वो अज्ञानी, नादान हैं, ये बेकार का बहस है।
पश्चिम का दुष्प्रचार है, भ्रम है एक साजिश है।
भोले भाले भारतीयों को भटकाने की कोशिश है॥

महिलाएं हैं तो हम हैं, इस धरती पे जिंदगी है।
सुबह की पहली चाय से लेकर रातों की दूध हल्दी है।
निर्जीव मिट्टी गारे पत्थर को घर बनाने वाली।
प्रेम, वात्सल्य, त्याग से जीवन अंदर लानेवाली।
कभी अपनी पहचान कभी सम्मान हार बैठती है।
बेशिकन आदि से अ़ंत दिलो-जान वार बैठती है॥

कितना किरदार बदलती नित हँसते रोते।
हम पुरूष तो कब के टूट बिखर चुके होते।
पेट ही नहीं वो हृदय में ज्ञान ओ प्राण भरती है।
हम सत्यवानों के लिए यमराज से भी लड़ती है॥

एक कदम भी चल ना पाएँ गर माताएँ ना हों।
राम कैसे श्रीराम बनेंगे गर सीताएँ ना हों।
और हम मूढ़ कहते हैं सिर्फ एक दिवस उनका है।
क्षमा करो देवी, आपका बालक अबोध तिनका है।
हे जड़मति! पहचानो अपनी माँ, शक्ति स्वरूपा नारी को।
जीवनदात्री, जग निर्मात्री, वास्तविक अधिकारी को॥

स्नेह, आशीष बनाये रखें, आदम के वंशज पर।
आँचल की दें छाँव, सुरक्षा, सुत औ राष्ट्रध्वज पर।
हर दिन क्या हर लम्हा आपका दिवस हो, जय जयकार हो।
हृदय की गहराइयों से सादर पदवंदन स्वीकार हो॥

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर सभी श्रद्धामना मातृशक्ति को समर्पित।

♦ शैलेश कुमार मिश्र (शैल) – मधुबनी, बिहार ♦

  • “शैलेश कुमार मिश्र (शैल) जी” ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से नारी के कई रूपों का व् गुणों का वर्णन किया है।

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यह कविता “शैलेश कुमार मिश्र (शैल) जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपने सच्चे मन से देश की सेवा के साथ-साथ एक कवि हृदय को भी बनाये रखा। आपने अपने कवि हृदय को दबाया नहीं। यही तो खासियत है हमारे देश के वीर जवानों की। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

About Yourself – आपके ही शब्दों में —

  • नाम: शैलेश कुमार मिश्र (शैल)
  • शिक्षा: स्नातकोत्तर (PG Diploma)
  • व्यवसाय: केन्द्रीय पुलिस बल में 2001 से राजपत्रित अधिकारी के रूप में कार्यरत।
  • रुचि: साहित्य-पठन एवं लेखन, खेलकूद, वाद-विवाद, पर्यटन, मंच संचालन इत्यादि।
  • पूर्व प्रकाशन: कविता संग्रह – 4, विभागीय पुस्तक – 2
  • अनुभव: 5 साल प्रशिक्षण का अनुभव, संयुक्त राष्ट्रसंघ में अफ्रीका में शांति सेना का 1 साल का अनुभव।
  • पता: आप ग्राम-चिकना, मधुबनी, बिहार से है।

आपकी लेखनी यूँ ही चलती रहे, जनमानस के कल्याण के लिए। उस अनंत शक्ति की कृपा आप पर बनी रहे। इन्ही शुभकामनाओं के साथ इस लेख को विराम देता हूँ। तहे दिल से KMSRAJ51.COM — के ऑथर फैमिली में आपका स्वागत है। आपका अनुज – कृष्ण मोहन सिंह।

  • जरूर पढ़े: स्वाद बदलना होगा।
  • जरूर पढ़े: क्या-क्या देखें।

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International Women’s Day

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♦ International Women’s Day ♦

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

KMSRAJ51.COM — परिवार की तरफ से नारी शक्ति को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की तहे दिल से शुभकामनाएं।

“नारी एक, रूप अनेक”

जब से पैदा हुई हूं नारियों के महत्व, उनकी दुर्दशा और उनके सुधार के बारे में ही पढ़ती और सुनती आ रही हूं। हैरानी और दुख इस बात का है कि उम्र के तीन दशक बीत जाने के बावजूद वो बदलाव नहीं दिखता जिसकी अपेक्षा थी।

तब लगता था कि हमारे बड़े होने तक सब बदल जाएगा, लेकिन अब लगता है कि मेरी बेटी के बड़े होने तक भी सब कुछ नहीं बदलेगा। हालांकि बदलाव तो आया ही है, लेकिन बहुत धीमी गति से।सुना है पहले भारत मे स्त्री को देवी का दर्जा प्राप्त था।लेकिन देवी का दर्जा इंसान को देने की जरूरत नहीं, उसे बस बराबरी और समानता का ही दर्जा चाहिए।

नारी के कई रूप हैं जो समय-समय पर प्रदर्शित होते हैं। सुनने में कड़वा लग सकता है लेकिन इन सभी रूपो में और विभिन्न नारियों में भी घोर विरोधाभास है। आइए उन्हें विभिन्न रूपो में देखते हैं।

• बेटी के रूप में •

बेटी के रूप में ज्यादातर लड़कियां विनम्र और आज्ञाकारी ही होती हैं। जो माता पिता को चोट नहीं पहुंचाना चाहती। उनकी खुशी और सम्मान के लिए छोटी बड़ी कुर्बानियां देती रहती हैं, वो भी बिना जताए। माता पिता के त्याग और मजबूरियों को समझती हैं।

हालांकि अब माता पिता के उदार होने के बाद बेटियों का एक ऐसा वर्ग भी तैयार हो गया है, जो माता पिता को पिछली पीढ़ी का मानकर उनकी बात को कम महत्व देता है। ऐसी बेटियां भी देखी हैं मैंने जो माता-पिता से झूठ बोलकर उन्हें धोखा देती हैं, घर से बिना बताए भाग जाती हैं और पुलिस के पास शिकायत करती हैं कि उनकी जान को अपने माता पिता से ही खतरा है।

• बहन के रूप में •

बहन भी आमतौर पर सपोर्टिव ही होती है अपने भाई-बहनों के लिए। हमारे समय मे तो भाई-बहन एक दूसरे की चीजें जरूरत पड़ने पर बिना पूछे ही शेयर करते थे। यहाँ तक कि जन्मदिन पर मिलने वाले उपहार भी जरूरत के हिसाब से बंट जाते थे। खुद चाहे कितनी भी लड़ाइयां हो, बाहर वालो के सामने अपने भाई बहनों के विरुद्ध एक भी बात नहीं सुनी जाती थी।

थोड़े बड़े होने पर तो भाई-बहन ही सबसे बड़े दोस्त बन जाते थे। बड़े होने पर ज्यादातर शादी के बाद हालांकि कई बार देखा कि भाई-बहन, बहन के रिश्ते भी तल्ख हुए। उनके बीच भी प्रतियोगिता की भावना आ गयी। उसमे बहने भी पीछे नहीं रही।सबके अपने अपने अहम। इसी अहम की वजह से वे कारण ढूंढ-ढूंढ कर एक दूसरे को नीचा दिखाने लगे।

• माँ के रूप में •

माँ का दर्जा तो हमेशा से बाकी सबसे ऊपर रहा है। गर्भ में बच्चे के आने के साथ ही उसका जीवन बच्चे के हिसाब से चलने लगता है। यही स्थिति तब तक चलती है, जब तब बच्चे उसके साथ रहते हैं। चाहे वे कितने भी बड़े क्यों ना हो जाए। वास्तविकता यही है कि अगर जीवन मे कोई निःस्वार्थ भाव से, बिना प्रतिफल की उम्मीद किये कुछ करने वाला है – तो वो सिर्फ माता-पिता ही हो सकते हैं। बाकी सारे रिश्ते तो बराबरी के हैं। सच है माँ जैसा कोई नहीं।

• दोस्त के रूप में •

दोस्त के रूप में भी नारी अनेक मिसाल कायम करती हैं। हालांकि ये भी कहा जाता है दो लड़कियां कभी अच्छी दोस्त नहीं बन पाती, क्योंकि उनके बीच प्रतिस्पर्धा आ जाती है। हालांकि ये पूर्णतया सत्य नहीं है। लड़की-लड़की की और लड़की-लड़के की दोस्ती भी पवित्र और निश्छल होती है।

• पत्नी के रूप में •

पुराने जमाने मे तो पत्नी पति की दासी बन कर ही रहती थी। लेकिन अब वो सही मायने में सहधर्मिणी, हमसफ़र, सलाहकार और दोस्त होती है। अब वो सिर्फ खाना बनाने, बर्तन कपड़े धुलने, घर की सफाई करने तक ही सीमित नहीं है। घर की प्रगति में प्रत्यक्ष रूप से उसका योगदान है।

वो बच्चो की ट्यूटर और प्रशासक भी है। वो पूरे घर और रिश्तों को खूबसूरती से मैनेज करती है। अब वो दुसरो का ध्यान रखने के साथ ही अपना भी ख्याल रखती है। अपनी गृहस्थी के लिए छोटे-मोटे अनेक त्याग करती है, जिसकी गिनती भी आमतौर पर नहीं होती।

• प्रेमिका के रूप में •

कितनी ही ऐसी लड़कियां हैं जिन्होंने प्रेम को पराकाष्ठा पर पहुंचाया और अपने प्रेमी का सबसे बड़ा सम्बल और प्रेरणा बनी। हालांकि आज ऐसी प्रेमिकाओं की भी कमी नहीं है जो मतलब से जुड़ी हैं।

• सास के रूप में •

सास भी माँ का ही रूप होती है। लेकिन ज्यादातर मामलों में सास बनते ही उनका स्वरूप बदल जाता है। वे दोहरा व्यवहार करने लगती हैं। बहू उन्हें अपनी प्रतिस्पर्धी नज़र आने लगती है। हालांकि ऐसा एकतरफा तो होता नहीं।

• बहू के रूप में •

बहू भी एक आम लड़की ही होती है। लेकिन भावनाएं नहीं जुड़ पाने की वजह से वो कभी ससुराल में बेटी नहीं बन पाती। सास बहू दोनों के मन मे ही भावनाएं होती हैं कि हम सास बहू हैं। इसीलिए रिश्ते उतने आत्मीय नहीं बन पाते।

• ननद, जेठानी, देवरानी के रूप में •

होना तो चाहिए कि हम उम्र और एक ही पीढ़ी के होने की वजह से ये दोस्त बन कर रहें। लेकिन ऐसा आमतौर पर होता नहीं और वे एक दूसरे की दुश्मन और प्रतिस्पर्धी बन जाती हैं। जहाँ उनका मकसद एक दूसरे को नीचा दिखाना भर रह जाता है।हालांकि अच्छे की भी कमी नहीं है दुनिया में।

♦—— सार ——♦

लोग महिला दिवस पर इस तरह के आलेख की उम्मीद नही करते, लेकिन महिलाएं भी इंसान ही होती हैं। वे भी अच्छी बुरी दोनों तरह की होती है। सबमे कुछ अच्छाईयां और बुराइयां होती हैं।

नारी ही नारी की दुश्मन और नारी ना मोहे नारी के रूपा, ऐसे ही नही कहा जाता है।लड़कियों को उच्च शिक्षा से रोकने वाली, शादी के लिए लड़की देखने जाने पर ढूंढ-ढूंढ कर नुक़्स निकालने वाली, शादी के बाद बहू और उसके लाए सामान में कमियां निकालने वाली ज्यादातर स्त्रियां ही होती हैं, पुरुष नहीं। लेकिन ये उनकी असुरक्षा की भावना का परिचायक होता है।

स्त्री अपने आदर्श रूप में त्याग, प्रेम, क्षमा, सहनशीलता की ही मूरत होती है। आज अगर वो बदल रही है(कभी कभी नकारात्मक रूप में भी) तो उसका ये स्वभाव अतीत में उस पर या स्त्री जाति पर हुए अत्याचारों का ही प्रतिफल है।

सार के रूप में, नारी को देवी मत बनाओ, उसे सामान्य इंसान ही बने रहने दो। लेकिन उसे हर रूप में प्यार, इज्जत और बराबरी का दर्जा दो। उसकी कमियों को भी सहजता से स्वीकार करो।

#अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

♦ स्वाति उपाध्याय – गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश ♦

  • “स्वाति उपाध्याय जी” ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से नारी के कई रूपों का वर्णन किया है।

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