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“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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मृत्यु - जीवन का एक अटल सत्य है।

मृत्यु एक सिलसिला है परिवर्तन का।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ मृत्यु एक सिलसिला है परिवर्तन का। ϒ

परमतत्व परमात्मा ने एक से अनेक होने की इच्छा से सृष्टि का निर्माण किया और जन्म और मृत्यु का विधान भी साथ-साथ बनाया।इसलिये सृष्टि में जो भी आया है उसका जाना भी निश्चित है। जब कोई भी जन्म लेता है तभी उसकी मृत्यु भी तय हो जाती है। मौत का झपट्टा तो कई पहरों के बीच से भी उठा कर ले जाता है। इससे ना राजा बच सका ना रंक, ना देवता ना राक्षस, ना साधु ना सन्यासी।
जिन्होंने हजारों वर्षों की तपस्या करके अजर अमर होने का वरदान पाया था वे भी नहीं, क्योंकि जन्म और मृत्यु तो एक शाश्वत सत्य है।

वैसे मेरा ऐसा मानना है कि मृत्यु एक रूपान्तरण है अर्थात् वस्तु अथवा व्यक्ति का रूप परिवर्तन होना। जब कोई मनुष्य मर जाता है तो उसका शरीर यहीं रह जाता है। जिसका अपने-अपने धर्मो के अनुसार मनुष्य क्रिया-कर्म करता है। कोई जलाकर, कोई बहाकर अथवा कोई दफनाकर, यानि ये शरीर इस संसार के पंच तत्वों में ही विलीन हो जाता है। और इस शरीर में निहित जो परमात्मतत्व है, निकल कर वह पुनः अपने-अपने कर्मो के अनुसार इस संसार में अन्य किसी रूप में जन्म ले लेता है, और समयानुसार पुनः समाप्त हो जाता है इस तरह यह प्रक्रिया अबाध गति से चलती रहती है। श्रीमद्भ गवद्गीता में श्रीकृष्ण जी का इस सम्बन्ध में अर्जुन को दिया उपदेश तो देखिये…

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्य-
न्यानि संयाति नवानि देही (अ.)।।२२।।

जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त होता है। ।।२२।।

इसी तरह संसार की समस्त जड़-चेतन वस्तुयें भी इसी संसार में विलीन होकर रूप परवर्तित करती रहती हैं। जैसे कुछ राख होकर, कुछ भस्म रूप होकर, कुछ मिट्टी रूप होकर, कुछ जल रूप होकर और कुछ ठोस रूप होकर आदि-आदि। रूप परिवर्तन की यह प्रक्रिया निर्बाध गति से निरन्तर चलती रहती है। इस शरीर में निहित जो परमतत्व है वह पुनः अपने कर्मों के अनुसार इसी संसार में अन्य किसी रूप में जन्म लेकर पुनः_पुनः आता है और समयानुसार पुनः समाप्त होकर और फिर पुनः अन्य किसी रूप में जन्म ले लेता है। पर हम सभी इस शरीर की मूल्यवानता को ना पहचानकर यूँ ही इसे गँवा रहे हैं। कहा भी है…

जन्म से लेकर मरण तक, दौड़ता है आदमी
एक रोटी दो लंगोटी, तीन गज कच्ची ज़मीं।
तीन चीजें चार दिन में, जोड़ता है आदमी
है यहाँ विश्वास कितना?
आदमी, की मौत पर
मौत के हाथों सभी कुछ छोड़ता है आदमी।।

तात्पर्य है – मनुष्य जीवन भर खाने कमाने में ही सारा जीवन खपा देता है, और जोड़-जोड़कर रखता जाता है। और जब मौत आ जाती तब सब कुछ मौत के हाथों में छोड़कर यहाँ से विदा हो जाता है।

मगर अन्य किसी रूप में पुनः आ जाता है और दुनियाँ में आवागमन का, परिवर्तन का चक्र यूँ ही चलता रहता है। अतः यह सत्य है कि मृत्यु नाम है एक परिवर्तन का चाहे वह वस्तु का हुआ हो अथवा शरीर का…

दुनियाँ में जीना है, तो
मेहमान बनकर जीते रहें,
मालिक बनकर ना जीयें।

सन्त जन अथवा शास्त्रमतानुसार चौरासी लाख योनियों में वह परम तत्व भ्रमण करते-करते अन्त में मनुष्य रूप धारण करता है। जो बड़ा ही अनमोल होता है। क्योंकि मनुष्य रूप के माध्यम से ही, जो परमतत्व हमारे शरीर में आया है उन्हीं में मिलाकर आवागमन के चक्र से मुक्त हुआ जा सकता है। प्रभु नाम स्मरण, अभिमान रहित मन बुध्दि, शुभ कर्म और प्रेम-भक्ति से ही उन परमप्रभु परमात्मा को पाया जा सकता है।

मृत्यु पर आधिपत्य करने के लिये बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने भी प्रयास किया, मगर वे भी सभी असफल ही रहे। वह परमतत्व शरीर में से कब कहां से बाहर निकल जाता है पता ही नहीं चलता। उन्होंने एक परीक्षण भी किया था।

⇒ एक कांचनुमा बॉक्स में एक मरणासन्न व्यक्ति को रखा लेकिन जब उसके प्राण निकले तो वह तत्व कांच को फोड़ता हुआ बाहर निकल गया और वैज्ञानिक कुछ ना कर पाये।

हिरण्याक्ष, हिरण्यकश्पु, कंस, रावण आदि-आदि राक्षसों ने तो स्वंय की मृत्यु ना आये इसके लिये बड़े-बड़े तप करके वरदान भी पाये। मगर मृत्यु के पाश से अपने आपको कोई भी ना बचा पाया। वरन् प्रभु ने अवतार ले लेकर उनको उन सभी के वरदानों के अनुसार ही मृत्यु प्रदान की, और उनके आत्मतत्व को अपने में ही समाहित कर लिया। “मृत्यु रूपी अजगर तो अपना मुंह खोले” हमेशा ही खड़ा रहता है वह किसको कब कहां “निगल” जायेगा कुछ पता नहीं। कहा भी है…

क्या भरोसा है इस जिदंगी का।
साथ देती नहीं ये किसी का।
सांस रुक जायेगी चलते-चलते।
शंमा बुझ जायेगी जलते-जलते।
दम निकल जायेगा-दम निकल जायेगा-
दम निकल जायेगा।
दम निकल जायेगा आदमी का।
क्या भरोसा है इस जिंदगी का।

विडम्बना तो देखिये, आदमी ऐसे जीता है कि वह कभी मरेगा ही नहीं और मर जाता है तो लगता है कि वो था ही नहीं। यद्धपि यह भी सत्य है कि वह अन्य रूप में इसी संसार में पुनः आ जाता है और रूपों के परिवर्तन की, भिन्न-भिन्न योंनियों में आवागमन के परिवर्तन की यह प्रकिया सृष्टि में निरन्तर चलती रहती है। श्रीमद्भगवदगीता में कितना सत्य समझाया है, भगवान श्री कृष्ण ने…

जातस्य ही ध्रुवो मृत्यु, ध्रुवम् जन्म मृतस्य च,
तस्माद् अपरिहार्येर्थे, न त्वम् शोचितुमर्हसि”( गीता 2-27 )

“जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु अवश्य होती है। और मृत्यु के बाद जन्म अवश्य होता है। जिसमें कोई परिवर्तन न हो सके ऐसी यह कुदरती व्यवस्था है। इसी लिए शोक करना तेरे लिए उचित नहीं है।”

अतः अपना ये अनमोल जीवन सार्थक हो सके, इसके लिये कर्तव्य और कर्म का निर्वहन करते हुये प्रभु नाम ध्यान भी अवश्य करते रहना चाहिये। किसी ने बहुत अच्छी बात कही –

“जो जाके न आए, वो जवानी भी देखी,
जो आके न जाये, वो बुढापा भी देखा।”

“प्रभु कृपा दृष्टि सभी पर सदा बनी रहे।”

©- सुमित्रा गुप्ता ‘सखी’। – कल्याण (महाराष्ट्र) ∇

हम दिल से आभारी हैं सुमित्रा गुप्ता ‘सखी’ जी के प्रेरणादायक हिन्दी Article साझा करने के लिए।

सुमित्रा गुप्ता ‘सखी’ जी के लिए मेरे विचार:

♣ “सुमित्रा गुप्ता ‘सखी’ जी” ने बहुत ही सरल शब्दों में – जन्म और मृत्यु के सत्य से अवगत कराया हैं। हर एक शब्द में अलाैकिक सार भरा हैं। जाे हर एक शब्द पर विचार सागर-मंथन कर हृदयसात करने योग्य हैं। जाे भी इंसान इन शब्दों को गहराई(हर शब्दाे का सार) से समझकर आत्मसात करें, उसका जीवन धन्य हाे जायें।

पढ़ें – विमल गांधी जी कि शिक्षाप्रद कविताओं का विशाल संग्रह।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।~Kmsraj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiya ensolar radiation, and encourage good solar radiation to become them selves. ~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAJ51

 

 

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