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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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मोटिवेशनल कविता हिंदी में

पछतावा।

Kmsraj51 की कलम से…..

Regret | पछतावा।

मान ले बात मात-पिता की,
आज बारी तेरी आई।

पढ़ ले, निखार ले खुद को,
वक्त को जानने की बारी आई।

उठ प्रातः कर मेहनत पूरा दिन,
समय का सदुपयोग की बारी आई।

भूल जा मस्ती, शरारतें, त्याग निंद्रा,
उज्जवल भविष्य करने की बारी आई।

कम वक्त है पास तुम्हारे,
नसीहतें मानने की बारी आई।

नहीं रहेंगे तुझे कहने वाले एक दिन,
तड़पाएगा वक्त, समझने की बारी आई।

अकेला रह जाएगा इस दुनिया में,
आज संभलने की बारी आई।

कहीं पछताता ना रह जाए सीमा,
आज वक्त को जानने की बारी आई।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — इस संसार में केवल माता-पिता ही अपने बच्चे को सदैव ही खुश, आगे बढ़ता व खुद हारकर भी अपने बच्चे को जीतता हुआ देखना चाहते है। इसलिए माता-पिता सदैव ही नसीहत देते रहते है हमे, जिससे हम कभी कोई गलती ना करें और अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए समय से सोये व जगे तथा अच्छे से पढ़ाई करें व खूब मेहनत कर जीवन में आगे बढ़े। भूल जाओ मस्ती व शरारतें, त्याग दो निंद्रा अपना उज्जवल भविष्य बनाने का यही समय है। यह न भूलो की कम वक्त है अब पास तुम्हारे, नसीहतें मानने की बारी आई। ये याद रखना – नहीं रहेंगे तुझे कुछ कहने वाले एक दिन, तब तड़पाएगा वक्त तुम्हें अब भी समझ लो वर्ना और अकेला रह जाओगे इस दुनिया में फिर खूब पछतावोगे।

—————

यह कविता (पछतावा।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख, कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम सीमा रंगा इंद्रा है। मेरी शिक्षा बी एड, एम. ए. हिंदी। व्यवसाय – लेखिका, प्रेरक वक्ता व कवयित्री। प्रकाशन – सतरंगी कविताएं, देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं व लेख, दैनिक भास्कर, दैनिक भास्कर बाल पत्रिका, अमर उजाला, संडे रिपोर्टर, दिव्य शक्ति टाइम्स ऑफ़ डेजर्ट, कोल्डफीरर, प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, इंदौर समाचार लोकांतर, वूमेन एक्सप्रेस सीमांत रक्षक युगपक्ष, रेड हैंडेड, मालवा हेराल्ड, टीम मंथन, उत्कर्ष मेल काव्य संगम पत्रिका, मातृत्व पत्रिका, कोलकाता से प्रकाशित दैनिक पत्रिका, सुभाषित पत्रिका शब्दों की आत्मा पत्रिका, अकोदिया सम्राट दिव्या पंचायत, खबर वाहिनी, समतावादी मासिक पत्रिका, सर्वण दर्पण पत्रिका, मेरी कलम पूजा पत्रिका, सुवासित पत्रिका, 249 कविता के लेखक कहानियां प्रकाशित देश के अलग-अलग समाचार पत्रों में समय-समय पर।

सम्मान पत्र -180 ऑनलाइन सम्मान पत्र, चार बार BSF से सम्मानित, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सोसायटी से सम्मानित, नेहरू युवा केंद्र बाड़मेर से सम्मानित, शुभम संस्थान और विश्वास सेवा संस्थान द्वारा सम्मानित, प्रज्ञा क्लासेस बाड़मेर द्वारा, आकाशवाणी से लगातार काव्य पाठ, सम्मानित, बीएसएफ में वेलफेयर के कार्यों को सुचारु रुप से चलाने हेतु सम्मानित। गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, प्रेसिडेंट ग्लोबल चेकर अवार्ड।

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आप सभी का प्रिय दोस्त

©KMSRAJ51

जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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सफर।

Kmsraj51 की कलम से…..

Journey | सफर।

अजीब नजारा लिए चलते हैं,
जब मुसाफिर राहों पर चलते हैं।

डगर नई मंजिल नई लिए चलते हैं,
पथ पर बेगानों को लिए चलते हैं।

मंजिल तलक मुस्कुराहट लिए चलते हैं,
छोड़ पीछे गम, हंसी लिए चलते हैं।

नित दोस्त नए-नए लिए चलते हैं,
दुश्मन को अपना बना लिए चलते हैं।

कुछ पलों को अपना बना लिए चलते हैं,
बदलती शख्सियत को साथ लिए चलते हैं।

माना मंजिल पानी सबको साथ लिए चलते हैं,
कौन जाने ? कौन रहबर बना लिए चलते हैं।

टेढ़े-मेढें रास्तों पर सीधा साथी लिए चलते हैं,
प्रतिदिन बदलते रास्ते लिए चलते हैं।

मेरी छोड़ो अपनी सुना सबको बता लिए चलते हैं,
कुछ पल ही सही सबका दुख लिए चलते हैं।

कब किसका बांट देंगे गम, दुखड़ा लिए चलते हैं,
कौन बनेगा? कब किसका सहारा लिए चलते हैं।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — अजीब नजारा लिए चलते हैं, जब भी मुसाफिर राहों पर चलते हैं। डगर नई होती, मंजिल भी नई लिए चलते हैं, पथ पर बेगानों को लिए चलते हैं। मन में व दिल में मंजिल तलक मुस्कुराहट लिए चलते हैं, छोड़ के पीछे सभी गम, हंसी लिए चलते हैं। रोज दोस्त नए-नए लिए राह में चलते हैं, राह में दुश्मन को भी अपना बनाये लिए चलते हैं। कुछ पलों के लिए ही सही अपना बनाये लिए चलते हैं। माना की सबको मंजिल पानी है पर सबको साथ लिए चलते हैं। प्रतिदिन बदलते टेढ़े-मेढें रास्तों पर सीधा व अच्छा साथी लिए चलते हैं। कुछ पल के लिए ही सही सबका दुख बाटते चलते हैं। कौन बनेगा? कब किसका सहारा इसलिए साथ लिए चलते हैं।

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यह कविता (सफर।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख, कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम सीमा रंगा इंद्रा है। मेरी शिक्षा बी एड, एम. ए. हिंदी। व्यवसाय – लेखिका, प्रेरक वक्ता व कवयित्री। प्रकाशन – सतरंगी कविताएं, देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं व लेख, दैनिक भास्कर, दैनिक भास्कर बाल पत्रिका, अमर उजाला, संडे रिपोर्टर, दिव्य शक्ति टाइम्स ऑफ़ डेजर्ट, कोल्डफीरर, प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, इंदौर समाचार लोकांतर, वूमेन एक्सप्रेस सीमांत रक्षक युगपक्ष, रेड हैंडेड, मालवा हेराल्ड, टीम मंथन, उत्कर्ष मेल काव्य संगम पत्रिका, मातृत्व पत्रिका, कोलकाता से प्रकाशित दैनिक पत्रिका, सुभाषित पत्रिका शब्दों की आत्मा पत्रिका, अकोदिया सम्राट दिव्या पंचायत, खबर वाहिनी, समतावादी मासिक पत्रिका, सर्वण दर्पण पत्रिका, मेरी कलम पूजा पत्रिका, सुवासित पत्रिका, 249 कविता के लेखक कहानियां प्रकाशित देश के अलग-अलग समाचार पत्रों में समय-समय पर।

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मिले न मुझको सच्चे मोती।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मिले न मुझको सच्चे मोती। ♦

वन शहर गाँवों में ढूँढ़ा मैनें,
खोजा सागर – तल की गहराई में।
बहुत मिले जन लोग – लुगाई,
पर मिले न मुझको सच्चे मोती।

सिंधु शहर में कोलाहल था,
थलचर जलथल में उछल रहे थे।
इक – दूसरे को निगल रहे,
सगे-संबंधी जीवन से खेल रहे थे।
निज स्वारथ के मनन का,
गठरी दिखी चिंतायें ढोती।

उलझे – उलझे जीव जनावर थे,
चिकनी – चिकनी संवादों में।
भागम – भाग दौड़ लगाती थी,
समर सिंधु के रहने वालों में।
खुद अपने में ही खोई थी,
हर प्राणी की जीवन – ज्योति।

खोज रहा था मैं भव-सुदामन से,
सुनहली चमकीली नग निकाली।
परन्तु सभी पाहन छलिया थी,
रूप – रंग से छलने वाली।
उद्विग्न – घायल आस रह गई,
मन सँजोती सपन धीरज खोती।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

—————

यह कविता (मिले न मुझको सच्चे मोती।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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शोर मचाती जब-तब।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ शोर मचाती जब-तब। ♦

गा रहे पल हरदम,
गुनगुनाती सी शाम है।
उजाले में कशमशा कर,
मचाती शोर जब-तब।

दूर किसी झरोखे से झाँक,
देख रही सदा ये जिंदगी।
कानों में आ-आकर,
कहती कथा कोई पुरागी।

रहती ओट में सदा,
लुक-छिपकर कोलाहल करती है।

अंत:करण की मूक आवाजें,
कलरव करती साँसों में।
थम-थम सी जाती धमनियों को,
चेता जाती आती-जाती आहों में।

खामोश रहती चुपचुप,
गुमसुम-सी चंचल रहती है।

झुरमुट की झँझरी छिदी-छिदी,
झरझर हो गई प्रत्याशा।
क्षणभंगुर-सा जीने को,
राग वेदना गाती शाशा।

सरगम के सुर-तालों में,
वेदना व्यथा बतलाती है।

नोट: शाशा – मनमुख(मन), पुरागी – दफन।
(ये शब्द मैनें कबीलाई भाषा से ली है।)

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

—————

यह कविता (शोर मचाती जब-तब।) “सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल’ जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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अकेलेपन में किसे आवाज दूँ।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ अकेलेपन में किसे आवाज दूँ। ♦

अकेलेपन में किसे आवाज दूँ,
दिगन्त पर नेह-प्रिया के देश।
मेरी मृगतृष्णा कहाँ ले आई,
मेरे प्राणों को किस परदेश।

महाशून्य में विलीन हो जाती,
कारुण्य शब्दों की निनाद तरंगें।
उठने से पहले सुप्त हो जाती,
नयनों के स्वप्न रंग – बिरंगें।
यह अखिल जगत स्वप्नों-सा,
क्षणिक पल सा परिवेश।

आतप अनंत कतरा भर छाया,
वाक्य हमारे अर्थ पराया।
अठखेलपना पल-पल छलती,
आकर्षण से मुग्धित माया।
श्याम-सखा बदरा से कैसे भेजूँ,
प्राण-प्रियतमे को संदेशा।

खिले – खिले कुसुमित फूलों की,
देख निशामुख झर गई लालिमा।
अकुंठ अरुण को खा लेती,
प्रचंड निशिता की घनी कालिमा।
समयकाल की अटल आधार पर,
निशान भंग के असंख्य शेष।

जन्म – जन्मांतर की अव्यक्त यातना,
अवदलित वृद्धता की दु:खद कहानी।
युग – युगान्तों से जल रही धरा पर,
द्वन्द – संघर्षों में सतत जवानी।
छलमय जमाने के निष्ठुर हाथों में,
जकड़ा है जीवन का केश।

♦ सतीश शेखर श्रीवास्तव ‘परिमल‘ जी — जिला–सिंगरौली, मध्य प्रदेश ♦

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आज न होगा।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ आज न होगा। ♦

आज न होगा कोई मंगल गान प्रिये,
विपदा में व्यथित जो समूची धरती है।
नफरत के शोलों से विदीर्ण हर वक्ष आज है,
मानवता तिल – तिल कर आज यहां मरती है।

दर्द का दरिया बह रहा है दिल में,
हृदय की जमीन हो गई अब परती है।
मानस कल्पना की लहरों से भी अब तो,
आक्रोश – कटाक्ष की आग ही झड़ती है।

अतृप्त लालसाओं ने जग को है घेरा,
स्वार्थ बेड़ियों ने रूह ही मानो जकड़ी है।
अब उठती ही कहां है कोमल भावनाएं मन में?
हृदय भाव की गति भौतिकता ने जो जकड़ी है।

होता न आदर आज गांव के गलियारों में,
शहरों में तो पहले से ही रही आपाधापी है।
आज न नातों – रिश्तों की कद्र है कहीं पर,
मानव रूप में पाश्विक सभ्यता देखो आती है।

गांव की गुड्डी को गभरू बहन यहां कहते थे,
आज नव जवान देहाती भी खुराफाती है।
महफूज कहां रही अब अस्मत बहू – बेटी की?
वह अपनों के ही हाथों आज लूटी जाती है।

पढ़े-लिखे आदिमानव हो चले हैं हम क्या?
अर्धनग्न घूमते हैं और मद्य – मांस ही खाते हैं।
पशु सी करते हैं करतूतें सब उन्मादी में,
फिर खुद को सभ्य – सुसंस्कृत मानव बताते हैं।

हाय – हाय री! फैशन लाचारी और मानव दुर्दशे,
सच में आज विद्रूपता है जीती और हम है हारे।
शहर – शहर और गांव – गांव में देखो आज तुम,
हर कोई फिरते हैं फैशन के पीछे मारे – मारे।

आज न होगा कोई मंगल गान प्रिये,
इन सब घटनाओं से भीतर भारी पीड़ा है।
मानव समाज में विकृतियों आते देख को,
सोचता हूं, यह विधि की कैसी क्रीड़ा है?

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

Must Read : क्या लिव इन रिलेशनशिप ठीक है?

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — समस्त संसार का एक ही मूलमंत्र होना चाहिए, वो है जीवमात्र पर दया करना। यह दया भाव मनुष्य का मनुष्य के प्रति या मनुष्य का अन्य जीवों के प्रति होती है। जीवमात्र पर दया करना ही मानवता है। पृथ्वी पर मनुष्य सबसे उत्तम और सर्वश्रेष्ठ प्रजाति है। पर आजकल हो क्या रहा है? इसके बिलकुल उलट – सबकुछ हो रहा है आज का मानव शैतान व राक्षस हो गया है, शराब पीना, मांस खाना, बलात्कार करना, काम वासना व नशे में चूर होकर बड़े से बड़ा विकर्म करने से भी जरा भी नही डरता, क्यों ? पूर्ण रूप से शैतान व राक्षस बन गया है आज का मानव पढ़-लिखकर भी ऐसे कुकर्म करने से पहले एक बार भी नहीं सोचता की आने वाली पीढ़ी के लिए हम क्या सीख दे रहे हैं, हद हैं तेरी रे मानव क्या से क्या हो गया तू !

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यह कविता (आज न होगा।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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यह कैसी टीस।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ यह कैसी टीस। ♦

बिन शोलों के चुभन सी होती है,
बिन जख्मों के ही होती है पीड़ा।
क्षण – क्षण दायित्व का बोझ झकझोडे,
बिन उठाए कोई दायित्व का बीड़ा।

तमाम उम्र के सिलसिले में, अब क्यों,
हर भाव गरियाने से लगते हैं?
कदम – कदम पर मृग तृष्णा से,
क्यों, हर सपने ठगाने से लगते हैं?

जब था न कुछ पास इस जिंदगी के,
तब हम कितने बेखबर, मालामाल थे?
आज होकर पास भी अपने सब कुछ,
क्यों लग रहे हैं, आप हम कंगाल से?

कुछ नहीं है यह जीवन उमंग भरा,
जहां कभी अपनों की ही तरक्की की रीस है।
जीवन की इस संध्या में आज अब,
छूटती हर शय की यह कैसी टीस है?

देह की दहलीज अब सूनी सी रहती है,
क्यों आता न अब कोई बुलाने वाला?
शेष रह गया है आज भी भाव क्यों?
हृदय के कोने में वह सताने वाला।

शिथिल श्वास अब हो रही है,
उष्मित भावों की दरकार कहां?
जीवन नदी के कूलों पर खोज रहा हूं,
क्यों, आते न मिलने सरकार यहां?

अनगिनत सवाल है,
घना बवाल है,
यह माया जाल है,
बड़ा कमाल है,
बस जी रहा हूं मृत्यु की प्रतीक्षा में।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आखिर क्यों हर किसी को अपने सगे सम्बन्धी व ज्ञात व्यक्ति की तरक्की देखीं नहीं जाती, सभी एक दूसरे का टांग खींचने में लगे रहते हैं। आखिर कहां खो गया ओ सादगी, प्रेम, विश्वास, सत्यता, प्यार, समर्पण व त्याग जिससे सभी के जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ थी। क्यों आखिर मन में ये किस तरह की टीस हैं जो सुकून से जीने नहीं देती। आखिर क्यों ? सभी एक दूजे के साथ दुश्मनों जैसी व्‍यवहार करते है, वह प्रेम शालीनता कहां खो गया? क्यों एक दूसरे का टांग खींचने में लगे रहते हैं? क्यों इंसान इतना ऊब जाता है की मृत्यु का इंतज़ार करने लगता हैं?

—————

यह कविता (यह कैसी टीस।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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हकीकत।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ हकीकत। ♦

नौका है टूटी हुई,
जाना है उस पार।
ना जानूं कितना गहरा पानी,
नैया बिन पतवार।

पीने को पानी नसीब नहीं,
कुऍं का ख्वाब रखता हूं।
खाने को भोजन नहीं,
दुश्मन पे फतह का ख्याल रखता हूं।

ख्वाब में भी न सोचा था हमनें,
दोस्ती का वास्ता देकर,
वो दुश्मन बन गया होगा।
उसे गुमां हो गया,
कद देखकर नाटा।

शास्त्री जी पर गुमां है सबको,
दुश्मन को दिखाया हिन्दुस्तानी चाटा।
नफरतों की फिजाओं में,
प्यास मुहब्बतों की नहीं बुझती।

कोशिश चाहे लाख कर लो,
आग से कभी आग नहीं बुझती।
पलट गई तख्तो ताज,
हिल गई सल्तनत।

हौसला व बहादुरी के आगे,
सर झुकाती हैं, हरकतें नापाक।
आग लगी है तेरे शहर में,
चिंगारी तेरे घर तक आएगी।

कभी साथ मनाते थे ईद और होली,
आज चलाते हो सरहद पे गोली।
मत ललकारो ये है हिन्दुस्तान,
तेरा मुल्क नहीं बचेगा,
बन जाएगा कब्रिस्तान।

♦ भोला शरण प्रसाद जी – सेक्टर – 150/नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

—————

  • “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — हम भारत वासी दिल से प्रेम करने वाले को प्रेम करते है और जो हमें आँख दिखाते है उनका आँख भी निकाल लेते है। हम कभी किसी पर पहले वार नही करते है लेकिन अगर दुश्मन हम पर वार करे तो हम हाथ पर हाथ धरे बैठे भी नहीं रहते है। हमें गर्व है अपने वीर सेनानी सुभाष चंद्र बोस जी पर, उन्होंने दुश्मन को दिखाया हिन्दुस्तानी चाटा। एक बात याद रखे नफरतों की फिजाओं में कभी भी प्यास मुहब्बतों की नहीं बुझती। चाहे कोई भी पड़ोसी देश हो हमारा हमसे प्यार करेगा, हम भी उन पर प्यार बरसायेंगे, लेकिन अगर हमसे गद्दारी करेंगे तो उसका जवाब उसी की भाषा में हमें देना आता हैं, जय हिन्द – जय हिन्द की सेना।

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यह कविता (हकीकत।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

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मर्द भी थकता है।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मर्द भी थकता है। ♦

जरा समझो तकलीफ उसकी भी,
उसे भी परेशानी होती है।

दिनभर की भागदौड़ में,
काम के बोझ से थक जाता है।

भौर निकलता रात्रि आता,
बस काम ही काम होता है।

हजारों मसले हल करने होते,
बॉस की डांट भी शामिल होती है।

गर्दन ना उठती उसकी दिन भर,
बोझ काम का इतना होता है।

लिए दिन भर की थकान,
उम्मीद से घर आता है।

बैठो जरा कुछ पल हमारे संग,
कान उसके भी सुनना चाहते है।

देखो तनिक उसका चेहरा,
सुन प्यारे बोल कैसे खिल उठता है।

भूल जाएगा दिनभर की तकलीफें,
एक मुस्कुराहट से चुस्ती-फुर्ती लौट आती है।

सुन लो जरा उसकी भी तुम,
मर्द को भी तकलीफ होती है।

कौन कहता है सीमा थकता नहीं,
दिनभर की भागदौड़ में मर्द थकता है।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — मर्द भी थकता है, लेकिन कभी भी किसी से कहता नहीं है। सुबह से लेकर शाम तक कार्य करता है, बॉस की डाट भी सुनता है लेकिन कभी भी किसी से शिकायत नहीं करता है। पुरे मन से कार्य करता है, ऑफिस में भी और घर में भी। आखिर वह भी तो इंसान है उसे भी थकावट होती है। परिवार के सभी सदस्यों को घर के मर्दों का पूरा ख्याल रखना चाहिए। आखिर वह भी तो थकते है।

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यह कविता (मर्द भी थकता है।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम सीमा रंगा इंद्रा है। मेरी शिक्षा बी एड, एम. हिंदी। व्यवसाय – लेखिका, प्रेरक वक्ता व कवयित्री। प्रकाशन – सतरंगी कविताएं, देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं व लेख, दैनिक भास्कर, दैनिक भास्कर बाल पत्रिका, अमर उजाला, संडे रिपोर्टर, दिव्य शक्ति टाइम्स ऑफ़ डेजर्ट, कोल्डफीरर, प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, इंदौर समाचार लोकांतर, वूमेन एक्सप्रेस सीमांत रक्षक युगपक्ष, रेड हैंडेड, मालवा हेराल्ड, टीम मंथन, उत्कर्ष मेल काव्य संगम पत्रिका, मातृत्व पत्रिका, कोलकाता से प्रकाशित दैनिक पत्रिका, सुभाषित पत्रिका शब्दों की आत्मा पत्रिका, अकोदिया सम्राट दिव्या पंचायत, खबर वाहिनी, समतावादी मासिक पत्रिका, सर्वण दर्पण पत्रिका, मेरी कलम पूजा पत्रिका, सुवासित पत्रिका, 249 कविता के लेखक कहानियां प्रकाशित देश के अलग-अलग समाचार पत्रों में समय-समय पर।

सम्मान पत्र -180 ऑनलाइन सम्मान पत्र, चार बार BSF से सम्मानित, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सोसायटी से सम्मानित, नेहरू युवा केंद्र बाड़मेर से सम्मानित, शुभम संस्थान और विश्वास सेवा संस्थान द्वारा सम्मानित, प्रज्ञा क्लासेस बाड़मेर द्वारा, आकाशवाणी से लगातार काव्य पाठ, सम्मानित, बीएसएफ में वेलफेयर के कार्यों को सुचारु रुप से चलाने हेतु सम्मानित। गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, प्रेसिडेंट ग्लोबल चेकर अवार्ड।

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माँ की जय हो।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ माँ की जय हो। ♦

तूने अपना नूर गवाया,
तब जा के हमें सृजाया।
पीड़ा सह कर हमें उत्पाया,
अपना दर्द सब अंदर छुपाया।
तेरी जय हो मां!

मल – मूत्र से हमें बचाया,
अपने मुंह का हमें खिलाया।
उंगली पकड़ कर चलना सिखाया,
तोतली जुबां को बतियाना बताया,
अपना दर्द सब अंदर छुपाया।
तेरी जय हो मां!

पाला – पोसा बड़ा बनाया,
सर्दी में गर्मी दी, धूप में छाया।
लकड़ी सी सूखा दी अपनी काया,
अरमान कुचल निज हमें पढ़ाया।
हमारी गलती पर भी हमें न सताया,
अपना दर्द सब अंदर छुपाया।
तेरी जय हो मां!

हांफते – कांपते तुझे वृद्धा -आश्रम पहुंचाया,
हमने जोरू संग गुलछर्रे उड़ाया।
बलिदान तेरा कभी याद न आया,
कितना कर खाती वह बूढ़ी काया?
तुझमें तो है करूणा सिंधु समाया,
सब के बाबजूद भी कुछ न बताया,
अपना दर्द सब अंदर छुपाया।
तेरी जय हो मां!

हम ढीठ है, एहसान फरामोश,
हमें रही न बचपन की होश।
तूने कैसे बड़ा किया था, हमें पाल-पोष,
कोई हमें गड़ाता निगाहें था तो,
दिखाती थी तू कैसा जोश?
जोरू की तिरेरी से ही डर गए हम,
है बड़ा ही यह अफसोस।
तू है कि अपने दर्द को,
रही है अंदर ही अंदर मां मसोस।
तेरी जय हो मां!

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला – मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

—————

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से समझाने की कोशिश की है — कड़वा है मगर सत्य यही है इस संसार में माँ की जगह कोई और नहीं ले सकता हैं। माँ जब से गर्भवती होती हैं तभी से अपने बच्चे का ख्याल रखती है। जब जन्म होता है तभी से उसके लिए दिन रात एक कर उसका पूरा ख्याल रखती है, उसे पाल-पोष बड़ा करती हैं। कोई भी दुःख आये वह अपने बच्चे तक उस दुःख को पहुंचने भी नहीं देती हैं। माँ तो माँ होती है, एहसान फरामोश आज की पीढ़ी अपने माँ बाप का ख्याल ही नहीं रखती है। आजकल के युवा अपने जोरू का गुलाम इस कदर हो गए है की उसके कहने पर माँ बाप को वृद्धाआश्रम छोड़ आते है, वो ये भूल जाते है की माँ ने ही हमे जन्म दिया है और पाल-पोष कर बड़ा किया हैं। माँ की स्नेह भरी ममता को भूल जाते है।

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यह कविता (माँ की जय हो।) “हेमराज ठाकुर जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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