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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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मोटिवेशनल पोएम इन हिंदी फॉर स्टूडेंट्स

साहित्य और हथियार।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ साहित्य और हथियार। ♦

साहित्य जीवन की शक्ति है,
जीना जीवन का अभिव्यक्ति।
साहित्य का पढ़ना भक्ति है,
साहित्य रचना अभिव्यक्ति है॥

अभिव्यक्ति समर्थ शक्ति है,
शक्ति में निहित भक्ति है।
साहित्य जीवन की शक्ति है,
भक्ति सत साहित्य प्रवीण है॥

इतिहास अतीत बताता है,
अतीत – मार्ग दर्शाता है।
साहित्य आगे चलने वाली ढाल,
शिक्षा विवेक शील हथियार है॥

शिक्षा से बदलाव आता है,
स्वावलंबी बनने में मददगार है।
और शिक्षा सदमार्ग दिखाती है,
शिक्षा लोकप्रिय बनाती है॥

हथियार रक्षा करता रहता है,
संस्कृति रक्षा आवश्यक है।
संस्कृति में सद्भाव पलता है,
सद्भाव सच्चा प्रेम रखता है॥

प्रेम से समाज बनता है,
समाज नेक काम करता है।
व्यवसाय में कभी केवल,
जज्बात नहीं चलती है।
सब कुछ होता है परंतु,
यह बात नहीं होती है॥

शोहरत इज्जत पाने में,
मैं! जिसने नीलाम किया।
वही आज इस दुनिया में,
सबमें बड़ा महान हुआ॥

उसी को ऊंचा नाम मिला,
जिसने सभी का गुणगान किया।
सबका उसने सम्मान किया,
उसको दुनिया ने मान लिया॥

लोगों को बर्बाद करने वाला,
पहले खुद बरबाद होता है।
सत्यवादी मार्ग बताने वाला,
घमंड का विनाश करता है॥

इच्छाएं अनंत राह चलने वाली,
विनम्रता उचाई देने वाली है।
संतोष से खुशियां मिलने वाली,
सद कर्म अच्छाई सिखाता है॥

सत कर्म मनुष्य करने वाला,
वक्त भांप कर चलने वाला।
जीवन में सदा संतोषी स्वभाव,
ही, सबकी भलाई करने वाला॥

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

— Conclusion —

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — किसी भी इंसान और समाज के लिए साहित्य और हथियार की क्या अहमियत है? किसी भी इंसान और समाज को कब साहित्य का और कब हथियार का उपयोग करना चाहिए? साहित्य और हथियार क्यों सभी के लिए जरूरी है? साहित्य बुद्धिमत्ता के लिए और आत्मरक्षा के लिए हथियार क्यों जरूरी है?

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यह कविता (साहित्य और हथियार।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

 

 

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आता है अकेला – चार कंधे से जाता।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ आता है अकेला – चार कंधे से जाता। ♦

इंसान आता है इस धरा पर अकेला — चार कंधे से जाता।

मनुष्य धरा पर अकेला आता,
रोता हुआ खुद जन्म पाता।
जन्म जिस घर में वह लेता,
गीत गवनई वहां गाया जाता।

छठी बरही भी किया जाता,
पालन करने वाला पिता होता।
वहां ढोल मजीरा बजता पाता,
गांव में मुंह मीठा किया जाता।

बच्चे – बच्ची खुशहाली आती,
कालिया आंगन की खुल जाती।
माता उसी की दुखहर्ता होती,
चारों तरफ से बधायां मिलती।

क्रिया – कर्म समझ नहीं पाता,
कुछ दिन बाद खुद उलझ जाता।
मोह – माया में मनुष्य बध जाता,
जन्म – मरण चक्कर फंसा पाता।

आप पाप पुण्य में फंस जाता,
कंचन चक्कर, धरा में घस जाता।
जो भी मंशा लेकर मानव आता,
ठगा हुआ दुनिया में खुद पाता।

कर्म धर्म सारे समझ नहीं पाता,
उसके संग कुछ भी नहीं जाता।
जबकि मनुष्य जीवन सुंदर पाता,
यश कीर्ति धरा पर ही रह जाती।

जिस जीवन हेतु देवता तरस जाता,
उसी पाकर मनुष्य दुख लेकर आता।
जीवन चक्र में वह सुख कहां पाता,
शरण में देवताओं के जब नहीं जाता।

मुक्ति पाने की अभिलाषा लाता,
सत्कार मुंह से जाने क्यों कराता।
अपनी भूल पर अंत छटपटाता,
पाप – पुण्य कर्म समझ नहीं पाता।

झटपट अर्थार्जन में ध्यान बटाता,
पितृ – ऋण भी चुका नहीं पाता।
मृत्यु के समय सबको रुला जाता,
चार कंधों से श्मशान घाट जाता।

♦ सुखमंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦

—————

  • “सुखमंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से, कविता के माध्यम से बखूबी समझाने की कोशिश की है – बहुत भाग्य से मानव जीवन मिला है जिसके लिए देवता भी तरशते है। अपने इस अनमोल जीवन को यूँ ही नष्ट ना कर दो। अपने इस अनमोल जीवन का सार्थक प्रयोग करो। जीवन के खट्टे- मीठे उतार चढ़ाव का मधुर वर्णन किया है। अच्छे कर्म कर, जीवन का सदुपयोग कर, मानव जन्म को आनंदमय बनाएं।

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यह कविता (आता है अकेला – चार कंधा से जाता।) “सुखमंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।

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ज़रूर पढ़ें: पृथु का प्रादुर्भाव।

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