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♦ ये कैसी भिक्षावृत्ति। ♦
प्राचीनकाल में केवल वही लोग द्वार-द्वार जाकर भिक्षा मांगते थे जो लोग संन्यास धारण करते थे या समाज की भलाई के लिए तप करते थे। तब उनके शिष्य ही केवल भिक्षा में केवल इतना मांग कर ले जाते थे जितना उनका सुबह या शाम के भोजन का कार्य चलता था।
धीरे-धीरे ये प्रचलन इतना बढ़ता चला गया कि धार्मिक स्थानों पर इनकी इतनी भीड़ एकत्रित होने लगी कि उन स्थानों के दर्शन करने भी दुर्लभ हो गए।
अब ये भिक्षावृति ने एक अलग से नया रूप धारण किया कि विकलांगों, अनाथों और गऊ शालाओं के नाम पर अब घर की घंटी बजाकर कोई दान नही बल्कि रुपयों की पर्ची काटते हैं।
अगर इनसे कोई भी उस पर्ची के बारे में कुछ भी सवाल पूछा जाए तो वो आना कानी करके अगले घर की ओर बढ़ जाते है। सबसे बड़ी हैरानी की बात तो ये होती है कि वो शारारिक रूप से बिल्कुल हट्टे-कट्टे होते है कमाने के लायक।
अब हमें ये समझना होगा कि इस प्रकार के पात्र दान के काबिल है या नही। हम इनको रुपयों का दान न देकर बल्कि किसी भी अनाथालय या किसी भी आश्रम में कोई भी दान देना हो तो हम स्वयं जाकर उनकी जरूरत का सामान और गौशाला में अपने हाथों से हरा चारा देकर दान की सार्थकता को सिद्ध कर सकते है।
इससे एक तो हमारी आत्मसंतुष्टि होती है दूसरा किया गया दान सुपात्र को जाता है। इस प्रकार की भिक्षावृत्ति को रोकने में एक सभ्य नागरिक की एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते है।
♦ सुशीला देवी जी – करनाल, हरियाणा ♦
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- “श्रीमती सुशीला देवी जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — जब भी दान दे पात्र को देखकर दे वो भी जरूरत का सामान ना की पैसा। किसी भी अनाथालय या किसी भी आश्रम में कोई भी दान देना हो तो हम स्वयं जाकर उनकी जरूरत का सामान और गौशाला में अपने हाथों से हरा चारा देकर दान की सार्थकता को सिद्ध कर सकते है।
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यह लेख (ये कैसी भिक्षावृत्ति।) “श्रीमती सुशीला देवी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम श्रीमती सुशीला देवी है। मैं राजकीय प्राथमिक पाठशाला, ब्लॉक – घरौंडा, जिला – करनाल, में J.B.T.tr. के पद पर कार्यरत हूँ। मैं “विश्व कविता पाठ“ के पटल की सदस्य हूँ। मेरी कुछ रचनाओं ने टीम मंथन गुजरात के पटल पर भी स्थान पाया है। मेरी रचनाओं में प्रकृति, माँ अम्बे, दिल की पुकार, हिंदी दिवस, वो पुराने दिन, डिजिटल जमाना, नारी, वक्त, नया जमाना, मित्रता दिवस, सोच रे मानव, इन सभी की झलक है।
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