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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

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शिक्षाप्रद कहानियाँ

दोषी कौन है?

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ दोषी कौन है? ♦

स्कूलों में गर्मियों की छुट्टियां थी। नरपत काका के चारों बेटे खेतों में जी जान से जोर लगा रहे थे। उम्मीदें सब की ये थी कि इस बार खूब फसल होनी चाहिए। फसल से जो कमाई होगी, बाबा वह जरूर हमारी शिक्षा पर खर्च करेंगे।

नरपत काका अपना पेट मसोस मसोसकर बच्चों की अच्छी तालीम के हर संभव प्रयास करते रहते थे। प्राथमिक से लेकर कॉलेज तक की पढ़ाई। चार – चार बेटों का लाखों का खर्च। काका की दो चार बीघा जमीन से कैसे तैयार हो पाता ये तो वही जाने। काका का कोई सरकारी रोजगार भी तो नहीं है ना।

अबकी चारों कॉलेज से अच्छी डिग्रियां लेकर प्रशिक्षण की जिद पर अड़े हुए हैं। काका भी दिल से प्रशिक्षण कराने की सोचता है। जानता है प्रशिक्षण के बिना सरकारी नौकरियां नहीं मिलने वाली पर माली हालत इजाजत नहीं देती है।

बैंक में गिरवी

दो चार बीघा जमीन है, उसे बैंक में गिरवी रखकर बड़े वाले को शहर डिग्री के बाद प्रशिक्षण हेतु भेज देते हैं। कुछ फसल का जुगाड़ था और कुछ बैंक से ले लिया। बाकी के तीनों को ढाढस बंधाता है। “बच्चों तुम अभी छोटे हो। भैया जब प्रशिक्षण पूरा कर लेगा ना तब तुम्हें भी बारी – बारी से मौका दूंगा।”

बाबा की आंखों की कोरों पर आते आंसुओं को देखकर सब सहमत हो जाते हैं। बड़े वाला साल भर का प्रशिक्षण लाखों का डोनेशन देकर जब घर लौटता है तब तक तीनों बेटों और बाप ने एड़ी चोटी का दम लगा कर बैंक का हिसाब-किताब चुकता कर दिया था।

वह तो कृषि कार्ड की लिमिट थी। उसी लिमिट से पैसा निकाल कर दूसरे को उसकी डिग्री के हिसाब से प्रशिक्षण को भेज दिया। उसका भी कुछ यूं ही निभा। इस बार दिक्कत कुछ ज्यादा रही। सूखे की मार फसलों से इतनी कमाई नहीं करवा पाई, जितना कि पिछली बार हुई थी। पर फिर भी आस पड़ोस में मेहनत मजदूरी करके सब लोगों ने मिलकर इस बार का खाता भी क्लियर कर लिया था। इसी कदर तीसरे का भी कुछ यूं ही बीता।

अब छुटकू की बारी थी।

अब छुटकू की बारी थी। उसकी जिद डॉक्टरी करने की थी। तीनों बड़े भाइयों ने भी नरपत काका को यह कह कर मना लिया “बाबा छुटकू ठीक कहता है। हमारे पूरे इलाके में कोई डॉक्टर नहीं है। छुटकू है भी तेज। कर लेने दो उसे डॉक्टरी। परिवार के साथ साथ सबका भला हो जाएगा।”

“तुम्हारी मत मारी गई है। लाखों का खर्चा होता है उस पर। कहां से आएगा इतना पैसा। कर लेने दो इसे भी कोई छोटा – मोटा डिप्लोमा। फिर ढूंढो कहीं नौकरियां? मेरे पास इतना पैसा नहीं है। “नरपत काका कुछ रूखे से बोले।

छुटकू आंगन की पीपल के नीचे बैठकर सुबकियां भर रहा है। तीनों बड़ों ने मान मनौती करके बाबा को मना लिया और छुटकू को डॉक्टरी के लिए भेज दिया। पर इस बार सौदा कुछ महंगा था। ऐसे में नरपत काका को अपनी दो चार बीघा जमीन से एक आध बीघा को जड़ से बेच देना पड़ा।

छुटकू के जाने के बाद नरपत काका और उनकी पत्नी उस दिन शाम को उसी पीपल के नीचे बैठे – बैठे बतिया रहे थे। “पगली आज मैंने अपनी मां को बेचा है। और करता भी क्या? बच्चों ने मजबूर कर दिया।” यह कहते – कहते नरपत काका की आंखों से अश्रुओं की धारा बहने लगी। उनके साथ काकी की आंखों से भी अश्रुपात होने लगा। पर बच्चों को देखकर दोनों हड़बड़ाहट में आंसू पोंछ लेते हैं।

छुटकू डॉक्टर

चारों बाप बेटों ने दिन रात मेहनत की। एक दिन छुटकू डॉक्टर बनकर के लौट आता है। घर में खुशी का माहौल है। नरपत काका और काकी बहुत खुश है। आस पड़ोस के लोग भी उन्हें बधाइयां देने लगे हैं।

“ओ यारा नरपत्या, हुन ता तू फ्री हुई गया भाई।” रामलू काका नरपत काका से कह रहे थे।

“क्येथी ओ यारा रमालू भाई? हजा ता इन्हा रे ब्याह रही गए।” नरपत काका माथे पर हाथ फेरते हुए कहते हैं।

सरकारी नौकरी का इंतजार

चारों बेटों ने सरकारी नौकरियां पाने के लिए लंबे समय तक इंतजार किया। पर कोई सरकारी नौकरी की अधिसूचना ही जारी नहीं हो पा रही है। एक दिन डॉक्टरी की पोस्टें भरने की अधिसूचना निकली भी थी। वह भी किसी कोर्ट केस के चलते रद्द कर दी गई।

बड़े वाले तीनों निजी कंपनियों में बहुत कम वेतनमान पर नौकरियां करने लगे हैं। हालत यह है कि शहरी जीवन में रहते – रहते उस वेतन से महीने भर के लिए अपने पेट का ही गुजारा नहीं होता। क्वार्टर का किराया, राशन – पानी, बिजली का भाड़ा और एक आध घर का चक्कर। बस सब उसी में खत्म। काका की हालत आज भी ज्यों की त्यों है।

बड़े वाले की शादी तय कर दी गई है। जेब में खर्चने को दमड़ी भी नहीं है। फिर से एक आध बीघा जमीन बेच दी जाती है। आज काका फिर से दुखी है।

एक दिन चारों भाई शाम को आंगन में बैठकर बतिया रहे हैं। “अरे भाई न जाने यह कैसी शिक्षा प्रणाली और व्यवस्था है? इतनी महंगी पढ़ाई हासिल कर भी ढंग की नौकरी ना ही तो सरकारी क्षेत्र में नसीब हो पाती है और ना ही निजी क्षेत्र में। सरकारें वादे तो बड़ी-बड़ी करती है, पर तोड़ती डक्का नहीं।” छुटकू बड़े तैश से बोल रहा था।

“हाथी के दांत खाने के और तथा दिखाने के और वाली कहावत है यह छुटकू। आखिर दोषी कौन?” सबसे बड़े वाले ने विलक्षण स्वरों से जवाब दिया।

इतने में अंदर से आवाज आती है, “अजी सुनते हो। खाना तैयार है।”
सब खाना खाने चले जाते हैं।

घोषणा: यह मेरी मौलिक, स्वरचित रचना है।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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ज़रूर पढ़ें — शिक्षक की महानता।

Conclusion — निष्कर्ष

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस छोटी कहानी के माध्यम से मिडिल क्लास के परिवारों के मजबूरी और समझ को बताने की बखूबी कोशिश की है। मिडिल क्लास परिवार किस कदर मेहनत कर बमुश्किल उच्च डिग्री हासिल करता है। उसके बाद भी उसे अच्छी नौकरी नही मिल पाती।

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यह छोटी कहानी (दोषी कौन है?) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कहानी/कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

 

 

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बदलता दौर।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ बदलता दौर। ♦

इतवार की सुबह सवेरे तड़के ही कोई रविन्द्र के आंगन से आवाजे लगा रहा था,” भाई साहब! ओ भाई साहब! चलो चलना है क्या?”

” कौन बिरजू है क्या?” अंदर से रविन्द्र चाय पीते हुए बोला।
” जी हां भाई साहब। मैं बोल रहा हूं।” बिरजू ने झट से उत्तर दिया।
रविन्द्र ने अपनी पत्नी को जल्दी तैयार होने को कहा और स्वयं भी कपड़े पहनते हुए बिरजू से बतियाता रहा।

” क्या बताएं बिरजू? हर चेले – घोपे के पास गए। हर डॉक्टर – हकीम के पास गए।लाखों का खर्च कर लिया है, और तो और अम्मा जी के कहने पर हवन – पाठ भी करवा लिए। पर शादी के दस साल बाद भी कोई औलाद नहीं हो रही है। कल जब तुम्हे दफ्तर से आते वक्त, मन्दिर जाने के बारे में शांता से बतियाते हुए सुना तो सोचा हम भी एक बार तुम दोनों के साथ मन्दिर चल आते हैं। शायद अबकी भगवान हमारी सुन ही लें।”

“भाग्य का क्या पता भाई साहब? कब खुल जाए? मैं भी इन्हें बड़ी मुश्किल से मन्दिर में लिए जा रही हूं। वे भी आपके जाने के लिए राजी होने के बाद ही जाने को तैयार हुए हैं। वरना कहां ….? ” शांता ने अदब से कहा।

पुत्र रत्न पैदा हुआ।

इस बार सचमुच भगवान ने रविन्द्र और तारा की सुन ली। दोनों की किस्मत खुली और उनके एक पुत्र रत्न पैदा हुआ। वह बच्चा बचपन में इतना बीमार रहा कि न जाने तारा ने उसको बड़ा करने के लिए क्या – क्या नहीं किया?

बेचारे रविन्द्र की आधी तनख्वाह हर महीने उसी के इलाज में लग जाती थी। बड़ी मुद्दत से जो हुआ था लाल। दोनों ने लालन पालन में कोई कोर कसर न छोड़ी। तारा तो उसके बी ए करने तक उसे अपनी थाली से ही खिलाती रहती थी। बेचारी खुद भूखी रह जाती पर कुन्दन पर आंच न आने देती।

कुंदन और ईशा की शादी।

भगवान की कृपा से कुन्दन की नौकरी भी लग गई। नौकरी की खबर सुनकर उसकी एक सहपाठी ने उसे रिश्ता भेज दिया। यूं तो कुन्दन भी उसके प्यार में कालेज से ही लट्टू हुआ पड़ा था पर वह बड़ा भाव खा रही थी। वह थोड़े बड़े घराने की थी। पर नौकरी लगने के बाद वह कुन्दन से शादी करने को मान गई। रिश्ता तय हुआ और शादी भी हुई। साल भर सब ठीक से रहा। मां बाप ने भी न पूछा दोनों को। सोचा बच्चे हैं। करने दो मस्ती।

साल बाद रविन्द्र की गाड़ी की एक दुर्घटना हुई। इसमें रविन्द्र ने तो अपनी जान ही गवाई और तारा की टांग टूट गई। अब घर का सारा काम कुन्दन और कुन्दन की पत्नी को करना पड़ रहा था।

साल भर के इलाज के बाद तारा भी ठीक तो हो गई थी पर बूढ़े शरीर में दर्द तो बढ़ता ही जा रहा था। ईशा कुछ दिन तो इधर उधर टल कर खुद को घर के कामकाज से बचाती रही और पति से ही खाना भी बनवाती रही और कपड़े भी धुलाती रही।

कुन्दन ने भी मां को बीमार देख चुपके से सब काम किया। परन्तु साल भर बाद एक दिन उसने साफ साफ कह दिया, _ ” बुढ़िया ज्यादा नाटक करने की कोई जरूरत नहीं है। अब तू ठीक हो गई है। पेट भरना है तो खाना खुद बनाया कर और अपने कपड़े खुद धोया कर। वरना चली जा वृद्धाश्रम। पति के मरने के बाद पेंशन मिलती है। आश्रम वाले पाल लेंगे उन्ही पैसों से। हमें न पैसों की जरूरत है और न ही मुझसे ये सब होता।”

कुन्दन ने ईशा को थोड़ा फटकारा। ईशा घर छोड़ कर माइके चली गई। उधर ईशा की मां ने तो और भी आग में घी डालने का काम किया। कुन्दन ईशा के बेगैर रह ही नहीं सकता था। मनाते – मनाते बात यहां तक आ पहुंची कि अब हमारी ईशा उस घर में तभी जाएगी, जब आप अपनी मां को अलग रखोगे या वृद्धा-आश्रम में छोड़ आएंगे।

कुन्दन ने डरते हुए से ईशा से कहा, ” ईशा तुम समझती क्यों नहीं? अभी हम मां को न अकेला रख सकते हैं और न ही तो आश्रम को भेज सकते हैं। अभी पापा को मरे हुए मात्र एक साल ही हुआ है। पति मरा है उसका, और फिर समाज क्या कहेगा?”

ईशा ने सर्पणी की तरह फुंकारते हुए उत्तर दिया, ” पति क्या सिर्फ तेरी मां का ही अनोखा मरा है? संसार में कईयों के पति मरे हैं। मैं कुछ नहीं सुनना चाहती। मैं समाज समूज कुछ नहीं जानती। फैसला तुम्हे करना है। तुम्हे मां चाहिए या फिर मैं? नहीं तो तलाक के पेपर तैयार करो पापा।”

“नहीं बेटी। कुछ दिन का समय इसे और देते हैं।” ईशा के पापा ने शराब का पैग लेते हुए कहा।
कुन्दन शाम को मां से सब सच सच कहता है।

तारा ने कुन्दन से कहा, ” बेटे तेरे पापा ने तो तुझे तभी कहा था कि यह लड़की कुछ ठीक नहीं है बेटा। कोई और लड़की देखते हैं। पर तेरी जिद्द के आगे हमारी एक न चली। अभी भी वक्त है बेटा। वे अगर तलाक मांग रहे हैं तो दे – दे तलाक। वह लड़की तुझे बर्बाद कर डालेगी।”

तारा के इतना कहते ही कुन्दन आग बबूला हो उठा, ” ठीक कहती है ईशा और उसके मम्मा-पापा। तेरे साथ रहना सचमुच ठीक नहीं है। पड़ी रह घर में अकेली। हम रह लेंगे क्वार्टर में। बड़ी आई तलाक दे – दे।”

दोनो पति – पत्नी क्वार्टर में रहने लगे। जितना कुन्दन महीने का कमाता, उससे तीन गुना खर्चे मैडम के थे। घर के काम काज को रखी नौकरानी पैसे न मिलने के कारण नौकरी छोड़ गई। सब काम कुन्दन को खुद करने पड़ते थे।

मैडम जी तो दिन रात व्यस्त ही रहती थी और नशे में चूर। बेटे की हालत देख कर नौकरानी को पैसे देना तारा ने चुपके से शुरू किए, ताकि बेटे पर बोझ न पड़े। कुन्दन पर बैंक का कर्ज भी बहुत हो गया था।

अब वह भी परेशान हो कर और ससुराल की संगत से शराब पीने लग गया था। एक दिन उसने दफ्तर से लौट कर मैडम को किसी गैर मर्द की बाहों में लिपटे देखा तो उससे रहा नहीं गया। उसने सासू मां और ससुर साहब से ईशा की करतूतों की शिकायत की।

उन्होंने उसे जबाव दिया,” तो क्या हुआ? यह तो आजकल आम बात है। हमारी बेटी है ही बहुत सुंदर दामाद जी। आ गया होगा किसी का दिल उस पर। तुम्हारा भी किसी और पर आ जाए तो उसमें क्या गलत है? इस बात पर ज्यादा बबाल करने की कोई जरूरत नहीं है।”

उधर बैक वालों की चिट्ठियों से कुन्दन अलग से परेशान था। कुन्दन को एक दिन दिमागी दौरा पड़ा। वह हस्पताल में कराह रहा था। तारा को नौकरानी ने खबर दी।तारा उसे घर ले आई और उस अपाहिज बुद्धि का इलाज भी करती रही और उसका कर्जा भी भरती गई।

उन बूढ़ी बाहों में अब और इतनी शेष ताकत नहीं थी कि वे इस बुढ़ापे में भी अपने बेटे को अपना पेट काट कर पालती। पर क्या करती? उसे यह सब मजबूरी में करना पड़ रहा था।

मैडम ईशा ने अपने माइके में उसी गैर मर्द के साथ डेरा जमा लिया था। एक दिन तारा उसे घर बुलाने गई तो उसने बेहूदा जवाब दिया, “क्या करूंगी तेरे अपाहिज बेटे के साथ रह कर?”
तारा रोते – रोते घर लौट आई।

♦ हेमराज ठाकुर जी – जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश ♦

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Conclusion:

  • “हेमराज ठाकुर जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से बखूबी समझाने की कोशिश की है – माता-पिता सदैव ही अपने बच्चे/बच्चियों का भला ही चाहते हैं, उनका कहना जरूर माने, उनके अनुभव का कभी भी मजाक ना बनाये। जो आपके माता-पिता का सम्मान और सेवा नहीं कर सकती/सकता वो आपका सम्मान और सेवा भला क्या करेगी। इसलिए सदैव ही माता-पिता का सम्मान और सेवा करें, उनका कहना माने। कभी भी उनका साथ ना छोड़े, चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थिति क्यों ना आ जाये।

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यह लेख/लघु कथा (बदलता दौर।) “हेमराज ठाकुर जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख / लघु कथा सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

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स्व का पहचान सर्व ज्ञान का स्रोत।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ स्व का पहचान सर्व ज्ञान का स्रोत। ϒ

प्यारे दोस्तों – आज मैं आप सभी को बहुत समय पहले की एक सत्य से अवगत करवाता हूँ।

महर्षि उद्दालक के पुत्र श्वेतकेतु अत्यंत प्रतिभाशाली थे। गुरुकुल में निरंतर १२ वर्षो तक शास्त्रों का अध्ययन करने के पश्चात् – जब वे महर्षि के पास लौटे तो उन्होंने उनसे प्रश्न किया – “वत्स ! वह क्या है, जिसका ज्ञान होने से सृष्टि के समस्त पहलुओं का ज्ञान हो जाता है।”

इस प्रश्न का उत्तर श्वेतकेतु से न देते बना तो – उसकी जिज्ञासा का समाधान करते हुए महर्षि उद्दालक बोले – “पुत्र जिस प्रकार स्वर्ण का ज्ञान हो जाने से स्वर्ण से बनी सभी वस्तुओं का ज्ञान हो जाता है, कृषि का ज्ञान हो जाने से सभी अन्य वनस्पतियो को उगाने का ज्ञान हो जाता है।”

“वैसे ही आत्मा का ज्ञान हो जाने से सृष्टि के समस्त पहलुओं का ज्ञान हो जाता है। तुम अब अपना जीवन उसी आत्मज्ञान को प्राप्त करने में लगाओं।”

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हिम्मत आपकी मदद उसकी।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ हिम्मत आपकी मदद उसकी। ϒ

एक बार एक किसान का घोड़ा बीमार हो गया। उसने उसके इलाज के लिए डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने घोड़े का अच्छे से मुआयना किया और बोला….. आपके घोड़े को काफी गंभीर बीमारी है। हम तीन दिन तक इसे दवाई देकर देखते हैं, अगर यह ठीक हो गया तो ठीक, नहीं तो हमे इसे मारना होगा। क्योंकि यह बीमारी दूसरे जानवरों में भी फैल सकती है।

यह सब बातें पास में खड़ा एक बकरा भी सुन रहा था। अगले दिन डॉक्टर आया, उसने घोड़े को दवाई दी और चला गया। उसके जाने के बाद बकरा घोड़े के पास गया और बोला – दोस्त, हिम्मत करो, नहीं तो यह तुम्हें मार देंगे। दूसरे दिन डॉक्टर फिर आया और दवाई देकर चला गया। बकरा फिर घोड़े के पास आया और बोला, दोस्त, तुम्हें उठना ही होगा। हिम्मत करो, करो नहीं तो तुम मारे जाओगे। मै तुम्हारी मदद करता हूँ।

चलो उठाे। तीसरे दिन जब डॉक्टर आया तो किसान से बोला, मुझे अफसोश है की हमे इसे मारना पड़ेगा क्योकि कोई भी सुधार नज़र नही आ रहा। जब वो वहां से गए तो – बकरा घोड़े के पास फिर आया और बोला, देखो दोस्त, “करो या मरो” वाली स्थिति बन गई है। अगर तुम आज भी नहीं उठे ताे कल तुम मर जाओगें। इसलिए हिम्मत करो। हाँ, बहुत अच्छे। थोड़ा और, तुम कर सकते हो। शाबाश , अब भाग कर देखो, तेज और तेज।

इतने में किसान वापस आया तो उसने देखा कि उसका घोड़ा भाग रहा है। वो ख़ुशी से झूम उठा और सब घर वालो को इकट्ठा करके चिल्लाने लगा, चमत्कार हो गया, मेरा घोड़ा ठीक हो गया। हमे जश्न मनाना चाहिए …। हिम्मत रखे जीने की। अगर हम हिम्मत का एक कदम आगे बढ़ाएंगे, तो हमारी जिंदगी बच जाएगी। तभी तो ऊपर वाला कहता है कि तुम हिम्मत का एक कदम आगे बढ़ाओ तो मैं हजार कदम आगे बढ़ाऊंगा। हम सिर्फ आई हुई परिस्थितियों के प्रभाव रुपी चश्मे से ही देखते हैं। देखना तो ये चाहिए कि अपनी क्षमता को पूर्ण रूप से क्रियान्वित कर रहे हैं या नहीं।

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– कुछ उपयोगी पोस्ट सफल जीवन से संबंधित –

* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

* अपनी आदतों को कैसे बदलें।

∗ निश्चित सफलता के २१ सूत्र।

* क्या करें – क्या ना करें।

∗ जीवन परिवर्तक 51 सकारात्मक Quotes of KMSRAJ51

* विचारों का स्तर श्रेष्ठ व पवित्र हो।

* अच्छी आदतें कैसे डालें।

* KMSRAJ51 के महान विचार हिंदी में।

* खुश रहने के तरीके हिन्दी में।

* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaensolar radiation, and encourage good solar radiation to becomethemselves.

 ~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”

~KMSRAJ51

 

 

 

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सच्ची मानवता – संवेदनशीलता।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ सच्ची मानवता – संवेदनशीलता। ϒ

kmsraj51-true-humanity

प्यारे दोस्तों – एक Postman ने घर के दरवाजे पर दस्तक देते हुए कहा, “चिट्ठी ले लिजिये”। अंदर से एक बालिका की आवाज़ आई, “आ रही हूँ”। लेकिन तीन से चार मिनट तक काेई न आया ताे Postman ने फिर कहा, “अरे भाई! घर में काेई है क्या, अपनी चिट्ठी ले लाे”। लड़की की फिर आवाज़ आई, “Postman साहब, दरवाजे के नीचे से चिट्ठी अंदर डाल दीजिए, मैं आ रही हूँ”। “नहीं, मैं खड़ा हूँ, रजिस्टर्ड पत्र है, पावती पर तुम्हारे signature चाहिए”।

करीबन छह से सात मिनट के बाद दरवाज़ा खुला। Postman इस देरी के लिए झल्लाया हुआ ताे था ही और उस पर चिल्लाने वाला था लेकिन, दरवाज़ा खुलते ही वह चाैंक गया। एक अपाहिज कन्या जिसके पांव नहीं थे, सामने खड़ी थी।

Postman चुपचाप पत्र देकर और उसके signature लेकर चला गया। सप्ताह – दो सप्ताह में जब कभी उस लड़की के लिए डाक आती, Postman एक आवाज़ देता और जब तक वह कन्या न आती तब तक खड़ा रहता। एक दिन लड़की ने Postman काे नंगे पांव देखा।
दिपावली नज़दीक आ रही थी। उसने सोचा Postman काे क्या उपहार दूँ।

एक दिन जब Postman डाक देकर चला गया, तब उस लड़की ने जहाँ मिट्टी में Postman के पांव के निशान बने थे, उस पर काग़ज रखकर उन पांवाे का चित्र उतार लिया। अगले दिन उसने अपने यहाँ काम करने वाली बाईं से उस नाप के जूते मंगवा लिये।

दिपावली आई और उसके अगले दिन Postman ने गली के सब लाेगाें से ताे उपहार माँगा और साेचा कि अब इस बिटिया से क्या उपहार लेना? पर गली में आया हूँ ताे उससे मिल ही लूँ। उसने दरवाज़ा खटखटाया। अंदर से आवाज़ आई, “काैन ?” Postman उत्तर मिला। कन्या हाथ में एक Gift पैक लेकर आई और कहा, “अंकल, मेरी तरफ से दिपावली पर आपकाे भेंट है। “Postman ने कहा” तुम मेरे लिए बेटी के समान हाे, तुमसे मैं उपहार कैसे लूँ?” कन्या ने आग्रह किया कि मेरी इस उपहार के लिए मना न करें।

ठिक है कहते हुए Postman ने पैकेट ले लिया। कन्या न कहा, “अंकल इस पैकेट काे घर ले जाकर खाेलना। घर जाकर जब उसने पैकेट खाेला ताे विस्मित रह गया, क्योंकि उसमें एक जाेड़ी जूते थे। उसकी आँखे भर आई। अगले दिन वह Office पहुंचा और Postmaster से फरियाद की कि उसका तबादला फाैरन कर दिया जाए। Postmaster ने कारण पूछा, ताे Postman ने वे जूते टेबल पर रखते हुए सारी कहानी सुनाई और भीगी आँखाें और रूंधे कंठ से कहा, “आज के बाद मैं उस गली में नहीं जा सकूंगा। उस अपाहिज बच्ची ने मेरे नंगे पाँवाें काे ताे जूते दे दिये पर मैं उसे पाँव कैसे दे पाऊंगा ?”

सीख : संवेदनशीलता का यह श्रेष्ठ दृष्टांत है। संवेदनशीलता यानि, दूसराें के दुःख दर्द काे समझना, अनुभव करना और उसके दुःख-दर्द में भागीदारी करना, उसमें शरीक हाेना। एक ऐसा मानवीय गुण है जिसके बिना इंसान अधूरा है।

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Krishna Mohan Singh(KMS)
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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं। ~ कृष्ण मोहन सिंह(KMS)

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– कुछ उपयोगी पोस्ट सफल जीवन से संबंधित –

* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

* अपनी आदतों को कैसे बदलें।

∗ निश्चित सफलता के २१ सूत्र।

* क्या करें – क्या ना करें।

∗ जीवन परिवर्तक 51 सकारात्मक Quotes of KMSRAJ51

* विचारों का स्तर श्रेष्ठ व पवित्र हो।

* अच्छी आदतें कैसे डालें।

* KMSRAJ51 के महान विचार हिंदी में।

* खुश रहने के तरीके हिन्दी में।

* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

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दयालु लकड़हारा।

Kmsraj51 की कलम से…..

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ϒ दयालु लकड़हारा। ϒ

kmsraj51-kinder-logger-stories-in-hindi

प्यारे दोस्तो – बहुत समय पहले किशनपुर गाँव में रामू नाम का एक गरीब लकड़हारा रहता था। वह दूसराे की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता। जीवाें के प्रति उसके मन में बहुत दया थी। एक दिन वह जंगल से लकड़ी इकट्ठी करने के बाद थक गया ताे थाेड़ी देर सुस्ताने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठ गया। तभी उसे सामने के पेड़ से पक्षियों के बच्चाें के ज़ाेर-ज़ाेर से चीं-चीं करने की आवाज़ सुनाई दी।

उसने सामने देखा ताे डर गया। एक सांप घाेसले में बैठे चिड़िया के बच्चाें की तरफ बढ़ रहा था। बच्चे उसी के डर से चिल्ला रहे थे। रामू उन्हें बचाने के लिए पेड़ पर चढ़ने लगा। सांप लकड़हारे के डर से नीचे उतरने लगा। उसी दाैरान चिड़िया भी लाैट आई। उसने जब रामू काे पेड़ पर देखा ताे समझा कि उसने बच्चाें काे मार दिया।

वह रामू काे चाेच मार-मारकर चिल्लाने लगी। उसकी आवाज़ से और चिड़िया भी आ गईं। सभी ने रामू पर हमला कर दिया। बेचारा रामू किसी तरह पेड़ से नीचे उतरा। चिड़िया जब घाेसले में गई ताे उसके बच्चे सुरक्षित बैठे थे। बच्चाें ने चिड़िया काे सारी बात बताई ताे उसे अपनी गलती का एहसास हुआ।

वह रामू से माफी मांगना चाहती थी और उसका शुक्रिया अदा करना चाहती थी। उसे कुछ दिन पहले दाना ढूंढ़ते हुए एक कीमती हीरा मिला था। उसने हीरे काे अपने घाेसले में लाकर रख लिया था। चिड़िया ने वह हीरा रामू के आगे डाल दिया और एक डाली पर बैठकर अपनी भाषा में धन्यवाद करने लगी। रामू ने हीरा उठा लिया और चिड़िया की तरफ हाथ उठाकर उसका धन्यवाद किया और वहां से चल दिया। तभी कई चिड़िया आईं और उसके ऊपर उड़कर साथ चलने लगीं मानाे वे उसका आभार करते हुए विदा करने आई हाें।

सीख – किसी भी जीव पर किये गये उपकार का फल सदैव ही सकारात्मक नतीजे के रूप में return मिलता हैं।

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चालाक बगुला और केकड़ा।

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ϒ चालाक बगुला और केकड़ा। ϒ

बहुत समय पहले कि बात है घने जंगल में एक तालाब किनारे बहुत सारे जलीय जीव जब सुबह की धूप सेकने आए तो अपने शत्रु बगुले को एक टांग पर खड़े प्रार्थना करते देखा। आज उसने उन पर आक्रमण भी नहीं किया था।

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सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ – कि इस बगुले को क्या हुआ। कुछ साहसी मछलियां – कछुए और केकड़े इकट्टे होकर उसके पास पहुंचे और पूछा – “क्या बात है बगुले दादा, आज किस चिंता में हो?”

“भाई लोगो – मैंने आज से भगताई शुरू कर दी है। कल ही मुझे स्‍वप्‍न आया कि दुनिया खत्म होने वाली है, इसलिए क्यों न भगवान का नाम लिया जाए और सुनो, यह तालाब भी सूखने वाला है। तुम लोग जल्दी ही किसी दूसरी जगह चले जाओ।”

“क्या तुम सच कह रहे हो।”

“हां भाई – मैं भला झूठ क्यों बोलूंगा। तुम देख ही रहे हो कि अब मैं तुम लोगों का शिकार भी नहीं कर रहा हूं, क्योंकि मैंने मांस खाना भी छोड़ दिया है। राम…राम…राम….।” बगुले का साधुपन देखकर सबको भरोसा आ गया कि बगुला भगत जो कह रहे हैं, सच है।

“बगुला भगत जी – अगर यह तालाब सूख गया तो हमारे बाल बच्चे तो तड़प-तड़पकर मर जाएंगे।” मेंढक ने कहा – “कोई उपाय करो।”

“भाई मैं आज रात ईश्वर से बात करता हूं, फिर जैसा वह कहेंगे तुम्हें बता दूंगा, मानना न मानना तुम्हारी मर्जी।”

सभी लोग बगुला भगत के पांव छूकर चले गए। दूसरे दिन बगुला भगत ने बताया कि भगवान ने कहा है कि अगर आप सब बगल वाले जंगल के तालाब में चले जाओ तो बच जाओगे।

मगर हम वहां जाएंगे कैसे? सबने चिन्ता जाहिर की। यदि यहां से वहां तक एक सुरंग खोद ली जाए तो…..  एक कछुआ बोला। अरे भाई ये क्या आसान काम है? केकड़ा बोला – और फिर इतनी लम्बी सुरंग कौन खोदेगा।

तभी एक मछली बोली – एक और भी उपाय है। बगुला भगत जी हमें अपनी पीठ पर बैठाकर वहां छोड़ आएं। यह सुनते ही बगुला भगत बोला – “मैं तो अब बूढ़ा हो गया हूं। इतना बोझा भला।”

“भगत जी – आप हमें एक-एक करके वहां ले जाओ।” आप तो अब साधु हो गए हैं और साधु का काम है दूसरों की रक्षा करना। सबने गुहार लगाई। अब जब आप इतना कह रहे हैं तो ठीक है। आओ, ये शुभ काम मैं आज से ही शुरू कर दूं। आओ, तुममें से एक मछली मेरी पीठ पर बैठ जाए।

एक चतुर मछली फौरन उछलकर उसकी पीठ पर बैठ गई। बगुला भगत उसे लेकर फौरन उड़ गया। इसी प्रकार कई दिन गुजर गए। बगुला रोज दो – तीन मछलियों, मेंढकों, कछुओं आदि को ले जाता रहा। एक दिन केकड़े की बारी आई – केकड़ा उसकी पीठ पर सवार था। बगुला भगत सोच रहा था, आज तो मजा आ जाएगा। केकड़े का बढि़या मांस खाने को मिलेगा।

उधर – एक पहाड़ी पर से गुजरते हुए केकड़े को ढेर सारी मछलियों की हडिृयां, कछुओं के खोल और मेंढकों के पिंजर पड़े दिखाई दिए तो वह बगुले भगत की सारी चालाकी समझ गया और बिना एक पल गंवाए उसने बगुले की गरदन दबोच ली।

“अरे केकड़े भाई, क्या करते हो?” बगुला चिल्लाया …

“पाखण्डी बगुले” – फौरन मुझे मेरे तालाब पर वापस लेकर चल वरना बेमौत मारा जाएगा। मैं तेरी सारी चालाकी समझ गया हूँ। अब चूंकि तू बूढ़ा हो चुका है, इसलिए तुझसे शिकार नहीं होता। इसीलिए तूने यह चाल चली और भोली-भाली मछलियों को यहां लाकर खा गया। अब अगर जिंदगी चाहता है तो वापस चल वरना तेरी कब्र भी यहीं बन जाएगी।

बगुला “मरता क्या न करता।” वह वापस पलटा और उसी तालाब पर आ गया। उसका ख्याल था कि केकड़ा उसे छोड़ देगा, मगर केकड़े ने उसे छोड़ा नहीं। उसने उसकी गरदन काट दी और तालाब में जाकर सबको उसकी हकीकत बता दी।

मौत के मुंह से बच गए सभी जीव केकड़े का धन्यवाद करने लगे।

प्यारे दोस्तों – जिसका स्वभाव धूर्तता का हो, अर्थात जाे धूर्त हाे उस पर भरोसा करने से धोखा ही मिलेगा। इसलिए कभी भी ज़िन्दगी में धूर्ताें पर विश्वास न करें।

♥⇔♥

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धर्म भ्रष्ट या अहंकार।

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Kmsraj51-CYMT-JUNE-15

ϒ धर्म भ्रष्ट या अहंकार। ϒ

एक दिन पंडित को प्यास लगी, संयोगवश घर में पानी नही था। इसलिए उनकी पत्नी पडोस से पानी ले आई। पानी पीकर पंडित ने पूछा…..

पंडित – कहाँ से लायी हो बहुत ठंडा पानी है।

पत्नी – पडोस के कुम्हार के घर से। (पंडित ने यह सुनकर लोटा फैंक दिया और उसके तेवर चढ़ गए वह जोर-जोर से चीखने लगा).

पंडित – अरी तूने तो मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया, कुंभार (शुद्र) के घर का पानी पिला दिया। पत्नी भय से थर-थर कांपने लगी, उसने पण्डित से माफ़ी मांग ली।

पत्नी – अब ऐसी भूल नही होगी। शाम को पण्डित जब खाना खाने बैठा तो घर में खाने के लिए कुछ नहीं था।

पंडित – रोटी नहीं बनाई, भाजी नहीं बनाई।

पत्नी – बनायी तो थी लेकिन अनाज पैदा करनेवाला कुणबी(शुद्र) था, और जिस कढ़ाई में बनाया था वो लोहार (शुद्र) के घर से आई थी। सब फेक दिया।

पंडित – तू पगली है क्या कही अनाज और कढ़ाई में भी छुत होती है? यह कह कर पण्डित बोला की पानी तो ले आओ।

पत्नी – पानी तो नही है जी।

पंडित – घड़े कहाँ गए?

पत्नी – वो तो मेने फैंक दिए क्योंकि कुम्हार के हाथ से बने थे।

पंडित – बोला दूध ही ले आओ वही पीलूँगा।
पत्नी – दूध भी फैंक दिया जी क्योंकि गाय को जिस नौकर ने दुहा था वो तो नीची (शुद्र) जाति से था न।

पंडित – हद कर दी तूने तो यह भी नही जानती की दूध में छूत नही लगती है।

पत्नी – यह कैसी छूत है जी जो पानी में तो लगती है, परन्तु दूध में नही लगती। पंडित के मन में आया कि दीवार से सर फोड़ ले। गुर्रा कर बोला – तूने मुझे चौपट कर दिया है जा अब आंगन में खाट डाल दे मुझे अब नींद आ रही है।

पत्नी – खाट! उसे तो मैने तोड़ कर फैंक दिया है क्योंकि उसे शुद्र (सुतार) जात वाले ने बनाया था।

पंडित चीखा – ओ फुलो का हार लाओ भगवन को चढ़ाऊंगा ताकि तेरी अक्ल ठिकाने आये।

पत्नी – फेक दिया उसे माली (शुद्र) जाती ने बनाया था।

पंडित चीखा – सब में आग लगा दो, घर में कुछ बचा भी हैं या नहीं।

पत्नी – हाँ यह घर बचा है, इसे अभी तोडना बाकी है क्योंकि इसे भी तो पिछड़ी जाति के मजदूरों ने बनाया है। पंडित के पास कोई जबाब नही था। उसकी अक्ल तो ठिकाने आ गई। पंडित काे अपने अहंकार व अज्ञान का बाेध हाे गया था।

दोस्तों, कहने काे ताे २१ वीं सदी में इंसान ने बहुत तरक़्क़ी की है, लेकिन अभी भी छूत व अछूत के राेग में जक़ड़ा हुआँ हैं। आखिर कब तक इंसान इस छूत व अछूत के राेग से मुक्त हाे पायेगा।

पढ़ें – विमल गांधी जी कि शिक्षाप्रद कविताओं का विशाल संग्रह।

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प्रभु ने मेरी लाज रख ली।

Kmsraj51 की कलम से…..
Kmsraj51-CYMT-JUNE-15

ϒ प्रभु ने मेरी लाज रख ली। ϒ

‘संत कंवर राम’ की प्रभु भक्ति….. सिंध प्रांत में ‘कंवर राम’ नामक एक प्रसिद्ध संत हो गए हैं। वे गांव-गांव जाकर भगवद्भजन के माध्यम से भक्ति का प्रचार करते और लोगों को अध्यात्म, नैतिक गुणों तथा सांप्रदायिक सद्भाव की सीख देते। एक बार उनका मुकाम डहरकी नामक एक गांव में था।

एक दिन एक गरीब विधवा का एकमात्र शिशु ईश्वर को प्यारा हो गया और वह उसके वियोग में जोर-जोर से विलाप करने लगी। उसका शोक एक वृद्ध पुरुष से देखा न गया और उसने महिला से कहा : “बेटी, वृथा शोक न कर यहां संत कंवर राम नामक एक महात्मा पधारे हैं। उनका आज रात्रि में मंदिर में भजन-कीर्तन है, तू संत से उसके चिरायु होने का आशीर्वाद मांगना। उनकी कृपा से तुम्हारा शिशु जीवित हो सकता है, मगर इसके मृतक होने की बात उनसे छिपाए रखना।”

महिला ने सुना, तो उसके मन में आशा जागी और अपने मृत बालक को चादर में लपेटकर वह रात्रि को मंदिर पहुंच गई और शिशु को कंवर राम जी के चरणों पर रखकर कहा : “भगत साहिब मैं अपने इस नन्हे शिशु के चिरजीवन की कामना लिए आपके पास आई हूं। कृपया इसे भागवत्राम का मंत्र देकर मुझ अबला को कृतार्थ करें।”

महिला की बातों पर विश्वास करके संत जी ने शिशु को भागवत्राम का श्रवण कराया। मंत्र के समाप्त होने की देर थी कि बेजान शिशु के शरीर में जान आ गई और वह हाथ-पैर हिलाने लगा। यह चमत्कार देखते ही महिला संत जी के चरणों पर गिर पड़ी और उसने सारी बात बताकर असत्य बोलने के लिए क्षमा मांगी।

किंतु कंवर रामजी को बड़ा दुख हुआ उन्होंने महिला से कहा : “आपको ऐसा नहीं करना था, हमें प्रभु की करनी को’ होनी मानकर स्वीकार कर लेना चाहिए, इसी में हमारी भलाई है। यह तो अच्छा ही हुआ कि प्रभु ने मेरी लाज रख ली और मुझे दुविधा से बचा लिया।”

पढ़ें – विमल गांधी जी कि शिक्षाप्रद कविताओं का विशाल संग्रह।

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शिक्षा का निचोड़ क्या है?

Kmsraj51 की कलम से…..
Kmsraj51-CYMT-JUNE-15

ϒ शिक्षा का निचोड़ क्या है? ϒ

काशी में गंगा के तट पर एक संत का आश्रम था। एक दिन उनके एक शिष्य ने पूछा “गुरुवर, शिक्षा का निचोड़ क्या है?”

संत ने मुस्करा कर कहा….. “एक दिन तुम खुद-ब-खुद जान जाओगे।” बात आई गई हो गई।

कुछ समय बाद एक रात संत ने उस शिष्य से कहा….. “वत्स, इस पुस्तक को मेरे कमरे में तख्त पर रख दो।” शिष्य पुस्तक लेकर कमरे में गया लेकिन तत्काल लौट आया। वह डर से कांप रहा था।

संत ने पूछा….. क्या हुआ? इतना डरे हुए क्यों हो?

शिष्य ने कहा… “गुरुवर, कमरे में सांप है।”

संत ने कहा….. “यह तुम्हारा भ्रम होगा। कमरे में सांप कहां से आएगा। तुम फिर जाओ और किसी मंत्र का जाप करना। सांप होगा तो भाग जाएगा।”

शिष्य दोबारा कमरे में गया। उसने मंत्र का जाप भी किया लेकिन सांप उसी स्थान पर था। वह डर कर फिर बाहर आ गया और संत से बोला… “सांप वहां से जा नहीं रहा है।”

संत ने कहा….. “इस बार दीपक लेकर जाओ। सांप होगा तो दीपक के प्रकाश से भाग जाएगा।”

शिष्य इस बार दीपक लेकर गया तो देखा कि वहां सांप नहीं है। सांप की जगह एक रस्सी लटकी हुई थी। अंधकार के कारण उसे रस्सी का वह टुकड़ा सांप नजर आ रहा था।

बाहर आकर शिष्य ने कहा “गुरुवर, वहां सांप नहीं रस्सी का टुकड़ा है। अंधेरे में मैंने उसे सांप समझ लिया था।”

संत ने कहा….. “वत्स, इसी को भ्रम कहते हैं। यह संसार गहन भ्रम जाल में जकड़ा हुआ है। ज्ञान के प्रकाश से ही इस भ्रम जाल को मिटाया जा सकता है। यही शिक्षा का निचोड है।”

दोस्तों, वास्तव में अज्ञानता के कारण हम बहुत सारे भ्रमजाल पाल लेते हैं और आंतरिक दीपक के अभाव में उसे दूर नहीं कर पाते। यह आंतरिक दीपक का प्रकाश निरंतर स्वाध्याय और ज्ञानार्जन से मिलता है। जब तक आंतरिक दीपक का प्रकाश प्रज्वलित नहीं होगा, लोग भ्रमजाल से मुक्ति नहीं पा सकते।

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