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Shraddha Ritual | श्राद्ध विधान।
श्रद्धया दीयते यस्मात् तच्छादम्॥
भावार्थ : श्रद्धा से श्रेष्ठ संतान, आयु, आरोग्य, अतुल ऐश्वर्य और इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति होती है।
व्याख्या : वेदों अनुसार इससे पितृऋण चुकता होता है। पुराणों के अनुसार श्रद्धायुक्त होकर श्राद्धकर्म करने से पितृगण ही तृप्त नहीं होते, अपितु ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, दोनों अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, अष्टवसु, वायु, विश्वेदेव, ऋषि, मनुष्य, पशु-पक्षी और सरीसृप आदि समस्त भूत प्राणी भी तृप्त होते हैं। संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य देते हैं।
तर्पण कर्म के प्रकार : पुराणों में तर्पण को छह भागों में विभक्त किया गया है:-
1. देव-तर्पण।
2. ऋषि-तर्पण।
3. दिव्य-मानव-तर्पण।
4. दिव्य-पितृ-तर्पण।
5. यम-तर्पण।
6. मनुष्य-पितृ-तर्पण।
आश्विन माह कृष्ण पक्ष आता है एक बार,
15 दिनों के लिए पितृ आते हैं घर द्वार॥
सूर्य कन्या राशि में करता है प्रवेश ,
हमारे पितृ आते हैं धर देवता भेष॥
देह त्याग तिथि पर पितृ श्राद्ध आता है,
श्राद्ध विधान से तृप्त हो वापस लौट जाता है॥
कन्या राशि में सूर्य का प्रवेश जब हो जाता है,
इस समय पितृ श्राद्ध कर्म नहीं हो पाता है॥
पूरा कार्तिक मास पितृ इंतजार करता रहता है
फिर भी कोई पितृ ऋण नहीं चुका पाता है॥
जब सूर्य देव वृश्चिक राशि में आ जाता है,
तो पितृ निराश हो अपने स्थान लौट जाता है॥
पुराणों में पितरों को दो श्रेणियों में बांटा जाता हैं,
दिव्य पितर, मनुष्य पितर नाम से जाना जाता है॥
अग्रिष्वात्त, बर्हिषद आज्यप, सोमेप, रश्मिप, उपदूत, आयन्तुन ,
श्राद्धभुक व नान्दीमुख ,ये नौ दिव्य पितर कहलाते हैं॥
कर्मों के कारण मृत्यु बाद जो सजा पाते हैं,
पितरों की गणना में आने वाले प्रधान यमराज कहलाते हैं॥
अग्रिषवात, बहिरषद, आज्यप, सोमेप, रश्मिप, उपदूत,
आयंतुन, श्राद्धभुक, नांदीमुख ये नौ दिव्य पितर कहलाते हैं॥
अर्यमा, किरण इस समय पृथ्वी पर आ जाते हैं,
मार्कंडेय पुराण में ये पितर देव कहलाते हैं॥
पितरों के श्राद्ध से हम ऋण मुक्त हो जाते हैं,
वंशानुगत, शारीरिक, मानसिक तनाव मुक्त हो जाते हैं॥
धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित कर सकारात्मक भाव पाते हैं, कृष्ण भगवान गीता का श्लोक अर्जुन को सुनाते हैं —
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।
पितृणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्॥29॥-गीता
भावार्थ : हे धनंजय! नागों में मैं शेषनाग और जलचरों में वरुण हूं, पितरों में अर्यमा तथा नियमन करने वालों में यमराज हूं।
♦ विजयलक्ष्मी जी – झज्जर, हरियाणा ♦
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- “विजयलक्ष्मी जी“ ने, बिलकुल ही सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए; इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की हैं — वेदों अनुसार इससे पितृऋण चुकता होता है। पुराणों के अनुसार श्रद्धायुक्त होकर श्राद्धकर्म करने से पितृगण ही तृप्त नहीं होते, अपितु ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, दोनों अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, अष्टवसु, वायु, विश्वेदेव, ऋषि, मनुष्य, पशु-पक्षी और सरीसृप आदि समस्त भूत प्राणी भी तृप्त होते हैं। संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य देते हैं।
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यह कविता (श्राद्ध विधान।) “विजयलक्ष्मी जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।
आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—
मेरा नाम विजयलक्ष्मी है। मैं राजकीय प्राथमिक कन्या विद्यालय, छारा – 2, ब्लॉक – बहादुरगढ़, जिला – झज्जर, हरियाणा में मुख्य शिक्षिका पद पर कार्यरत हूँ। मैं पढ़ाने के साथ-साथ समाज सेवा, व समय-समय पर “बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ” और भ्रूण हत्या पर Parents मीटिंग लेकर उनको समझाती हूँ। स्कूल शिक्षा में सुधार करते हुए बच्चों में मानसिक मजबूती को बढ़ावा देना। कोविड – 19 महामारी में भी बच्चों को व्हाट्सएप ग्रुप से पढ़ाना, वीडियो और वर्क शीट बनाकर भेजना, प्रश्नोत्तरी कराना, बच्चों को साप्ताहिक प्रतियोगिता कराकर सर्टिफिकेट देना। Dance Classes प्रतियोगिता का Online आयोजन कराना। स्वच्छ भारत अभियान के तहत विद्यालय स्तर पर कार्य करना। इन सभी कार्यों के लिए शिक्षा विभाग और प्रशासनिक अधिकारी द्वारा और कई Society द्वारा बार-बार सम्मानित किया गया।
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