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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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"सच्चा गुरु कौन ?"

सच्चा गुरु कौन ?

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ सच्चा गुरु कौन ? ♦

गुरु पूर्णिमा व सच्चे गुरु पर KMSRAJ51 के विचार।

वास्तविक गुरु वह हाेता है जाे अपने अनुयाइयाें काे परमात्म मिलन का सच्चा मार्ग दिखाये, ना की केवल स्वयं की पूजा-अर्चना करवायें। जाे गुरु केवल स्वयं की पूजा-अर्चना करवाता हैं वह गुरु नहीं राक्षस(दैत्य) है, वह आपकाे परमात्मा से विमुख(दुर) कर रहा हैं। जबकी एक सच्चा गुरु ऐसा कभी नहीं करता।

मनुष्य कभी किसी मनुष्य का उद्धार(निर्वाण या मोक्ष) नहीं कर सकता, यहा तक कि साधु-संताे का भी उद्धार करने के लिए स्वयं परमात्मा काे आना पड़ता हैं। अर्थात: मनुष्य कभी किसी मनुष्य का उद्धार नहीं कर सकता।

सभी मनुष्याें का सच्चा गुरु परमात्मा (GOD) ही हैं।

यह बात “श्रीमद् भागवत गीता” के चौथे अध्याय के श्लोक संख्या “८” से:

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥

अर्थात: साधु पुरुषोंका उद्धार करने के लिये, पापकर्म करने वालाें का विनाश करने के लिये और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिये मैं युग-युग में (संगमयुग में) प्रकट (किसी सतपुरुष शरीर का माध्यम लेकर) हुआ करता हूँ॥८॥

ध्यान दें,

संगमयुग : वह समय जब कलियुग (कलयुग) का आखिरी कुछ वर्ष शेष रह जाये, जिसके बाद सतयुग आने वाला हाे। यहीं समय संगमयुग कहलाता हैं। – KMSRAJ51

⋅—⋅♦⋅—⋅♦⋅—⋅♦⋅—⋅

कहने का तात्पर्य यह है की – सच्चा गुरु कभी भी खुद की पूजा अर्चना नहीं करवाता। एक सच्चा गुरु सदैव ही आपको परमात्म मिलन का सच्चा मार्ग दिखाता है, जिस पर चलकर आप पूर्ण समर्पित मन से, पूर्ण श्रद्धा से साधना करते है तो अपनी सुषुप्त शक्तियों को जागृत करते है।

जब आत्मा की सुषुप्त शक्तियां जागृत होने लगती है, आपको सत्य का बोध होने लगता है। आपको सर्वोच्च आनंद की अनुभूति होने लगती है, इस आनंद के सामने अन्य आनंद फीकी लगने लगती है।

जो सत्य है, सास्वत है उसका बोध होने लगता है, संसार में रहते हुए भी आप संसार के बंधनो से मुक्त होने की अनुभूति करने लगते है।

सच्चे गुरु का सदैव ही आदर, सत्कार और सम्मान करें, पूर्ण समर्पित मन से! याद रहे मैं यहां बात कर रहा हूं सच्चे गुरु की।

गुरु पूर्णिमा: सच्चे अर्थो में गुरु पूर्णिमा का मतलब है गुरु के द्वारा बताये हुए मार्ग पर पूर्ण समर्पित मन से चलकर साधना करना। जिससे आपको उस सत्य का बोध हो, जिसकी आपको तलाश है।

एक सच्चा गुरु आपसे यही चाहता है की आप उसके बताये हुए मार्ग पर चलते हुए पूर्ण समर्पित मन से साधना करें। जिससे आपको पूर्ण सत्य की पहचान हो, और आप बुरे कर्मो से मुक्त होकर अच्छे कर्मो की तरफ अपना कदम बढ़ाये। आपके अच्छे कर्म से मानवता का कल्याण हो।

इस संसार में आने पर किसी भी इंसान की प्रथम गुरु माँ है।

अपने सच्चे गुरु का पूर्ण समर्पित मन से आदर, सेवा, सत्कार व सम्मान करें। पूर्ण विश्वास और समर्पित मन से सच्चे गुरु के द्वारा बताए हुए मार्ग पर चलकर सच्चे मन से साधना करें। जिससे आपका कल्याण हो। आपका यह मनुष्य जीवन सार्थक हो। सच्चे गुरु के द्वारा बताए हुए मार्ग पर चलकर सच्चे मन से साधना करते है तो आपको सत्य का बोध जरूर होता है।

प्यारे दोस्तों – यहाँ आपको सच्चे आध्यात्मिक गुरु के बारे में बताया है।

यह लेख KMSRAJ51 की स्वयं रचित रचना है।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

 

 

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गुरु पूर्णिमा पर विशेष।

Kmsraj51 की कलम से…..

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♥ गुरु पूर्णिमा पर विशेष। ♥

गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं…..

गुरु पूर्णिमा पर विशेष – “सच्चा गुरु कौन ?”

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आप सबको बधाई – वास्तविक गुरु वह हाेता है जाे अपने अनुयाइयाें काे परमात्म मिलन का सच्चा मार्ग दिखाये, ना की स्वयं की पूजा-अर्चना करवायें। जाे गुरु स्वयं की पूजा-अर्चना करवाता हैं वह गुरु नहीं राक्षस(दैत्य) है, वह आपकाे परमात्मा से विमुख(दुर) कर रहा हैं। जबकी एक सच्चा गुरु ऐसा कभी नहीं करता।

मनुष्य कभी किसी मनुष्य का उद्धार(निर्वाण या मोक्ष) नहीं कर सकता, यहा तक कि साधु-संताे का भी उद्धार करने के लिए स्वयं परमात्मा काे आना पड़ता हैं। अर्थात: मनुष्य कभी किसी मनुष्य का उद्धार नहीं कर सकता।

सभी मनुष्याें का सच्चा गुरु परमात्मा(GOD) ही हैं।

यह बात “श्रीमत भागवत गीता” के चौथे अध्याय के श्लोक संख्या “८” से:

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥

अर्थात: साधु पुरुषोंका उद्धार करने के लिये, पापकर्म करनेवालाेंका विनाश करने के लिये और धर्मकी अच्छी तरह से स्थापना करने के लिये मैं युग-युगमें(संगमयुग में) प्रकट(किसी सतपुरुष शरीर का माध्यम लेकर) हुआ करता हूँ॥८॥

ध्यान दें,

संगमयुग: वह समय जब कलियुग(कलयुग) का आखिरी कुछ वर्ष शेष रह जाये, जिसके बाद सतयुग आने वाला हाे। यहीं समय संगमयुग कहलाता हैं।

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* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

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