• Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • HOME
  • ABOUT
    • Authors Intro
  • QUOTES
  • POETRY
    • ग़ज़ल व शायरी
  • STORIES
  • निबंध व जीवनी
  • Health Tips
  • CAREER DEVELOPMENT
  • STUDENT PAGE
  • योग व ध्यान

KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

Check out Namecheap’s best Promotions!

Domain & Hosting bundle deals!
You are here: Home / Archives for समाज में शिक्षा का महत्व

समाज में शिक्षा का महत्व

शुभागमन।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ शुभागमन। ♦

निश्छल चंचल मन,
आंखों में संजोएं, सपनों की उमंग।
फंख फैलाए भरने को गगन की उड़ान,
नव आगंतुकों हेतु सज चुका है, शिक्षा का दरबार।
आइए पधारिए हमारे भविष्य के कर्णधार,
शिक्षा की दहलीज पर है आपका वंदन अभिनंदन,
शुभागमन, शुभागमन…।

चली बयार,
आ गई नामांकन की बहार।
नन्हें – मुन्हें की उड़ी फुहार,
मनमोहक, मनभावन लगता जैसे त्योहार।
आमंत्रित करता सूबे सह मुजफ्फरपुर का हर विद्यालय परिवार,
शिक्षा की दहलीज पर है वंदन अभिनंदन,
शुभागमन, शुभागमन…।

सजेगी बगिया चमन होगा गुलजार,
नव कोंपल के आगमन से खिल उठेगा,
शिक्षा का बाग, होगा नया आगाज।
भंवरे गुनगुनाएंगे सुनकर,
प्यारी मीठी मंद मंद मुस्कान।
पधारों हे राष्ट्र के कर्णधार,
शिक्षा की दहलीज पर है वंदन अभिनंदन,
शुभागमन, शुभागमन…।

प्रथम अप्रैल से आपकी राह निहारे,
नामांकन की बांट जोहते।
पाठशाला ही है जिसकी शान,
जो दिलाएगा उन्हें मान और सम्मान।
तभी बढ़ेगा राष्ट्र का अभिमान,
शिक्षा की दहलीज पर है वंदन अभिनंदन,
शुभागमन, शुभागमन…।

सभी अभिभावकों से विवेक की विनती है हरबार,
चल रही नामांकन की बयार।
कराइए छह वर्ष के नन्हें मुन्ने का दाखिला इसबार,
खुद आइए, संग लाइए।
बगिया के फूलों का चहकता मेहमान,
शिक्षा की दहलीज पर करते वंदन अभिनंदन,
शुभागमन, शुभागमन…।

♦ विवेक कुमार जी – जिला – मुजफ्फरपुर, बिहार ♦

—————

• Conclusion •

  • “विवेक कुमार जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — शिक्षा हमें विभिन्न प्रकार का ज्ञान व कौशल प्रदान करता है। यह सीखने की निरंतर, धीमी और सुरक्षित प्रक्रिया है, जो हमें ज्ञान प्राप्त करने में मदद करती है। यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जो हमारे जन्म के साथ ही शुरु हो जाती है और हमारे जीवन के साथ ही खत्म होती है। सजेगी बगिया चमन होगा गुलजार, नव कोंपल के आगमन से खिल उठेगा, शिक्षा का बाग, होगा नया आगाज। भंवरे गुनगुनाएंगे सुनकर, प्यारी मीठी मंद मंद मुस्कान। पधारों हे राष्ट्र के कर्णधार, शिक्षा की दहलीज पर है वंदन अभिनंदन, शुभागमन, शुभागमन…।

—————

यह कविता (शुभागमन।) “विवेक कुमार जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें/लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं एक शिक्षक हूं। मुजफ्फरपुर जिला, बिहार राज्य का निवासी हूं। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

अपने विचार Comments कर जरूर बताये, और हमेशा नए Post को अपने ईमेल पर पाने के लिए – ईमेल सब्सक्राइब करें – It’s Free !!

Please share your comments.

आप सभी का प्रिय दोस्त

©KMSRAJ51

जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

———– © Best of Luck ®———–

Note:-

यदि आपके पास हिंदी या अंग्रेजी में कोई Article, Inspirational Story, Poetry या जानकारी है जो आप हमारे साथ Share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी ID है: kmsraj51@hotmail.com पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks!!

“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

____ अपने विचार Comments कर जरूर बताएं! ____

Filed Under: 2022-KMSRAJ51 की कलम से, विवेक कुमार जी की कविताएं।, हिंदी कविता, हिन्दी-कविता Tagged With: poet vivek kumar, vivek kumar poems, ग्रामीण शिक्षा का महत्व, जीवन में शिक्षा का महत्व, प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक शिक्षा की आवश्यकता, विवेक कुमार की कविताएं, शिक्षा का महत्व, शुभागमन, समाज में शिक्षा का महत्व

दीक्षा बिना अधूरी शिक्षा।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ दीक्षा बिना अधूरी शिक्षा। ♦

जिस तरह जीवन के लिए जल, वायु एंव भोजन आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार सुखमय एंव तृप्त जीवन हेतु शिक्षा, दीक्षा एंव संस्कार का संबंध अटूट है, अकल्पनीय है। प्राचीन समय से शिक्षित, ज्ञानी, परमात्मा को जानने वाले, कलम एंव बुद्धि के धनी, समाज को सत्य के मार्ग पर अग्रसर करने वाले, रक्षा करने वाले, अंधकार से प्रकाश में लाने वाले गुरु शिक्षा एंव दीक्षा पर समान बल देते हुए मनुष्य को ज्ञान देकर शिक्षा के माध्यम से परमात्मा से जुड़ने का मार्ग बताया, बिना गुरु ज्ञान कहाँ-जहाँ गुरु हर धाम वहाँ।

शिक्षा का अर्थ सिखना है। प्राचीनकाल में जब विनीत भाव से गुरु चरणों में बैठकर ज्ञान ग्रहण किया जाता था उसे ही दीक्षा कहा जाता था। राम- कृष्ण जिन्हें भगवान मानते हैं वे भी गुरु से शिक्षा एंव दीक्षा लिए, गोत्र गुरु की पहचान हैः

गुरु गृह गए पढ़न रघुराई।
अल्पकाल विद्या सब पाई॥

गुरु वशिष्ठ एवं गुरु शांडिल्य — राम और कृष्ण के गुरु थे समय के साथ दीक्षा की परम्परा ही लुप्त हो गई। वर्तमान परिवेश में गुरु की परिभाषा ही बदल गई। किसी भी व्यक्ति के जीवन को बनाने में, चरित्र निर्माण में गुरु का अहम योगदान होता है लेकिन आज गुरु का महत्व ही खत्म हो गया। अब तो दीक्षांत समारोह में डिग्री प्रदान की जाती है अगर उच्च शिक्षा, उज्ज्वल भविष्य की जननी है तो दीक्षा जीवन मूल्यों का आधार प्रदान करती है।

रावण प्रकांड पंडित जरुर था अंहकार और गुरुर चरम सीमा पर था क्योंकि दीक्षा मनुष्य को आत्मसंयमी, त्यागी एंव अंहकार रहित बना देता है। रावण के विनाश का कारण दीक्षा का अभाव होना ही था। जब से दीक्षा की परम्परा लुप्त हुई, मनुष्य का जीवन कष्टों से घिर गया। खुशी – शांति लुप्त हो गई आज मनुष्य के भीतर संवेदना, प्रेम, भाईचारे की कमी देखी जाती है अमानवीय कार्य करने में थोड़ी भी झिझक नहीं। चश्मे से वही देख सकता है जिसके ऑंख में क्षमता है – कोई ऐसी चश्मा नहीं है जिससे अंधो को दिखाई दे।

अंधा भी देख सकता है अगर प्रभु कृपा से षष्टी इंद्रिय जागृत हो जाए – यह वगैर गुरु – दीक्षा संभव नहीं है अगर नरेंद्र दत्त श्री रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में नहीं आते तो वह स्वामी विवेकानंद नहीं बनते। स्वामी विवेकानंद ने गुरु के बताए रास्ते पर चलकर जो उन्होंने मान – सम्मान, नाम – शोहरत दिया, वह एक सच्चा शिक्षित एंव दीक्षा प्राप्त शिष्य ही कर सकता है।

श्री केशवचन्द सेन बहुत बड़े विद्वान थे लेकिन आज उनको कितने लोग जानते है। उन्हें गुरु का आशीर्वाद प्राप्त नहीं था। श्री रामकृष्ण परमहंस ने पहले ही कह दिया था तुम बहुत बड़े विद्वान हो लेकिन स्वामी विवेकानंद की जगह तुम कभी नहीं ले सकते। दीक्षा इंसान को अंहकार मुक्त, जाति के बंधन से मुक्त कर देता है।

मनुष्य जन्म लेते ही स्वतः जाति एंव धर्म से जुड़ जाता है। लेकिन दीक्षा प्राप्त करने के बाद मनुष्य हर बंधन से मुक्त होकर पूरे विश्व एंव मानव समाज के कल्याण हेतु अपने को समर्पित कर देता है। जब स्वामी विवेकानंद से उनकी जाति पूछी गई तो उन्होने बड़ा ही हदय स्पर्शी जबाव दिया “मेरा तन जन्म से कायस्थ है लेकिन यह तो नश्वर है, दिल – दिमाग दीक्षा लेने के बाद गुरु कृपा से पूरे ब्रह्मांड की धरोहर है।”

मानव कल्याण ही मेरे जीवन का उद्देश्य है, दीक्षा ने उन्हें अमर बना दिया। एक ऐसी ज्योति जो कभी नहीं बुझेगी। इस धरती पर बहुत सारे गुरु हैं, जब योग्य एंव कुलीन गुरु – योग्य शिष्य को दीक्षा देता है तभी फलीभूत होता है। कोई किसी गुरु का अनुयायी हो, उनके बताए मार्ग पर चलने से परमात्मा की प्राति होगी – दिखावा करना स्वंय को ठगना है और गुरु का अनादर है।

आज श्री ठाकुर अनुकूलचन्द्र जी (देवघर), श्री महर्षि मेंही (भागलपुर) श्री रामचन्द्र जी महाराज (शाहजहॉंपुर), श्री लाला चतुर्मुज सहाय (टूण्डला), महर्षि महेश योगी, श्री अरविन्दधोष, श्री परमहंस योगानन्द जी, के लाखों शिष्य हैं – श्री रामकृष्ण मिशन की शाखाऍं पूरे विश्व में है – केवल स्वामी विवेकानंद जैसे शिष्य के कारण – गुरु के आशीर्वाद के कारण, दीक्षा में जितने शब्द हैं उसे तो जान लें …….

—

  • द – का अर्थ दमन अर्थात इंद्रिय, निग्रह
  • ई – का अर्थ ईश्वर की उपासना
  • क्ष – का अर्थ वासनाओं का क्षय
  • आ – का अर्थ आनन्द

दीक्षा का मतलब अपने अंदर परमात्मा का दर्शन कर लेना। जैसे दिव्य चेतना का प्रकाश उभरता है, ब्रह्म के साथ तारतम्य स्थापित होने लगता है। बिना दीक्षा, संस्कार सम्भव नहीं है गुरु नानक देव महाराज, भगवान महावीर, स्वामी दयानन्द सरस्वती मनुष्यों के लिए प्रेरणा के श्रोत हैं। दीक्षा की शुरुआत ही इंद्रिय निग्रह से है। मन को मारना नहीं है अपितु लगाम लगाना जरुरी है, नहीं तो मन भटकता रहेगा।

जब शिष्य गुरु के साथ मन के तार जोड़कर गुरु के बताए रास्ते पर शुद्ध मन से चलता है, विघा ग्रहण करता है तो स्वतः संस्कार एंव आस्था का उदय होने लगता है। खारे जल से कभी प्यास नहीं बुझती। गुरुओं ने बड़े ही सरल तरीके से अपने शिष्यों को दीक्षा, जप, तप एंव इष्टवृति (दान) का महत्व समझा दिया है। बिना जप, तप एंव दान का दीक्षा पूर्ण नहीं हो सकता।

जप तीन प्रकार से होता है जिह्वा से, होठ से और कंठ से। सबसे उत्तम कंठ से माना गया है। गुरु मंत्र का जप हमेशा कंठ से ही करना चाहिए। शरीर के सारे तंत्र (स्नायु) सक्रिय हो जाते है जो आध्यात्मिक उर्जा पैदा करते हैं, तप का मतलब इच्छाओं, भावनाओं, द्वेष, जलन, ईर्ष्या को समाप्त कर, अहंकार मुक्त होकर ध्यान करना ही तप है।

जब तक मन केन्द्रित नहीं होगा तब तक कुछ की सम्भव नहीं है। इष्टवृति (दान) के बिना दीक्षा अधूरी है। दान का मतलब – गुप्त दान, दान अहंकार की जननी है। किसने दान किया, किसको दिया, कितना दिया – यह किसी को पता नहीं होना चाहिए।

पुस्तकालय में बैठने से कोई ज्ञानी नहीं हो सकता, जब तक की वह किताबों का अध्ययन न करे। ठीक उसी तरह किसी गुरु का शिष्य बनने से कुछ नहीं होगा, जब तक पूरी आस्था के साथ, समर्पण के साथ उनके बताए मार्ग पर न चले। जप, तप, ध्यान, दान (ईष्टवृति) को पूर्णतः अपने जीवन में उतारने, नियमानुसार अनुकरण करने के बाद ही – गुरु कृपा की बरसात होगी।

पहले “कृ” यानी कर्म तब “पा”। संत्संग से जुड़ जाना, स्वामी विवेकानंद, महर्षि महेश योगी, श्री परमंहस योगानन्द जी महाराज, श्री अरविन्द घोष, श्री ठाकुर अनुकूल चन्द्र जैसे गुरु की छत्रछाया में नए जीवन की शुरुआत ही मुक्ति का मार्ग है। माया मोह, अहंकार, लोभ स्वतः गायब हो जाएगा। गुरु वंदना में एक छोटी सी मेरी कविताः …….

गुरु – शिष्य का नाता देखो।
पिता – पुत्र से कहीं महान।
कली से जब फूल बनोगे।
महक उठेगा हिन्दुस्तान॥

गुरु का आदर करना सीखो।
ग़र बनना है तुझे महान।
इक दिन शीश झुकाएगा।
तुझपे सारा हिन्दुस्तान॥

घोषणा: ये मेरी अप्रकाशित रचना है।

♦ भोला शरण प्रसाद जी – नोएडा – उत्तर प्रदेश ♦

—————

  • “भोला शरण प्रसाद जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — शिक्षा अर्थात इस संसार का व सभी सजीव एवं निर्जीव वस्तुओं, जीवों का ज्ञान, जबकि दीक्षा का मतलब है संस्कार, क्योकि संस्कार के बिना ज्ञान अधूरा हैं, संस्कार विहीन ज्ञान सदैव ही विनाश का कारण बनता है। इसी कारण दीक्षा बिना अधूरी होती हैं शिक्षा। आजकल ना ही पहले जैसा गुरु शिष्य का रिश्ता है और ना ही वैसी शिक्षा – दीक्षा है, जिस कारण आजकल के बच्चें संस्कार विहीन हैं और अपना विनाश खुद ही कर रहे हैं।

—————

यह लेख (दीक्षा बिना अधूरी शिक्षा।) “भोला शरण प्रसाद जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख/कवितायें सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मैं भोला शरण प्रसाद बी. एस. सी. (बायो), एम. ए. अंग्रेजी, एम. एड. हूं। पहले केन्द्रीय विघालय में कार्यरत था। मेरी कई रचनाऍं विघालय पत्रिका एंव बाहर की भी पत्रिका में छप चूकी है। मैं अंग्रेजी एंव हिन्दी दोनों में अपनी रचनाऍं एंव कविताऍं लिखना पसन्द करता हूं। देश भक्ति की कविताऍं अधिक लिखता हूं। मैं कोलकाता संतजेवियर कालेज से बी. एड. किया एंव महर्षि दयानन्द विश्वविघालय रोहतक से एम. एड. किया। मैं उर्दू भी जानता हूं। मैं मैट्रीकुलेशन मुजफ्फरपुर से, आई. एस. सी. एंव बी. एस. सी. हाजीपुर (बिहार विश्वविघालय) बी. ए. (अंग्रेजी), एम. ए. (अंग्रेजी) बिहार विश्वविघालय मुजफ्फरपुर से किया। शिक्षा से शुरू से लगाव रहा है। लेखन मेरी Hobby है। इस Platform के माध्यम से सुधारात्मक संदेश दे पाऊं, यही अभिलाषा है।

अपने विचार Comments कर जरूर बताये, और हमेशा नए Post को अपने ईमेल पर पाने के लिए – ईमेल सब्सक्राइब करें – It’s Free !!

Please share your comments.

आप सभी का प्रिय दोस्त

©KMSRAJ51

जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

———– © Best of Luck ® ———–

Note:-

यदि आपके पास हिंदी या अंग्रेजी में कोई Article, Inspirational Story, Poetry या जानकारी है जो आप हमारे साथ Share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी ID है: kmsraj51@hotmail.com पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks!!

“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

____ अपने विचार Comments कर जरूर बताएं! ____

Filed Under: 2022-KMSRAJ51 की कलम से, भोला शरण प्रसाद जी की रचनाएँ।, हिन्दी साहित्य Tagged With: author bhola sharan prasad, Bhola Sharan Prasad, education in hindi meaning, education is my life in hindi, essay on education in hindi, गुरु गृह गए पढ़न रघुराई, गुरु वशिष्ठ एवं गुरु शांडिल्य, दीक्षा बिना अधूरी शिक्षा, भोला शरण प्रसाद जी की रचनाएँ, शिक्षा का उद्देश्य क्या है?, शिक्षा का महत्व, शिक्षा का महत्व पर निबंध, शिक्षा पर निबंध, समाज में शिक्षा का महत्व, हमारे जीवन में शिक्षा का महत्व

Primary Sidebar

Recent Posts

  • गंगा माँ।
  • पछतावा।
  • बोलता पेड़।
  • लोहारी नहीं डूबा।
  • दर्दे दिल।
  • आया तूफान।
  • सफर।
  • बेजार।
  • ओ माझी रे।
  • इक प्रयास।
  • इक प्रयास।
  • स्त्री।
  • जागो अब तो जागो।
  • मंत्र को गुप्त क्यों रखा जाता है?
  • यही हमारा नारा है।
  • बल के लिए।
  • आन बान आउर शान बा।

KMSRAJ51: Motivational Speaker

https://www.youtube.com/watch?v=0XYeLGPGmII

BEST OF KMSRAJ51.COM

गंगा माँ।

पछतावा।

बोलता पेड़।

लोहारी नहीं डूबा।

दर्दे दिल।

आया तूफान।

सफर।

बेजार।

ओ माझी रे।

इक प्रयास।

इक प्रयास।

Audiobooks Now

AudiobooksNow - Digital Audiobooks for Less

Affiliate Marketing Network

HD – Camera

Free Domain Privacy

Footer

Protected by Copyscape

KMSRAJ51

DMCA.com Protection Status

Copyright © 2013 - 2023 KMSRAJ51.COM - All Rights Reserved. KMSRAJ51® is a registered trademark.