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KMSRAJ51-Always Positive Thinker

“तू ना हो निराश कभी मन से” – (KMSRAJ51, KMSRAJ, KMS)

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सीमा रंगा इन्द्रा जी की रचनाएँ

हर बार अंदाजा सही नहीं होता।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ हर बार अंदाजा सही नहीं होता। ♦

ट्रेन अपनी स्पीड से चली जा रही थी। परन्तु रमा की टिकट कन्फर्म नहीं हुई थी, परन्तु उनका जाना बहुत जरूरी था इसलिए रमा अपने तीन बच्चों के साथ बिना टिकट कन्फर्म ही ट्रेन में चढ़ गए थे। सोचे हो ही जाएगी, पर बैठने के बाद पता चला टिकट कन्फर्म नहीं हुई। टीटी ने उन्हें सीट पर बैठने को कहा, जैसे ही बैठे एक महिला ने कहा ये हमारी सीट है बड़े ही रोब से। बेचारी को कुछ राहत मिली ही थी। उसे क्या पता था कि उसकी खुशी बस कुछ ही पल की थी। एक आस लगाए टकटकी लगाए उसी महिला को बार-बार इस उम्मीद में निहार रही थी कि शायद वह अपनी एक सीट हमें दे-दें क्योंकि उसके दो बच्चे थे और एक बच्चा लगभग 4 साल का था। उसकी मां ने उसे पास ही अपनी सीट पर सुला रखा था। पर उन्होंने चार सीट बुक करवा रखी थी।

3 सीटों पर ही बैठे थे चौथी सीट खाली थी। रमा ने जैसा सोचा था ऐसा कुछ नहीं हुआ उस महिला ने उसकी तरफ मुड़ के देखा भी नहीं, उसी की बगल वाली सीट पर एक आदमी काफी देर से रमा को घूरे जा रहा था। रमा बार-बार उसे देखकर अपनी नजरें झुका मन ही मन बुदबुदा रही थी। कैसा आदमी है कब से घूरे जा रहा है शर्म नहीं आती है ऐसे लोग बुरे ही होते हैं। क्योंकि वह आदमी देखने में ऐसा लग रहा था शायद कई दिन से नहाया नहीं था। उसके कपड़े भी बहुत मैले- कुचैले थे। ऐसा करते-करते ट्रेन ने कब गति पकड़ ली और रात्रि का समय कब हो गया रमा को आभास ही नहीं हुआ।

वह आदमी अपनी सीट से उठकर आया और बोला बहन जी आप मेरी सीट पर आकर बैठ जाए। आप ऐसे कब तक बच्चों का हाथ पकड़े खड़ी रहेंगी। रमा का तो जैसे खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा था और वह धन्यवाद करते हुए शर्म के मारे गर्दन नीचे किए हुए और अपने तीनों बच्चों को सीट पर बैठा दिया और खुद भी बैठ गई।

आदमी ट्रेन के दरवाजे पर जाकर खड़ा हो गया। रमा लगातार उसे ही देखे जा रही थी। जैसे-जैसे ट्रेन अपनी रफ्तार पकड़ती जा रही थी रमा के अंदर भी प्रश्नों का भूचाल आ रहा था। मन ही मन सोच रही थी कि मैंने इनके कपड़ों को देखकर और इनके हाल को देखकर अंदाजा लगा लिया था कि यह कोई अपराधी प्रवृत्ति का आदमी है, परंतु मेरा अंदाजा बिल्कुल गलत निकला और मुझे अब अपनी सोच पर बहुत शर्म आ रही है। आज जब भी रमा को ट्रेन यात्रा की याद आती है तो हर बार रमा यही सोचती है कि हर बार हमारा अंदाजा सही नहीं होता।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — जरुरी नही की हर बार आपका अंदाज़ा सही ही हो, कभी भी किसी के चेहरे और हावभाव को देखकर तुरंत उसके प्रति अपना नकारात्मक विचार नहीं बना लेना चाहिए। पहले सच्चाई के तह तक जाए और दिलसे सोचकर अपना विचार बनाएं। जैसे-जैसे ट्रेन अपनी रफ्तार पकड़ती जा रही थी रमा के अंदर भी प्रश्नों का भूचाल आ रहा था। मन ही मन सोच रही थी कि मैंने इनके कपड़ों को देखकर और इनके हाल को देखकर अंदाजा लगा लिया था कि यह कोई अपराधी प्रवृत्ति का आदमी है, परंतु मेरा अंदाजा बिल्कुल गलत निकला और मुझे अब अपनी सोच पर बहुत शर्म आ रही है। आज जब भी रमा को ट्रेन यात्रा की याद आती है तो हर बार रमा यही सोचती है कि हर बार हमारा अंदाजा सही नहीं होता।

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यह लेख (हर बार अंदाजा सही नहीं होता।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख, कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम सीमा रंगा इंद्रा है। मेरी शिक्षा बी एड, एम. ए. हिंदी। व्यवसाय – लेखिका, प्रेरक वक्ता व कवयित्री। प्रकाशन – सतरंगी कविताएं, देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं व लेख, दैनिक भास्कर, दैनिक भास्कर बाल पत्रिका, अमर उजाला, संडे रिपोर्टर, दिव्य शक्ति टाइम्स ऑफ़ डेजर्ट, कोल्डफीरर, प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, इंदौर समाचार लोकांतर, वूमेन एक्सप्रेस सीमांत रक्षक युगपक्ष, रेड हैंडेड, मालवा हेराल्ड, टीम मंथन, उत्कर्ष मेल काव्य संगम पत्रिका, मातृत्व पत्रिका, कोलकाता से प्रकाशित दैनिक पत्रिका, सुभाषित पत्रिका शब्दों की आत्मा पत्रिका, अकोदिया सम्राट दिव्या पंचायत, खबर वाहिनी, समतावादी मासिक पत्रिका, सर्वण दर्पण पत्रिका, मेरी कलम पूजा पत्रिका, सुवासित पत्रिका, 249 कविता के लेखक कहानियां प्रकाशित देश के अलग-अलग समाचार पत्रों में समय-समय पर।

सम्मान पत्र -180 ऑनलाइन सम्मान पत्र, चार बार BSF से सम्मानित, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सोसायटी से सम्मानित, नेहरू युवा केंद्र बाड़मेर से सम्मानित, शुभम संस्थान और विश्वास सेवा संस्थान द्वारा सम्मानित, प्रज्ञा क्लासेस बाड़मेर द्वारा, आकाशवाणी से लगातार काव्य पाठ, सम्मानित, बीएसएफ में वेलफेयर के कार्यों को सुचारु रुप से चलाने हेतु सम्मानित। गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, प्रेसिडेंट ग्लोबल चेकर अवार्ड।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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परिवार की खुशी के लिए पुरुष का समर्पण।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ परिवार की खुशी के लिए पुरुष का समर्पण। ♦

आज के भागदौड़ भरे इस आधुनिक जीवन में किसी के पास वक्त ही नहीं है। एक घर में रहकर भी घर के सदस्य एक-दूसरे के साथ बैठकर खाना नहीं खा पाते, बात नहीं कर पाते हैं । “ऐसा नहीं है बात नहीं करना चाहते।” सभी करना चाहते पर घर-परिवार की जिम्मेदारियां और फिर कमाने की जद्दोजहद में सब व्यस्त रहते हैं।

सोचते हैं इस वर्ष की बात है अगले वर्ष सब ठीक हो जाएगा, परंतु अगले वर्ष करते-करते कब बुढ़े हो जाते हैं पता ही नहीं चलता? एक आदमी को सिर्फ कमाना ही नहीं होता बल्कि बच्चों की पढ़ाई, स्वास्थ्य, घरवालों के ख्याल के साथ-साथ बहुत से खर्चों का ध्यान रखना पड़ता है। उसे हमेशा एक ही चिंता रहती है कहीं घरवालों की जरूरतें पूरी ना हो, या कहीं कोई क़िस्त समय पर ना जाएं या फिर बच्चे की स्कूल फीस, ट्यूशन फीस लेट ना हो जाए। त्योहारों पर बच्चों की जरूरतों का सामान, खिलौने और ढेर सारी आवश्यकता की पूर्ति करता रहता है बिना कुछ बोले। उसे परिवार की खुशी सर्वप्रथम दिखती है।

मैंने देखा है एक पुरुष घर का सामान दिला देगा, बच्चों को, पत्नी को, मां को आवश्यकता की वस्तु परंतु जब उसकी बारी आती है तो हंसकर बोल देता है मेरे पास तो ढेर सारे कपड़े है। मुझे क्या जरूरत है। वह अपनी भावनाओं को सिर्फ और सिर्फ परिवार की खुशी के लिए दबा देता है। यह समर्पण ही परिवार में खुशी बनाए रखता है। हफ्ते में एक छुट्टी मिलती है आराम करने की। उसी छुट्टी में परिवार की खुशी की खातिर निकलता है बाहर परिवार को खुशी देने के लिए।

“उसका बड़ा मन होता है एक दिन का तो आराम करें, परंतु जिम्मेदारियां और परिवार को खुश रखने की चाहत उसे यह सब करने ही नहीं देती।” परिवार को खुश करने के लिए, उनके सपने सजाने के लिए, व बिना पक्षपात किए सभी की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए हैं कब वह बूढ़ा हो जाता है? उसे पता ही नहीं लगता। उसके त्याग से परिवार हंसता, खेलता, मुस्कुराता रहता है।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — परिवार जीवन का वो आधार स्तंभ है, जो हमें प्रेम, अपनापन, भावनात्मक सहारा प्रदान करता है। जीवन के कठिन दौर में जब दुनिया हमसे रूठ जाए, तब परिवार ही है, जो आगे बढ़कर हमें अपने गले लगा लेता है और हर तरह से हमारा साथ देता है। इसलिए सफ़लता प्राप्ति की राह में ऐसा न हो कि परिवार कहीं पीछे छूट जाये। “उसका बड़ा मन होता है एक दिन का तो आराम करें, परंतु जिम्मेदारियां और परिवार को खुश रखने की चाहत उसे यह सब करने ही नहीं देती।” परिवार को खुश करने के लिए, उनके सपने सजाने के लिए, व बिना पक्षपात किए सभी की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए हैं कब वह बूढ़ा हो जाता है? उसे पता ही नहीं लगता। उसके त्याग से परिवार हंसता, खेलता, मुस्कुराता रहता है।

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यह लेख (परिवार की खुशी के लिए पुरुष का समर्पण।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख, कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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मेरा नाम सीमा रंगा इंद्रा है। मेरी शिक्षा बी एड, एम. ए. हिंदी। व्यवसाय – लेखिका, प्रेरक वक्ता व कवयित्री। प्रकाशन – सतरंगी कविताएं, देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं व लेख, दैनिक भास्कर, दैनिक भास्कर बाल पत्रिका, अमर उजाला, संडे रिपोर्टर, दिव्य शक्ति टाइम्स ऑफ़ डेजर्ट, कोल्डफीरर, प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, इंदौर समाचार लोकांतर, वूमेन एक्सप्रेस सीमांत रक्षक युगपक्ष, रेड हैंडेड, मालवा हेराल्ड, टीम मंथन, उत्कर्ष मेल काव्य संगम पत्रिका, मातृत्व पत्रिका, कोलकाता से प्रकाशित दैनिक पत्रिका, सुभाषित पत्रिका शब्दों की आत्मा पत्रिका, अकोदिया सम्राट दिव्या पंचायत, खबर वाहिनी, समतावादी मासिक पत्रिका, सर्वण दर्पण पत्रिका, मेरी कलम पूजा पत्रिका, सुवासित पत्रिका, 249 कविता के लेखक कहानियां प्रकाशित देश के अलग-अलग समाचार पत्रों में समय-समय पर।

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मां-बाप से बेहतर आपकी खुशी कोई नहीं चाह सकता?

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ मां-बाप से बेहतर आपकी खुशी कोई नहीं चाह सकता? ♦

समय आया है संभलने का,
मात-पिता की बात मानने का।
जज्बातों से काम चलेगा नहीं,
अब अनुभव काम आएगा।

मां-बाप से बेहतर आपकी खुशी कोई नहीं चाह सकता। अब समय आ गया संभल कर चलने का। संभल कर रहने का, चारों तरफ गिद्ध नजरे गड़ाए खड़े हैं। यह तुम्हें देखना है कि इनकी नजरों से खुद को कैसे सुरक्षित करें। हालांकि सभी ऐसे नहीं होते। परंतु कोई भी रिश्ता निभाने से पहले अपने माता-पिता से जरूर पूछ लेना चाहिए।उनके पास वर्षों का अनुभव होता है। तुम्हारा अच्छा- बुरा उनसे बेहतर कोई नहीं जान पाएगा और तुम्हारे लिए कौन कैसा साबित होगा उनकी पारखी नजरों से बच नहीं पाएगा। हालांकि ऐसा नहीं है कि अभिभावक मानेंगे नहीं उन्हें भी अपने बच्चों की खुशी का पता है।

बस उनका तरीका अलग है। जब तुम उनके सामने एक बेहतरीन जीवन साथी लाओगे भले ही एक बार मना कर दे पर कुछ समय के बाद मान भी जाएंगे। उन्हें समय चाहिए क्योंकि उन्हें भी तो अपनी जांच-पड़ताल करनी होती है। अगर नहीं मान रहे तो, उनके पीछे का कारण पहचानो। पूछो शायद ठीक हो अगर गलत समझ रहे हैं तो समझाए। जिसने जीवन के इतने कष्ट सहन कर आपको पाला-पोसा भला कैसे वे आपका बुरा चाहेंगे। बस वे चाहते हैं हमारे बच्चों का जीवन खराब नहीं हो। आपकी खुशी में ही उनकी खुशी है वह सिर्फ और सिर्फ आपको खुश देखना चाहते हैं।

आजकल यह बात आम हो गई है कि बच्चे आराम से बोल देते हैं यह हमारा जीवन है हम अपने हिसाब से जिएंगे। परंतु जिन्होंने आप को जन्म दिया आपको पाला-पोसा उनका भी तो कुछ हक है आप पर। भला कौन ऐसा मात-पिता है जो अपने बच्चों का जीवन बर्बाद कर देगा। उन्हें कष्ट दे देगा। हमेशा आपका भला ही चाहेंगे।

उन्होंने तुम्हें बचपन से देखा है। पढ़ा-लिखा कर अच्छा जीवन इसलिए दिया है ताकि आगे का भविष्य भी आपका सुखद रहे। आप जीवन में ऊंचाइयों तक जाओ। आपकी खुशी के लिए वह हमेशा तत्पर रहते हैं। उन्हे चाहे कितना ही कष्ट क्यों ना सहन करना पड़े उनका मकसद होता है कि आपकी खुशी सर्वप्रथम हो। उन्होंने जीवन में जो कड़वे अनुभव सहन किए हैं बस उन्हीं से आप को दूर रखना चाहते हैं।

वे नहीं चाहते उनके बच्चे जीवन में दुखद अनुभव से गुजरे और उनके जीवन में उदासी छाए। माता-पिता यही चाहते हैं हमारे बच्चे का आगे का जीवन बहुत ही खुशहाली और प्रेम-पूर्वक से बीते। इसलिए हमेशा वे एक ऐसे रिश्ते में आपको जोड़ना चाहते हैं जो आपके जीवन को सुखमय खुशहाल बनाएं। बाकी सब का समझने का नजरिया अलग-अलग होता है।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — माता- पिता बच्चे के प्रथम शिक्षक या गुरु होते है। माता-पिता बच्चे को जन्म ही नहीं देते बल्कि वे उन्हे पाल-पोषकर बड़ा करते है। माता-पिता एक बच्चे को बोलना, चलना, तथा उन्हे सभी संस्कार सिखाते है। हमे अपने माता पिता द्वारा बताये गये रास्ते पर चलना चाहिए। वे नहीं चाहते उनके बच्चे जीवन में दुखद अनुभव से गुजरे और उनके जीवन में उदासी छाए। माता-पिता यही चाहते हैं हमारे बच्चे का आगे का जीवन बहुत ही खुशहाली और प्रेम-पूर्वक से बीते। इसलिए हमेशा वे एक ऐसे रिश्ते में आपको जोड़ना चाहते हैं जो आपके जीवन को सुखमय खुशहाल बनाएं। बाकी सब का समझने का नजरिया अलग-अलग होता है।

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यह लेख (मां-बाप से बेहतर आपकी खुशी कोई नहीं चाह सकता?) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख, कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम सीमा रंगा इंद्रा है। मेरी शिक्षा बी एड, एम. ए. हिंदी। व्यवसाय – लेखिका, प्रेरक वक्ता व कवयित्री। प्रकाशन – सतरंगी कविताएं, देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं व लेख, दैनिक भास्कर, दैनिक भास्कर बाल पत्रिका, अमर उजाला, संडे रिपोर्टर, दिव्य शक्ति टाइम्स ऑफ़ डेजर्ट, कोल्डफीरर, प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, इंदौर समाचार लोकांतर, वूमेन एक्सप्रेस सीमांत रक्षक युगपक्ष, रेड हैंडेड, मालवा हेराल्ड, टीम मंथन, उत्कर्ष मेल काव्य संगम पत्रिका, मातृत्व पत्रिका, कोलकाता से प्रकाशित दैनिक पत्रिका, सुभाषित पत्रिका शब्दों की आत्मा पत्रिका, अकोदिया सम्राट दिव्या पंचायत, खबर वाहिनी, समतावादी मासिक पत्रिका, सर्वण दर्पण पत्रिका, मेरी कलम पूजा पत्रिका, सुवासित पत्रिका, 249 कविता के लेखक कहानियां प्रकाशित देश के अलग-अलग समाचार पत्रों में समय-समय पर।

सम्मान पत्र -180 ऑनलाइन सम्मान पत्र, चार बार BSF से सम्मानित, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सोसायटी से सम्मानित, नेहरू युवा केंद्र बाड़मेर से सम्मानित, शुभम संस्थान और विश्वास सेवा संस्थान द्वारा सम्मानित, प्रज्ञा क्लासेस बाड़मेर द्वारा, आकाशवाणी से लगातार काव्य पाठ, सम्मानित, बीएसएफ में वेलफेयर के कार्यों को सुचारु रुप से चलाने हेतु सम्मानित। गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, प्रेसिडेंट ग्लोबल चेकर अवार्ड।

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प्रतिस्पर्धा कहीं बन ना जाए अवसाद का कारण?

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ प्रतिस्पर्धा कहीं बन ना जाए अवसाद का कारण? ♦

जीत तू जरूर,
छू ऊंचाइयों को।
कर मेहनत जरूर,
सपने कर पूरे,
बस तू कर मेहनत।

आज के आधुनिक दौर में आगे निकलने की दौड़ में सभी अपना वजूद ही खोते जा रहे हैं। जो है उनके पास स्वीकार ही नहीं कर पा रहे हैं। मात-पिता प्रतिस्पर्धा की दौड़ में अपने बच्चे को ही प्रथम लाना चाहते हैं। अच्छी बात है, पर दूसरों के साथ तुलना करके क्यों? सभी बच्चों में कौशल होता। हालांकि ये अलग बात है कि प्रतिभा अलग-अलग है। जैसे कोई चित्रकारी में, कोई नृत्य में, कोई गाने में, कोई पढ़ने में, कोई खेल में, कोई अपने घर के कार्यों में, पर अभिभावक चाहते हैं कि हमारा बच्चा ही हर काम में प्रथम आए। हमें सिर्फ अपने बच्चे की प्रतिभा को देखना है। वह किस क्षेत्र में अच्छा है, उसकी प्रशंसा करना, ना कि उस पर इतना दबाव बनाना कि वह अवसाद में चला जाए।

आज के दौर की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि बच्चे भी अवसाद से ग्रसित हो रहे हैं।पहले जमाने में तो अवसाद क्या होता है किसी को पता ही नहीं था। पर आज इसने अपना विकराल रूप धारण कर लिया है कि हमारे छोटे-छोटे बच्चों को भी नहीं छोड़ रहा है। यही माहौल हर जगह बन गया है सभी एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा रखते हैं। चाहे वह नौकरी हो, एक-दूसरे से आगे निकलना अच्छी बात है पर परंतु उसे अपने पर हावी ना होने दें।

हैसियत को देखकर ही तमाम कार्य करने चाहिए ना कि एक दूसरे की देखा-देखी।लोग दौड़ में लग जाते हैं उससे अच्छा घर, उससे अच्छे कपड़े, उससे अच्छी गाड़ी। क्यों? हमें सिर्फ और सिर्फ अपना देखना है हमारे हालात कैसे हैं। हमारे पास कितना धन है, यह नहीं कि दूसरों से अच्छा कैसे बनना और आगे कैसे निकलना है। क्योंकि सब में प्रतिभा होती है यह अलग बात है कि कोई पहचान लेता। कोई नहीं पहचानता, सिर्फ दौड़ में लग जाता है। यही दौड़ अवसाद का कारण बनती है क्योंकि हम एक-दूसरे से आगे निकलने की दौड़ में समय, पैसा, सुख-चैन खो देते हैं। हमें पता भी नहीं चलता कब हम इस प्रतिस्पर्धा की भाग दौड़ में समय, पैसा और सुख-चैन को खो दिया। जब तक बात हमें समझ आती है अवसाद हमें चारों तरफ से घेर लेता है।

दुनिया भर में अवसाद ने अपने पैर पसार रखे हैं। अकेले भारत में लगभग 20 करोड़ लोग अवसाद से ग्रसित है। हमें जो मिला है उसमें खुश क्यों नहीं। ऐसे ही सारी सुख- सुविधाएं होने के बाद भी खुश नहीं है। क्योंकि उन्हें दूसरों से ज्यादा कमाना है, कमाइए जरूर। पर उसे अपने जीवन पर हावी ना होने दें।

और-और की चाहत में,
जो है उससे भी हाथ ना धो बैठे।
और-और की चाहत में,
जो है उसका भी लुत्फ उठा ना पाते।

बहुत लोग दिन-रात मेहनत करते हैं। कई बार तो अपने घर वालों के साथ समय भी नहीं बिताते। ना ही परिवार के साथ बात करने का समय होता। और कई वर्ष लग जाते मंजिल तक पहुंचने में, कई असफल भी हो जाते हैं। और बाद में बोलते हैं कि हमें तो पता ही नहीं चला कब बच्चे बड़े हो गए। हम तो कमाने में व्यस्त थे कि बच्चों का बचपन भी नहीं देख पाए। कोई इस जमाने में खुश ही नहीं है चाहे उसकी तनख्वाह 50,000 है, या लाख-लाख है। कोई भी खुश नहीं है। सभी प्रतिस्पर्धा की दौड़ में जो है, उससे भी जाते है। इसीलिए ज्यादा से ज्यादा सोचते रहते हैं यही सोचना उन्हें अवसाद की तरफ ले जाता है ।

जिंदगी है हसीन,
जी ले इसे।
गंवा देखा कीमती वक्त,
रह जाएगा पछताता।
मिलेंगे ना दुबारा,
ये सुनहरे पल।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — हमारे पास कितना धन है, यह नहीं कि दूसरों से अच्छा कैसे बनना और आगे कैसे निकलना है। क्योंकि सब में प्रतिभा होती है यह अलग बात है कि कोई पहचान लेता। कोई नहीं पहचानता, सिर्फ दौड़ में लग जाता है। यही दौड़ अवसाद का कारण बनती है क्योंकि हम एक-दूसरे से आगे निकलने की दौड़ में समय, पैसा, सुख-चैन खो देते हैं। हमें पता भी नहीं चलता कब हम इस प्रतिस्पर्धा की भाग दौड़ में समय, पैसा और सुख-चैन को खो दिया। जब तक बात हमें समझ आती है अवसाद हमें चारों तरफ से घेर लेता है।

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यह लेख (प्रतिस्पर्धा कहीं बन ना जाए अवसाद का कारण?) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी लेख, कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

आपका परिचय आप ही के शब्दों में:—

मेरा नाम सीमा रंगा इंद्रा है। मेरी शिक्षा बी एड, एम. ए. हिंदी। व्यवसाय – लेखिका, प्रेरक वक्ता व कवयित्री। प्रकाशन – सतरंगी कविताएं, देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं व लेख, दैनिक भास्कर, दैनिक भास्कर बाल पत्रिका, अमर उजाला, संडे रिपोर्टर, दिव्य शक्ति टाइम्स ऑफ़ डेजर्ट, कोल्डफीरर, प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, इंदौर समाचार लोकांतर, वूमेन एक्सप्रेस सीमांत रक्षक युगपक्ष, रेड हैंडेड, मालवा हेराल्ड, टीम मंथन, उत्कर्ष मेल काव्य संगम पत्रिका, मातृत्व पत्रिका, कोलकाता से प्रकाशित दैनिक पत्रिका, सुभाषित पत्रिका शब्दों की आत्मा पत्रिका, अकोदिया सम्राट दिव्या पंचायत, खबर वाहिनी, समतावादी मासिक पत्रिका, सर्वण दर्पण पत्रिका, मेरी कलम पूजा पत्रिका, सुवासित पत्रिका, 249 कविता के लेखक कहानियां प्रकाशित देश के अलग-अलग समाचार पत्रों में समय-समय पर।

सम्मान पत्र -180 ऑनलाइन सम्मान पत्र, चार बार BSF से सम्मानित, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सोसायटी से सम्मानित, नेहरू युवा केंद्र बाड़मेर से सम्मानित, शुभम संस्थान और विश्वास सेवा संस्थान द्वारा सम्मानित, प्रज्ञा क्लासेस बाड़मेर द्वारा, आकाशवाणी से लगातार काव्य पाठ, सम्मानित, बीएसएफ में वेलफेयर के कार्यों को सुचारु रुप से चलाने हेतु सम्मानित। गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, प्रेसिडेंट ग्लोबल चेकर अवार्ड।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान और ध्यान रुपी भोजन जरूरी हैं।-KMSRAj51

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”~KMSRAj51

 

 

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हम पुस्तकें पढ़ेंगे तो ही बच्चे पढ़ेंगे।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ हम पुस्तकें पढ़ेंगे तो ही बच्चे पढ़ेंगे। ♦

आप सभी ने सुना होगा कि बच्चे देख कर ही सीखते हैं। जैसा हम करते हैं बच्चे भी हमारा अनुकरण करते हैं। इस आधुनिक युग में जब से फोन ने सबकी जिंदगी में कदम रखा है पुस्तकों का महत्व ही खत्म होता जा रहा है। परंतु कुछ समय पहले ऐसा नहीं था।

सबको पुस्तकों से लगाव था। घर में पुस्तक रखी रहती थी। धार्मिक पुस्तकें भी पढ़ाई की पुस्तकें भी। परंतु आजकल तो यह खत्म ही होता जा रहा है। फोन पर ही किताबें पढ़ी जाती है। इसलिए बच्चे भी आजकल जिद्दी हो गए हैं उनको भी फोन चाहिए। अगर हम घर में मात-पिता ही पुस्तक नहीं पढ़ेगें तो बच्चों से कैसे उम्मीद लगा सकते हैं कि वे पढ़ें। जरूरी नहीं है कि आप पढ़ाई कर रहे हो तभी किसी पुस्तक को पढ़े।

जब भी आपको शाम को खाली समय मिले तो जिस भी पुस्तक में आपकी रुचि है उसे लेकर आप बैठ जाइए। एक घंटा पढ़ेंगे भी तो बच्चे आपको देख कर खुद ब खुद किताब उठाकर पढ़ने लग जाएंगे। इससे एक पंथ दो काज हो जाएंगे आपको बोलना भी नहीं पड़ेगा और बच्चो के अंदर भी अच्छे संस्कार जागृत होंगे।

अगर पुस्तक नहीं पढ़ सकते तो अखबार तो पढ़ सकते हैं। एक दो घंटा अखबार लेकर बैठेंगे तो बच्चे आपको देख कर खुद ब खुद पढ़ने बैठ जाएंगे। आज के इस डिजिटल युग में सारे काम फोन से हो जाते हैं।

अच्छा भी है काम तुरंत हो जाते हैं। परंतु पुस्तक पढ़ने भी तो बहुत जरूरी है। अभी लॉकडाउन में सबको पता लग गया होगा कि पढ़ाई का महत्व स्कूल वाली पढ़ाई का ज्यादा महत्व है या फोन वाली पढ़ाई का।

अध्यापक के साथ बैठकर बच्चे किताब से पढ़ते हैं। उसका ज्यादा महत्व है। आपको देखकर उसकी भी आदत में शामिल हो जाएगा पढ़ना। आपको पता भी नहीं चलेगा कब आपने संस्कार का बीज बोया और वह कब फल बनकर तैयार हो जाएगा । “यह एक ऐसी क्रिया है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती जाएगी।”

जरूरी नहीं है किसी विषय की ही पुस्तक पढ़ी जाए। आप कोई भी किताब पढ़ लो जो आपको अच्छी लगे। या बच्चों की पाठ्यक्रम की पुस्तक भी पढ़ सकते हैं, पाठ्यक्रम की पुस्तकें बहुत ही ज्ञानवर्धक होती हैं।

उससे दो काम एक साथ में हो जाएंगे। बच्चे को भी पढ़ा दोगे। साथ में बच्चों को पढ़कर सुना सकते हैं खेल – खेल में बच्चों का पाठ भी हो जाएगा और आपका समय पास हो जाएगा। और अपने बच्चे के साथ अच्छा समय भी बिता पाओगे।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — पुस्तकें किसी भी इंसान की सबसे अच्छी व सच्ची मित्र है, “कोई ज्ञान कभी भी बुरा नहीं होता हां इंसान बुरे हो सकते है,” इसलिए जहां से भी हो सके ज्ञान अर्जित करने में शर्माना नहीं चाहिए कभी भी। जैसा हम करते हैं बच्चे भी हमारा अनुकरण करते हैं। इस आधुनिक युग में जब से फोन आया है तब से सबकी जिंदगी में पुस्तकों का महत्व ही खत्म होता जा रहा है। जब हम पुस्तकें पढ़ेंगे तो ही तो बच्चे भी पढ़ेंगे। आज भी जितने विद्वान् लोग है या बड़े बिजनेसमैन है सभी नियमित किताब पढ़ते हैं। जीवन के हर क्षेत्र में अगर आगे बढ़ना है तो पुस्तकें पढ़ना शुरू कर दे। आपको पढ़ता देखकर बच्चे भी पढ़ने लगेंगे। आओ हमसब मिलकर ये संकल्प ले की हमसब खुद भी पुस्तकें पढ़ेंगे और बच्चों के साथ-साथ सभी को पुस्तकें पढ़ने के लिए जागरूक करेंगे।

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यह लेख (हम पुस्तकें पढ़ेंगे तो ही बच्चे पढ़ेंगे।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

 

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ज्ञान अहमियत रखता है ना की अंक।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ ज्ञान अहमियत रखता है ना की अंक। ♦

आजकल परीक्षा में ज्यादा अंक लाने की प्रवृत्ति दिन – प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अभिभावक चाहते हैं कि मेरे बच्चे पूरे के पूरे परीक्षा में अंक लाएं। चारों तरफ बस होड़ लगी हुई है एक – दूसरे से ज्यादा अंक लाने की। इस बात पर जोर क्यों नहीं दिया जाता कि अंको की अहमियत तभी है जब हमें पूरे पाठ्यक्रम का ज्ञान होगा। कई बार ऐसा होता है, आप लोगों ने सुना भी होगा और देखा भी है, कम अंक लाने वाला विद्यार्थी जीवन में सफल हो जाता है और हमेशा कक्षा में अव्वल रहने वाला विद्यार्थी कई बार पीछे छूट जाता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि दोनों ने पढ़ाई नहीं की दोनों ने पढ़ाई की होती है परंतु कई बार बच्चे सिर्फ किताबों तक ही सीमित रह जाते हैं। वास्तविकता से उन्हें कोई लेना – देना नहीं होता।

बच्चों को किताबी कीड़ा बनाने की बजाए शिक्षा के साथ-साथ उन्हें खेलकूद के क्षेत्र में भी योगदान देने की कहे। ताकि बच्चे हर क्षेत्र में अपने हाथ आजमा ले और जीवन में तनाव की स्थिति पैदा ना हो क्योंकि ज्यादा अंक प्राप्त करने की स्थिति में बच्चे चिड़चिड़े और हठी हो जाते हैं। कई बार बच्चे अवसाद से ग्रसित होकर छोटी सी उम्र में ही परेशान रहने लगते हैं।

किसी का कहना नहीं मानते और कई बार तो बच्चे मौत को भी गले लगा रहे हैं, क्योंकि ज्यादा अंक लाने की प्रवृत्ति उनके अंदर इतना घर कर चुकी होती है कि उनको ज्यादा अंकों के सिवा कुछ नहीं दिखाई देता। अगर कई बार परीक्षा में बच्चे का पेपर अच्छा नहीं होता तो बच्चा सोचता है अब मेरे अभिभावक क्या बोलेंगे? हमारे पड़ोसी क्या बोलेंगे?

जिससे वह तनाव में आकर यह कदम उठा लेता है। बच्चों को सिर्फ ज्यादा अंक लाने के लिए दबाव न डालें उन्हें अपनी मर्जी से अपने विषय लेने दे और उन्हें ज्यादा अंक लाने की बजाय यह समझाएं कि आपको अच्छे से पढ़ना है अंक चाहे जितने भी आ जाए। पहले हमारे समय में बच्चे के ऊपर इतना दबाव नहीं होता था। पहले पढ़ाई के साथ – साथ बच्चे खेलकूद, घरेलू कार्यों में अपना योगदान देते थे। दादा – दादी, नाना – नानी के पास बैठते थे। जो आज बिल्कुल खत्म होता जा रहा है।

बचपन अच्छे से जीते थे, आजकल तो बच्चों ने पढ़ना शुरू किया नहीं कि मां-बाप खींचना शुरू कर देते हैं कि तुझे अच्छे नंबर लाने हैं सबसे ज्यादा नंबर लाने है। बस इसी की दौड़ में लगे रहते हैं। कई बार तो ऐसा होता है सोसाइटी के दूसरे बच्चे और उनके दोस्त के बच्चे अच्छे नंबर ला रहे। तो अभिभावक चाहते हैं उनके बच्चे भी ऐसे ही नंबर लाए। अपना नाम ऊपर करने के लिए या दिखावा करने के लिए लोगों के सामने यह बोलते हैं हमारे बच्चे के कितने नंबर आए।

एक बच्चे का दूसरे बच्चे के साथ तुलना करते हैं जो बिल्कुल गलत है। क्योंकि सब बच्चों में अलग-अलग प्रतिभाएं होती हैं। क्या हमारे अभिभावकों ने कभी ऐसा किया था? जो आज हम अपने बच्चों के साथ कर रहे हैं।

फूल से मासूम है,
जी लेने दो उन्हें बचपन।
हंसने दो, खेलने दो, मुस्कुराने दो,
खुली हवा में सांस लेने दो।
एक बार आता है बचपन,
चला गया, लौट कर कभी नहीं आएगा।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

—————

  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस लेख के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — आप कोई भी कार्य करे, हर कार्य में प्रैक्टिकल ज्ञान ही मुख्य होता, अगर आपको प्रैक्टिकल कार्य की जानकारी नहीं है तो आप कभी भी उस कार्य को अच्छे से नहीं कर पाएंगे। इसलिए ज्ञान अहमियत रखता है ना की अंक। फंडामेंटल प्रैक्टिकल ज्ञान पर फोकस करे और जितना हो सके अपने आपको उतना अच्छा व्यावहारिक प्रैक्टिकल ज्ञान पर ध्यान दे तभी आप कोई भी कार्य अच्छे से कर पाएंगे। इस संसार में आप जिधर भी नज़र घुमाएं आपको बहुत सारे ऐसे लोग मिल जायेंगे जिनके पास अच्छा नंबर और डिग्री नहीं है लेकिन वो आज के समय में अच्छा पैसा कमा रहे है, लेकिन जिनके पास अच्छा नंबर भी था और अच्छा डिग्री भी लेकिन आज भी बहुत मुश्किल से अपना जीवन यापन कर रहे हैं। इसलिए अपने बच्चो पर कभी भी ये दबाव ना बनाये की अच्छा नंबर लाओ, इसकी जगह अपने बच्चो को समझाए की अच्छे से फंडामेंटल प्रैक्टिकल ज्ञान पर फोकस करे, और किसी भी विषय को प्रैक्टिकल रूप से अच्छे से समझे, जो उसे जीवन पर्यन्त लाभ पहुँचाये।

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यह लेख (ज्ञान अहमियत रखता है ना की अंक।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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पक्षियों की समझदारी।

Kmsraj51 की कलम से…..

♦ पक्षियों की समझदारी। ♦

अरे ! तोता, कबूतर, मैना सुना क्या तुमने आज। बड़ी चिड़िया आई मेरे घोसलें के पास मुझे गिरा कर खुद बैठ गई और बोली यह घर मेरा है। भाग जा यहां से। अच्छा बहन यह तो बहुत बुरा हुआ। हमने देखा था तूने कितनी मेहनत लगन से घोंसला बनाया था। हां इसी बात का तो रोना है पर हम छोटी चिड़िया कुछ कर भी तो नहीं सकते। उस बड़ी चिड़िया के सामने तोता, मैना, कबूतर सब ने कहा क्यों नहीं कर सकते हम मिलकर कोई तरकीब ढूंढते हैं। सभी मिलकर बड़ी चिड़िया को काली चिड़िया के घोसलें से निकालने की तरकीब सोचने लगे। फिर कबूतर को एक आईडिया आया। हम सब जैसे ही बड़ी चिड़िया तेरे घोंसले आएगी उसे देखकर बातें करेंगे कि अच्छा हुआ काली बहन जो तू इस घोसलें से निकल गई।

वरना आज तो। हां-हां क्यों नहीं मैं यह जरूर काम आएगा। कुछ समय पश्चात जैसे बड़ी चिड़िया घोंसले में आई। तोता, मैना, कबूतर चिड़िया जोर-जोर से बातें करने लगे काली चिड़िया अच्छा हुआ जो समय रहते घोसलें को छोड़ दिया। नहीं तो आज! इतना बोल कर सभी चुप हो गए। तभी बड़ी चिड़िया बोली नहीं तो क्या। कुछ नहीं बड़ी चिड़िया हम तो बस ऐसे ही। ऐसे ही क्या बोल रहे हो! खुल कर बोलो। नहीं तो तुम सब को मारकर खा जाऊंगी। हां हां हां बड़ी चिड़िया अभी बताते हैं।

हमने क्या देखा अभी कुछ समय पहले ही सांप आया था उसने घोंसले के चारो ओर देखा और देख कर बोला कोई नहीं चिड़िया अब तू घोसले में नहीं है जैसे ही आएगी उसे खा जाऊंगा। यह देखो सांप की केचूंली भी है। दिखाओ दिखाओ किधर किधर डर के मारे बड़ी चिड़िया का बुरा हाल हो रहा था। देखो हां हां ये तो सांप की केचूंली है।

सभी मन ही मन हंस रहे थे क्योंकि उन्होंने कहीं जंगल से केचूंली को लाकर रख दिया था। और वह भी टूटी-फूटी परंतु बड़ी चिड़िया ने तो डर के मारे देखा भी नहीं की कितनी पुरानी है और टूटी हुई भी है केचूंली।

देखते ही फुर से उड़ गई और सभी पक्षियों को बोली तुम भी भाग जाओ वरना सब के सब मारे जाओगे। सांप सब को खा जाएगा। सभी जोर-जोर से हंस रहे थे और बड़ी चिड़िया का मजाक बना रहे थे। परंतु सब की समझदारी से काली चिड़िया का घोंसला बच गया।

♦ सीमा रंगा इन्द्रा जी – हरियाणा ♦

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  • “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कहानी के माध्यम से समझाने की कोशिश की है — हसमझदारी और सूझबूझ से हर समस्या का समाधान किया जा सकता है। इसलिए जब भी जीवन में कोई समस्या आये तो घबराये नहीं, समझदारी और सूझबूझ से उस समस्या का समाधान निकाले। इस पृथ्वी पर एक भी ऐसी समस्या नहीं जिसका समाधान न हो, इसलिए धैर्य के साथ समझदारी और सूझबूझ से हर समस्या का समाधान करे। शांत मन से विचार करे आपको समाधान जरूर मिलेगा।

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यह कहानी (पक्षियों की समझदारी।) “श्रीमती सीमा रंगा इन्द्रा जी“ की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें व कहानी सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं, कहानी और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे।

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  • देश की मिट्टी।
  • गाँव का जीवन।
  • दर्द ए दिल।
  • प्रकृति और खिलवाड़।

KMSRAJ51: Motivational Speaker

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मंत्र को गुप्त क्यों रखा जाता है?

यही हमारा नारा है।

बल के लिए।

आन बान आउर शान बा।

सैनिक का सैनिक।

आज आजादी है हमको मिली तो।

हो जाओ तैयार।

पहले और अब – गणतंत्र दिवस।

बदलता भारत।

माँ की शिकायत।

गणतंत्र का महत्व।

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