Kmsraj51 की कलम से…..
Vipada | विपदा।
रही पति की अच्छी पगार,
थी होटल में खाती।
व्यंजन कैसे खाने में,
आसपास बताती थी।
कह देता यदि कोई भी
पास कुछ रखा करो!
लेती सिकोड़ मुंह अपना,
भौहें तन जाती जी।
मंगल बने दीवार बच्चे,
वरना होटल में ठहरती।
बिताती रात भर वहीं,
सुबह – सुबह घर आती।
शौहर जब भी बोलता,
उसके सर चढ़ जाती।
दिये दहेज पापा की,
बार बार वह चिल्लाती।
विधान विधाता का क्या,
जानता कौन भला है।
विपत्ति विक्रमादित्य पर,
भूनी मछली जल में पड़ी।
है रोटी कपड़ा और मकान,
सीना तान बैठा सब कोई।
मैं विष्णु का आहार जो,
शास्त्रीय ही बतलाता है।
फिर भी घमंड में मानव,
अपना अपना सुनाता है।
दुनिया से कैसा एम प्रेम,
सोर हर ओर रहा कैसा?
झगड़े झंझट से मुक्ति ले,
दुपट्टे में छुप जाती थी।
जलना जीवन का ध्येय है,
जलना बना ली है सीमा।
कूंजती कोयल काली,
डोलती मद मतवाली।
शौहर पगार पतली पड़ी,
बजा हृदय में विकल राग।
घिर गयी घटा सी उलझन,
दाने दाने को तरस रही।
दशा देख नभ हुआ अधीर,
झर झर नयनों बह रहे नीर।
कोलाहल पथ चल के आयी,
अंतस में नव हर्ष – विषाद।
कास संभल के जीवन जीती,
लहरों का नहीं होता उन्माद।
संस्कृति – सभ्यता में चलती,
जो जीवन का रहस्य खास।
♦ सुख मंगल सिंह जी – अवध निवासी ♦
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— Conclusion —
- “सुख मंगल सिंह जी“ ने, बहुत ही सरल शब्दों में सुंदर तरीके से इस कविता में समझाने की कोशिश की है — कविता में एक पत्नी की कहानी है, जो अपने पति की जब ज्यादा पगार होती है तब खूब होटल में ही खाना खाती है और जब पति कुछ बोलता तो उसे कैसे खाना खाने का तरीका सिखाती है। वह अपने पति से कहती है कि वह कभी भी अपने पास कुछ न रखें, लेकिन जब पति कुछ बोलता तो उसे पापा के द्वारा दिए दहेज का जिक्र कर जाती हैं, और वह चिल्लाती है। समय एक जैसा नहीं रहता हैं, मानव अपने घमंड में क्यों सबकुछ भूल कर अपना ही अहित करता जाता है, जैसे इस पत्नी ने किया अपने पति की बात ना मानकर अपने पुरे परिवार को आर्थिक संकट में डाल दिया। अब तो बजा हृदय में विकल राग, घिर गयी घटा सी उलझन, दाने दाने को तरस रही। इसलिए जीवन में हर कार्य एक संतुलन में रहकर करें, और अचानक से आने वाले ख़राब समय(बुरा समय) के लिए बैकअप योजना (पैसा बचाकर रखे) नहीं तो फिर बहुत ज्यादा परेशान हो जायेंगे।
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यह कविता (विपदा।) “सुख मंगल सिंह जी” की रचना है। KMSRAJ51.COM — के पाठकों के लिए। आपकी कवितायें, व्यंग्य / लेख सरल शब्दो में दिल की गहराइयों तक उतर कर जीवन बदलने वाली होती है। मुझे पूर्ण विश्वास है आपकी कविताओं और लेख से जनमानस का कल्याण होगा। आपकी कविताओं और लेख से आने वाली पीढ़ी के दिलो दिमाग में हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम बना रहेगा। आपकी लेखन क्रिया यूं ही चलती रहे, बाबा विश्वनाथ की कृपा से।
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